सबसे पहले आइए कुछ News के बारे में जान लेते हैं।
- भारत के सबसे अमीर भिखारी भरत जैन के पास कितने करोड़ की संपत्ति है।
- Fake Embassy Case – England में खोली 17 कंपनियां, 150 से ज्यादा बार गया विदेश… हर्षवर्धन जैन पर हुई जांच में कई बड़े राज उजागर।
- ED questions AAP leader Satyendar Jain over alleged scam in Delhi Jal Board Projects.
- Model Preeti Jain convicted for plotting to kill Madhur Bhandarkar.
यह News पढ़कर आम जनता के दिमाग में यह बात आ सकती है कि जैन लोग ऐसे होते हैं क्या?
अब प्रश्न यह है कि हमें अपने नाम के पीछे “जैन” लगाना चाहिए या नहीं?
इस प्रश्न का उत्तर हमें मिला है परम पूज्य पंन्यास श्री निर्मोहसुंदर विजयजी महाराज साहेब द्वारा लिखित Dharma Premi Sandesh Magazine के माध्यम से।
‘जैन’ लगाने की शुरुआत
आप सब अगर अपने-अपने माता-पिता के ID Proofs देखेंगे तो ज़रूर देखने को मिलेगा कि बहुत कम लोगों ने अपने नाम के पीछे JAIN लगाया होगा, कुमार-कुमारी अथवा चौहान, अगरवाल, मुथा, शाह आदि ही नाम आपको मिलेंगे।
फिर अचानक से एक दौर आया जहाँ पर नाम के पीछे JAIN लगाना शुरू हुआ।
आज कई परिवारों में गोत्र को छोड़कर नाम के पीछे JAIN डाला गया, और यह परंपरा अब चल रही है लेकिन नाम के पीछे JAIN डालना उचित है या अनुचित वह आज हम जानेंगे।
बने रहिए इस Article के अंत तक…
गौरव या बदनामी?
हम ऐसा मानते हैं कि नाम के पीछे जैन लगाने से धर्म का गौरव बढ़ता है। हम कुछ अच्छा करेंगे तो जैन धर्म का नाम रोशन होगा Right? लेकिन क्या सच में ऐसा होता है?
देखिए पूरे विश्व में हम कहीं पर भी जाए लेकिन नाम के पीछे अपने धर्म को जोड़ने वाला लगभग नहीं मिलेगा।
- KT THOMAS मिलेगा लेकिन KT CHRISTIAN नहीं मिलेगा।
- ABDUL QURESHI देखने को मिलेगा, ABDUL ISLAM नहीं।
- KAPIL SHARMA देखने को मिलेगा लेकिन KAPIL BRAHMAN नहीं।
- MANMOHAN SINGH नाम सुनने को मिलता है लेकिन MANMOHAN SIKH नहीं।
सिर्फ जैन धर्मी ही अपने नाम के पीछे ज्यादातर जैन लगा रहे हैं। नाम तो मरने के बाद भी मिट जाता है, लेकिन धर्म मिटने की चीज़ नहीं है। नाम खत्म होता है लेकिन धर्म नहीं।
नाम बदनाम भी हो सकता है लेकिन अगर नाम के साथ धर्म को भी जोड़ दिया जाए तो धर्म भी बदनाम हो जाएगा। हमें लगेगा जैन शब्द अपने नाम के पीछे लगाना शायद गौरव का विषय है लेकिन यह होड़ उचित नहीं है।
हकीकत में जिसका प्रयोग करना होता है, उसका प्रदर्शन करना अनुचित माना जाता है अर्थात् जिसका Utilise करना है उसका Show-off नहीं करना है।
- शरीर एवं शक्ति का प्रयोग करना होता है प्रदर्शन नहीं।
- प्रेम का प्रयोग करना होता है प्रदर्शन नहीं।
जो प्रयोग, पुरुषार्थ एवं पराक्रम करता है उसे अपने आप गौरव मिल जाता है लेकिन जो सिर्फ और सिर्फ जैन धर्म को अपने नाम के पीछे लगाकर प्रदर्शन का विषय बना रहा है वह क्या खतरनाक खेल खेलने जा रहे हैं उन्हें भी पता नहीं है।
अपने नाम के पीछे ‘जैन’ लगा देने से क्या खतरनाक खेल हो सकता है यह बात तो दिमाग में नहीं बैठी?
