Who Is The Founder Of Jainism ? Can Anyone Become A Jain?

जैन धर्म या जैनशासन या जैनसंघ यानी क्या? क्या कोई भी जैन बन सकता है?

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Highlights
  • जो जन्म से जैन नहीं है वो भी अगर जैनशासन का स्वीकार करता है, परमात्मा की सभी आज्ञाओं को मानता है, तो वो भी जैन बन सकता है.
  • जैसे आकाश में सूरज अनादिकाल से है, वैसे जैनशासन अनादिकाल से है.
  • जैन जन्म से नहीं बना जाता, जैन कर्म से बना जाता है.

जैन धर्म या जैनशासन या जैनसंघ यानी क्या?
What is Jain Dharma or Jain Shasan Or Jain Sangh?

क्या कोई भी जैन बन सकता है? या सिर्फ जैन परिवार में जन्मा व्यक्ति ही जैन बन सकता है?
Can anyone become a Jain? or Can only a person born into a Jain family become a Jain?

क्या जैन धर्म की शुरुआत 2500 वर्ष पहले ही हुई? क्या महावीर स्वामी ने ही जैन धर्म की शुरुआत की?
Did Jainism start 2500 years ago? Did Mahavira Swami start Jainism?

आज इस तरह के कई प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे. बने रहिए इस Article के अंत तक.

श्रमण भगवान महावीर ने वैशाख सुदी ग्यारस के दिन पर जिनशासन की स्थापना की थी और उसी दिन जैनसंघ की स्थापना की थी. यह जैनशासन और जैनसंघ क्या है? और वो कब से शुरू हुआ? इस बात को हम समझते हैं सिर्फ 12 Points में. 

जैन शासन कब शुरू हुआ?

जैनेत्तरों यानी जो जैन धर्म से परिचित नहीं है उनकी बात तो दूर की है, लेकिन हजारों जैन भी यह मान रहे हैं कि प्रभु महावीर ने जैनधर्म की स्थापना की और वो तो 2500 साल पहले हुए हैं, इसलिए जैनधर्म भी 2500 साल पुराना है. यह बात 100% गलत है. इस बात को हम एक Example के माध्यम से देखते हैं.

1950 में बाबासाहेब आंबेडकरजी ने भारतीय संविधान की रचना पूर्ण की, तब से लेकर आज तक वो ही संविधान पूरे भारत में अमल हो रहा है. यह ही शासन है, यह ही आज्ञा है. आज वो लगभग 72 साल से चल रहा है. लेकिन उसको अमल करवाने वाले होते हैं प्रधानमंत्री. जो प्रधानमंत्री बनता है वो यह ही संविधान का अमल करवाता है. समय के अनुसार कुछ बदलाव लाते भी है लेकिन संविधान तो वो ही रहता है. 

आज मान लो कि मोदीजी पिछले 10 साल से प्रधानमंत्री है, तो उसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने भारत शासन की शुरुआत की है, सिर्फ 10 साल से आज़ाद भारत का शासन नहीं चल रहा लेकिन 72 साल से चला आ रहा है. फिर भी आज यह आज़ाद भारत के शासन को चलानेवाले हैं मोदीजी. तो इसलिए कहते हैं कि 10 साल से मोदीजी का शासन चल रहा है. शासन तो एक ही है, सिर्फ प्रधानमंत्री बदलते रहते हैं और जिस वक्त पर जो प्रधानमंत्री हो, उसका शासन कहा जाता है.

अब यह बात हम जैन धर्म में या जैनशासन में समझते हैं.

असंख्य साल पहले यानी कि हमारी भाषा में अरबो अरबो अरबो करोड़ों करोड़ों साल पहले श्री ऋषभदेव भगवान ने जैनशासन की स्थापना की, जैनधर्म का संविधान बनाया, जैनधर्म के क़ानून बनाए. उस वक्त ऋषभदेव या आदिनाथ प्रधानमंत्री जैसी पोस्ट पर थे जिसे जैन धर्म में तीर्थंकर पद कहते हैं. उसके बाद अरबो साल बीतें, फिर दूसरे तीर्थंकर बने अजितनाथ. फिर वापस अनेक साल बाद तीसरे, फिर चौथे, ऐसे 22वें तीर्थंकर बने नेमिनाथ, 23वें तीर्थंकर बने पार्श्वनाथ और लगभग 2500 साल पहले 24वें तीर्थंकर बने महावीरस्वामी. 

