Jain Acharya Shri Hemprabha Suriji’s Inspirational Life Story

गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री हेमप्रभसूरीश्वरजी महाराज साहेब की जीवन कथा.

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Highlights
  • पूज्य आचार्य श्री हेमप्रभसूरीजी म.सा. ने 27 साल की उम्र तक 'कभी दीक्षा नहीं लूँगा' - ऐसा संकल्प किया था.
  • शत्रुंजय गिरिराज की यात्रा के दौरान रायणवृक्ष से पूज्यश्री के ऊपर क्षीर बरसी थी.
  • पूज्यश्री के ब्रह्मचर्य के प्रभाव से उनके पगलिये किए हुए कपडे में से चारों ओर सुवास फैल रही थी.

एक ऐसे गच्छाधिपति श्री जी की अद्भुत जीवन कथा जिन्होंने 27 साल की उम्र तक ‘कभी दीक्षा नहीं लूँगा’ ऐसा संकल्प किया था. जी हाँ, आइए जानते हैं बत्रिसी समाज के रत्न परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय हेमप्रभसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन की कुछ अद्भुत बातें.

बने रहिए इस Article के अंत तक. 

“कभी दीक्षा नहीं लूँगा”

पूज्यश्री का जन्म वि.सं. 1989 में तिथि ज्येष्ठ सुदि पांचम, तारीख 29 May 1933 के दिन अहमदाबाद के पास करोली गांव में हुआ था. पिता मनसुख भाई और माता शणगार बहन ने अपने तेजस्वी पुत्र का नाम बुलाखी रखा. बुलाखी भाई बचपन से ही नम्रता, उदारता, सरलता, आदि गुणों के धनी थे. 

चारित्र मोहनीय कर्मों के उदय से और किसी कारण वश उन्होंने यह संकल्प किया था कि वे जीवन में कभी भी दीक्षा नहीं लेंगे और इस संकल्प का पालन उन्होंने 27 वर्ष की उम्र तक किया. 

वैराग्य प्रगटिकरण 

लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था और जब कर्मसत्ता अपना कार्य करती है तब व्यक्ति का मन परिवर्तित होने में समय नहीं लगता और कुछ ऐसा ही बुलाखी भाई के साथ भी हुआ.  वि.सं. 2016 में बुलाखी भाई ने उनकी बहन शांता की दीक्षा देखी और उस समय चारित्र मोहनिय कर्मों का क्षय होने से उनका मन परिवर्तन हुआ और बुलाखी भाई ने दीक्षा ना लेने के संकल्प को बदलकर दीक्षा लेने का दृढ़ संकल्प किया. 

उन्होंने प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय महेंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब को खुद के गुरु के रूप में स्वीकार किया और संयम की भावना से आचार्यश्री के पास जाना शुरू किया. उस समय बुलाखी भाई को नवकार मंत्र के अलावा कुछ नहीं आता था लेकिन जब संकल्प दृढ़ हो तो बड़ी से बड़ी चुनौती को भी व्यक्ति पार कर लेता है. 

बुलाखी भाई हर रोज Cycle से अहमदाबाद के असारवा Area से लुहार की पोल तक जहाँ आचार्य श्री महेंद्रसूरिश्वरजी म.सा. विराजमान थे, वहां उनके पास धार्मिक अध्ययन करने जाते थे. इस तरह उन्होंने 2 प्रतिक्रमण कंठस्थ किए यानी By heart किए. 

दीक्षा की तीव्र इच्छा 

मन में दीक्षा लेने की प्रबल इच्छा के साथ बुलाखी भाई ने अपने परिवार के पास दीक्षा की अनुमति माँगी लेकिन मोहवश परिवार ने Strictly मना कर दिया. बुलाखी भाई के मन में वैराग्य Top Level का था और उन्हें संसार में एक क्षण भी रहना उचित नहीं लग रहा था लेकिन दीक्षा की अनुमति भी नहीं मिल रही थी.

अब क्या करना? तो वि.सं. 2017 में आषाढ़ सुदि पंचमी के दिन बुलाखी भाई उनके घर पर ‘भीलडीयाजी तीर्थ यात्रा करने जा रहे हैं’ ऐसा कहकर राजस्थान के सादडी गाँव में गिरनार तिर्थोद्धारक परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री नीति सूरीश्वरजी महाराजा के प्रशिष्य पूज्य आचार्य श्री महेंद्रसूरिश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा में पहुंचे और उन्हें दीक्षा देने की विनंती की. 

आचार्यश्री ने योग्यता, वैराग्य और उज्जवल भविष्य जानकर स्वीकृति दी और उनके 2 मुनि भगवंत को बुलाखी भाई की दीक्षा करवाने के लिए भेजा. लेकिन कर्मसत्ता को अभी बुलाखी भाई की थोड़ी परीक्षा लेनी बाकी थी.  

कर्मसत्ता की परीक्षा

मुमुक्षु बुलाखी भाई को लेकर उन 2 महात्मा ने विहार किया और मुंडारा गांव में गए. मुमुक्षु का मुंडन करवाया और नाइ को 7 बाल रखने को कहा. तब उस नाइ यानी Barber को शक हुआ कि ‘शायद यह बालक माता-पिता की अनुमति के बिना दीक्षा लेनेवाला है.’ और उस Barber ने रात को मुंडारा जैन संघ के ट्रस्टीयों को यह बात बताई. 

संघ ने महात्मा से मुंडारा गाँव में दीक्षा नहीं देने की विनंती की और संघ की भावना जानकर महात्माओं ने मुमुक्षु बुलाखी के साथ वहां से विहार कर दिया. विहार के रास्ते में एक प्याऊ आया, जहाँ पर साधु भगवंतों ने मुमुक्षु बुलाखी भाई का वेष परिवर्तन करवाया और विहार करके वे सभी प्राचीन 108 पार्श्वनाथ भवन के तीर्थों में से एक श्री सेसली तीर्थ पहुंचे. 

