Sadharmik Bhakti’s Remarkable Incident | मौन से हुई साधर्मिक भक्ति |

इस संघ ने की ऐसी साधर्मिक भक्ति जिसे सुनकर हमारी आँखें नम हो जाएंगी..

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Highlights
  • चतुर्विध संघ को ऐसे ही 25वां तीर्थंकर नहीं कहा गया है। संघ अगर एकजुट हो तो जिनशासन की शोभा में चार चाँद लग सकते हैं।
  • साधर्मिक भक्ति सिर्फ पैसों से ही नहीं, बोली-व्यवहार-आपसी समझ-मौन आदि के द्वारा भी की जा सकती है।
  • कभी-कभी शब्दों से नहीं, चुप्पी से भी साधर्मिक भक्ति होती है और वह बहुत ऊँची होती है।

साधर्मिक भक्ति की अद्भुत मिसाल

पर्युषण महापर्व के 5 कर्तव्यों में से एक साधर्मिक भक्ति भी है। सिर्फ आर्थिक यानी Financial Help करना ही साधर्मिक भक्ति नहीं होती है। आज हम एक अलग प्रकार की साधर्मिक भक्ति की सच्ची घटना जानेंगे।

बने रहीए इस Article के अंत तक।  

आज से लगभग 15-16 Years पहले की यह घटना है। गुजरात के एक शहर में 150 घर वाले छोटे से संघ में तीन साधु भगवंत चातुर्मास के लिए विराजमान थे। संघ के लोग सुखी थे, भावुक थे और प्रवचन का अच्छे से लाभ लेते थे। 

बीच में पर्युषण पर्व आए और पर्युषण के तीसरे दिन व्याख्यान के बाद संघ के अग्रणी ने खड़े होकर कहा कि ‘कल से श्री कल्पसूत्र का वांचन शुरू होगा। वह श्री कल्पसूत्र आगम ग्रंथ को घर ले जाकर उसकी भक्ति करने का चढ़ावा अभी बोला जाएगा। 

जो भी भाग्यशाली चढ़ावा लेंगे, प्रवचन के बाद उनके घर पर सकल श्रीसंघ पगलिया करने आएगा। पूरे दिन और रात कल्पसूत्र उनके घर पर ही रहेगा और कल प्रवचन के समय पर वापस कल्पसूत्र को यहां उपाश्रय में लाना होगा।’ 

ऐसा कहकर अग्रणी ने चढ़ावा बोलना शुरू किया और 1-2 मिनट में ही प्रवचन में आगे सामायिक में बैठे हुए एक आराधक श्रावक ने चढ़ावा शुरू किया और कहा ‘501 मण’ एक मण के चार रुपए के हिसाब से उन्होंने 2 हजार रूपए से चढ़ावा शुरू किया था। 

अग्रणी ने “501 मण” जोर से बोला और 2-3 बार दोहराया। 

अब यहाँ आश्चर्यकारी घटना यह हुई कि प्रवचन Hall Full भरा हुआ था, धनवान लोग भी बैठे थे, फिर भी कोई भी श्रावक उन भाई के बोले हुए चढ़ावे को आगे नहीं बढ़ा रहा था। सभी मौन बैठे हुए थे। 

अग्रणी ने भी चढ़ावे को ज्यादा नहीं खींचते हुए तुरंत वह भाई को आदेश दे दिया। जो साधु भगवंत प्रवचन दे रहे थे, उन्हें इस घटना पर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उस संघ के लोग समृद्ध थे, धनवान थे और अन्य चढ़ावों का लाभ सब अच्छे से ले रहे थे। 

तो यह कल्पसूत्र आगम को घर पर ले जाने का चढ़ावा इतने सस्ते में कैसे जा सकता है? किसी ने भी उस चढ़ावे को आगे क्यों नहीं बढाया? और अग्रणी ने भी ज्यादा समय ना लेते हुए वह चढ़ावे का आदेश उन भाई को क्यों दे दिया?

यह सभी विचार महात्मा के दिमाग में चल रहे थे।

जिन्होंने 501 मण का चढ़ावा बोला था उन्हें हम भैरव भाई के नाम से पहचानेंगे। 

उस दिन दोपहर को भैरव भाई महाराज साहेब से मिलने के लिए आए। चातुर्मास के शुरुवात के दिनों से ही महात्मा का उनसे अच्छा परिचय हो गया था। 

महात्मा ने Directly भैरव भाई से ही पूछ लिया ‘कल्पसूत्र का चढ़ावा इतने सस्ते में आपको मिल गया, दूसरा कोई आगे चढ़ावा बोला ही नहीं, ऐसा कैसे हुआ?’

