Jain Sadhviji’s Unbelievable Story of Cancer VS Tapasya |

यह साध्वीजी भगवंत ने मृत्यु को महोत्सव बना दिया 🙏

Jain Media
By Jain Media 47 Views 8 Min Read

एक जैन साध्वीजी को जब पता चला कि उन्हें कैंसर हैं तो उन्होंने क्या किया?

कुछ समय पहले की बात है. गुजरात के नवसारी शहर में कुछ साध्वीजी भगवंत उपाश्रय में बिराजमान थे. एक तपस्विनी साध्वीजी भगवंत की तबियत थोड़ी Down थी तो Check करने के लिए Doctor को बुलाया गया था. 

Doctor ने Check करके वह साध्वीजी भगवंत को सच-सच बता दिया 

देखिए साध्वीजी महाराज, आप से सच छुपाने का कोई अर्थ नहीं बनता, आप बहुत हिम्मतवाले लगते हो इसलिए बता देता हूँ. हो सकता है आपको बहुत आघात लगे फिर भी बता देता हूँ कि आपको कैंसर की शुरुआत हो चुकी है, आपके पास ज्यादा समय नहीं है ऐसा मानकर चलना.

यह साध्वीजी भगवंत तपस्विनी थे, इनकी 99 ओली चल रही थी और बिना पारणा किए 100वीं ओली शुरू करने की भावना थी लेकिन तबियत बिगड़ने से थोड़े Doubt में थे कि ओली की तपस्या Continue करनी या नहीं.

ओली यानी कि क्या?

जानकारी के लिए बता दें ओली यानी एक आयंबिल, एक उपवास, फिर दो आयंबिल एक उपवास, तीन आयंबिल एक उपवास, चार आयंबिल एक उपवास..

 इस तरह से आगे बढ़ते बढ़ते 98 आयंबिल, एक उपवास यह हुई 98 ओली पूरी 99 आयंबिल एक उपवास यह हुई 99 ओली पूरी और फिर 100 आयंबिल एक उपवास करने पर 100 ओली पूर्ण होती है. 

Starting में 5 ओली तक Non-Stop तपस्या करनी होती है, यानी एक आयंबिल, एक उपवास, फिर दो आयंबिल एक उपवास, तीन आयंबिल एक उपवास, चार आयंबिल एक उपवास और पांच आयंबिल एक उपवास. 

ये 20 दिनों की तपस्या पूर्ण करने को “ओली का पाया” डालना कहते हैं. यहाँ पर 5 ओली पूर्ण होती है. इसे Foundation कहते हैं. 

इसके बाद चाहो तो Gap लेकर फिर 6th ओली अलग से कर सकते हैं, यानी 6 आयंबिल और फिर एक उपवास.. ये हुई 6th ओली पूरी.. फिर पारणा करके.. Gap देकर 7 आयंबिल एक उपवास किया जाए तो यह हुई 7th ओली पूरी.. 

इस तरह से तपस्वी आगे बढ़ते हैं और अपनी ओलियाँ पूरी करते हैं. इस तरह से Non-Stop अगर करने जाए तो 100 ओली पूरी करने में लगभग 14.5 वर्ष लग जाते हैं. 

आयंबिल क्या होता है यह जानने के लिए पूरा एक Article अलग है से वह पढ़ सकते हैं.

What is AYAMBIL in Jainism?

तो यह साध्वीजी भगवंत की 99वीं ओली चल रही थी और बिना Gap लिए यानी बिना पारणा किए 100वीं ओली शुरू करने की उनकी भावना थी. Cancer का पता चला तो थोड़े Confusion में थे कि क्या करना.

यह साध्वीजी भगवंत एक श्राविका को साथ लेकर एक Doctor के पास गए. कैंसर के कोई भी लक्षण अभी तक बाहर नहीं दिख रहे थे. कैंसर की बात जानकर बिलकुल भी घबराए नहीं लेकिन गंभीर बन गए. 

उन्होंने सोचा कि मृत्यु तो निश्चित है लेकिन 100 ओली तो करनी ही है चाहे कुछ भी हो जाए. उस श्राविका बहन को समझा दिया कि आपको किसी को कुछ भी नहीं कहना है, कोई पूछे तो सिर्फ इतना कहना कि सामान्य तकलीफ है दवा से ठीक हो जाएगा.

