24 Rabbits Destroyed An Entire Country | Australia’s Rabbit Invasion Explained With Jain Wisdom |

सिर्फ 24 खरगोशों ने बर्बाद कर दिया पूरा देश!

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By Jain Media 42 Views 11 Min Read
Highlights
  • आज भी हर साल Australia को खरगोशों से कृषि-क्षेत्र को सालाना लगभग $200–240 Million Australian Dollars का नुकसान आँका जाता है।
  • ठाणाओ ठाणं संकामिया विराधना है - Species Translocation विराधना है।
  • हमारा मजा दुनिया के लिए सजा बन जाता है।

अगर यह कहा जाए कि सिर्फ 24 जानवरों ने पूरा देश बर्बाद कर दिया तो क्या आप मानेंगे? शायद नहीं। 

लेकिन यह सच्चाई है.. 

और इसका जैन धर्म से क्या Connection है वह भी इस Article के अंत में जानेंगे। जिसे सुनकर हमें लगेगा कि वाह रे वाह! ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं।

The Arrival Of Rabbits

Thomas Austin का जन्म 1815 में England में हुआ था, वहां पर Hunting को एक Sport की तरह देखा जाता है, Unfortunately आज भी कुछ देशों में शिकार करना Legal है। 

कुछ समय बाद यह व्यक्ति Australia के Victoria में Shift होता है। Australia में Thomas Austin का बड़ा Farm था। Year 1859 में एक बार वह सोचता है कि ‘कितना अच्छा होगा अगर यहाँ England जैसे खरगोश हों, ताकि मैं शिकार कर सकूँ।’

उसने इंग्लैंड से 24 Wild Rabbits Australia मँगवाए और अपनी Australia की ज़मीन पर छोड़ दिए। उसे लगा कि ‘बस कुछ Rabbits होंगे, शिकार कर लेंगे, थोड़ा मज़ा आ जाएगा।’

लेकिन यह मज़ाक, एक National Disaster में बदल गया। 

जी हाँ..!

ये खरगोश बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं, एक जोड़ी खरगोश सालभर में दर्जनों बच्चे पैदा कर सकते हैं। अब Australia में इन खरगोश का शिकार करने वाले जानवर तो थे नहीं और मौसम भी इनके लिए बहुत Comfortable था। 

The Disaster Unfolds

तो कुछ ही सालों में ये 24 खरगोश हजारों में, फिर लाखों में इनकी Population हो गई। Late 1940s तक तो इनकी संख्या 60 करोड़ तक आंकी गई थी और इस विस्फोटक वृद्धि से Australia को बहुत भयानक नुकसान उठाना पड़ा। 

अब इसका असर जानिए… 

किसानों की फसलें पूरी तरह से बर्बाद होने लगी, चरने के जो स्थान होते हैं जिन्हें चरागाह कहा जाता है, वे खाली होने लगे, गाय-भेड़ के लिए घास ही नहीं बची। 

जंगल की मिट्टी खरगोशों ने खोद-खोदकर बहुत Weak कर दी, Soil Erosion के कारण खेती बहुत मुश्किल हो गई, पूरे देश का Ecological Balance बिगड़ गया।

20वीं सदी में, इन खरगोशों ने Australian Economy को सैंकड़ों Million से लेकर कई Billion Dollars का नुकसान पहुंचाया।

हमें जानकर शायद हैरानी होगी लेकिन आज भी हर साल Australia को खरगोशों से कृषि-क्षेत्र को सालाना लगभग $200–240 Million Australian Dollars का नुकसान आँका जाता है। 

यानी Indian Currency के हिसाब से लगभग ₹1200-₹1400 करोड़ का नुकसान हर वर्ष।

Preventive Measures

अब जरा सुनिए, Australia ने इन्हें रोकने के लिए क्या-क्या नहीं किया… 

1. Rabbit-Proof Fence

1901-1907 तक दुनिया की सबसे बड़ी Fencing 3,256 KM लंबी Fencing की गई ताकि इन्हें कुछ इलाकों तक सीमित किया जा सके लेकिन यह कोशिश भी नाकाम रही क्योंकि खरगोश पहले ही फैल चुके थे।