महात्मा की बात सुनकर भैरव भाई की आंखों से आंसू छलकने लगे। वे महात्मा को Room में लेकर गए और फिर उन्होंने बताना शुरू किया ‘महाराज साहेब, हमारा परिवार खानदानी परिवार है, समाज में हमारी इज्जत भी बहुत है। 

लेकिन पिछले 10 वर्षों से हमारा परिवार Financial Loss यानी आर्थिक नुकसान के संकट में फंसा हुआ है। साहेबजी, 80 लाख रुपए की देनदारी सर पर है और हर महीने उसका ब्याज यानी Interest चुकाना, घर चलाना आदि उसमें ही Income पूरी हो जाती है। 

देनदारी तो कम हो ही नहीं रही है। 

हमारे परिवार के गुरु पूज्य भक्तियोगाचार्य यशोविजय सूरीश्वरजी महाराज साहेब एवं आचार्य भगवंत श्री मुनिचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब है। 3 वर्ष पहले हमारे परिवार के गुरुदेव का चातुर्मास इसी संघ में था। 

मेरी श्राविका (पत्नी) ने सोचा कि “इस बार गुरुदेव का चातुर्मास अपने संघ में है तो मैं उनकी निश्रा में मासक्षमण कर लूं।” 

Note : मासक्षमण यानी Continuous 30 उपवास।

और धीरे-धीरे करके श्राविका ने 16 उपवास कर लिए। उसकी तपस्या एकदम आसानी से हो रही थी और वह बहुत खुश थी। लेकिन एक रात को मेरे पापा ने मुझे और मेरी श्राविका को बुलाया। 

उन्होंने कहा “देखो बहू, आपकी भावना अच्छी है। मैं खुद भी चाहता हूं कि अपने ही गुरुदेव की निश्रा है तो मासक्षमण हो जाए। लेकिन हमारा परिवार प्रतिष्ठित यानी Reputed परिवार है और हमारा समाज भी बड़ा है। 

आपके मासक्षमण के पारणे पर सभी को बुलाना पड़ेगा और Function भी करना पड़ेगा। आज की तारीख में इतना खर्च करने की हमारी शक्ति नहीं है, तो आप पारणा कर लीजिए।”

मेरी श्राविका को बहुत दुख हुआ लेकिन पापा की बात भी वह समझती थी। उसने जिद्द नहीं की और 16 उपवास के बाद में पारणा कर लिया। हमारा पूरा परिवार दुखी था लेकिन क्या कर सकते थे? 

गुरुदेव को भी हमने तपस्या Continue नहीं कर पाने का असली कारण नहीं बताया।’

महात्मा भैरव भाई की बात को गौर से सुन रहे थे। कब महात्मा की भी आंखों में से आंसू बहने लगे, उन्हें भी पता नहीं चला। 

महाराज साहेब इस सोच में पड़ गए कि ‘समाज का यह व्यवहार कितने लोगों की आराधना को तोड़ देता होगा?’ भैरव भाई आंसुओं के साथ आगे बता रहे थे ‘साहेबजी, उसके थोड़े समय के बाद पिताजी का देहांत हो गया और उस बात को 3 साल हो गए। 

इस साल श्राविका को वापस मासक्षमण करने की इच्छा हुई। हम दोनों ने सोचा “आर्थिक संकट तो आज भी उतना ही है, अगर हम समाज को देखकर बैठे रहेंगे तो कभी भी ऐसी बड़ी आराधना नहीं कर पाएंगे। 

अब हमारे गुरुदेव तो इस संघ में नहीं है लेकिन साधू भगवंत तो है ही। तो उनकी निश्रा में ही मासक्षमण कर लेना है और कोई Function आदि नहीं करना है। समाज में जो लगना होगा, वो लगेगा।”

साहेबजी, इस तरह सोचकर श्राविका ने मासक्षमण की तपस्या शुरू की और आज उसका 25वां उपवास है। हमारी इच्छा हुई कि दूसरा कुछ भी भले हम ना कर पाएं लेकिन श्री कल्पसूत्र आगम को घर पर ले आते हैं। 

