9 Vaad Of Brahmacharya

जैन साधु साध्वीजी भगवंत ब्रह्मचर्य का पालन किस तरह करते हैं?

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Highlights
  • जैन साधु साध्वीजी भगवंत ऐसी वसती यानी ऐसी जगह पर ही उतरते हैं, जहाँ पर पशु ना आते हों, जहाँ पर साधु भगवंत के लिए स्त्रियों का और साध्वीजी भगवंत के लिए पुरुषों का आवागमन ना होता हो और नपुंसकों का भी आवागमन ना होता हो.
  • साधु साध्वीजी भगवंत कभी भी परस्पर में गन्दी बातें करते नहीं हैं और गंदी बातें सुनते भी नहीं हैं.
  • जहाँ पर कोई स्त्री बैठी हो उस जगह पर कोई भी साधु भगवंत 48 Minutes तक बैठ नहीं सकते हैं और जहाँ पर कोई पुरुष बैठे हो वहां पर साध्वीजी भगवंत 3 प्रहर तक बैठ नहीं सकते हैं.

जैन साधु साध्वीजी भगवंत ब्रह्मचर्य का पालन किस तरह करते हैं?
इस वासना और गंदगी से भरी दुनिया में क्या ये संभव है?
ब्रह्मचर्य के 9 वाड जानने के लिए बने रहिए इस जानकारी के अंत तक.

जैन साधु साध्वीजी भगवंतों को शास्त्रों में कुछ ऐसी चीजें दी गई है जिनके लिए हम ऐसा कह सकते हैं कि वह इस कलिकाल में Gift स्वरुप है. शायद जिनशासन में ही ऐसी व्यवस्था की गई है. वह व्यवस्था क्या है वही हम आज देखेंगे. हमारा जिनशासन कितना महान है उसकी छोटी सी झांकी गुरु भगवंतों के संयम जीवन के पांच महाव्रतों को देखकर मिलती है. उन पांच महाव्रतों में एक महाव्रत ऐसा है जिसमें No Compromise Allowed का Board लगा हुआ है, वह महाव्रत है ब्रह्मचर्य महाव्रत.

हमें अगर किसी भी चीज़ को Protect करना होता है तो हमें एक Boundary Set करनी पड़ती है. हम यह चीज़ Day To Day Life में देखते ही हैं कि बड़ी बड़ी Heritage Sites, Museums, Gardens आदि के चारों ओर उन्हें सुरक्षित रखने के लिए दीवार का, Fencing, Gates आदि का निर्माण करवाया जाता है क्योंकि किसी भी मूल्यवान चीज़ की सुरक्षा के लिए सुरक्षा के इन्तेजाम बहुत ही मजबूत होने चाहिए और यही चीज़ तीर्थंकर परमात्मा जिनशासन को भेंट में देकर गए हैं.

चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत की सुरक्षा के लिए प्रभु ने 9 Protection Shields, 9 प्रकार की Boundaries बताई है जिन्हें हम 9 वाड के नाम से जानते हैं. यह 9 वाड यानी Boundaries साधु साध्वीजी भगवंत और उन श्रावक श्राविकाओं के लिए है जो विजय सेठ विजया सेठानी की Category में आते हैं. जहाँ आज एक तरफ पूरी दुनिया काम वासना आदि के पीछे पागल है वहीं कैसे दूसरी तरफ जिनशासन में इस पागलपन से दूर रहने की व्यवस्था बताई गई आइए वह हम देखते हैं और जानते हैं कि ब्रह्मचर्य व्रत के 9 वाड क्या हैं.

शास्त्रों में एक गाथा आती है ‘वसही कह निसिज्जिदीय कुड्डींतर पुव्वकिलिए पणीए अइमायाहार विभुसणे नव बम्भचेर गुत्तिओ.’ इस गाथा में ब्रहमचर्य की 9 गुप्ती यानी 9 वाड का वर्णन आता है. आइए हम इन 9 वाड को Point Wise समझते हैं.

वाड No. 1 – वसती

जैन साधु साध्वीजी भगवंत ऐसी वसती यानी ऐसी जगह पर ही उतरते हैं, जहाँ पर पशु ना आते हों, जहाँ पर साधु भगवंत के लिए स्त्रियों का और साध्वीजी भगवंत के लिए पुरुषों का आवागमन ना होता हो और नपुंसकों का भी आवागमन ना होता हो. इस का कारण यह है कि इन निमित्तों यानी कारणों से हो सकता है कि साधु साध्वीजी भगवंतों के मन में अनुचित भावना का जन्म हो जाए और इसलिए ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी इस न्याय से साधु साध्वीजी भगवंत वहीं रुकते हैं जहाँ पर वसती संसक्त नहीं होती यानी जहाँ पर विजातीय का यानी Opposite Gender का आवागमन नहीं होता है.

