How Should A Shishya (Disciple) Respect His Guru? Updeshmala Granth – Episode 06

गुरु का विनय किस तरह करना चाहिए?

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By Jain Media 5 Min Read

शिष्य को गुरु का किस तरह विनय करना चाहिए?

प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 06

आइए अगली गाथा देखते हैं।

जं आणवेइ राया,
पगईओ तं सिरेण इच्छति।
इअ गुरुजणमुहभणिअं,
कयंजलिउडेहिं सोयव्वं।। (06)Updeshmala Granth

एक राजा अपने राज्य की प्रजा को जो Orders देता है, प्रजा उन Orders को खुशी-खुशी Accept करती है और Follow भी करती है। 

इसी तरह गुरु जो कुछ भी कहे या गुरु किसी के द्वारा जो कुछ भी Message भेजे, वह शिष्यों को भक्तिभाव के साथ दो हाथ जोड़कर सुनना चाहिए।

1. जब राम आदि महान राजा थे, तब प्रजा उन्हें बहुत पसंद करती थी। इसीलिए राजा जो भी Orders देते थे वह प्रजा खुशी-खुशी Accept करती थी। उसका Reason यह था कि राजा के प्रत्येक Decisions प्रजा का भला करनेवाले होते थे। 

तो प्रजा को विश्वास हो गया था कि राजा का कोई भी Order हमारा भला ही करेगा। तो फिर प्रजा खुशी-खुशी Orders मान लेती थी। 

वैसे ही शिष्य को भी पता है कि ‘मेरे गुरु जो भी कहेंगे, वह मेरे भले के लिए ही कहेंगे। आज तक उनकी हर एक बात मेरा भला करनेवाली बनी है।’ 

तो शिष्य को गुरु पर दृढ़ विश्वास आ गया है, प्रेम आ गया है। इसीलिए गुरु की बात को वह खुशी-खुशी मान लेता है। 

2. गुरु यानी वो जो शास्त्रों की Important बातें हमें बताएं और समझाएं। ऐसे लोग जो हमें प्रभु के वचन बताएं भी नहीं और समझाएं भी नहीं, उन्हें गुरु नहीं कहते। 

3. यहां पर एक Process समझ लेते हैं। 

जैसे Short में ‘हां-ना-हां’ यानी ‘Yes-No-Yes’ इस नाम से समझ सकते हैं। मतलब यह है कि गुरु जो भी आदेश करें, उस दौरान सबसे पहले शिष्यों के मुह से एक ही शब्द निकले ‘हां जी’। 

पूरी नम्रता के साथ गुरु के Orders का Acceptance बतानेवाले यह शब्द है। उसके बाद शिष्य को लगे कि यह आदेश को Follow करने में मुझे ढेर सारी Problems आ सकती है। 

तो 2nd Step में वह दिक्कतों को गुरु के सामने एकदम नम्रता के साथ बताना-यह एक प्रकार की ‘ना’ है, No है और उसके बाद 3rd Step वापस ‘हां’ कहने का है यानी Last में वापस बोलना है कि ‘फिर भी आप जो कहेंगे मैं वो ही करूंगा। अवश्य करूंगा.. खुशी-खुशी करूंगा।’

गुरु कभी मजाक में या परीक्षा लेने के लिए हमें या बीमार साधु को भी कह दें कि ‘कल से तुझे मासक्षमण यानी 30 उपवास एक साथ करना है।’ 

तो शिष्य को ना नहीं बोलना है और मुंह तो बिलकुल नहीं बिगाड़ना है। सिर्फ ‘हाँ जी’ यह शब्द ही कहना है। ‘आपकी आज्ञा होगी तो अवश्य में कल से मासक्षमण करूंगा।’ 

उसके बाद गुरु को Politely Problems बताना चाहिए कि ‘लेकिन गुरुजी, मैं बहुत बीमार हूं और अशक्ति बहुत है आदि।’ फिर वापस Last में यह बोलना कि ‘फिर भी अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं खुशी-खुशी कल से अवश्य मासक्षमण करूंगा।’ 

हर एक शिष्य को इतना ध्यान में रखना है कि गुरु कैसी भी Weird आज्ञा क्यों ना करें लेकिन शिष्य को सबसे पहले तो ‘हाँ जी’ ही करना है। ना नहीं ही बोलना, मुंह नहीं ही बिगाड़ना। गुरु के आदेश का सबसे बड़ा Respect है ‘हाँ जी’ बोलना। 

4. आज के जमाने में अगर घर-घर में हर एक बेटा-बेटी अपने माता-पिता के आदेश में ऐसा Response और Respect देने लगे तो हर घर स्वर्ग बन जाएगा। 

इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमें मन की बात बताने पर कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन Disrespect बिलकुल भी उचित नहीं है। माता-पिता को, बुजुर्गों को मना करने का भी एक तरीका होता है। 

Simple सी बात है कि या तो एकदम शांति से, Detail में हमें अपनी बातें उन्हें बताकर उनको Convince करना है और अगर वो Convince ना हों तो हमें खुद Convince हो जाना है। 

क्या हमारा इतना समर्पण हमारे गुरु के लिए है? क्या हमारा इतना समर्पण हमारे माता-पिता के लिए है? खुद से पूछ सकते हैं।

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