Amazing Shasan Prabhavna Done By Diksharthi At Shri Kulpakji Jain Tirth

श्री कुलपाकजी तीर्थ में हुआ शासन प्रभावना का अद्भुत कार्य 🙏

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कुलपालजी तीर्थ में हुआ शासन प्रभावना का एक अद्भुत कार्य. 

Telangana State की राजधानी यानी Hyderabad शहर से 80 KM दूर श्री कुलपाकजी तीर्थ नामक एक अति प्राचीन तीर्थ रहा हुआ है. वहां के जिनालय की ध्वजा की लगभग 1400वीं सालगिरह चल रही है और इस भव्य जिनालय में बिराजमान श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा कितने साल प्राचीन है, उसका कोई हिसाब ही नहीं है. 

ऐसा माना जाता है कि सैंकड़ों वर्षों पहले प्रभु आदिनाथ के प्रथम पुत्र यानी श्री भरत चक्रवर्ती की अंगूठी के रत्न में से यह विशाल प्रतिमा बनाई गई है. कुछ ज्ञानियों का मानना है कि पास में रही हुई यह वो प्रतिमाजी है जो भरत चक्रवर्ती ने बनवाई थी. 

कुलपाकजी तीर्थ का इतिहास हमने पूर्व में जाना था. (Click Here) यहाँ देख सकते हैं.

तो तारीख 25 November 2024 के दिन इस प्राचीन एवं महान तीर्थ में प.पू. पंन्यास प्रवर श्री विरागरत्नविजयजी म.सा. एवं प.पू. गणिवर्य श्री गुणहंसविजयजी म.सा. की निश्रा में मंगलकारी उपधान तप का प्रारंभ हुआ था. 

उपधान के 1st Day यानी 25th November को 24वे तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी भगवान का दीक्षा कल्याणक था यानी कि इसी दिन लगभग 2500 से भी अधिक साल पहले प्रभु वीर ने दीक्षा ली थी. 

हर तीर्थंकर परमात्मा दीक्षा लेने से पहले 1 साल तक वर्षीदान करते हैं. प्रभु महावीर ने भी मगसर वदि 10 यानी प्रभु के दीक्षा दिन के 1 साल पहले से रोज 1 करोड़ 8 लाख स्वर्णमुद्राओं का वर्षीदान किया था. 

इस बात को ध्यान में रखकर उसी दिन तीर्थ में साधु भगवंतों के मार्गदर्शन के अनुसार एक अद्भुत वर्षीदान का आयोजन रखा गया. जिनका जन्म America में हुआ था और जिनकी एक साल की Salary करीबन 1 करोड़ 20 लाख रूपए थी, ऐसे जैन युवान मुमुक्षु ऋषिकुमार प.पू. विरागरत्नविजयजी महाराज साहेब के पास दीक्षा लेनेवाले हैं. 

May-June महीने में मुंबई के पास श्री भुवनभानु मानसमंदिर, शाहपुर तीर्थ में पद्मभूषण से विभूषित, सरस्वती लब्धप्रसाद प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रत्नसुंदरसूरिश्वरजी महाराज साहेब उन्हें राजोहरण प्रदान करेंगे. इन मुमुक्षु ऋषिभाई के हाथों से कुलपाकजी तीर्थ में वर्षीदान रखा गया था. 

तो आइए जानते हैं इस अद्भुत वर्षिदान की कुछ अनोखी बातें.

जैनेत्तरों को दिया गया वर्षीदान 

यह वर्षीदान जैनों को नहीं बल्कि जन्म से अजैन यानी जैनेत्तर भाई बहनों को दिया गया था. ठंडी के मौसम को ध्यान में रखते हुए Blankets का वर्षीदान दिया गया था. तीर्थ का Staff, रसोई संभालनेवाला Staff, वाडावाला Staff आदि लगभग 150 जितने जैनेत्तर Staff को 600 रूपए का Blanket वर्षीदान में दिया गया ताकि वे सभी लोग ठंडी में उसका Use भी कर सकें. 

