प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 01
आइए प्रथम गाथा शुरू करते हैं। जगचुडामणिभूओ उसभो
वीरो तिलोअसिरितिलओ |
एगो लोगाइच्चों,
एगो चक्खु तिहुअणस्स || (01)
यह प्रथम गाथा का हम दो प्रकार से अर्थ करेंगे।
इसमें प्रथम अर्थ कुछ इस प्रकार है :
1. इस गाथा में ऋषभदेव प्रभु और महावीर प्रभु-यह दो तीर्थंकर के कुल चार गुण बताए हैं। श्री ऋषभदेव प्रभु को आदिनाथ भगवान के नाम से भी जाना जाता है।
2. जैसे मणिधारी नाग के मस्तक पर रहा हुआ मणि नाग में प्रधान है, Most Important है, Prime है, वैसे श्री ऋषभ प्रभु और श्री महावीर प्रभु जगत में प्रधान है यानी पूरे विश्व में यह दो उत्तम है।
3. जैसे कपाल पर रहा हुआ तिलक यानी कि विशिष्ट आभूषण लक्ष्मी की शोभा में बढ़ोतरी करता है, वैसे यह दोनों प्रभु, तीन जगत की शोभा बढ़ानेवाले हैं।
4. जैसे सूर्य जगत को प्रकाशित करता है वैसे यह दो प्रभु भी जगत को प्रकाशित करते हैं। फर्क इतना है कि सूर्य ढेर सारे पदार्थों को प्रकाशित नहीं कर पाता लेकिन प्रभु अपने केवलज्ञान रूपी प्रकाश से सभी पदार्थों को प्रकाशित करते हैं।
सार यह है कि दोनों प्रभु के पास केवलज्ञान नाम का ऐसा प्रकाश है कि जिससे वे तीनों काल के सभी पदार्थों को आसानी से जान सकते हैं।
सरल भाषा में कहे तो Past, Present और Future यह तीनों काल के Visible Invisible यानी सभी चीज़ों को अपने केवलज्ञान से देख सकते हैं। कोई भी जगह पर रहे हुए कोई भी पदार्थ को आसानी से जान सकते हैं।
यह केवलज्ञान प्रभु की खुद की सबसे बड़ी संपत्ति है।
5. जैसे हम लोग आँखों के द्वारा कोई भी चीज़ को देखकर उसे जानने का प्रयास करते हैं, वैसे ही देव-मनुष्य-पशु।
ये श्री ऋषभ प्रभु और श्री महावीर प्रभु के वचनों के द्वारा दुनिया के सभी पदार्थों को जानते हैं अर्थात् श्री ऋषभदेव प्रभु और वीर प्रभु दुनिया के लिए आखें जैसे हैं।
6. विशिष्ट बात तो यह है कि आंखों से देखने में तो बहुत सारे अंतराय आ सकते हैं, Hurdles आ सकते हैं।
अंधेरा हो, बीच में दीवार हो या वस्तु ही एकदम छोटी हो तो आंखों से दिख नहीं पाती लेकिन प्रभु के वचनों से दुनिया के पदार्थ को देखने में कोई भी Problem नहीं आती है।
7. दूसरी बात, आंखों से देखा हुआ गलत हो सकता है यानी हमारी आंख में कोई दोष हो सकता है लेकिन प्रभु वचन में कोई दोष नहीं है तो उससे देखा हुआ कभी गलत नहीं हो सकता, क्योंकि प्रभु सर्वज्ञ है, केवलज्ञानी है यानी पूर्ण ज्ञानी है।
अब इसी गाथा का दूसरा अर्थ देखते हैं जो कुछ इस प्रकार है :
ग्रंथकार के वक्त पर, यानी श्री धर्मदासगणि के समय में प्रभु महावीर साक्षात इस धरती पर उपस्थित है और ऋषभदेव प्रभु मोक्ष में पहुंच गए हैं, यह Condition को ध्यान में रखकर अब यह दूसरा अर्थ देखते हैं।
