Shri Koka Parshwanath Jain Tirth’s Interesting History

श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के प्रभाव के सामान श्री कोका पार्श्वनाथ भगवान का रोचक इतिहास.

Jain Media
By Jain Media 18 Views 9 Min Read
Highlights
  • श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के प्रभाव के समान ही श्री कोका पार्श्वनाथ प्रभु का प्रभाव है, ऐसा माना जाता है.
  • श्री कोका पार्श्वनाथ परमात्मा, प्राचीन 108 पार्श्वनाथ परमात्मा में से एक हैं.
  • श्री कोका पार्श्वनाथ जैन तीर्थ गुजरात के पाटन जिले में है.

आज हम गुजरात के पाटन में आए ऐसे श्री कोका पार्श्वनाथ भगवान का रोचक इतिहास जानेंगे. ये जानकारी हमने परम पूज्य गणीवर्य श्री धैर्यसुंदर विजयजी महाराज साहेब द्वारा लिखित धर्म प्रेमी संदेश Magazine से ली है.

मलिन वस्त्र या अलंकार?

‘प्रजावत्सल, परम पराक्रमी, गुजरात के महाराजाधिराज श्री सिद्धराज जयसिंह पधार रहे हैं.’ ढोल पीटे जा रहे थे, नगाड़े बज रहे थे, सबसे आगे घोड़े पर सवार सैनिक चल रहे थे, भव्यपट्टहस्ति यानी विशाल हाथी पर बैठे हुए सिद्धराज जयसिंह की सवारी बड़ी शोभा के साथ पाटण के राजमार्ग से गुजर रही थी. 

उस वक्त विशाल मुनि मंडल के साथ प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय अभयदेवसूरीश्वरजी महाराज साहेब पाटण नगरी में प्रवेश करके संघ के जिनालय की ओर आगे बढ़ रहे थे. साधु-संतों के प्रति सिद्धराज को बड़ी श्रद्धा थी. दूर से आचार्य श्री को देखकर उन्होंने अपने हाथी को रूकवा दिया और नीचे उतरकर आचार्य श्री के चरणों में झुक गया. 

आचार्य श्री अभयदेवसूरिजी अत्यंत वैरागी थे. उनके दिल में रहा हुआ वैराग्य उनके द्वारा पहने हुए कपड़ों पर छलक कर छा गया था. ‘वस्त्र मालिन्य तो साधु के लिए अलंकार है!’ अर्थात् मलीन वस्त्र तो साधु के आभूषण होते हैं ऐसा मानने वाले महाराजा सिद्धराज ने उन्हें विशेषण दिया ‘मलधारी’.

इन मलधारी आचार्य भगवंत की परंपरा में हुए थे प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब (कुमारपाल महाराजा के गुरु कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी वो अलग हैं). इन मलधारी आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय हेमचंद्रसूरिजी म.सा. ने नमस्कार महामंत्र एवं करेमि भंते सूत्र पर लिखे गए विशेषावश्यक भाष्य की टीका (विवेचना) की रचना की थी जो 28 हजार श्लोक प्रमाण है (1 श्लोक यानी 36 अक्षर).

कोका पार्श्वनाथ प्रभु की स्थापना

पाटण में आचार्य भगवंत चातुर्मास के लिए बिराजमान थे. वहाँ गीमटा यानी घी वाले मोहल्ले में जाकर रोजाना वे श्रावक श्राविकाओं के आत्म कल्याण के लिए व्याख्यान यानी प्रवचन देते थे. एक दिन व्याख्यान के लिए आचार्य भगवंत वहाँ प्रतिदिन की भाँति पहुँच गए. 

वहाँ रहे हुए पुजारी ने दो टुक सुना दिया ‘महाराज साहेब! आज आपका व्याख्यान यहाँ नहीं हो पाएगा.’ ‘क्यों भाई? रोजाना तो यहाँ पर ही होता था.’ ‘हाँ, लेकिन यहाँ आज बलि-बाकुला के द्वारा यानी उबाले हुए धान्य के द्वारा पूर्वजों का श्राद्ध पूजन होने वाला है. श्राद्ध की विधि करने के लिए हमें मंडल बनाना है और इसलिए जगह नहीं मिलेगी.’ 

वहाँ व्याख्यान सुनने के लिए आए हुए श्रावकों ने भी विनती की कि ‘आपकी क्रिया में तो अभी देर है, एक घंटे में तो व्याख्यान समाप्त हो जाएगा. थोड़ी देर के लिए तो जगह दे दो.’ पूजारी टस से मस नहीं हुआ. समझाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गए. असल में उस पुजारी की पहुँच राजा और अधिकारियों तक थी. 

आचार्य भगवंत को उस दिन व्याख्यान दिए बिना ही वापस लौटना पड़ा. समस्त जैन संघ का यह असहनीय अपमान था. प्रभु शासन के भक्त, श्रेष्ठि लोग यह कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? गीमटा के पास ही नए जिनालय का निर्माण करने के लिए संघ ने जगह ढूँढ़ना प्रारंभ किया. 

पुजारी के दबाव और धमकी के चलते कोई जगह बेचने के लिए तैयार नहीं था लेकिन कोका नामक सेठ ने इन धमकियों और दबावों को नजर अंदाज करके अपनी जगह जिनालय के निर्माण के लिए दे दी. पुजारी के वर्चस्ववाले उस काल में इतनी हिम्मत करनेवाले कोका सेठ की जगह संघ ने तीन गुनी कीमत (राशि) चुकाकर ली और इस तरह कोका सेठ की कदर की. 

