जब साध्वीजी भगवंतों के सामने आया Leopard!
तीन जैन साध्वीजी भगवंत अपने गुरुनी की आज्ञा लेकर गुजरात के कच्छ भद्रेश्वर की तरफ विहार कर रहे थे।
Note : जैन साधु-साध्वीजी भगवंत की पैदल यात्रा को विहार कहा जाता है।
विहार करते करते वे कोटडा पहुंचे। वहां से पूज्य साध्वीजी भगवंतों की गढ़सीसा जाने की योजना थी।
कोटडा के लोगों ने पूज्य साध्वीजी भगवंतों को Alert करते हुए ख़ास सूचना दी कि ‘साहेबजी जिस रास्ते से आप जा रहे हैं वहां पर जंगली पशुओं का यानी Wild Animals का बहुत भय है, इसलिए कृपा करके थोडा Late ही विहार करना, ज्यादा जल्दी मत निकलना।’
पूज्य साध्वीजी भगवंतों ने सूचना को ध्यान में रखा और 7 बजे के आसपास विहार शुरू किया। अभी तो 3-4 Km चले ही थे कि आगे 20-25 Feet की दूरी पर एक खतरनाक Leopard को देखा।
वह Leopard पूज्य साध्वीजी भगवंतों की तरफ ही देख रहा था। पूज्य साध्वीजी भगवंत भयभीत हो गए, साथ में जो Cycle वाला व्यक्ति था वह भी धूजने लग गया। पूज्य साध्वीजी भगवंतों को लगने लगा कि आज तो सभी का जीवन खतरे में हैं।
Co-incidentally तीनों साध्वीजी भगवंतों का आयम्बिल का तप चालु था। तीनों साध्वीजी भगवंतों ने नमस्कार महामंत्र यानी नवकार मंत्र का पाठ शुरू कर दिया।
लेकिन तब ही दूसरी बड़ी आफत आ गई। उस Leopard के बाजू में एक और Leopard आकर उसके पास खड़ा हो गया।
क्षणभर के लिए सबकी सांसें थम गईं कि ‘अब क्या होगा?’
तीनों साध्वीजी भगवंत और अधिक भाव के साथ नमस्कार महामंत्र का जाप करने लगे। अब पीछे मुड़कर भाग जाए ऐसा उन्होंने सोचा भी नहीं और Practically इंसान की Speed से Leopard की Speed बहुत ज्यादा होती है..
2-3 Minute तक वो Leopards साध्वीजी भगवंतों को देखते रहे और साध्वीजी भगवंत नवकार गिनते रहे। अचानक ना जाने कैसे 2-3 Minute के बाद दोनों Leopards जंगल की तरफ दौड़ पड़े।
ऐसा लगा मानो स्वयं नवकार की शक्ति ने एक अदृश्य कवच बना दिया हो और तब साध्वीजी भगवंतों के सांस में सांस आई। उस दिन उनकी श्रद्धा और दृढ़ हुई कि सच्चे भाव से जपा गया नवकार मंत्र हर संकट को टाल सकता है।
फिर वे फटाफट विहार करके गढ़सीसा पहुँच गए। शाम के समय में पूज्य साध्वीजी भगवंतों को किसी ने समाचार दिए कि ‘कोटडा के पास Leopards ने किसी व्यक्ति का शिकार कर उसे मार दिया।’
तीनों साध्वीजी भगवंत एक दुसरे को देखते रह गए…
नवकार महामंत्र की अद्भुत ताकत आज भी देखने को मिलती है, अनुभव करने को मिलती है। बस, श्रद्धा होनी चाहिए। आस्था और मंत्रबल जब एक हो जाएं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
साध्वीजी भगवंतों की इस श्रद्धा को देखकर कहने का मन होता है धन धन मुनिवरा।