2. Hunting & Poisoning

करोड़ों Rabbits का शिकार किया गया, उन्हें ज़हर दिया गया, इतनी बेरहमी से मारा गया लेकिन फिर भी इनकी Population तेज़ी से बढ़ती गई।

3. Biological War

Myxoma नाम का एक Virus है जो Rabbits को Infect करता है और फिर उनकी मौत हो जाती है। तो 1950s में इन लोगों ने Rabbits को ख़त्म करने के लिए Myxoma Virus छोड़ा गया। 

बहुत बड़ी संख्या में खरगोश मारे गए लेकिन इसके बाद ऐसा समय आया कि धीरे-धीरे उनकी Resistance बढ़ने लगी और इस Virus के खिलाफ भी वे Immune हो गए। 

अर्थात् अब खरगोश इस Virus के खिलाफ लड़ने के लिए सक्षम हो गए। इसके बाद Rabbit Calicivirus (RHDV) के उपयोग से भी कई Rabbits को मारा गया लेकिन आज भी Australia Rabbits को पूरी तरह से Control नहीं कर पाया है।

1859 के बाद Approx. 70 वर्ष के भीतर खरगोश Australia के लगभग 70% भू-भाग तक फ़ैल गए थे। इसे इतिहास का सबसे तेज़ Documented फैलाव माना जाता है।

Jainism’s POV

लेकिन भाई इन सबका जैन धर्म से क्या Connection है?

Connection है! दुनिया की हर समस्या का जैन धर्म से Connection है क्योंकि यहाँ पर Solutions है। 

कुछ समय के लिए Rabbits वाला विषय Side में रखते हैं। 

पर्युषण में हम क्या करते हैं?
पूजा, सामायिक, प्रवचन, तपस्या, प्रतिक्रमण, संध्या-भक्ति आदि लगभग यह क्रम रहता है। 

अब जिनालय में चैत्यवंदन करते समय, अथवा सामायिक लेते समय, अथवा प्रतिक्रमण के दौरान एक सूत्र है जो हम बार-बार बोलते हैं – इरियावहिया सूत्र

इस सूत्र के दो शास्त्रीय नाम है – एर्यापथिकी सूत्र और लघु प्रतिक्रमण सूत्र

इस सूत्र में जीवों के स्वरुप, जीवों की हम किस किस प्रकार से विराधना यानी हिंसा करते हैं और फिर अंत में उन सबके लिए क्षमापना है, “मिच्छा मि दुक्कडम्” है।

इस सूत्र की अंतिम गाथा में हम यह बोलते हैं 

“अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया…” 

Iriyavahiya Sutra 

यहाँ पर 10 अलग-अलग प्रकार बताए हैं जिनके माध्यम से हम जीवों की विराधना यानी हिंसा करते हैं। इनके अर्थ हम जान लेते हैं ताकि पूरा विषय समझ में आए।

  • अभिहया – सामने से आ रहे जीव को पैर से ठोकर लगाना।
  • वत्तिया – झाड़ू आदि से जीवों का ढेर करना अथवा उन जीवों को धुल से ढकना।
  • लेसिया – जीवों को एक दूसरे से टकराना।
  • संघाइया – अलग-अलग रहे जीवों का झाड़ू आदि से ढेर करना।
  • संघट्टिया – जीवों को थोडा स्पर्श करना।
  • परियाविया – जीवों को थोड़ी पीड़ा पहुंचाना।
  • किलामिया – जीवों को ज्यादा पीड़ा पहुंचाना। 
  • उद्दविया – जीवों को बेहोश करना।
  • ठाणाओ ठाणं संकामिया – एक स्थान से उठाकर दुसरे स्थान में रखना।
  • जीवियाओ ववरोविया – प्राण से मुक्त किए हो अर्थात् ख़त्म कर देना।

और फिर हम कहते हैं “तस्स मिच्छा मि दुक्कडम्..” यानी ‘इस तरह से कोई भी विराधना (हिंसा) अगर मैंने की हो तो उसके लिए क्षमा मांगता हूँ कि मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो।’

अब कोई यह सुनकर ये भी बोल सकता है ‘भाई, कितनी Impractical बात है। कोई चींटी आएगी या कोई जीव आए तो उसको झाड़ू वगैरह से सुरक्षित स्थान पर भी ले जाकर नहीं रखना क्या? क्या वह भी हिंसा है?’

