Siddhvad, Palitana’s Historical Chaturmas : Where CEOs, Doctors, Engineers Became Sadhaks

सिद्धवड चातुर्मास - जहाँ लोग मोबाइल नहीं मेडिटेशन में डूब गए..

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By Jain Media 317 Views 9 Min Read

इसे कहते हैं ऐतिहासिक चातुर्मास

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, अगर कोई इंसान अपनी नौकरी, अपना Business वगैरह छोड़कर सिर्फ आत्मा की खोज में निकले.. तो आप क्या कहेंगे? 

पालिताना की सिद्धवड भूमि पर ऐसा एक ऐतिहासिक चातुर्मास हुआ है। 40-50 लोग Foreign Countries से अपनी Job अपना Business वगैरह सब कुछ छोड़कर इस चातुर्मास में जुड़े थे। 

इस चातुर्मास की कुछ बातें सुनने जैसी है, समझने जैसी है और सच में अपनाने जैसी है। इस पूरे विषय सिर्फ 5 Points में जानेंगे। 

यहाँ पर एक सरदारजी जो Security Guard के तौर पर तैनात थे, उन्होंने तो कमाल कर दिया। उनकी घटना हम 5th Point में जानेंगे। बने रहिए इस Article के अंत तक। 

Discipline

सिद्धवड चातुर्मास में लगभग 1100 आराधक थे और सभी White & White में। प्रवचन शुरू हो उसके 15 मिनट पहले ही सभी आराधक प्रवचन खंड में पहुँच जाते थे। सभी को यहाँ पर Compulsorily मौन रहना था। 

सोचिए, 1100 लोग और एक भी आवाज़ नहीं… 

प्रवचन से 15 मिनट पहले पूरा खंड भरा हुआ लेकिन मौन! ज्ञान का विनय भी हो गया और मौन होने से अनावश्यक पंचायती में Time Waste भी नहीं। 

यहाँ पर FOOD में भी बहुत Discipline था, Limited Number of items के साथ संपूर्ण चातुर्मास के दौरान सात्विक आहार का पालन किया गया। 

और एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात यह रही कि पूरे चातुर्मास में रस की आसक्ति को तोड़ने के लिए पनीर की सब्जी या पनीर की मिठाई या फिर कोई भी बंगाली मिठाई का उपयोग नहीं किया गया फिर भी सभी आराधकों ने अत्यंत प्रेम और संतोष के साथ भोजन ग्रहण किया। 

कुछ आराधकों ने तो सिर्फ 2 द्रव्य, 4 द्रव्य, 7 द्रव्य ही वापरना इस तरह के नियम लिए थे कुछ ने तो अभिग्रह भी लिए थे। 

No Mobile Phones

पूरे चातुर्मास में सभी आराधकों को Mobile Phone का संपूर्ण रूप त्याग था। 

Mobile नहीं तो बाहर की दुनिया का संपर्क ही नहीं और अगर बाहर की दुनिया का संपर्क ही नहीं तो दुनियाभर की Irrelevant Negativity से, Social Media से, Timeless Scrolling से सब आराधक दूर थे। 

संसार से साधक निकला या नहीं लेकिन कम से कम उतने समय के लिए साधक के अंदर से संसार निकल गया हो ऐसा कईयों को अनुभव हो रहा था। 

कभी कभी ऐसा लगता है कि Mobile Phone का Irrelevant Use भी अगर हम बंद कर दे तो हमारी Life की 70-80% Problems अपने आप Solve हो जाएगी। 

How Much?

सबसे Important Point, Office में हम यही देखते है कि कमाई कितनी हुई, धर्म के क्षेत्र में कितनी आराधना हुई यही कमाई के रूप में Normally देखा जाता है। 

तो 1100 साधकों के द्वारा 2 लाख से अधिक सामायिक हुई, 20 हज़ार से अधिक आयम्बिल हुए, 35 लाख से अधिक लोगस्स के कायोत्सर्ग हुए, 30 लाख से अधिक खमासमण, 7 लाख से ज्यादा गुरुवंदन, 11 मासक्षमण.. 

सभी के द्वारा रोज़ जिनपूजा, हर आराधक द्वारा लगभग 300 घंटे जिनवाणी का श्रवण और हर रविवार को मधुर संगीत के साथ प्रभु का विशेष अनुष्ठान और नृत्य भक्ति आदि। 

और सबसे बड़ी बात सभी आराधकों ने Distractions से दूर हटकर यह सब साधना की इस कारण से सभी आराधकों को खुद में Extraordinary बदलाव अनुभव करने को मिले।

इस चातुर्मास में 30% आराधक 50 से नीचे वाली Age के थे, कुछ 50 दिन तक रहे, कुछ पूरे चातुर्मास तक लेकिन आज के समय में भी युवा Spirituality की खोज में हैं, धर्म की खोज में हैं अपनी आत्मा की खोज में हैं ये यहाँ पर देखने को मिला। 