जब एक व्यक्ति के नाम के पीछे पिता या गोत्र का नाम लगता है और मान लो उस व्यक्ति द्वारा कुछ बुरा काम होता है तब पिता का नाम अथवा गोत्र का नाम बदनाम होते हैं।
लेकिन जैन लगाने पर बुरे काम की बदनामी प्रभु महावीर तक जाती है और इससे पूरे विश्व में जैन धर्म की प्रतिष्ठा कलंकित होती है जो कि मान्य नहीं है कारण यह कि बदनाम जैन धर्म होता है जबकि जैन धर्म ने कभी भी कोई बुरा कार्य करने की प्रेरणा ही नहीं दी है।
Media Angle
अगर बदनामी का Angle छोड़कर दूसरे Angle से देखें तो अच्छा कार्य होने पर Credit भी जैन धर्म को ही मिलेगा ना? हर जगह Plus Minus तो होता ही है। फायदा जैन धर्म को भी होगा ही।
देखिए यह बात सही है कि अच्छा कार्य होगा तो जैन धर्म को भी Credit मिलेगा ही लेकिन आज का Print Media, Social Media एवं Mainstream Media आप कोई भी Media ले लीजिए ज़्यादातर आपको Negative News ही देखने को मिलेगी।
आज जैनों द्वारा हजारों लाखों की संख्या में उपवास की तपस्याएँ हो रही है, मासक्षमण हो रहे हैं लेकिन उसके समाचार कितने छपे, कहाँ छपे यह ढूंढना पड़ेगा, ज्यादा से ज्यादा कोई Local Newspaper में देखने को मिलेंगे।
लेकिन एक लड़की 68 उपवास के पारणे के दो दिन बाद शांत हो गई तो पूरी Media उसके परिवार पर टूट पड़ी इतना ही नहीं स्वयं जैनों को भी तपस्या धर्म पर शंका होने लगी।
इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि Negative News का कितना प्रभाव होता है।
कड़वा सच यह है कि अच्छे समाचार 1000 बनते हैं तब 1 छपता है, बुरे समाचार 1 बनते हैं और 1000 जगह बार बार छपता है। तो ऐसे युग में हमारे द्वारा जैन धर्म को गौरव दिलवाने की बात बाद में, पहले यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि बदनामी ना हो।
No Guarantee
सबका तो हम नहीं बोल सकते लेकिन जो व्यक्ति सज्जन है, जैन धर्म के Basic नियम भी पाल रहा है वह इंसान अपने नाम के पीछे Jain लगाए तो क्या समस्या है?
देखिए जो लोग अच्छे हैं, सज्जन हैं वह भी आज के कलिकाल में यह गारंटी नहीं दे सकते कि उनके पोते, बेटे शराब नहीं पीएंगे।
यह नहीं कह सकते हैं कि उनके बेटे अथवा पोते 100% कोई भी गलत काम नहीं करेंगे या फिर ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे जैन धर्म की बदनामी हो।
नाम के पीछे जैन लगाकर व्यक्ति जब VEG-NON VEG Mix Hotel में जाता है, शराब पीता है अथवा इस तरह से कोई बड़े भयानक पाप करता है तो भयानक नुकसान होता है।
वह व्यक्ति पाप करके दुर्गति में जाए वह उसका नीजी नुकसान है लेकिन हमारे पाप इतने भारी नहीं होने चाहिए कि हमें भविष्य में कभी जैन शासन का नाम भी सुनने को ना मिले..