हालांकि मेरा Budget छोटा ही था और मुझे Doubt था कि इतने Budget में चढ़ावा मिलने का Chance नहीं है। फिर भी मैंने चढ़ावा बोलना Start किया और साहेबजी! आज मुझे पता चला कि यह संघ कितना महान है। 

पिछले 10 सालों से हम कहीं पर भी ज्यादा लाभ लेते नहीं है तो संघ के सदस्यों को थोड़ासा अंदाजा तो आ ही गया था कि हम तकलीफ में हैं और छोटे संघ में तो सब एक दूसरों को पहचानते ही है। 

सबको पता ही है कि मेरी श्राविका (पत्नी) ने मासक्षमण किया है तो मैंने जैसे ही “501 मण” से शुरुआत की तब चढ़ावे की भावना वाले सभी समझ गए कि “भैरव भाई यह चढ़ावा लेना चाहते हैं। 

अगर हम आगे बोलेंगे तो या तो भैरव भाई को Budget के ऊपर जाकर चढ़ावा लेना पड़ेगा या चढ़ावा छोड़कर दुखी होना पड़ेगा।” और बस इसी कारण से सब चुप हो गए। 

साहेबजी, आश्चर्य तो इस बात का है कि मैंने उन्हें आगे चढ़ावा बोलने से मना नहीं किया, किसी ने किसी को बोलने से मना नहीं किया था, लेकिन फिर भी चढ़ावा लेने की भावना रखनेवाले सभी के मन में ऐसी विराट भावना कैसे प्रकट हुई? वह पता नहीं। 

अग्रणी ने भी मुझे देखकर मेरा Support करते हुए चढ़ावे को ज्यादा खींचा नहीं और मुझे आदेश दे दिया। उन्होंने पैसों को-Income को नहीं देखा लेकिन मेरे परिवार की भावना को देखा। 

सचमुच यह संघ भगवान है। सकल श्रीसंघ के तो दूध से पैर धोए, वह भी कम है। 

आज हमारा परिवार बहुत-बहुत खुश है साहेबजी। मेरे Budget से तो बहुत कम में मुझे यह महान लाभ मिल गया।’ इस तरह भैरव भाई ने अपने दिल की बात महात्मा को बताई।

आज इस घटना को हुए कई वर्ष बीत गए हैं। 

इतने वर्षों से उन महाराज साहेब का भैरव भाई के परिवार के साथ कोई भी Contact नहीं था लेकिन अचानक तारीख 24 जुलाई 2025 के दिन भैरव भाई का वापस महात्मा से Contact हुआ। 

भैरव भाई बहुत खुश हुए और उन्होंने बताया ‘साहेबजी, आपके जाने के बाद भी 5 साल तक हमारी Financial Condition वैसी ही रही लेकिन देव-गुरु-धर्म पर हमारी श्रद्धा बिलकुल भी कम नहीं हुई। 

5 साल के बाद मैंने और मेरे बेटे ने मिलकर पूरा कर्ज चुका दिया है साहेबजी और अब हमारे सर पर एक रुपए का भी कर्ज नहीं है। मैं और मेरा बेटा अच्छी कमाई कर रहे हैं। हालांकि, मैं तो लगभग Retire हो चुका हूं। 

अब हर समय धर्म आराधना में ही रहता हूं। आज भी मैं पालीताना में ही चातुर्मास की आराधना कर रहा हूं। साहेबजी, मैंने तो स्पष्ट अनुभव कर लिया कि “भगवान के घर पर देर है, अंधेर नहीं है और संघ.. संघ तो भगवान है।” 

हमने 15 वर्ष तक अनेकों कठिनाइयों को सहन किया लेकिन कभी गुरु, देव, धर्म से मुँह नहीं मोड़ा और Shortcut वाला गलत रास्ता भी नहीं अपनाया शायद इसी कारण से हमारे जीवन की दिशा फिर से सही दिशा में मुड़ गई। 

सच की राह पर चलते गए तो कुदरत ने हमको वापस सुख-समृद्धि और शांति दे ही दी।’ 

युगप्रधान आचार्यसम प.पू. पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी महाराज साहेब का जब-जब भी इस संघ में रुकने का होता था, तब बीमारी के हिसाब से उनकी तीनों समय की गोचरी भैरव भाई के घर से ही महात्मा लाते थे। 

