“Rijho Rijho Shri Veer Dekhi Shasan Na Shirtaaj..”
Almost 350 Years Old Prachin Jain Paryushan Stavan.
रीझो रीझो श्री वीर देखी, शासनना शिरताज।
हरखो हरखो आ मौसम आवी, पर्व पर्युषण आज।। (1)
प्रभुजी देवे पर्षदा मांहे, उत्तम शिक्षा एम।
आलसमां बहुकाल गुमाव्यो, पर्व न साध्यो केम।। (2)
रीझो रीझो…
सोनानी रजकण संभाले, जेम सोनी एक चित्त।
तेथी पण आ अवसर अधिको, करो आतम पवित्त।। (3)
रीझो रीझो…
जेना माटे निशदिन रखड़ो, तजी धर्मना नेम।
पाप करो तो शिर पर बोजो, तो व्याज्बी केम।। (4)
रीझो रीझो…
कोई न लेशे भाग पापनो, धननो लेशे सर्व।
परभव जातां साथ धर्मनो, साधो आ शुभ पर्व।। (5)
रीझो रीझो…
संपीने समताए सुणजो, अट्ठाई व्याख्याण।
छट्ठ करजो श्री कल्पसूत्रनो, वार्षिक अट्ठम जाण।। (6)
रीझो रीझो…
निशिथसूत्रनी चूर्णीमांहे, आलोचना वखणाय।
खमीए होंशे सर्व जीव ने, जीवन निर्मल थाय।। (7)
रीझो रीझो…
उपकारी श्री प्रभुनी कीजे, पूजा अष्ट प्रकार।
चैत्य जुहारी गुरु वंदिजे, आवश्यक बे काल।। (8)
रीझो रीझो…
पौषध चौसठ प्रहरी करतां, जाय कर्म जंजाल।
पद्मविजय समता रस झीले, धर्मे मंगलमाल।। (9)
रीझो रीझो…
रीझो रीझो श्री वीर देखी, शासनना शिरताज..
हरखो हरखो आ मौसम आवी, पर्व पर्युषण आज…
रचयिता – परम पूज्य श्री पद्मविजयजी महाराज साहेब
गायिका – फोरम प्रशम शाह
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