अथवा हमारे कारण जैन शासन के करीब आनेवाले ऐसी बातें जानकर हमेशा हमेशा के लिए जैन धर्म से दूर हो जाए।
‘जिनशासन’ की स्थापना
अपने नाम के पीछे जैन लगाने की परंपरा कुछ वर्षों से ही शुरू हुई है। आज भी कई लोग अपने नाम के पीछे अग्रवाल, ओसवाल, शाह, दोशी, पारेख, मुथा, संघवी इत्यादि ही लगाते हैं, जैन नहीं लगाते।
इसका भी महत्त्व का कारण है-परमात्मा महावीर ने विश्व धर्म की स्थापना की है। जैन संघ की स्थापना की है।
प्रभु महावीर ने कोई जैन समाज या जैन जाति-गोत्र-कुल की स्थापना नहीं की है। प्रभु महावीर जातिवाद, संप्रदायवाद, देश, ग्राम, नगर सबसे ऊपर उठकर सर्व जीवों के सर्व काल के कल्याण के लिए प्रयासरत थे।
उन्होंने संप्रदाय की नहीं जैन शासन की स्थापना की थी।
प्रभु महावीर खुद क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे, प्रभु महावीर के सभी गणधरों की जाति ब्राह्मण थी। प्रभु महावीर का धर्म आज अधिकतर बनियों द्वारा पाला जा रहा है।
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रभु से लेकर 24वें तीर्थंकर द्वारा स्थापित जैन धर्म ‘सबका साथ, सबका विकास और सब का विश्वास’ का नारा हज़ारों वर्षों से लगाता आया है।
आज हमारी सोच बहुत संकुचित हो गई है, आचरण से जैन बनने के बजाय सिर्फ नाम से ही हम जैन बने रहना चाहते हैं। जन्म से माँ-बाप-परिवार-पैसे-कुल-जाति-मातृभूमि आदि मिल सकता है लेकिन धर्म कैसे मिल जाएगा?
जो FREE में मिल जाता है कई बार उसकी कीमत समझ में नहीं आती आज नामधारी जैनों को देखने पर यही माजरा दिख रहा है। जैसे हलवाई को मिठाई पसंद नहीं होती है, वैसे ही कई जैनियों को अपने ही धर्म के नियम कई बार पसंद नहीं आते।
धर्म थोपने का नहीं बल्कि अपनाने का विषय है।
नाम के पीछे जैन लगाने वाले एक भ्रान्ति और ग़लतफहमी खड़ी यह कर रहे हैं कि “जो माता-पिता जैन धर्म का पालन कर रहे हैं, उनके यहाँ पर कोई जन्म लेगा तो वह भी जैन माना जाएगा और बाहर वाला कोई भी जैन नहीं बन सकता।” जो कि गलत है।
कर्म से ‘जैन’
जैन धर्म पर किसी एक वर्ग का Copyright Reserve नहीं है, व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि कर्मों से जैन बनता है।
एक उदाहरण से यह विषय समझते हैं..
मान लीजिए एक Husband और Wife, Doctor है। उनके यहाँ पर एक संतान ने जन्म लिया। तो क्या वह संतान जन्म से ही डॉक्टर बन जाएगी? या फिर Doctor कहलाएगी?
क्या हम ऐसा कहेंगे कि इनके माता-पिता Doctor है इसलिए यह भी Doctor है?
नहीं!
उस संतान को मेहनत करनी पड़ेगी, पढ़ाई करनी पड़ेगी, Exams लिखनी पड़ेगी और Exams में Pass होने पर फिर वह Doctor कहलाएगा।
इसी तरह से मान लीजिए एक जैन श्रावक और श्राविका है उनके यहाँ पर एक संतान का जन्म हुआ तो क्या जन्म से वह संतान जैन बन जाएगी? नहीं ऐसा नहीं होता है।
हाँ, हम ऐसा मन सकते हैं, कि उस संतान का पुण्य इतना ज्यादा है कि एक जैन श्रावक और श्राविका उसे माता पिता के रूप में मिले हैं No Doubt यह बात Right है..