ऐसे तो कई साधु साध्वीजी भगवंतों की सेवा का लाभ भैरव भाई ने लिया है। आर्थिक संकट में भी खुद ने कम खाया होगा लेकिन महात्माओं की भक्ति करने में वे कभी पीछे नहीं रहे। 

कोई साधर्मिक अगर चढ़ावा लेना चाहता है लेकिन उसकी ज्यादा ताकत नहीं है तो हम चढ़ावा छोड़ दें, वह भी बहुत बड़ी साधर्मिक भक्ति है। 

कभी-कभी शब्दों से नहीं, चुप्पी से भी साधर्मिक भक्ति होती है और वह बहुत ऊँची होती है। संघ में क्या एकता रही होगी ना? एक व्यक्ति भी आगे चढ़ावा नहीं बोला, यह चमत्कार नहीं तो क्या है।

अगर हर संघ में इस प्रकार की एकता हो जाए तो शासन का भविष्य बहुत उज्जवल है ऐसा कह सकते हैं इस घटना के द्वारा हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। 

ऐसी बहुत सी चीजें जो हम सब Practically अपनी Life में Apply कर सकते हैं। 

1. समाज ने कुछ नहीं कहा, किसी ने किसी को रोका भी नहीं लेकिन सभी ने चुपचाप पीछे हटकर भैरवभाई को कल्पसूत्र घर ले जाने का चढ़ावा लेने दिया-यह मौन साधर्मिक भक्ति का अद्भुत रूप था। 

जैन धर्म के एक मुख्य सिद्धांत अपरिग्रह का भी इस घटना में समावेश होता है क्योंकि अपरिग्रह का अर्थ सिर्फ कम चीजें रखना ही नहीं होता बल्कि स्वयं के अवसर को छोड़कर दूसरे की भावना को Priority देना भी अपरिग्रह ही है।

यह “मेरा नहीं, तेरा हो जाए” की भावना है।

2. धार्मिक प्रसंग हो या सामाजिक प्रसंग हो उसमें लोगों को खुश करने के लिए हम जो दिखावा कर रहे हैं, उसमें Major Changes होने चाहिए ऐसा लगता है। 

For Example, घर में किसी ने उपधान तप किया या कोई तपस्या की हो तो उसके लिए अलग-अलग बड़े Functions आदि ना हो या एकदम Simple हो वही Better होगा ऐसा लगता है। 

यही चीज़ Engagement-Marriage आदि Functions के लिए भी समझना है। इस विषय पर खुलकर बात होनी चाहिए और बदलाव लाने ही होंगे। 

3. प्रश्न उठ सकता है कि ‘अरे ऐसे कैसे हो सकता है? अरे भाई, किसी ने तप किया है, उसकी अनुमोदना के निमित्त कोई कार्यक्रम हो तो हमें क्या लेना देना।’ 

देखिए भले Directly कोई नहीं बोलेगा लेकिन जो माहौल चल रहा है उसमें Clearly दिख रहा है कि हमारा धर्म धीरे धीरे खर्चीला-Expensive होता जा रहा है। जब इस तरह के Functions होते हैं वह भी बड़े पैमाने पर, भाव्यतिभव्य नाम से, बिना दूसरों का सोचे। 

तो इस चक्कर में एक Benchmark Create होता है और अन्य Financially Middle Class लोगों के लिए यह भारी पड़ता है। उन्हें तप करना हो तो पहले घर पर Budget पूछा जाता है। 

आप खुद सोचिए तप करने से पहले एक श्रावक या श्राविका अपना Budget देखें क्या यह ज़रा सा भी उचित है। Budget देखकर भौतिक चीज़ें खरीदी जाती है, तपस्या तो आत्मा का विषय है।

तपस्या और Budget का क्या लेना देना?