इतनी कदर भी कम लग रही थी तो संघ ने कोका सेठ के नाम को चिरंजीव बनाने के लिए जिनालय के साथ उनका नाम जोड़ने का निर्णय किया. घृत वसति के पास में ही ‘कोका वसति’ नाम से मनोहर जिनालय बन गया. श्री संघ ने पार्श्वनाथ प्रभु को नूतन जिनालय में प्रतिष्ठित किया और यह प्रभुजी ‘कोका पार्श्वनाथ’ नाम से प्रसिद्ध हुए.

कोका पार्श्वनाथ प्रभु की पुनः प्रतिष्ठा 

उन्नति के शिखर पर आरूढ़ पाटण नगर पर तब बड़ी आफत आ गई जब मालवा के राजा ने आक्रमण करके राजा भीमदेव को हरा दिया था. पाटण तहस-नहस हो गया और दुश्मनों के आक्रमण से श्री कोका पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा खंडित हो गई और टूटे हुए जिनालय का जीर्णेद्धार करने के लिए रामदेव और आशाधर नाम के दो सुनारों ने यानी श्रावकों ने निश्चय किया.

आरासण की खदान से पत्थर लाकर सुंदर जिनबिंब निर्माण करने के लिए किए गए प्रयत्न दो बार निष्फल हो गए यानी प्रतिमा का निर्माण नहीं हो पाया. रामदेव श्रावक ने प्रतिज्ञा के साथ आहार का त्याग किया. उनके गुरुदेव ने भी ऐसी ही कठोर प्रतिज्ञा रखी. जिनालय निर्माण के ऐसे शासन सेवा के कार्यों के लिए किए हुए पुरुषार्थ को देख पूर्व के इन महापुरुषों के सामने हम नतमस्तक हो जाते हैं. 

समर्पण के ऐसे महायज्ञ जब शुरू होते हैं तब दैवीय शक्ति को भी प्रत्यक्ष होना पड़ता है. आठवें उपवास की रात्रि में रामदेव श्रावक को शासनदेव से कार्य सफल होगा ऐसा संकेत मिला कि ‘जिनालय से नजदीक रही हुई जिस भूमि पर आपको पुष्प और अक्षत साथ-साथ दिखें वहाँ खुदाई करना.’

रामदेव स्वप्न संकेत पाकर धन्य बन गया. वह सुबह में संकेत की हुई भूमि ढूँढ़ने के लिए निकल गया और कुछ ही मिनटों में वह जगह मिल गई. वहां खुदाई करने पर सुन्दर श्वेत संगमरमर के 3 बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त हुए. 

इन टुकड़ों से सुन्दर जिनबिंबों का निर्माण करवाया और जिनालय का जीर्णेद्धार करके वि.सं. 1262 (अन्यमत से 1266), ईस्वी सन्‌ 1206 (अन्यमत से 1210) में प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय देवानंदसूरिजी के हाथों से नूतन प्रभुजी को प्रतिष्ठित करवाया गया. यह प्रभुजी भी ‘श्री कोका पार्श्वनाथ’ नाम से ही प्रसिद्ध हुए.

बहुत सारे प्राचीन ग्रंथ, प्राचीन तीर्थमाला एवं स्तवनों में मिलने वाले उल्लेख श्री कोका पार्श्वनाथ तीर्थ की प्राचीनता का सबूत देते हैं. श्री कोका पार्श्वनगाथ जिनालय का जीर्णोद्धार करवाने वाले सुनार रामदेव के दो बेटे थे त्रिभुवन और जाजा. त्रिभुवन के मल्‍लक नाम के बेटे को भी देल्हण और जैतसिंह नाम से दो बेटे थे. दोनों अत्यन्त भक्ति-भाव से श्री कोका पार्श्वनाथ भगवान की रोजाना पूजा करते थे. 

कोका पार्श्वनाथ प्रभु की पूजा का फल 

एक दिन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के अधिष्ठायक देव देल्हण के समक्ष स्वप्न में हाजिर हुए. अपने स्वामी के प्रति देल्हण की परम भक्ति से प्रभावित बने इस देव ने उसे कहा ‘कल से मैं प्रतिदिन प्रातः 4 घड़ी के लिए (डेढ़ घंटे) आपके आराध्य देव श्री कोका पार्श्वनाथ का सानिध्य करूँगा. उस वक्त आप कोका पार्श्वनाथ की पूजा करेंगे और साथ-साथ मेरे प्रभु शंखेश्वर पार्श्वनाथ की भी पूजा हो जाएगी.’

दूसरे दिन से स्वप्न संकेत के मुताबिक सब कुछ होने लगा. श्री कोका पार्श्वनाथ की पूजा सकल मनोरथ की शीघ्र दातार बनने लगी. श्री कोका पार्श्वनाथ की महिमा बहुत बढ़ गई. तब से यह बात भी प्रसिद्ध हुई कि कलिकाल कल्पतरु श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की पूजा यात्रा करने के मनोरथ श्री कोका पार्श्वनाथ भगवान की पूजा यात्रा करने से भी पूर्ण होते हैं.

यानी पाटन में ये प्रसिद्धि है कि अगर आपको शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादा की यात्रा करने की अनुकूलता न हुई हो और श्री कोका पार्श्वनाथ दादा की पूजा, भक्ति, यात्रा आदि कर ली तो समान फल मिलता है यानी कोका पार्श्वनाथ परमात्मा का प्रभाव श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ के प्रभाव के समान मना गया है.

Location of Shri Koka Parshwanath Jain Shwetambar Tirth 👇
https://maps.app.goo.gl/nWGG94F4wzwt9Rt49

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *