विरमगाम गाँव की अद्भुत घटना.
बहुत ही भावुक श्रावकों ने गुरु भगवंत से आग्रहपूर्वक विनंती की ‘पधारो, पधारो गुरुदेव! आप पधारे! हम धन्य हो गए. धन्य भाग्य हमारा… हमारे आंगन में सोने का सूरज उगा, गुरुदेव! पूरा भोजन तैयार है और आप पधारे. यह मिठाई घर पर बनाई गई है आपको इसे ग्रहण करना ही होगा, वहोरिये और लाभ दीजिए.’
वह महात्मा पिछले 33 वर्षों से अट्ठम के पारणे अट्ठम कर रहे थे. अट्ठम के पारणे अट्ठम यानी 3 दिन उपवास फिर चौथे दिन कुछ ग्रहण करना और फिर से 3 दिन उपवास. उन्हें कुछ भी वहोरना नहीं था इसलिए वे मना कर रहे थे लेकिन श्रावकों ने बहुत विनंती की.
इस घर में एक नल की मरम्मत करने के लिए कुछ ही समय पहले एक गरीब भाई आया था, उसने छत से यह पूरा दृश्य देखा और वह आश्चर्यचकित हो गया.
‘मुझे कोई एक सूखी रोटी भी देने को तैयार नहीं और इन साधुओं को सभी Force करके मिठाइयां खिलाने को उत्सुक हैं. वाह रे वाह! तो मैं भी साधु बन जाता हूँ!’ ऐसा सोचकर वह भाई जल्दी से नीचे उतरा और यह तपस्वी मुनि भगवंत के साथ चलने लगा.
उपाश्रय पहुंचकर यह गरीब भाई ने साधु बनने की अपनी इच्छा व्यक्त की. साधु भगवंत ने योग्यता देखकर वह भाई को सही समझ दी और दीक्षा भी दी. संप्रति महाराजा के पूर्वभव में, जब वे भिखारी थे, तब उन्होंने भी इसी तरह दीक्षा ली थी और उस भिखारी को महान आचार्य भगवान आर्यसुहस्ति सूरिजी ने दीक्षा दी भी थी, क्योंकि Future Bright लग रहा था.
यह Episode बहुत पहले हम देख चुके हैं, एक बार फिर से आप देख सकते हैं.
जैन शासन की दीक्षा देने में गुरु भगवंत अमीर-गरीब, उंच-नीच आदि कुछ भी नहीं देखते हैं लेकिन उस व्यक्ति की आत्मा यानी गुणवत्ता देखते हैं, योग्यता देखते हैं, पात्रता देखते हैं.
तो इस गरीब व्यक्ति की भी दीक्षा हुई, दीक्षा के बाद विहार शुरू हुआ. एक छोटे से गांव में पहुंचे, गोचरी आई, सूखी रोटी..! वह नूतनदीक्षित मुनि चौंक गए और बोले ‘मैंने तो ऐसी सूखी रोटी खाने के लिए दीक्षा नहीं ली.’
उनके गुरु समझ गए थे कि ‘यह अपरिपक्व हीरा है, अभी तराशा जाना बाकी है.’ इसलिए गुरुदेव ने नूतन मुनि को समझाया ‘देख, एक-दो दिन में बड़ा शहर आएगा, तो वहां पर मिठाई मिल जाएगी.’ यह सुनकर नूतन दीक्षित मुनि शांत हो गए.
कुछ ही दिनों में गुरु भगवंत कड़ी नामक गाँव में पहुंचे. उस समय कड़ी के श्रावक बहुत समृद्ध थे. वहां पर जैनों की संख्या भी अच्छी खासी थी. अच्छी और उत्तम भोजन सामग्री यानी गोचरी प्राप्त कर नूतन दीक्षित मुनि प्रसन्न हो गए.
लेकिन उनके गुरु जानते थे कि ‘यह मोक्षमार्ग नहीं है.’ गुरु ने अपने शिष्य की आत्मा को जागृत करने के लिए उचित समय पर श्री उत्तराध्ययनसूत्र पर वाचना देनी शुरू की. यह वाचना विनयाध्ययन से शुरुआत हुई, वाचना आगे चलती गई.
प्रभु के वचन, आगमों के मंत्रमय शब्द, और गुरुमुख से मिलते उनके अद्भुत रहस्य. नूतन दीक्षित मुनि की आत्मा हिल उठी. वाचना में फिर पापश्रमणीय अध्ययन शुरू हुआ.
“दुद्धदहीविगईओ”-यह श्लोक भी उसमे आया यानी ‘जो दूध-दही-घी-छाछ-गुड-तेल यह विगई या इनसे बनी चीज़ें बार बार ग्रहण करता, वह पापश्रमण कहलाता है.’ नूतन दीक्षित मुनि भगवंत की आत्मा कांप उठी.
वे सोचने लगे कि ‘कहाँ ये शास्त्र वचन, कहाँ इसमें साधुता का वर्णन और कहाँ मैं और मेरी आहारलंपटता यानी Taste के पीछे का पागलपन.’ एकदम से भावों का परिवर्तन हुआ, आँखों में से आंसुओं की धारा बहने लगी, भयानक पश्चाताप हुआ कि “मैं बाहर से तो साधु बन गया लेकिन अंदर से?”
उन साधु भगवंत ने U-Turn लिया.
उसी दिन उन नूतन दीक्षित मुनि भगवंत ने आजीवन यानी जीवनभर के लिए 6 विगईओं का त्याग कर दिया. बाहर से बने साधु में अंदर से साधु का जन्म हुआ. कितनी अद्भुत घटना. महात्मा की गोचरी चर्या ने एक व्यक्ति को कहाँ से कहाँ ला दिया ना.
कहाँ नल ठीक करनेवाला गरीब व्यक्ति और कहाँ महान साधु भगवंत जिन्होंने जीवनभर के लिए 6 विगईओं का त्याग किया. कौन ऐसा कहते हैं कि ‘आज सच्चे साधु-साध्वीजी भगवंत नहीं है? आज भी जिनशासन जीवंत है, Live है.
इसलिए तो महात्माओं की गोचरी चर्या को भी देखकर मन में कहना चाहिए
“धन धन मुनिवरा”