लगभग 25-30 वर्ष पहले की घटना है। 4 साध्वीजी भगवंत शिखरजी तीर्थ से विहार करके लगभग 50 दिनों के बाद रायपुर, छत्तीसगढ़ पहुंचे।
वहां पर उनमें से एक साध्वीजी भगवंत को पेट में भयानक दर्द होने लगा।
तब अलग-अलग Hospitals में Testing वगैरह करवाई, 4 अलग-अलग बड़े Doctors को भी दिखाया और सभी ने एक ही बात बोली “Operation करना ही होगा..”
रायपुर आने से पहले जब सभी साध्वीजी भगवंत शिखरजी में थी तब उनमें से एक साध्वीजी भगवंत जो 33 वर्ष के थे उनका अचानक कालधर्म हो गया था यानी देवलोकगमन हो गया था।
छोटी उम्र थी और अचानक हुआ था तो अभी तक अन्य साध्वीजी भगवंत उस घटना से बाहर नहीं निकल पाए थे।
अब रायपुर पहुँचते ही एक साध्वीजी भगवंत की यह Operation वाली बात ने सभी को एक तरह से Tension में डाल दिया क्योंकि वहां पर ना तो कोई आश्वासन देनेवाला था और वह स्थान भी पूज्य साध्वीजी भगवंतों के लिए एकदम नया था।
सभी साध्वीजी भगवंत बहुत Confusion में थे और तभी उनके पास एक Letter आया। इस Letter को पढ़कर सभी साध्वीजी भगवंतों को अत्यंत संतोष का अनुभव हुआ।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में 30-34 साध्वीजी भगवंतों के गुरुनी महत्तरा साध्वीजी बिराजमान थे, उन्होंने दुर्ग से रायपुर यह Letter भेजा था।
Please Note : जैनों में जैसे साधु भगवंतों को गणी पंन्यास उपाध्याय आचार्य पदवी दी जाती है वैसे ही साध्वीजी भगवंतों में महत्तरा नामक पदवी होती है।
रायपुर में बिराजमान साध्वीजी भगवंतों ने यह महत्तरा साध्वीजी भगवंत को ना कभी देखा था और ना ही कोई परिचय था और समुदाय भी अलग अलग थे।
तो यह महत्तरा साध्वीजी भगवंत ने Letter में लिखा था कि
आप सब महात्मा निश्चिंत हो जाओ, किसी बात की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आपके एक साध्वीजी भगवंत के Operation के समाचार मिलने से यह Letter लिखा है। आप वैयावच्च आदि का लाभ हमें दीजिएगा।
Note : वैयावच्च यानी सेवा भक्ति आदि…
इतना ही नहीं एक Letter यह महत्तरा साध्वीजी भगवंत ने श्री रायपुर संघ के अग्रणियों को भी लिखा कि
साध्वीजी भगवंतों को किसी भी बात की तकलीफ न हो और उनके लिए सभी व्यवस्था आपको करनी है।
5 दिन में वह साध्वीजी भगवंत का Operation हो गया। उसके बाद अगले 3 महीने तक उन साध्वीजी भगवंतों का रायपुर में रुकने का हुआ और तब तक तो महत्तरा साध्वीजी भगवंत भी उनकी कुछ शिष्याओं के साथ वहां पर आ गए।
3 महीने तक उन्होंने बिना रुके, बिना थके, एकदम उल्लास के साथ, प्रसन्नता के साथ उन Operation वाले साध्वीजी भगवंत की भक्ति की, उनका पूरा ध्यान रखा।
फिर से बता देते हैं, ना कोई परिचय, ना पहले कभी मिलना हुआ, दोनों समुदाय भी अलग लेकिन बस एक ही रिश्ता – ‘मेरे जिनशासन के साध्वीजी है..’ उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखा।
चातुर्मास का समय आ चुका था, महत्तरा साध्वीजी भगवंत का चातुर्मास प्रवेश था तो उनके प्रवेश के साथ साथ उन साध्वीजी भगवंतों का भी प्रवेश करवा दिया। जैसे उनके ही गुरुनी हो इस तरह से वात्सल्य उनके ऊपर बरसाया।
समुदाय आदि के भेद व्यवस्था के लिए थे, विवाद के लिए नहीं। यह बात आज भी हमें कहीं कहीं पर देखने को मिलती है। समुदाय अलग हुए तो क्या हुआ, वेश तो प्रभु महावीर का ही है रहनेवाला है।
धन्यवाद है शासन को एक रखनेवाले ऐसे महात्माओं को।
धन धन मुनिवरा..


