How A Shravak’s Tears Made a Jain Sadhu Weep? | Heart Touching Story

एक सामान्य श्रावक की सच्ची भक्ति ने जैन साधु को रुला दिया.

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By Jain Media 46 Views 10 Min Read

श्रावक के आंसुओं ने बदल दिया जैन साधु का दिल. 

आज से करीब 26-27 साल पहले की बात है. एक संघ में उपाश्रय से बाहर निकलते ही Right और Left, दोनों तरफ बहुत सारे जैनों के घर थे. 

Right Side पर समृद्ध यानी अमीर लोगों के घर थे और Left Side पर Financially Middle Class यानी सामान्य स्थिति वाले ऐसे जैनों के घर थे.  

उस उपाश्रय में कुछ साधु भगवंत एक महीने के लिए रुके हुए थे. उस समय सर्दियों का मौसम था. अमीर घरों में Dry Fruits, अडदीयापाक, सालमपाक, गोंद और मेथी के लड्डू जैसी ताकतवाली चीज़ें रोज़ बनती थीं. 

इसलिए साधु भगवंत जब गोचरी के लिए जाते, तो उन्हें भी वह सब चीजें वहोराई जाती थी. लेकिन जो Left Side पर सामान्य जैनों के घर थे, वहां ऐसी चीज़ें कम होती थीं, वहां घी, तेल और सब्ज़ियां भी बहुत साधारण होती थीं. 

महात्मा के उस Group में अधिकतर साधु भगवंत एकासना करते थे यानी दिन में एक ही बार भोजन करते थे और इसलिए उनके लिए ज्यादा ताकत देनेवाला भोजन ज्यादा उचित माना जाएगा. बात एक दम Practical है. 

तो गोचरी लानेवाले महात्मा ज़्यादातर अमीर लोगों के घरों में ही गोचरी के लिए जाते थे. Left Side वाले घरों में वे अधिकतर आठम-चौदस जैसी पर्व तिथियों के दिन जाते थे जब मिठाई आदि नहीं लेना हो और सुखी सब्जी आदि ही वहोरनी हो. 

Left Side के उन घरों की श्राविका बहनें साधु भगवंतों को बहुत भक्तिभाव से गोचरी वहोराती थी. धन-दौलत और गरीबी तो हमारे पुण्य-पाप के अनुसार होता है लेकिन भक्ति और सम्मान आत्मा की अच्छाई से आते हैं. 

हो सकता है, अमीर में वो अच्छे भाव न भी हों और गरीब में बहुत ज्यादा हों. यह संभव है. जीरण सेठ की कथा में यह बात हमें देखने को मिलती ही है. 

एक दिन की बात है. एक साधु भगवंत सुबह 11:30 बजे गोचरी के लिए नीचे उतरे. उसी वक्त एक श्रावक भाई उपाश्रय में सामायिक करने के लिए आ रहे थे. वह भाई ने साधु भगवंत को देखकर बहुत भावपूर्वक विनंती की कि ‘हमारे घर पर पधारिए और लाभ दीजिए.’ 

साधु भगवंत ने उन्हें पूछा ‘आपका घर किस तरफ है?’ भाई ने Left Side इशारा करते हुए कहा ‘इस तरफ है, बहुत दूर नहीं है.’ अब साधु भगवंत को मालूम था कि Left Side के घरों में इतनी ताकत वाली चीजें नहीं मिलेंगी. 

उन्हें यह भी ध्यान था कि अन्य साधु भगवंतों को एकासना करना है, कुछ महात्माओं को तो लंबी लंबी आयंबिल की ओलियों का पारणा है इसलिए खाने में पौष्टिक चीज़ें लाना भी ज़रूरी है.

यह सब सोच समझकर साधु भगवंत ने वह भाई को कहा ‘धर्मलाभ, फिर कभी देखेंगे.’ और वो Right Side के घरों में चले गए. वह श्रावक भाई को थोड़ा दुख जरूर हुआ, लेकिन वो समझदार थे, इसलिए चुप रहे. 

दो दिन बाद फिर वही श्रावक और वही साधु भगवंत उसी जगह मिले. श्रावक ने फिर बहुत भाव से साधु भगवंत को गोचरी के लिए विनंती की “साहेबजी, पधारिये, प्लीज आज पधारिये”

साधु भगवंत ने फिर कहा ‘देखेंगे, धर्मलाभ’. इस बार वह भाई को अजीब लगा. वो सोचने लगे ‘मेरे विनंती करने पर भी महात्मा गोचरी के लिए मना कर रहे हैं. क्या मुझसे कोई गलती हो गई है?’ 

बहुत सोचने पर भी उन्हें कोई गलती याद नहीं आई लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि ‘शायद मेरी गलती ये है कि मैं सामान्य आदमी हूं. मेरे पास भावना तो है, लेकिन साधुओं भगवंतों की भक्ति करने के लिए अच्छे Items कहां पर हैं? बस, मेरी यह गरीबी ही मेरी गलती है.’

2-3 दिन बाद फिर वही घटना हुई. वहीँ भाई ने उन्ही साधु भगवंत को फिर से गोचरी के लिए विनंती की. उस दिन भी साधु भगवंत ने ‘धर्मलाभ, देखेंगे’ कहकर मना कर दिया लेकिन इस बार वह श्रावक भाई से सहन नहीं हुआ. 

वे साधु भगवंत के चरणों में गिर पड़े, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती हुई आवाज में वे बोले ‘साहेबजी, पिछले जन्मों में मैंने कुछ अच्छे कर्म किए होंगे, तभी मुझे जिनशासन और आपके जैसे साधु भगवंतों के दर्शन का सौभाग्य मिला है. 