तप भी अगर Budget देखकर होने लगे तो जिनकी आर्थिक परिस्थिति एकदम Strong नहीं होगी वे तो तप से पीछे हटेंगे जो कि आज सैंकड़ों घरों में हो रहा होगा और हमें पता भी नहीं होगा। 

इस विषय पर आप अपना Point of View Comments में ज़रूर बताइएगा। 

4. हम अगर किसी के भी Function में जाते है, तो उनके ऊपर बोझ ना आए, उसका हम थोडा ध्यान रख सकते हैं।

जैसे कि अगर Chennai में हमारे Relative ने कोई बड़ा तप किया और हमें Bengaluru से या Mysore से या Hyderabad से Chennai जाना है तो अगर हमारी शक्ति हो तो हमें सामनेवाले को स्पष्ट बोल देना चाहिए

‘हम खुद आ जाएंगे, हमारे रहने-खाने-पीने की व्यवस्था हम खुद कर लेंगे। आपको हमारे लिए Tension लेने की जरूरत नहीं है।’

घूमने जाते हैं तब हम हमारी वयवस्था करते ही है तो इधर भी कर ही सकते हैं।

5. हमारे घर पर कोई भी प्रसंग हो तो हमें समाज का गलत डर रखना नहीं है और दिखावे के लिए 1 भी रुपया Extra खर्च नहीं करना है और दूसरों के घर पर कोई भी प्रसंग हो तो हमें प्रसंग पर जाना पड़े तो भी उनके ऊपर बोझ बनना नहीं है। 

अपनी जिम्मेदारी खुद ही निभा सकते हैं।

अगर ऐसे परिवार पर बोझ बने बिना, हम चुपचाप सहारा बन जाएं तो वह भी साधर्मिक भक्ति ही कही जाएगी। तप के निमित्त कई जगह पर लेन-देन भी होते हैं, भले वह तपस्वी है लेकिन है तो संसारी।

अब सबकी Capacity अथवा परिस्थिति एक जैसी नहीं होती, ऐसे में थोडा ऊपर नीचे होने पर तपस्वी अगर ऐसा सोचने लगे ‘इसने मुझे ज्यादा दिया, इसने मुझे कम दिया, इसमें मुझे इतना दिया, इसमें मुझे उतना दिया।’ 

तो क्षमा चाहते हैं लेकिन ऐसी तपस्या का कितना लाभ यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। अब दूसरी तरफ तपस्वी के परिवार की तरफ से Function रखा गया हो और Function में आनेवाले को कुछ दिया जाए आर आनेवाले को लगे कि 

‘हम तो इतनी दूर से आए हैं और हमको तो बहुत कम दिया.. धत्त इधर आने से Time, Money, Energy Waste हो गया। कहाँ आने का सोचा, नहीं आए होते तो ठीक रहता, कहाँ यह तप की अनुमोदना करने आए।’

तो उल्टा कर्मबंधन होता है। हमें Balance करके चलना होगा। 

अगर समाज के वडिल इस विषय पर विचार करें और हर एक समाज में, संघ में उचित प्रकार के नियम लागू किए जाए सिर्फ तपस्या को लेकर नहीं, बल्कि Marriage को लेकर भी, Engagement को लेकर भी, सब विषयों पर तो साधर्मिक भक्ति का अद्भुत काम हो सकता है।

पैसे देकर ही साधर्मिक भक्ति होती है ऐसा नहीं है, किसी साधर्मिक भक्ति के पैसे बचाने से, उसे Mental Stress से दूर करने से, कोई भी साधर्मिक अपना तप अपनी Financial Condition देखें बिना कर पाए ऐसा वातावरण बनाना भी एक प्रकार की साधर्मिक भक्ति ही होगी। 

क्योंकि हम धर्म को जितना खर्चीला बनाएंगे उतना ही मध्यम साधर्मिक वर्ग धर्म से दूर होता जाएगा।

इन सबके अलावा एक भयानक और गंभीर परेशानी ऐसी हो रही है कि जैन समाज के तप महोत्सव आदि के इस आडंबर को देखकर, दिखावे को देखकर, किसी किसी अन्य लोगों में यह भाव उत्पन्न हो रहे हैं कि 

‘ये लोग कितना शोर शराबा करते हैं, कितने पैसे बिगाड़ते हैं, कितना घमंड दिखाते हैं, कितना दिखावा करते हैं।’ 

और इस कारण से जैनों के प्रति का अलगाव पैदा हो रहा है। इतना ही नहीं जैनों के प्रति द्वेष भी अनेकों जगहों पर देखने को मिल रहा है। Ground Reality सबको पता है, फिर भी अगर हम सोना चाहते हैं तो हमें भगवान भी नहीं बचा पाएंगे।

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