ये Common Sense वाली बात है, विवेक वाली बात है कि चींटी अथवा कोई जीव बीच रास्ते में हो तब तो उसे धीरे से लेकर सुरक्षित स्थान पर रखना है। इसमें चींटी को थोड़ी बहुत तकलीफ होगी लेकिन हमारा आशय क्या है? 

उसको बचाना या मारना?
बचाना Right! 

उसके प्राण जाए वह बड़ी हिंसा या उसको उठाकर कही सुरक्षित स्थान पर रखे वह बड़ी हिंसा? प्राण जाए वह बड़ी हिंसा। तो बड़ी हिंसा ना हो इसके लिए थोड़ी विराधना करना वह विवेक है.. Common Sense है।

इसलिए Undoubtedly अगर उसके मरने की संभावना हो तो फिर देखकर मरने के लिए नहीं छोड़ना है, उसे सुरक्षित स्थान पर रख देना है। यह विवेक है.. Common Sense है। 

अब आते हैं फिर से Rabbit वाले विषय पर।

The Solution 

अगर Thomas Austin ने इरियावहि सूत्र पढ़ा होता या समझा होता, इसका पदार्थ जाना होता तो Australia आज इतनी बड़ी Problem Face नहीं करता और ना ही इतने Rabbits की क्रूरता से हिंसा होती। 

कैसे..?

तो, “ठाणाओ ठाणं संकामिया” यानी अगर मैंने जीव को उसकी जगह से हटाकर, अन्य स्थान पर रखा तो भी मैं हिंसा का भागी हूँ। यह है Solution.. 

मान लो कुछ Rabbits कहीं पर मर रहे हो तो उनको उस स्थान से उठाकर Safe स्थान पर रखा हो तब तो समझ में भी आए। 

लेकिन इधर Thomas Austin का Intention जीव को बचाने का नहीं बल्कि खुद के Entertainment के लिए था, खुद के Hunting जैसी क्रूर प्रवृत्ति के लिए था। 

“ठाणाओ ठाणं संकामिया विराधना है –
Species Translocation विराधना है”

यह सिर्फ धर्म का वचन नहीं है, Pure Ecological Science है। यह केवल धर्म का सिद्धान्त नहीं, Ecological Species Translocation पर भी लागू होता है। नए पर्यावरण में प्रजाति छोड़ने से Invasive Species का ख़तरा बढ़ता है। 

हमें एक चीज समझनी चाहिए कि कुदरत ने जिसे जो स्थान दिया है, वह सोच समझ कर दिया है। 

हमें  डेढ़ होशियार होने की जरूरत नहीं है। 

Conclusion

जिस सिद्धांत को हमारे तीर्थंकर परमात्मा ने हमें दिया है, जिसे हम लगभग रोज़ बोलते हैं, आज वही Modern Ecology बार-बार Prove कर रही है।

1859 में 24 खरगोशों को उनकी जगह से हटाने की कीमत आज भी Australia चुका रहा है। अरबों रुपयों की बर्बादी, बर्बाद जंगल, खोई हुई फसलें, बिगड़ा हुआ संतुलन। 

इतने Rabbits की हिंसा, Rabbits को मारनेवाले लोगों को भयानक पाप कर्म का बंध, उनमें आ रही इतनी निष्ठुरता, इतने लोगों के समय की बर्बादी आदि बहुत कुछ। 

भगवान महावीर का इन सूत्रों के माध्यम से Clear कहना था ‘जानवरों को मत छेड़ो। उन्हें उनकी जगह रहने दो। यही अहिंसा है, यही विज्ञान है, यही भविष्य की सुरक्षा है।’

लेकिन आज भी सिर्फ और सिर्फ खुद के शौक या मजे के लिए लोग Foreign से अलग-अलग प्रकार के प्राणियों को लेकर आते हैं, जिससे ऐसी कुछ ना कुछ समस्याएं खड़ी होती है या हो सकती है। 

हमारा मजा दुनिया के लिए
सजा बन जाता है।
Our Fun becomes The

World’s Punishment. 

लोग चाहे जितना अहिंसा का मज़ाक उड़ाए लेकिन आज नहीं तो कल सभी को मानना पड़ेगा अहिंसा Weakness नहीं बल्कि Long-Term Vision है!

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