एक कटोरी दूध ने वास्तविकता बता दी.
हमें लगता है सब जैन लोग अमीर ही है, इस भ्रम में से हम जितना जल्दी बाहर आएंगे उतना अच्छा होगा. आज एक सच्ची घटना जानेंगे जो सभी को झकझोर देगी.
बने रहिए इस Article के अंत तक.
एक छोटा सा गाँव था जहाँ 100-120 जैन घर होंगे. उस गाँव में 10-11 जैन साधु भगवंत रुके हुए थे. लगभग सभी महात्माओं को एकासना था.
Note : एकासना यानी दिन में सिर्फ एक ही बार भोजन करना.
एक साधु भगवंत दोपहर के वक्त गोचरी के लिए यानी आहार के लिए एक घर में गए. श्राविका ने बहुत भाव से गोचरी वहोराई. गुरु भगवंतों को भोजन देने को गोचरी वहोराना कहते हैं.
वह साधु भगवंत को दूध का खप था यानी दूध की ज़रूरत थी, तो उन्होंने पूछा कि बहन, घर में दूध है? यह सुनते ही वह बहन एकदम खुश हो गई. “हां महाराज साहेब, है, लाभ दीजिए.”
ऐसा कहकर एक कटोरी जितनी छोटी सी तपेली में रखा हुआ दूध वह बहन महात्मा को वहोराने लगी.
गुरु भगवंत ने निर्दोष गोचरी के लिए सहज भाव से पूछा कि “इतना ही दूध है? बाकी का दूध Fridge में रखा है क्या? तो क्या यह हमारे लिए बाहर रखा था? तो हमको तो यह दूध नहीं चलेगा.”
तब आंखों में आंसू के साथ वह बहन बोली, “महाराज साहेब, सच कह रही हूँ, आपके लिए नहीं रखा था, हमारे घर में एक महीने में पांच से सात दिन ही दूध आता है. मेरे दो बच्चे जब छोटे थे, तब तो रोज दूध लाते थे, लेकिन अभी बच्चे बड़े हो गए हैं.
उनके School Fees वगैरह के खर्च बढ़ गए हैं, तो अब रोज दूध लाना बंद कर दिया है. कभी बच्चे को बहुत इच्छा हो, तो लाते हैं, या बड़ी तिथि को मैं आयंबिल उपवास करती हूं, तो उसके दूसरे दिन पारणे में दूध लाते हैं.
कल मेरा चतुर्दशी का यानी चौदस का उपवास था, तो आज दूध लाया था, थोड़ा बचा था, और मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे आपको वहोराने का लाभ मिल गया.” बोलते-बोलते और वहोराते वहोराते यह बहन रोते ही जा रहे थे.
महाराज साहेब की आंखों में भी अपने आप आंसू बहने लगे, सहज रूप से. उपाश्रय में आकर वह साधु भगवंत ने अपने गुरुजी को और बाकी सब साधु भगवंतों को यह पूरी घटना बताई.
लगभग सभी महात्मा भावुक हो गए. कारण यह कि जिस व्यक्ति की यह घटना थी, वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि संघ की पाठशाला में पढ़ाते थे, संघ की पाठशाला के गुरूजी थे वे हमारे ही बच्चों का संस्करण करते हैं, संस्कार देते हैं.
गुरुजी ने सबको इतना ही कहा, “शायद धनवान लोग, अमीर लोग इस बात को समझ पाएं तो अच्छा होगा. अमीर लोगों के घरों में शादी-जन्मदिन आदि के खर्चे करोड़ों में होंगे, लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर साधर्मिक परिवारों के खाली पेट भरने के लिए उनके पास पता नहीं क्यों लेकिन लाखों रुपये भी नहीं हैं.
कुछ धनवान लोग गुप्त रूप से साधर्मिक भक्ति करते भी है उनकी खूब खूब अनुमोदना लेकिन इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा जोर धनवान परिवारों को लगाना होगा, कुछ परिवार तो Hotels में जलसा करने के लिए हर रविवार को 2-5 हजार तो आसानी से खर्च कर देते हैं.
और विडंबना यह है कि उस खर्चे में अपने अमीर होने का गौरव समझते हैं, घमंड करते हैं कि मैं 2000 रुपये उड़ाकर आया, 5000 रुपये उड़ाकर आया, इस Hotel में गया, उस Resort में गया.
लेकिन बेचारे वो धनवान यह नहीं समझते हैं कि उनका सिर्फ एक रविवार के शाम का होटल का खर्च, कोई आर्थिक रूप से कमज़ोर साधर्मिक परिवार के लिए पूरे एक महीने का तीन Time का पेट भर के भोजन में काम आ सकता है.”
कहाँ एक Time का Hotel का खर्च और कहाँ उसी खर्च में पूरे महीने के भोजन का खर्च. सोचने जैसा है. श्री श्रीपाल-मयणा के रास में लिखा है कि “साधर्मिक के संबंध जैसा दूसरा कोई संबंध नहीं है’’
आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरी जी ने एक श्रावक को उपदेश दिया था कि “यह दंपत्ति को घर पर ले जाइए, इनकी भक्ति कीजिए.” उस वक्त पर श्रीपाल एक कोढ़िया, कदरूपा जवान था जिसको देखते ही मन बिगड़ जाए, ऐसा था.
लेकिन वह श्रावक श्रीपाल-मयणा को अपने घर ले गया, वो भी एक दिन की बात नहीं थी, अनिश्चित समय के लिए लेकर गया था. हर रोज तीन Time अच्छी-अच्छी Items बनाकर खिलाता था, भक्ति करता था.
हम इतना भले नहीं कर सकते, तो हम क्या कर सकते हैं?
Solutions
1. सबसे पहले हमें यह वास्तविकता को स्वीकारना होगा कि सभी जैन अमीर नहीं होते.
2. हमें यह स्वीकारना होगा कि आज हमारे अनेकों साधर्मिक परिवारों की हालत बहुत ख़राब है.
3. हमें यह Accept करना होगा कि आज सबसे ज्यादा Focus इस साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में करने जैसा है.
4. अनावश्यक Expenses जितने Possible हो उतने कम करके, साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में लगा सकते हैं.
5. बेकार के Expenses कम करना Possible ना हो तो कम से कम इतना तो कर सकते हैं कि उन Expenses का एक हिस्सा जैसे 10%, 20%, 30% साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में दे सकते हैं.
6. Monthly एक Fix Amount साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में दे सकते हैं.
7. Capacity हो तो Employment Opportunities Develop कर सकते हैं. कुछ संघों में तो Skills सिखाने पर बहुत Focus किया जा रहा है क्योंकि आगे ज़माना Skills का है.
उनकी भी खूब खूब अनुमोदना. क्योंकि Long Term Solution तो यही है.
लेकिन ऐसी घटनाओं से हमारी आँखें जितनी जल्दी खुल जाएगी उतना अच्छा होगा.