इनमें से कोई Company का Director था, कोई CEO था, कई Doctors भी थे, कई Software Engineers भी थे।

ये सब Possible हो पाया क्योंकि यहाँ पर शत्रुंजय पर बिराजमान श्री आदिनाथ प्रभु की छत्रछाया थी, शत्रुंजय की पावन पवित्र भूमि थी। अनंत सिद्ध हुई आत्माओं की साधना का बल था।

साथ ही, तपोगगन चंद्रमा, आजीवन आयम्बिल के भीष्म तपस्वी परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री हेमवल्लभ सूरीश्वरजी महाराज साहेब की Powerful Presence और Aura थी। 

साथ ही परम पूज्य पंन्यास भगवंत श्री लब्धिवल्लभ विजयजी महाराज साहेब एवं परम पूज्य पंन्यास भगवंत श्री यशरत्न विजयजी महाराज साहेब ने रोज़ के लगभग 6 घंटे प्रवचन दिए And No Doubt बाकी सभी कार्यकर्ताओं के कारण यह चातुर्मास सफल हो पाया।

Labharthi

चातुर्मास के दौरान पूरे परिसर में कहीं पर भी लाभार्थी का नाम ही नहीं था। एक भी लाभार्थी के नाम की कोई भी Name Plate नहीं थी। 

यहाँ पर लाभार्थी के परिवारजन लाभार्थी या VIP बनकर नहीं बल्कि खुद साधक बनकर आए थे। नाम के पीछे की कामना नहीं बल्कि नाम को मिटाने की साधना में वे और सभी आराधक लीन थे।

Sardarji’s Unbelievable Tapasya

चातुर्मास के दौरान महावीर प्रभु के जन्म वांचन में 14 स्वप्नों के चढ़ावे हुए थे। 13 सपनों को झुलाने का तो Normally हुआ जैसे होता आया है लेकिन 14th सपने का जिसने भी चढ़ावा लिया, वह स्वयं मंच पर नहीं आया, ना ही अपना नाम बताया। 

लेकिन उनकी यह इच्छा थी कि यह 14th सपने को झुलाने का लाभ सेवकों को एवं Security Guards को दिया जाना चाहिए क्योंकि बिना रुके बिना थके वे लोग एकदम Dedication के साथ सेवा दे रहे थे। 

इसलिए उनकी भावना के अनुसार उन्हें बुलाया गया और उन्हें प्रभु महावीर और 14 स्वप्नों का महत्त्व समझाकर उनके हाथों से 14वां स्वप्न झुलाया गया। 

पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया था।

तभी एक अनोखी बात सामने आई और सभी को पता चला कि वहां के सरदारजी थे जो Security Guard के तौर पर तैनात थे और वे उस समय अट्ठाई कर रहे थे। 

Please Note : अट्ठाई यानी Continuous Non-Stop 8 उपवास।

जब सबको पता चला कि वह सरदारजी आठ दिन के Continuous उपवास पर हैं तो पूरा वातावरण स्तब्ध रह गया। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक Security Guard, एक सरदारजी भाई आत्मिक तपस्या में इतना डूब जाएंगे। 

कईयों की आँखों में आंसू थे। यह कोई साधारण घटना नहीं थी, प्रभु की कृपा जब बरसती है तब सब दूरियां मिट जाती है सिर्फ और सिर्फ भाव ही रह जाते हैं। 

Connection With Dharma

Normally हमने देखा है कि महात्मा प्रवचन देना शुरू करें और फिर धीरे धीरे लोग आने लगते हैं, बीच बीच में किसी ना किसी का मोबाइल फ़ोन बजता ही रहता है। 

कोई कार्यक्रम में 10 बजे का Time दिया गया हो तो सब अंदर अंदर समझ ही लेते हैं कि 10.30 तक मुश्किल से कार्यक्रम शुरू होगा तो 11 बजे तक भी अगर पहुँच जाएंगे तो भी चलेगा। 

कोई अनुष्ठान वगैरह हो तो लाभार्थी को खुश करने में उनको माला वगैरह पहनाने में ही आधा एक घंटा निकल जाता है। 

एक तरफ नाम को, Ego को मिटाने की बात होती है और दूसरी तरफ “मेरे बेटे का नाम नहीं लिया, हमारा बहुमान ठीक से नहीं हुआ।” इन सबको लेकर अजीबोगरीब चर्चाएँ हमें सुनने को मिलती है। 

अगर इसी पंचम काल में, इतनी Technology के बीच, इतनी व्यस्तता के बीच, 1100 आराधक अपना नाम और काम छोड़कर जुड़ सकते हैं तो इसका मतलब ये Clear हो जाता है कि युवा और लोग आज भी धर्म से जुड़ना चाहते हैं। 

ज़रूरत से ज्यादा आडंबर, अनावश्यक दिखावा, ‘भोजन में कितनी Items थी’ इन सब चर्चाओं से उठकर-वातावरण को, Discipline को, धर्म भावना को फिर से जीवंत करने की आवश्यकता लगती है। 

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