लेकिन उस संतान को मेहनत करनी पड़ेगी, पुरुषार्थ करना पड़ेगा, स्वाध्याय करना पड़ेगा और बहुत मेहनत के बाद, गुरु भगवंतों के व्याख्यान, वाचनाएं सुनने के बाद, ज्ञान अर्जित करने के बाद Basic Jain Principles का पालन करना होगा।
उसके बाद वह जैन बनेगा व्यक्ति जन्म से नहीं कर्मों से जैन बनता है।
आज कई नामधारी जैन ज़मीनकंद खा रहे हैं, रात्रि भोजन कर रहे हैं, शराब पी रहे हैं, गलत धंधा कर रहे हैं, असत्य भी बोल रहे हैं। ऐसे लोगों के कारण जैन धर्म की बहुत भयानक रूप से बदनामी हो जाती है।
ब्याज के नाम से जब कोई नामधारी जैन किसी का शोषण करता है तो उस पीड़ित की नज़र में उस व्यक्ति के प्रति तो एक छाप बनती है लेकिन उसके साथ साथ उसे लगने लगता है कि सब जैन ऐसे ही होते हैं।
Social Media में भी ब्याज के नाम से जैन लोग लूटते हैं ऐसे Comments कई बार देखने को मिलते हैं। जबकि जैन धर्म ने कभी भी ऐसा कोई गलत कार्य करने की ना प्रेरणा दी है और ना ही अनुमति।
धर्म तो महाउपकारी है, हम जैन धर्म की भक्ति नहीं कर सकते कोई बात नहीं लेकिन जैन धर्म को कम से कम कलंकित तो नहीं ही करना है क्योंकि जैन धर्म की बदनामी यानी प्रभु महावीर की बदनामी अर्थात् इस जीवन का सबसे बड़ा पाप।
और हमारे कारण जैन धर्म बदनाम हो तो भविष्य में जैन धर्म फिर से कब मिलेगा यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। जैन शब्द भी सुनने को नहीं मिलेगा…
Census में पहचान
हमें तो यही कहा गया है कि हमें हमारे धर्म पर गौरव होना चाहिए, कहीं पर भी जाए लेकिन धर्म को भूलना नहीं चाहिए, Census के दौरान अधिकारी आकर पूछे कि आप कौन हो तब ‘हम जैन है’ ऐसा कहना है..
ऐसा ही सिखाया गया.. WhatsApp पर भी ऐसे Messages घूमते रहते हैं अब क्या करना?
लोग हमें आदर से जैन साहब, जैन साहब कहकर बुलाते हैं और हम उसमें खुश हो जाते हैं। हमारे द्वारा जैन धर्म का गौरव होना चाहिए उल्टा धर्म के द्वारा हमारा गौरव हो रहा है।
हमें हमारे धर्म का आनंद होना चाहिए, अभिमान नहीं, अहंकार नहीं, घमंड नहीं। Census के दौरान हमें अगर अधिकारी पूछे कि आप कौन हो तब हमें वहां पर सही उत्तर ही देना है।
हमें यही कहना है कि हम धर्म से जैन है और जाति से हिन्दू है। हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं है।
बौद्ध धर्म, वैदिक धर्म, जैन धर्म, शैव धर्म इत्यादि अलग-अलग धर्म के लोग एक स्थान हिन्दुस्तान में बरसों से मिलजुलकर प्रेम भाईचारे से एक दूसरे की धर्म आस्था और धर्म भावना को सम्मान देते हुए साथ में रहते आए हैं।
इसलिए सभी को हिन्दू के रूप में पहचाना जाता हैं। इसलिए Census के दौरान अधिकारी पूछे तो जैन धर्म बताने में शर्म महसूस नहीं करनी है। वहां पर यह बात छुपानी नहीं है।
नाम X धर्म
यहाँ पर बात नाम के साथ जैन को जोड़ने की हो रही है।
हमारे भारत राष्ट्र में पूर्व के काल में और आज भी कई हिस्सों में, कई परिवारों में पति पत्नी एक दूसरे का नाम नहीं लेते हैं।
भारतीय संस्कृति में एक सूत्र प्रचलित है कि ‘जिसका नाम उसका नाश’ अर्थात् जिसका नाम किसी के द्वारा रखा गया उसका नाश निश्चित ही होने वाला है तो पति-पत्नी इसलिए एक दूसरे का नाम लेना पसंद नहीं करते थे।
शायद हमें यह हास्यास्पद लगेगा लेकिन गहराई से सोचिए हर समय यही सोच रहा करती थी कि मेरे पति अथवा मेरी पत्नी की आयु दीर्घ रहे इसिलए मुझे नाम से नहीं पुकारना है, तो एक दूसरे के प्रति Healthy Relation रहेगा ही। खैर..