वहां शुभ मुहूर्त में स्थापनाचार्यजी के समक्ष बुलाखी भाई ने दीक्षा लेने की सम्पूर्ण क्रिया की और दीक्षित होकर वि.सं. 2017 में आषाढ़ 7 के दिन वे बने प.पू. मुनिराज श्री हेमप्रभविजयजी महाराज साहेब. अगले दिन दोनों महात्मा और नूतन दीक्षित मुनिराज श्री हेमप्रभविजयजी म.सा. ने सेसली तीर्थ से विहार किया और अपने गुरुदेव यानी पूज्य आचार्य श्री महेंद्रसूरिश्वरजी म.सा. की निश्रा में पहुँच गए. 

उस समय मुनिराजश्री का परिवार वहां आया और कुछ देर बातचीत करने के बाद उन्होंने भी सहर्ष बुलाखी भाई के निर्णय को स्वीकार किया और उनकी बड़ी दीक्षा अहमदाबाद में संपन्न हुई. 

पूज्यश्री का समर्पण

पूज्य मुनिराज श्री हेमप्रभविजयजी म.सा. की दीक्षा के मात्र 5 साल बाद पूज्य आचार्य श्री महेंद्रसूरिश्वरजी म.सा. का देवलोकगमन हो गया. मुनिराजश्री और उनके 2 गुरुभाई पूज्य मुनिराज श्री अनंतभद्रविजयजी म.सा. और पूज्य मुनिराज श्री मणिप्रभविजयजी म.सा. अपने गुरु का वियोग होने के बाद प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय मंगलप्रभसूरिश्वरजी म.सा. को अपने गुरु के स्थान पर विराजमान करके उनकी निश्रा में समर्पित रहे. 

पूज्य मुनिराज श्री हेमप्रभविजयजी म.सा. ने वि.सं. 2032 में गणि एवं पंन्यास पदवी और वि.सं. 2043 में आचार्य पदवी ग्रहण की थी. पूज्यश्री 43 Years तक 2 गच्छाधिपति प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय मंगलप्रभसूरिश्वरजी म.सा. एवं प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय अरिहंतसिद्धसूरिश्वरजी म.सा. की निश्रा में सम्पूर्ण समर्पित रहे. 

वि.सं. 2065 में तारीख 13 November 2009 के दिन समुदाय के शुभभाव से गच्छाधिपति पद स्वीकार किया और प. पू. गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय श्री हेमप्रभसूरिश्वरजी म.सा. के नाम से प्रसिद्द हुए. वि.सं. 2073 में जिस तीर्थ की ख्याति सम्पूर्ण विश्व में फैली है, ऐसे श्री जीरावला तीर्थ की प्रतिष्ठा पूज्यश्री की मुख्य निश्रा में हुई थी. 

सरलता के शिखर

पूज्यश्री के सरल एवं मध्यस्थ गुण को दर्शाती हुई एक अद्भुत घटना उनके जीवन में घटित हुई है. ऐसा कहा जाता है कि शाश्वत श्री शत्रुंजय गिरिराज पर जिस जगह पर अनेकों बार श्री आदिनाथ भगवान के समवसरण की रचना देवों द्वारा की गई थी, ऐसे रायणवृक्ष के नीचे जिस भी व्यक्ति पर रायणवृक्ष की क्षीर गिरती है, वह व्यक्ति तीसरे भव में मोक्ष में जाता है. 

वि.सं. 2072 में फाल्गुन सुदी 8 के दिन शाश्वत गिरिराज की यात्रा के दौरान रायणवृक्ष पर से पूज्यश्री के ऊपर क्षीर गिरी. जब पूज्यश्री से इस बारे में बात की गई तब मध्यस्थ भाव से-सरलता से पूज्यश्री ने ‘सारु यानी ठीक है’ उत्तर दिया. 

इतनी बड़ी चीज़ भी इनके लिए एकदम Normal थी. ऐसे निर्मल एवं सरलता के गुणनिधि पूज्यश्री वर्तमान में 500 साधु-साध्वीजी भगवंतों का योगक्षेम कर रहे हैं. 

ब्रह्मचर्य की सुवास

ब्रह्मचर्य का क्या Impact होता है? हमें कई बार यह प्रश्न दिमाग में आता होगा. तो एक घटना सुनिए. पूज्य श्री एक बार अहमदाबाद के किसी Area में एक श्रावक के घर पर पगलिए करने गए थे. श्रावक ने अति भक्तिभाव से एक सफ़ेद कपड़े पर केसर द्वारा पूज्य श्री के पगलिए करवाए और फिर पूज्य श्री उपाश्रय में पधारे. 

उस दिन श्राविका बहन घर Lock करके कहीं बाहर गए और दूसरे दिन आकर घर खोला तो पूरे घर में सुवास ही सुवास, सुगंध ही सुगंध. यह है उनके निर्मल ब्रह्मचर्य का परिणाम. ब्रह्मचर्य के विषय में पूज्य श्री बहुत Strict है-खुद के शिष्य महात्मा की सग्गी बहन भी यदि मिलने आई हो तो भी ज्यादा समय बैठ नहीं सकते.

ऐसे अद्भुत सद्गुरु भगवंत को एक बार साक्षात् वंदन करके अपनी आत्मा को पावन कर सकते हैं. पूज्यश्री का स्वास्थ सकुशल रहे यही परमात्मा से प्रार्थना है. 

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