वाड No. 2 – कथा

साधु साध्वीजी भगवंत कभी भी परस्पर में गन्दी बातें करते नहीं हैं और गंदी बातें सुनते भी नहीं हैं. आजकल के जामने में लगभग सभी उपाश्रय Buildings के आजू बाजू में होते हैं और कभी कभार TV की Loud Volume के कारण, DJ, Romantic Songs आदि बजते रहते हैं. साधु साध्वीजी भगवंतों को ऐसी जगह रुकने के लिए शास्त्रों में मनाई की गई है. समझने जैसी चीज़ है कि हम श्रावक श्राविकाओं को भी इतना विवेक होना चाहिए कि अगर आजू बाजू कोई उपाश्रय हो तो हमें ऐसे अभद्र Vulgar गाने Loud Volume पर लगाने नहीं चाहिए ताकि साधु साध्वीजी भगवंतों का जीवन पवित्र रहे और उनकी संयम चर्या मोक्ष की ओर आगे बढे.

वाड No. 3 – निषद्या यानी आसन

जहाँ पर कोई स्त्री बैठी हो उस जगह पर कोई भी साधु भगवंत 48 Minutes तक बैठ नहीं सकते हैं और जहाँ पर कोई पुरुष बैठे हो वहां पर साध्वीजी भगवंत 3 प्रहर तक बैठ नहीं सकते हैं. इसका कारण यह है कि जब कोई व्यक्ति एक जगह पर बैठता है तो उसके शरीर की ऊर्जा या गर्मी यानी Aura वहां पर बनी रहती है और मान लीजिये कि उस व्यक्ति की मानसिक परिस्थिति ठीक ना हो तो वह Aura वहां पर स्थिर होती है. इसमें समय का अलग अलग मतान्तर भी है जिसकी जानकारी आप गुरु भगवंतों से प्राप्त कर सकते हैं.

यदि उस जगह कोई अन्य व्यक्ति आकर बैठे तो उस Aura का असर उस दुसरे व्यक्ति पर हो सकता है और इसलिए निषद्या यानी आसन का विधान शास्त्रों में किया गया है. हमारे शरीर की गर्मी जमीन पर Ground ना हो इसलिए ऊन यानी Woolen का आसन जो गर्मी को खींचने में बहुत Powerful होता है उसका विधान किया गया है ताकि गर्मी Ground ना हो और दुसरे जीवों का भी वातावरण प्रदूषित ना करे. समझने जैसी चीज़ है कि हमारे शास्त्रों में यह वातावरण की शुद्धता का नियम भी स्पष्टता से बताया गया है.

वाड No. 4 – इन्द्रिय

साधु साध्वीजी भगवंतों को यह स्पष्ट विधान है कि जहाँ पर Appropriate Dressing यानी सही तरीके के कपडे पहने हुए स्त्री या पुरुष ना हो वहां पर दृष्टी करना नहीं यानी देखना नहीं. इस दुनिया में हम काफी बार देखते हैं कि दृष्टी से ही खराब सृष्टि का सर्जन होता है और जब खराब सृष्टि आती है तब पाप की वृष्टि शुरू होती है. इसलिए किसी अनुचित अंग को भी देखना साधु साध्वीजी भगवंतों के लिए निषेध है.

वाड No. 5 – कुड्यंतर

जिस उपाश्रय के एकदम बाजू में घर हो यानी एक ही दीवार से सटा हुआ घर हो और जहाँ पर यह शक्यता हो कि घर में चल रही बातें उपाश्रय में सुनाई दे. जैसे कई बार घर में झगडा, प्रेम की बातें या अन्य कोई बात जिससे साधु साध्वीजी भगवंतों का कोई लेना देना नहीं हो ऐसी जगहों पर साधु साध्वीजी भगवंतों को नहीं रुकने का शास्त्रों में स्पष्ट विधान बताया गया है. अगर साधु साध्वीजी भगवंत सांसारिक यानी घर ग्रहस्थी में चल रही बातें सुनेंगे तो ऐसी संभावना है कि उन्हें भी वो चीजें करने की इच्छा हो जाए क्योंकि वे भी इंसान ही हैं, छद्मस्त है, अभी तक पूरी तरह से कर्मों का क्षय नहीं हुआ है और ऐसी कोई भी अकल्पीय घटना ना घटे इसलिए कुड्यंतर यानी सटे हुए घर के नजदीक वाले उपाश्रय में ना रहना और ना ही सुनना का विधान बताया गया है.