- नाम विनाशी है और धर्म अविनाशी।
- नाम शरीर से जुड़ा हुआ है, धर्म आत्मा से।
- नाम उपयोग के लिए होता है और धर्म उपासना के लिए होता है।
- नाम माँ-बाप पंडित आदि रखते हैं लेकिन धर्म प्रभु बताते हैं।
नाम के साथ धर्म को भी जोड़ने से हम कुछ क्षण के लिए तो गर्व महसूस कर सकते हैं लेकिन जीवन भर की ज़िम्मेदारी उठाने की तैयारी रखनी पड़ती है, हम वह ज़िम्मेदारी उठा भी ले लेकिन परिवार के सभी सदस्यों की गारंटी हम नहीं ले सकते हैं।
जिसे धर्म की कोई समझ नहीं है ऐसे लोग अपने नाम के पीछे धर्म को जोड़कर सिर्फ मिथ्या आत्मसंतोष मान रहे हैं।
कोई भी महाराज साहेब अपने नाम के पीछे ‘जैन’ नहीं लगाते हैं। उदाहरण के लिए यह प्रश्न का उत्तर देनेवाले पूज्य निर्मोहसुंदर विजयजी जैन ऐसा वे कभी भी नहीं लिखते।
गौतम स्वामी जी भी गणधर पद पाकर जैन ही बने थे लेकिन कभी किसी को यह नहीं बताया कि ‘मैं गौतम स्वामी जैन हूँ।’
आज पूरे भारत में 17-18 हज़ार जैन साधु-साध्वीजी भगवंत है लेकिन एक के भी नाम के पीछे जैन लगता देखा नहीं है, जो सभी जैनों के गुरु माने जाते हैं वे जब नाम के पीछे जैन नहीं लगाते तो हम क्यों लगा रहे हैं?
नाम के पीछे ‘जैन’ शब्द जोड़ने पर जैन शब्द का भी अपमान होता है। जैन धर्म को तो हमें हमारे नाम, घर, संसार के सभी कार्यों में आगे रखना है, पीछे नहीं।
News Headlines
शुरू में हमने कुछ News देखी थी वही News अब आप इस तरह से पढ़िए :
- भारत के सबसे अमीर भिखारी भरत मेहता के पास कितने करोड़ की संपत्ति है।
- Fake Embassy Case – हर्षवर्धन गोयल पर हुई जांच में कई बड़े राज उजागर
- ED Questions Satyendar Chauhan over alleged scam in Delhi.
- Model Preeti Kumari convicted for plotting to kill Madhur Bhandarkar.
Note : कोई भी Personally ना ले सिर्फ उदाहरण के लिए काल्पनिक तौर पर ये Surnames Use किए गए हैं। Without Any Intention To Hurt…
लेकिन गौर करने पर इन News को देखने पर कोई भी व्यक्ति जैन धर्म को लेकर गलत धारणा नहीं बनाएगा और जो News है जो विषय है उस पर ध्यान ज्यादा जाएगा।
लेकिन नाम के साथ JAIN जोड़ते ही जैन व्यक्ति ने यह ख़राब काम किया है इस पर ध्यान जाता है। अब लगभग दूध का दूध और पानी का पानी हो गया होगा।
JAIN शब्द के साथ Media में आपने Positive News Last कब देखी थी? याद कीजिए। शायद आपको याद भी नहीं आएगा.. लेकिन Negative?
Solution
व्यक्तिगत रूप से मेरे सभी Identify Proofs में भी JAIN ही नाम है तो क्या करना?
मेरे जैसे कई लोग होंगे जिन्हें यह विषय समझ में तो आ गया हो लेकिन अब Changes Possible ही ना हो तो?
जिनके लिए Possible है उन्हें नाम में बदलाव करके अपने गोत्र इत्यादि रखना ही उचित है।
जिनके लिए संभव नहीं है वे कम से कम इतना निर्णय कर सकते हैं कि हम हमारा जीवन इस तरह से, सात्विक तरीके से जीएंगे कि हमारे कारण धर्म की बदनामी ना हो।
Next Generation के नाम जब रखने में आएंगे तब कम से कम हम ध्यान रखेंगे कि नाम के पीछे “जैन” नहीं लगाना है।
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