समय बीता, 99 ओली पूर्ण हुई. संघ में बिराजित आचार्य भगवंत के मुख से 100वीं ओली के 1st आयंबिल का पच्चक्खान लिया. Cancer की बात किसी को पता नहीं. 

100वीं ओली शुरू हुई और विहार भी शुरू हुआ, अमदावाद पहुंचे. फिर वहां से शंखेश्वर पहुंचे. उन्होंने अपना अंतिम समय जानकर अपनी अंतिम आराधना शुरू कर ली थी. रोज़ 4-5 घंटे शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के जाप में लग गए. 

आयंबिल में भी सिर्फ 2-3 द्रव्य ही वापरते थे यानी 2-3 Item ही खाते थे और वापरकर उधर ही बैठे रहते. थोड़ी देर में उनको उलटी हो जाती थी. यह रोज़ का क्रम हो चुका था. इस तरह से 100वीं ओली के 70 आयंबिल पूर्ण हो चुके थे. 

यह साध्वीजी भगवंत की जन्मभूमि थी चानस्मा. तो पूज्य साध्वीजी भगवंत के सांसारिक माता-पिता की तीव्र इच्छा थी कि उनकी 100वीं ओली का पारणा उनकी जन्मभूमि पर हो. साध्वीजी भगवंत ने विनंती स्वीकार की और चानस्मा पहुंचे. 

परमात्मा की कृपा से और गुरु की कृपा से 100वीं ओली पूर्ण की और वहां पर 100वीं ओली का पारणा हुआ. साध्वीजी भगवंत को अत्यंत आनंद हुआ. इस दौरान पूज्य साध्वीजी भगवंत की तबियत ज्यादा बिगड़ गई. डोली में पाटन लाए गए. 

Doctor को बुलाया गया, Doctor ने Check करके कह दिया कि इनको तो Cancer का Last Stage है. साध्वीजी भगवंत तो पूरी तरह से तैयार थे. यह साध्वीजी भगवंत को तपस्या के साथ साथ दो चीज़ें बहुत प्यारी थी. 

एक था स्वाध्याय और दूसरा सीमंधर स्वामी की भावयात्रा. 

चाहे कुछ भी हो जाए रात को सीमंधर स्वामी परमात्मा की भावयात्रा किए बिना संथारा नहीं करते थे यानी सोते नहीं थे. 

100वीं ओली के पूर्ण होने के 13 दिनों के बाद शाम को लगभग 5.45 PM के आस पास, श्री संघ मौजूद था, यह साध्वीजी भगवंत ने श्री संघ को सीमंधर स्वामी परमात्मा की भावयात्रा करवाई और नवकार महामंत्र का स्मरण हुए करते एकदम समाधिपूर्वक चिरविदाई ली. 

पूज्य साध्वीजी भगवंत का कालधर्म हुआ, देवलोकगमन हुआ, समाधि मरण हुआ. इनके देवलोकगमन के बाद नवसारी के वह श्राविका बहन ने पूरी घटना सभी को बताई कि

पूज्य तपस्विनी साध्वीजी भगवंत को नवसारी में ही कैंसर के बारे में पता चल गया था. लेकिन उन्होंने मुझे एकदम सख्त शब्दों में कह दिया था कि किसी को कुछ नहीं कहना इसलिए उनकी आज्ञा का पालन करते हुए मैं मौन रही. 

मौत के बीच भी साध्वीजी की जागरूकता कैसी?
आराधना की भावनाएं कैसी?
मरने के वक्त की स्वस्थता कैसी?
अंदर से Cancer के कीड़ें खा रहे हैं पर आत्मा की जागरूकता कैसी? 

यह साध्वीजी भगवंत ने सिर्फ जीना नहीं लेकिन मरना भी सीखा और सिखाया भी. आज भी जिनशासन ऐसी उत्तम आत्माओं से, महात्माओं से भरपूर है, जो मौत को भी महोत्सव बनाते हैं.. 

आज हम जब News में Iran-Israel, Russia Ukraine जैसे युद्धों में लोगों को भयानक रूप से मरते हुए देख रहे हैं, Flight Crash अथवा Floods में हमारे दिल को दहला दे वैसी पीडाएं, घटनाएं बाहर आ रही है. 

तब ऐसी Preparation के साथ मौत को गले लगानेवाले कितने हैं? 

जिनशासन आज भी जयवंत है.
धन धन मुनिवरा 

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *