The Untold Sacrifice of A Jain Sadhviji | Dhan Dhan Munivara

"साहेबजी कब जाओगे?"-आखिर बच्चों ने क्यों पूछा ऐसा सवाल?

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By Jain Media 7 Min Read

आखिर क्यों बच्चों ने एक साध्वीजी भगवंत से कहा कि “साहेबजी, आप यहाँ से कब जाएंगे?

कम से कम 50 साल पहले की यह घटना है. एक साध्वीजी भगवंत के ह्रदय में कितनी संवेदना होती है. आज हम जानेंगे, बने रहिए इस Article के अंत तक.

साध्वीजी भगवंत का एक Group विहार करके यानी पैदल यात्रा करके एक छोटे से गांव में पहुंचा. वहां जैनों के घर तो थे लेकिन ज्यादा नहीं थे. कुछ कारण से पूज्य साध्वीजी भगवंतों को वहां पर कुछ दिनों तक रुकना पड़ा. 

एक दिन शाम के वक्त पर 10 और 12 वर्ष की उम्रवाले छोटे भाई-बहन उपाश्रय में आए. हाथ जोड़कर एक साध्वीजी भगवंत को शाता पूछी. साध्वीजी भगवंत तो उनका विनय देखकर खुश हो गए. 

लेकिन दोनों में से एक ने एकदम मासूमियत के साथ सवाल पूछा ‘साहेबजी, आपका विहार कब है?’ यह प्रश्न थोड़ा विचित्र ढंग से पूछा गया था. साध्वीजी को अजीब लगा क्योंकि इस वाक्य का सीधा-सीधा अर्थ होता है कि “साहेबजी आप यहाँ से कब जाएंगे?”

उन्होंने बच्चों को पूछा ‘बेटा, क्यों ऐसा पूछ रहे हो, हम आपको अच्छे नहीं लगे, क्या?’ बच्चे ने कहा कि ‘नहीं, नहीं, साहेबजी, आप तो बहुत अच्छे हो लेकिन हमें दूध पीना है. पूज्य साध्वीजी भगवंत कुछ समझ नहीं पाए. 

उन्होंने पूछा ‘आपके दूध पीने से हमारे विहार का क्या लेना देना है?’ बच्चे भोले थे, तो वे सच-सच बात बोल बैठे ‘साहेबजी जिस दिन से आप आए हो, उस दिन से मम्मी हमें दूध पीने के लिए नहीं देती है. 

वह हमको कहती है कि ‘अभी साध्वीजी पधारे हुए हैं ना, तो उनको दूध वहोराना है. जब वे विहार कर देंगे उसके बाद आपको दूध देंगे.’ तो महाराज साहब, आपके विहार के बाद ही मम्मी हमको दूध देनेवाले हैं, इसलिए हम आपको पूछने आए हैं.’ 

सभी साध्वीजी भगवंत बहुत भावुक हो गए, यह जवाब सुनकर रो पड़े. साध्वीजी भगवंत को बहुत दुःख हुआ ‘हमारे कारण छोटे छोटे बच्चों को दूध पीने को नहीं मिल रहा है, उनके दूध पीने में हम अंतराय बन रहे हैं. हे भगवान!’ 

उन्हें भयानक आघात लगा. उन्होंने दोनों बच्चों को बोल दिया ‘हम कल ही विहार कर रहे हैं. कल से आपको रोज दूध मिलेगा और हां, मम्मी को कहना कि महाराज साहेब आपको बुला रहे हैं.’ 

बच्चे डर गए और उन्होंने साध्वीजी भगवंत से पूछा ‘महाराज साहेब, आप मम्मी के सामने हमारी Complaint तो नहीं करेंगे ना?’ साध्वीजी भगवंत ने रोते-रोते भी हंसते हुए कहा ‘बिल्कुल नहीं, तुम दोनों तो भगवान हो. भगवान की कभी Complaint की जाती है क्या?’ 

कुछ ही देर में बच्चों की मम्मी आई, बच्चे भी साथ में थे. साध्वीजी ने उन बहन को पूछा ‘हमको दूध वहोराने के लिए आपने अपने खुद के बच्चों को दूध देना बंद क्यों किया? आप कैसी माँ हो?’

वो बहन बोले ‘महाराज साहेब, मेरे पति की कमाई इतनी नहीं है तो ज्यादा दूध नहीं ला सकते हैं. नहीं तो Extra दूध लाकर इनको भी पिला देती. मुझे भी दुख होता है लेकिन महाराज साहेब, हमारे गांव में साधु-साध्वीजी भगवंत बहुत कम आते हैं. 

ऐसा लाभ मुझे कब मिलेगा? बच्चों को मैंने प्रेम से ही समझाया था लेकिन आखिर बच्चे हैं ना. तो उन्होंने आपको कुछ कह दिया होगा. साहेबजी, हमें क्षमा करना, और इस बात को छोड़ दीजिए.’

दूसरे दिन सब साध्वीजी भगवंत विहार करके चले गए. अगली जगह पर वापस गोचरी में दूध आया. एक साध्वीजी भगवंत दूध वापरने ही जा रहे थे और उसी वक्त उन्हें उन 2 बच्चों के मासूम चेहरे अपनी नजर के सामने दिखने लगे. 

साध्वीजी का गला रुंध गया और उनकी आँखों से आंसू बहने लगे. वो साध्वीजी भगवंत दूध नहीं वापर पाए यानी दूध नहीं पी पाए और उन्होंने दूसरे साध्वीजी को दूध वापरने के लिए दे दिया. 

3-4 दिन तक यही सिलसिला चला और फिर वह साध्वीजी ने यह तय कर लिया ‘अब दूध मेरे लिए जहर बन गया है’ और उन्होंने पूरी जिंदगी के लिए दूध का संपूर्ण त्याग किया. 

लगभग 50 साल से भी अधिक समय तक वह साध्वीजी भगवंत ने इस प्रतिज्ञा का पालन किया. कुछ वर्ष पहले ही उनका कालधर्म यानी देवलोकगमन भी हो गया लेकिन उन्होंने दूध की एक बूंद भी कभी भी नहीं वापरी. 

वह श्राविका तो महान है ही कि जो अपने बच्चों की माँ तो थी ही लेकिन उससे भी ज्यादा पूज्य साधु साध्वीजी भगवंत की भी माँ बनी और वह साध्वीजी भगवंत भी महान है जिन्होंने सिर्फ एक छोटे से प्रसंग को लेकर जीवन भर के लिए दूध का त्याग कर लिया. 

जानते हो वह महान साध्वीजी भगवंत कौन थे?

वह थे महान शासन प्रभावक युगप्रधान आचार्यसम पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी महाराज साहेब के सगे बहन महाराज साहेब 

परम पूज्य साध्वीजी भगवंत श्री महानंदाश्रीजी महाराज साहेब. 

वह साध्वीजी भगवंत के ह्रदय में क्या Level की करुणा रही होगी सोच सकते हैं. वह गांव कौनसा था? पता नहीं. वह श्राविका बहन कौन थे? वह भी नहीं पता. शायद आज वह जीवित भी होंगे या नहीं? वह भी नहीं पता. 

वह दो बच्चे आज कहां पर है? वह भी हमें पता नहीं. लेकिन उनके उस सुकृत को, उनके उस महान त्याग को याद करके हम सब उनको भावभीनी वंदना तो कर ही सकते हैं. 

अगर भूखा संगम, खीर वहोराने से शालीभद्र बन सकता है, अगर नयसार जंगल में गोचरी वहोराने से परंपरा से महावीर भगवान बन सकते हैं, अगर तीन दिन का भूखा राजकुमार मुलदेव घर-घर से मांगकर लाया हुआ भोजन साधु को वहोराने से थोड़े ही दिनों में राजा बन सकता है, 

तो अपने पेट के दो प्यारे बच्चों के मुंह से दूध छुड़वाकर सिर्फ भक्तिभाव से साध्वीजी भगवंत को वहोराने वाले वह श्राविका बहन भविष्य में क्या बनेंगे? वह तो सिर्फ ज्ञानी ही बता सकते हैं. 

पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों के त्याग की ऐसी भावुक कथाएं जब सुनने को मिलती है तब मन कहने लगता है 

“धन धन मुनिवरा”

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