कुलपाकजी के नजदीक के गाँव के School के 300 बच्चों को भी वहां पर बुलाया गया था. उन सभी को वर्षीदान के रूप में बूंदी के लड्डू दिए गए. School के जो Teachers आदि Staff आए थे, उन सभी को भी मुमुक्षु द्वारा Blankets दिए गए. 

बड़ी दाढ़ीवाले एक तेलुगु भाई श्रीनिवासजी भी उपधान में 18 Days वहां रहे, एकाशना किया, वे पौषध आदि क्रिया तो नहीं कर पाए लेकिन आराधकों के साथ ही रहे. यह भाई Educated हैं लेकिन उन्होंने और उनकी पत्नी ने पूरा जीवन लोगों को Non-Veg का त्याग करवाने में लगा दिया है. 

इन्ही श्रीनीवास भाई ने School के लगभग 300 बच्चों को Non-Veg खाने के Negative Effects समझाए और Non-Veg त्याग करने की प्रेरणा दी. उनकी बात सुनकर बच्चों ने थोड़े बहुत दिनों के लिए Non-Veg त्याग का नियम भी लिया. वो प्रयास करेंगे.

हालाँकि वो बच्चे थे लेकिन फिर भी वे हर एक चीज़ को बहुत अच्छी तरह से समझ रहे थे और अच्छे से हर बात का जवाब भी दे रहे थे. उनके Face से पता चल रहा था कि वे हर एक चीज़ को Interest से सुन भी रहे हैं और समझ भी रहे हैं. गाँव के बच्चों में भी एकदम अच्छा Discipline वहां देखने को मिल रहा था. 

तेलुगु भाषा जाननेवाले कुछ जैन युवान जैसे साहिल भाई, दीक्षित भाई आदि ने बच्चों को जैन साधु के आचार भी बताए और मुमुक्षु ऋषि भाई की पहचान करवाकर बताया ‘Financially इतने Well Settled यह भाई, कठिन नियमों का पालन करते हुए जीवन जीनेवाले जैन साधु बनेंगे, संसार का त्याग करेंगे.’

प.पू. गणिवर्य श्री गुणहंसविजयजी म.सा. ने वहां मौजूद जैनों को समझाया कि ‘हम.. जैनों में तो वर्षीदान करते ही है, लेकिन जैनेत्तरों में वर्षीदान करने का लाभ भी बहुत है. जैसे कि जैनेत्तरों को जैनों के प्रति सद्भाव-मैत्री भाव आदि बढ़ते हैं.  जैनेत्तर लोग जैन धर्म को, जैन साधु को जान पाते हैं.जैनेत्तर लोग जैन साधु के संपर्क से अपनी आत्मा में Change भी ला सकते हैं. 

आज अगर देखें तो ‘जिन 300 बच्चों को वहां बुलाया गया था, वे वो लड्डू खाएंगे और उससे उन सभी को कितनी खुशी होगी. गरीब बच्चों के भाग्य में तो पूरे साल में शायद बहुत कम दिन मिठाई खाने को मिलती होगी. 

जैनेत्तरों में प्रसिद्द जैन तीर्थ.

जानकारी के लिए बता दें कि मुमुक्षु ऋषि कुमार ने वर्षीदान में लगभग 1 लाख रूपए का खर्च किया. आपको एक चीज जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि वर्षीदान के लिए लगभग हजार लड्डू बनाए गए थे. 

उनमें से 300-400 तो जैनत्तरों को दिए गए और उसके बाद जो लड्डू बचे थे, वे सब तीर्थ के Honest Watchman को देकर कहा गया कि ‘यहां पर जो भी तेलुगू आदि जैनेत्तर लोग आए, उन्हें यह प्रसादी देनी है.’ 

उस दिन जब शाम को Watchman को पूछा गया तो पता चला कि उस दिन वहां लगभग 400-500 से भी अधिक तेलुगू लोग आए थे और सभी लड्डू लगभग खत्म हो गए थे. कुलपाकजी तीर्थ का पूरा Staff ईमानदार तो है ही, इसलिए यह तो Fix हो गया था कि उन्होंने कोई गड़बड़ नहीं की है. 

आपको लग रहा होगा कि एक जैन तीर्थ में 400-500 अजैन लोग क्यों दर्शन करने आएँगे लेकिन श्री कुलपाकजी तीर्थ के माणिक्य स्वामी परमात्मा तेलुगू लोगों में बहुत Famous है. हर रोज इस तीर्थ में 50-100-200-500 जितने लोग भी परमात्मा के दर्शन के लिए आ जाते हैं. 

इतना ही नहीं, मंदिर की सभी विधि को अच्छे से Follow भी करते हैं और मंदिर में किसी तरह का Nuisance Create नहीं करते है. प्रभु पर उनकी कितनी श्रद्धा है, वह स्पष्ट रूप से इससे समझ सकते हैं. 

आजकल कई तीर्थों में Hotel आदि का अभक्ष्य खान-पान शुरू हो गया है, जिससे तीर्थ की पवित्रता को भारी नुकसान हो जाता है. उन सभी के सामने कुलपाकजी तीर्थ में तो क्या, तीर्थ के बाहर भी ऐसी कोई और अपवित्रता फैली हुई नहीं है. 

कुलपाकजी से 5 KM दूर आलेर नामक एक छोटासा गाँव है, लेकिन वहां पर भी मौज शौक के ना के बराबर साधन होने से तीर्थ की पवित्रता आज तक सुरक्षित बनी हुई है. 

लगभग हमें देखने को मिलता है कि जैन तीर्थ में हजारों की संख्या में जैनेत्तर लोग दर्शन करने आते हैं और वे लोग तीर्थ की पवित्रता को नष्ट ना करते हो, तीर्थ के Rules, जैन धर्म के Rules को Strictly Follow करते हो ऐसा बहुत कम तीर्थ में होता होगा और उनमें से एक श्री कुलपाकजी तीर्थ भी है. 

वर्षीदान में आए हुए उन तेलुगु बच्चों के सामने एक साधु भगवंत का थोडासा लोच करके बताया गया कि जैन साधु इस तरह से सर, दाढ़ी, मूंछ के सभी बालों का लोच करते हैं. तब वे सभी बच्चे दंग रह गए और शायद उनके मन में भी जैन धर्म के लिए अहोभाव की लहर उठी होगी. 

इसलिए ही कहा गया है कि जैन साधु भगवंत की लोच की क्रिया किसी भी इंसान को बहुमान भाव उत्पन्न करवाने में समर्थ है. 

श्री कुलपाकजी तीर्थ के Manager का कहना है कि ‘यहां के तेलुगू लोगों में कुलपाकजी के परमात्मा पर अपार श्रद्धा है. बहुत सारे लोग वहां परमात्मा के समक्ष मन्नत भी रखते हैं. हर रोज शाम को चार बजे के आसपास लगभग 300-400 लोग दर्शन के लिए आते हैं. यानी हर साल एक लाख से भी अधिक लोग आते हैं. 

यहाँ पर तेलुगू बहनें भी हमारी जैन बहनों की तरह पूरी मर्यादा का पालन करती है, जो भी Rules उन्हें बताएं जाते हैं, जानकारी दी जाती है, तेलुगू बहनें उसका लगभग पूरी तरह से पालन करते हैं जैसे कि सर ढककर मंदिर में जाना, मंदिर में Photos Selfies नहीं लेना, भगवान की प्रतिमा को पूजा के कपड़े पहनें बिना स्पर्श नहीं करना आदि.

पुरुष वर्ग भी इसी तरह से बताएं गए सभी उचित नियमों का पालन करता है. इस तरह से वे बहुत अच्छी तरह से नियमों का पालन करते हैं ताकि तीर्थ की परमात्मा की आशातना न हो. 

तो कुछ इस तरह से मुमुक्षु ऋषिभाई के द्वारा शासन प्रभावना का अद्भुत कार्य हुआ. 

साथ ही यदि आप मुमुक्षु ऋषिभाई के जीवन के बारे में जानना चाहते हैं कि America में रहा हुआ व्यक्ति, एक करोड़ से भी ज्यादा जिसकी Salary हो वो आखिर दीक्षा क्यों ले रहे हैं? 

तो हमें Comments Section में ज़रूर बताइएगा, उनके जीवन के Experiences भी हम अलग से जानने का प्रयास करेंगे.

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