1. श्री ऋषभदेव प्रभु जगत के मुकुट समान है। जैसे मुकुट मस्तक के ऊपर होता है वैसे ऋषभदेव प्रभु अभी मोक्ष में होने के कारण से 14 राज लोक रुपी जगत के सबसे ऊपर रहे हुए हैं।
सिद्धशिला-लोक में सबसे ऊपर है और ऋषभदेव प्रभु वहां पर रहे हुए हैं। इसलिए वे मुकुट समान है।
2. प्रभु महावीर वैसे नहीं है। क्योंकि ग्रंथकार श्री के समय में वे तो इस धरती पर साक्षात विद्यमान है। वे भुवन रूपी लक्ष्मी को शोभानेवाले हैं।
3. ऋषभदेव प्रभु लोक के सूर्य जैसे हैं। जैसे सूर्य दिन की शुरुआत में सबको जगाता है और पदार्थों को प्रकाशित करता है वैसे ऋषभदेव प्रभु ने युग के प्रारंभ में युगलिक जीवों को विवेक यानी कि ज्ञान यानी कि समझ देकर जगाया है और अपनी कला से मिट्टी के बर्तन आदि सभी पदार्थों को प्रकाशित किया है।
4. इसलिए जैसे सूर्य सुबह में खाना-पीना आदि सभी प्रवृत्ति को, कार्यों को उत्पन्न करता है, वैसे ही ऋषभदेव प्रभु युग के प्रारंभ में विवाह-खेती-राज्य व्यवस्था आदि सभी व्यवहार का कारण बने हैं।
इस विषय को हम भरहेसर सज्झाय के महापुरुषों की Series के 1st Episode में देख चुके हैं कि किस प्रकार आदिनाथ प्रभु ने व्यवहार मार्ग शुरू किया था, उसे फिर से आप देख सकते है।
5. प्रभु महावीर वैसे नहीं है क्योंकि वे तो युग के प्रारंभ में थे ही नहीं। वे तीन भुवन की आंख के समान है।
प्रभु ने वर्तमान के लोगों को देशना दी है और आगम के अर्थ बताए हैं तो जैसे लोग आंखों से दुनिया के पदार्थ को जानते हैं वैसे लोग प्रभु ने कहे हुए आगमों के द्वारा दुनिया के पदार्थ को जानते हैं। प्रभु महावीर का हम पर कितना उपकार हुआ वो भी सोचने जैसा है।
भगवान को केवलज्ञान हुआ और उसके बाद उस केवलज्ञान में भगवान ने आत्मा को देखा जाना, बाकी हम अगर सिर्फ हमारी आँखों पर निर्भर होते और प्रभु हमें नहीं बताते तो हमें पता ही नहीं चलता कि हम आत्मा है।
प्रभु की बात हम तक नहीं पहुँचती तो हम खुद को यह शरीर समझ बैठते। आज भी अनेकों लोग ऐसे हैं जिनका शायद पुण्य कम होने कारण प्रभु की बात उन तक पहुँच नहीं पाई और इस कारण से वे खुद को शरीर मान बैठे हैं।
खुद को शरीर मानने से ही सारी समस्याएं उत्पन्न होती है, खुद को आत्मा मानने से सब समस्याओं का समाधान हो जाता है। तो प्रभु ने हमें आत्मा का ज्ञान देकर हमारी सभी Problems को Solve करने का मार्ग बताया।
प्रभु ना होते तो हमारा क्या होता सोचने जैसा है…
यह प्रथम गाथा संपूर्ण हुई।
यहां पर जानने जैसी बात यह है कि इस अवसर्पिणी काल में सबसे पहले मिट्टी के बर्तन ऋषभदेव प्रभु ने हाथी पर बैठकर बनाए थे।
सबसे पहली Marriage ऋषभदेव भगवान की हुई थी। सबसे पहले राजा, सबसे पहले मुनि, सबसे पहले भिक्षुक श्री ऋषभदेव प्रभु थे।