वाड No. 6 – पूर्वक्रीडित

‘Every Man Has His Past And Every Man Has His Future.’ ऐसा एक Famous Proverb है. जितने भी लोग दीक्षा लेते हैं तो यह जरुरी नहीं है कि वे बिना शादी किए ही दीक्षा ले रहे हैं या बिना कोई पाप किए ही दीक्षा ले रहे हैं. ऐसा हो सकता है कि सांसारिक अवस्था में उन्होंने बड़े बड़े पाप किए हों और चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत संबंधी भी कोई पाप किए हों इसलिए जब दीक्षा लेते हैं तो उसके बाद उन लोगों को पूर्व में किए हुए पापों का मनोमंथन यानी Remembering The Wrong Deeds का सख्त निषेध किया गया है. इसलिए दीक्षा से पहले सभी दीक्षार्थियों को भव आलोचना लेने का विधान है.

एक बार भव आलोचना ले लेते हैं तो उसका प्रायश्चित करने पर भूतकाल में किए गए कार्यों को मुमुक्षु अपने दिमाग में से Delete कर देते हैं ताकि वो घटनाएँ आगे जाकर उनके संयम जीवन में बाधक ना बनें. संयम जीवन में ऐसी शक्यता होती है कि अगर भूतकाल में की गई घटनाओं को Delete ना किया जाए तो वे याद आ सकती हैं. बहुत बार ऐसा होता है कि किसी स्त्री को देखकर या किसी पुरुष को देखकर साधु साध्वीजी भगवंतों को ऐसा लगता है कि ये तो मेरे भाई या बहन या पति या पत्नी जैसे हैं पर इन सभी चीजों का स्मरण तब होता है जब पूर्व का स्मरण रहता है लेकिन पूर्व का स्मरण तो Delete करना है इसलिए ही इस वाड का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यहाँ पर एक बात समझने जैसी ये है कि जिन्होंने जन्म से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया हो उनके लिए दीक्षा के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि कुछ भी Delete करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.

साथ ही साथ इस Point में समझने जैसे चीज़ यह भी है कि जिन साधू साध्वीजी भगवंतों ने संसार का रस चखा नहीं है उन्हें तो इसे चखने की इच्छा या कुतूहल भी नहीं होना चाहिए.

वाड No. 7 – प्रणित

साधु साध्वीजी भगवंत कभी भी ऐसा आहार नहीं लेते हैं जिससे शरीर में विकार पैदा होने की यानी अनुचित भावनाएं आने की संभावना हो. समझने जैसी चीज़ है कि हमारे शास्त्रों में बैंगन का निषेध किया गया है क्योंकि उसे तामसिक फल कहा गया है. जो तामसिक फल होते हैं उनसे विकार पैदा होने की संभावना पक्की होती है और इसलिए इस फल के सेवन का निषेध बताया गया है.

ऐसी तो बहुत सारी चीजें हैं जिसके कारण विकार पैदा हो सकते हैं इसलिए शास्त्रों में मक्खन यानी Butter, शहद यानी Honey, मांस यानी Non Veg और मदिरा यानी Liquor, Alcohol जैसी 4 महाविगईयों के सेवन का भी मना किया गया है और इसके अलावा वो चीजें जो बहुत लबालब हों यानी जो घी, तेल आदि से लथपथ हों उनका भी निषेध किया गया है इसलिए ही बहुत से साधु साध्वीजी भगवंतों को शरीर की उचित शक्ति के अनुसार दूध, दही, कड़ाई विगई यानी तली हुई चीजों का त्याग, मिठाइयों का त्याग होता है. इन सभी वस्तुओं का त्याग सिर्फ प्रणित आहार यानी विकार पैदा करनेवाले आहार का त्याग करने के लिए शास्त्रों में बताया गया है.

वाड No. 8 – अतिमात्र आहार

अति मात्रा में आहार लेना, पेट दबाकर खाना, आवश्यकता से ज्यादा पेट भरकर खाना आदि यह सब विकार पैदा करनेवाले हैं. समझने जैसी चीज़ है कि जब तक वायु पेट में रहे तब तक तो Problem नहीं होती है लेकिन जब वायु सर में चढ़ जाती है तब अधिक Problem होने लग जाती है. हमें कई बार रात को खराब सपने आते हैं उसका एक मात्र कारण वायु का विकार है. जब वायु धातु संतुलन में नहीं रहता है तभी यह सब होता है लेकिन वायु शरीर में संतुलित क्यों नहीं रह पाती है?

वो इसलिए क्योंकि हम कई बार आवश्यकता से अधिक, दबा दबाकर खा लेते हैं. साधु साध्वीजी भगवंतों को यह स्पष्ट विधान है कि साधु भगवंतों को 32 कवल और साध्वीजी भगवंत को 28 कवल से ज्यादा नहीं खाना. यह इसलिए बताया गया है क्योंकि 28 और 32 कवल में पेट भर जाता है. यदि उससे कम खाएं तो उसे उनोदरी तप कहा जाता है यानी कम खाने का तप कहा जाता है और यह उनोदरी तप साधु साध्वीजी भगवंतों के ब्रह्मचर्य महाव्रत के सुरक्षा के प्राण है. Heavy चीजें तो कम या नहीं ही खानी है और सूखी पकी चीजें भी ज्यादा नहीं खाने का विधान शास्त्रों में बताया गया है.

वाड No. 9 – विभूषणा

साधु साध्वीजी भगवंत क्यों Makeup नहीं करते हैं ऐसा प्रश्न कई बार हमारे मन में उठता है. Makeup क्यों किया जाता है वह लगभग हम सभी को पता ही है-जो हमारे अंदर नहीं है उसे दिखाने के लिए मतलब अगर हम थोड़े कम सुंदर हैं तो ज्यादा सुंदरता दिखाने के लिए Makeup करते हैं. Makeup करने के बाद हमारे सामने जो भी आता है वह व्यक्ति आकर्षित होता है Attract होता है और आकर्षण के कारण ब्रह्मचर्य खतरे में पड़ जाता है. इसलिए साधु साध्वीजी भगवंतों को सिर्फ अपना हाथ मात्र खाने के समय धोने का विधान है और इसके अलावा किसी भी अंग को पूर्ण रूप से धोने का विधान नहीं है.

एक और चीज़.. साधु साध्वीजी भगवंत कभी भी चमकदार चीजों का उपयोग नहीं करते हैं. आचार्य भगवंत जिन्हें जिनशासन का स्तम्भ कहा गया है उनसे मिलने कई बार बड़े बड़े लोग आते हैं इसलिए उनके कपडे चमकदार भी हो तो कोई Problem नहीं है परन्तु बाकी सामान्य साधु साध्वीजी भगवंतों को इसका विधान नहीं है और इसलिए पहले के जमाने में साधु साध्वीजी भगवंत साल में एक ही बार अपने कपडे धोते थे जिसे साधु साध्वीजी भगवंत की भाषा में काप निकालना बोलते हैं. मैले कपडे ही पहने जाते थे ताकि उन्हें देखकर किसी को आकर्षण ही ना हो और ब्रह्मचर्य महाव्रत की पूर्ण रूप से सुरक्षा हो पाए.

इस तरह चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत की सुरक्षा के लिए यह 9 वाड यानी 9 Safety Measures Or Securities शास्त्रों में बताए गए हैं. एक चीज़ समझने जैसी है कि जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए यह 9 वाड नहीं पालते हैं उनकी कर्मसत्ता वाट लगा देती है. वाड नहीं तो वाट सही. इस तरह कर्मों का गणित है. वाड नहीं तो वाट सही यही दुनिया का सच्चा नियम है. शायद हमारी शील की सुरक्षा के लिए इतना सोचनेवाला दूसरा कोई विधान इस दुनिया में हमें नहीं मिलेगा और इसलिए ऐसा कहा गया है कि जो राग द्वेष को जीत लेता है वही सच्चा मार्ग बता सकता है.

जो खुद लिप्त है वह दुसरे व्यक्ति को अलिप्त नहीं कर सकता और जो खुद अलिप्त है वह व्यक्ति दूसरे लिप्त व्यक्ति को भी अलिप्त बना सकता है. जो खुद अलिप्त ना हो और वह अगर अलिप्तता पर भाषण देने बैठे तो उसे कोई माननेवाला नहीं है और सामनेवाले के जीवन में भी उसका कोई परिणाम नहीं होगा और जो व्यक्ति खुद अलिप्त है उनके सान्निध्य में हमें भी अलिप्तता का अनुभव होता है और इसलिए ही मंदिरों का, उपाश्रयों का विधान शास्त्रों में है. हमारी भावनाओं को Control करने का स्थान वही है. शुद्धता को Maintain करने का भी स्थान वही है और इसलिए एक चीज़ ख़ास समझने जैसी है कि हमारा कोई भी वेश या हमारा कोई भी Dress या हमारा कोई भी Makeup ऐसा ना हो कि लोग उपाश्रय या मंदिरजी में भी आकर लिप्त हो जाएं. इतना तो हम कर ही सकते हैं.

तो ये हमने देखे कि साधु साध्वीजी भगवंत किस तरह 9 वाड के द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं.

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1 Comment
  • जिसका नहीं है पक्का ब्रह्मचर्य, उसका चलता नही है कोई कार्य 🙏🏻🙏🏻

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