पर शायद कुछ पाप भी किए होंगे, इसलिए मैं इस जन्म में सामान्य जैन बना हूं. मेरे पास ज्यादा धन नहीं है. आपकी भक्ति के लिए उत्तम द्रव्य नहीं हैं पर साहेबजी, मैंने आज तक किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया है. 

मेहनत करके अपने परिवार को बड़ा किया है और आज मेरा बेटा भी मेहनत से कमा रहा है. हमारा घर भी ठीक ठाक चल ही जाता है. मैं अब लगभग Retire हो चुका हूं इसलिए ज़्यादातर समय सामायिक करता हूं.

पर साहेबजी, उपधान, छरी पालित संघ, नव्वाणु, मंदिर-मूर्ति के चढ़ावे आदि ऐसे बड़े बड़े धार्मिक कार्य मैं और मेरे जैसे हजारों जैन नहीं कर सकते हैं. हमारे पास आत्मा का कल्याण करने के लिए बस कुछ ही रास्ते हैं. 

जैसे परमात्मा की पूजा, सामायिक, और अपनी शक्ति के अनुसार आप जैसे साधु-साध्वीजी भगवंतों को गोचरी-पानी आदि वहोराकर उनकी भक्ति करना. अगर ये भक्ति का रास्ता भी हमसे छीन लिया गया तो हमारा आत्मकल्याण कैसे होगा? 

साहेबजी, कृपया हम पर कृपा कीजिए और मेरे घर गोचरी के लिए पधारिए. हमें लाभ दीजिए.’ श्रावक भाई की बातें सुनकर और उनकी भावना देखकर साधु भगवंत की आँखों में भी आंसू आ गए. 

साधु भगवंत ने सोचा कि ‘आज तो मुझे इन भाई के घर जरूर जाना होगा.’ साधु भगवंत ने उन भाई से क्षमा मांगी और उन्हें ज़्यादातर Right Side के घरों में जाने का कारण भी बताया और श्रावक भाई 100% सही कह रहे हैं, यह भी बताया. 

वह श्रावक भी गुरु भगवंत की मजबूरी समझ रहा था लेकिन वह भाई के भाव बहुत ही अद्भुत थे.पूज्य साधु भगवंत ने कहा ‘चलो, आज मैं आपके घर पर आता हूं.’ वो श्रावक भाई खुशी से और भी ज्यादा रोने लगे लेकिन अब वो आँसू खुशी के आँसू थे. 

वो श्रावक भाई साधु भगवंत को अपने घर ले गए और आसपास के दूसरे घरों में भी लेकर गए और सबने मिलकर बहुत भाव और आदर से साधु भगवंत को गोचरी वहोराई. 

उस दिन उन साधु भगवंत ने संकल्प किया कि ‘अब कोई भी सामान्य जैन अगर मुझे गोचरी के लिए बुलाए, तो पहले मैं उन्हीं के घर जाऊंगा. अगर कभी किसी वजह से नहीं जा सका, तो भी इतने प्रेम से मना करूंगा कि उन्हें अपने Financial Background का दुख न हो.’ 

आज तक वह महात्मा ने इस संकल्प का पालन किया है और अपने शिष्यों से भी करवाया है. इस कारण से अनेकों बार शासन प्रभावना भी हुई है और अनेकों आत्माएं धर्म से जुडी भी है.

एक बात यहाँ समझने जैसी है कि Financially Weak Families के घर में शुद्ध घी नहीं भी होगा, डालडा भी हो सकता है लेकिन उनके भाव शुद्ध होंगे. तेल High Quality नहीं होगा लेकिन मन पवित्र होगा. 

दूध कम ज़रूर मिलेगा लेकिन दिल बड़ा होगा. मसाले थोड़े बिगड़े हुए हो सकते हैं लेकिन हृदय साफ़ होगा. गेहूं-चावल की Quality कमजोर ज़रूर होगी लेकिन आत्मा की Quality Weak नहीं होगी. 

आज भी हजारों जैन साधु साध्वीजी भगवंत सामान्य जैनों और जैनेत्तरों यानी Non Jains के घरों में भी गोचरी के लिए जाते हैं. साधु भगवंतों को व्यक्ति के Financial Status से नहीं आत्मा के Status से लेना देना होता है.

संगम नाम का एक गरीब बच्चा था. वो बकरे चराता था. उसकी मां के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वो अपने बेटे को खीर बनाकर खिला सके. एक दिन पड़ोसियों से ली हुई चीज़ों से उसने खीर बनाई. उसी दिन उनके घर जैन साधु गोचरी के लिए आए. 

साधु भगवंत ने संगम के हाथ से वो खीर वहोर ली और वही संगम आगे चलकर अगले भव में शालिभद्र बना. यह पूरी स्टोरी हम शालिभद्र की कथा में जान चुके हैं. 

READ MAHAPURUSH SHALIBHADRA’S STORY HERE 👇

आज भी हजारों साधु-साध्वीजी भगवंत ऐसे सामान्य जैन और जैनेत्तरों के घर जाकर भविष्य के हजारों शालिभद्रों को तैयार कर रहे हैं. 

धन्य है वो श्रावक भाई जो गोचरी के लाभ के लिए गुरु भगवंत के पैरों में गिर पड़ा और धन्य हैं वो साधु भगवंत जिन्होंने श्रावक भाई की सच्ची भावना को पहचानकर उसे पूर्ण की. 

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