यहाँ पर ऐसे देखें तो जैनशासन असंख्य सालों से हैं, करोड़ों सालों से, अरबों सालों से, जिसके आंकड़े Calculator में नहीं आने वाले इतने सालों से है, लेकिन उसके प्रधानमंत्री बदलते गए. कुल 24 तीर्थंकर हुए, तो कुल 24 प्रधानमंत्री समझ लो. जिस वक्त पर जो तीर्थंकर होते, उस वक्त पर उनका शासन कहा जाता. पिछले 2500 साल से महावीरस्वामी तीर्थंकर थे, तो आज उनका शासन कहा जाता है. उसका मतलब यह मत समझो कि 2500 साल के पहले जैनशासन नहीं था. जैनशासन तो ऋषभदेव के वक्त से है यानी कि असंख्य साल से है. 

एक बात Clear कर दें सिर्फ उदाहरण के साथ समझाने के लिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं, उनके लिए अरिहंत या तीर्थंकर शब्द का ही प्रयोग किया जाता है.

जैन शासन की शुरुआत किसने की?

हमने आपको यह कहा कि ऋषभदेव से जैनशासन की शुरुआत हुई है. वो भी पूरी हकीकत नहीं है. हकीकत यह है कि ऋषभदेव भगवान से पहले भी यहाँ पर 24 तीर्थंकर हुए हैं, उससे भी पहले 24 तीर्थंकर हुए हैं, उससे भी पहले 24 तीर्थंकर हुए थे. इसलिए हकीकत में जैनशासन अनादिकाल से है. 

जैसे आकाश में सूरज अनादिकाल से है, वैसे जैनशासन अनादिकाल से है, लेकिन यह समझने के लिए विशिष्ठ Knowledge चाहिए, तो जो भी इस चीज़ को समझना चाहते हैं, वो ज्ञानी गुरु भगवंत से मिल सकते हैं. अनादिकाल से यह 24 तीर्थंकरों की व्यवस्था चली आ रही है, और चलती ही रहेगी. इसलिए जैन धर्म को महावीर धर्म या आदिनाथ धर्म या पार्श्वनाथ धर्म या नेमिनाथ धर्म ऐसा नहीं कहा है जैन धर्म कहा है, जिन धर्म कहा है, जैनशासन कहा है. यह सच इतना भारी है कि कई लोग इसको पचा नहीं पाते. 

तीर्थंकर की Absence में शासन को कौन संभालता है?

मान लो कि प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाए, तो जब तक नए प्रधानमंत्री नहीं बनते, तब तक वो Seat खाली रहती है. अधिकारीवर्ग पूरा काम संभालते हैं. ठीक वैसे ही जब तीर्थंकर का निर्वाण होता है यानी कि जब वो अपना देह त्यागकर मोक्ष जाते हैं, जिसे हम मृत्यु कहते हैं, तब जब तक नए तीर्थंकर ना आए, तब तक आचार्य, साधु वगेरह अधिकारीवर्ग पूरा शासन चलाते हैं. इसलिए हमारा जैनशासन श्रमणप्रधान है. श्रमण यानी साधु इसमें प्रधान है, क्योंकि तीर्थंकर की Absence में शासन का काम वो ही संभालते हैं.

जैनसंघ के सदस्य कौन होते हैं?

जो नागरिक भारत के संविधान को माने, उसे Follow करे, उसे हम भारतीय नागरिक कहते हैं. जो भारत के संविधान को ना माने, ना पाले वो भारतीय नागरिक नहीं है. ठीक उसी तरह जो इंसान जैनशासन की तमाम आज्ञाओं को माने, उसे Follow करे, वो जैनसंघ का सदस्य कहा जाता है. जो इंसान जैनशासन की तमाम आज्ञाओं को ना माने, उसे Follow ना करे, उसे जैनसंघ का सदस्य नहीं कहा जाता है. In short भारत के संविधान को जो माने, वो भारतीय. 

जैनशासन की आज्ञाओं को जो माने और पाले वो जैन. वो जैनसंघ का सदस्य. वो जैन शासन का सदस्य. भारतीय संविधान और भारतीय यह दो ऐसे अलग-अलग है, फिर भी दोनों के बीच में गाढ़ संबंध है. जैनशासन और जैनसंघ यह दो ऐसे अलग अलग है, फिर भी दोनों के बीच में गाढ़ संबंध है. जैनशासन यानी जिनेश्वर की आज्ञा, उनके नियम, उनके Principles, उनके सिद्धांत, उनके Rules यानी कि 45 आगम एवं हजारों जैनग्रन्थ.

साधु और श्रावक का फर्क

भारतीय नागरिक तमाम आज्ञाओं को मानेगा, लेकिन तमाम आज्ञाओं को पालेगा नहीं. जो आज्ञाओं का पालन उसके Under में आता होगा, वो ही वो पालेगा. जैसे कि टोलनाका एक है लेकिन सबके लिए नियम अलग जैसे कि Four Wheeler वालो के लिए 100 रू., 2 Wheeler वालो के लिए 50 रू. और चलकर जानेवालो के लिए कुछ भी नहीं. तो भारतीय नागरिक यह तीनो चीज़ों को मानेगा, लेकिन पालन किसका करे? 

अगर वो कार में जाएगा, तो 100 रू. देगा, अगर स्कूटर पर जाएगा, तो 50 रू. देगा, अगर वो चलकर जाएगा, तो कुछ भी नहीं देगा. वो तीनो बातों को मानता है, लेकिन करेगा तो वो ही, जो उसके Under में आता है. यह ही बात यहाँ समझनी है. एक जैनी जैनशासन की सभी बात मानेगा, लेकिन वो सब का सब करेगा नहीं. अगर वो गृहस्थ है, तो वो पूजा करेगा लेकिन साधु की तरह भिक्षा नहीं मांगेगा. अगर वो साधु है तो वो भिक्षा मांगेगा लेकिन गृहस्थ की तरह पूजा नहीं करेगा.

ऐसा ही एक और उदाहरण लेते हैं.

उदाहरण के लिए भारत का संविधान है कि 5 साल तक बच्चों की Ticket नहीं लेनी, उससे ऊपर 8 साल तक के बच्चों की आधी टिकेट लेनी है, उससे ऊपर की उम्र वालों के लिए पूरी टिकेट लेनी है. तो सच्चा नागरिक यह सभी बातों को मानेगा, लेकिन करेगा क्या? जब उसकी जैसी Condition वैसा करेगा. अगर वो अपने 1 साल के बच्चे के साथ Journey करेगा तो उसकी Ticket नहीं लेगा, जब वो 6 वर्ष का होगा, तो आधी लेगा, जब वो बड़ा बनेगा, तब उसकी पूरी Ticket लेगा. ठीक वैसे ही, यहाँ साधु संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालेंगे, गृहस्थी जैन परस्त्रीत्याग करेंगे, स्वपत्नी में भी अधिकतर ब्रह्मचर्य पालने की कोशिश करेंगे.

जिन आज्ञा भंग की सजा

जब कोई भारतीय भारत के संविधान का भंग करता है, तो कानूनी तौर पर उसको सजा होती है. ठीक वैसे ही जब कोई जैन जैनशास्त्रों की कोई आज्ञा का भंग करता है, तो उसको जैनशासन के अनुसार उचित सजा दी जाती है. 

इसको उदाहरण के साथ समझते हैं.

मान लो कि व्यक्ति ने रात्रिभोजन त्याग का नियम लिया, लेकिन रात्रिभोजन कर लिया, अब गुरु भगवंत के पास जाकर अपने पाप का Confession किया तो उसे गुरु भगवंत 10 घंटे तक जैन पुस्तक पढने की यानी कि स्वाध्याय की सजा दी. इस Process को आलोचना भी कहा जाता है. कोई बड़े पाप करें या छोटे पाप करें और Confess ना करें तो कर्मों के अनुसार कुदरत या कर्मसत्ता उसे सजा देती है. Simple-जैसी करनी वैसी भरनी.

जिनशासन की स्थापना कौन कर सकता है?

जैनशासन का वैसे तो हमने अर्थ देख लिया, फिर भी स्पष्टता से देखें. जो आत्मा अपने तमाम राग-द्वेष को ख़त्म कर देती है, उसे जिन कहते हैं. राग यानी मोह, द्वेष यानी घृणा या नफरत, न पैसों का राग, न परिवार का, न पत्नी का, न शरीर का, न घर का, न कपड़ों का, न गहेनों का-कुछ भी राग नहीं वो ‘जिन’. जो जिन बनता है, वो संपूर्णज्ञानी भी बनता है, जिसे केवलज्ञानी भी कहा जाता है, जिसको हम सर्वज्ञ कहते हैं. ऐसे जिन + सर्वज्ञ के जो वचन, वो ही जैनशासन. ऋषभदेव से लेकर महावीरस्वामी तक सब जिन + सर्वज्ञ थे, इसलिए उनके वचन जैनशासन है. जैसे संविधान की रचना कोई ऐरा-गैरा आदमी नहीं कर सकता है, उसके लिए उसके पास तीन चीज़ों का होना अनिवार्य है.

A. वो किसी के ऊपर राग वाला नहीं होना चाहिए.

B. वो किसी के ऊपर द्वेष वाला नहीं होना चाहिए.

C. वो अज्ञानी भी नहीं होना चाहिए यानी उसके पास ज्ञान होना चाहिए.

अगर बाबासाहेबजी को कोई लोगों पर राग होता, तो वो उनको खुश करनेवाला संविधान बना देते. उससे दुसरो को अन्याय होता. अगर बाबासाहेबजी को कोई लोगों पर क्रोध होता, तो वो उनको परेशान करनेवाला संविधान बना देते, उससे वो लोगो पर अन्याय होता. अगर बाबासाहेबजी अज्ञानी होते, पढ़े-लिखे नहीं होते, तो वो संविधान बना ही नहीं पाते या पूरा गलत बना देते. लेकिन वो वैसे रागी, द्वेषी या अज्ञानी नहीं थे. तो वो भारतीय संविधान को अच्छी तरह से बना पाए. 

यहाँ पर भी यह ही बात है. प्रभु महावीर रागी, द्वेषी, अज्ञानी बिलकुल भी नहीं थे, वीतरागी थे, वीतद्वेषी थे, संपूर्णज्ञानी थे. तो उन्होंने जैनशासन बनाया.

जिनशासन का मकसद क्या है?

भारतीय संविधान का मकसद क्या? भारतीय लोगों को ऐसी सुदृढ़ व्यवस्था देनी, जिससे वो लोग सुख-शांति से जी पाए. जैनशासन का मकसद क्या? जैनी लोग राग-द्वेष-अज्ञान को ख़त्म करके मोक्ष पाए, परमशांति पाए, हमेशा की शांति पाए.

जैन कौन बन सकता है?

अगर अन्य देश का नागरिक भारत में आता है, भारतीय संविधान को पूरी जिंदगी के लिए स्वीकार करता है, तो वो भी यहाँ का भारतीय नागरिक बन सकता है. जिसने भारत में जन्म लिया, वो तो जन्म से ही भारतीय नागरिक बन चुका है. ठीक वैसे ही, जिसने जैन परिवार में जन्म लिया है, वो तो जन्म से ही जैन बन चुका है. लेकिन अगर कोई जैनेत्तर यानी जो जन्म से जैन नहीं है वो भी जैनशासन का स्वीकार करता है, सभी आज्ञाओं को मानता है, तो वो भी जैन बन सकता है.

कौन जैन नहीं है?

भारतीय नागरिक भी अगर संविधान को न माने, विरोध करे तो वो हकीकत में भारतीय नागरिक है ही नहीं. अगर विदेशी भी कोई संविधान को माने, पाले तो वो सच्चा भारतीय नागरिक हो सकता है. ठीक वैसे ही जैन भी अगर जैनशासन को न माने, विरोध करे, तो वो हकीकत में सच्चा जैन नहीं. जैनेत्तर भी अगर जैनशासन को माने, पाले तो वो सच्चा जैन. 

जैन जन्म से या कर्म से?

एक बात Clearly समझ लीजिए जैन जन्म से नहीं होता, जैन कर्म से होता है. जैन परिवारों में जन्म लेने वाले भी हजारों लोग ऐसे हो चुके हैं, जो नरक में गए हैं. क्योंकि उन्होंने जैनशासन को माना नहीं था, पाला नहीं था. जैन परिवारों में जन्म नहीं लेने वाले भी हजारों लोग ऐसे हो चुके हैं, जो स्वर्ग में गए हैं क्योंकि उन्होंने जैनशासन को माना था और पाला भी था. 

जैन शासन के मूल नियम

एक रोगी को पता नहीं है कि यह गोली बुखार मिटाती है फिर भी अगर वो गोली लेता है, तो उसका बुखार मिटता है. वैसे ही
A. किसी को दुःख नहीं देना,
B. झूठ नहीं बोलना,
C. चोरी नहीं करना,
D. विकार-वासना से दूर रहना,
E. परिग्रह-धनलोभ नहीं करना. 

यह सब जैन शासन है, किसी को पता नहीं हो कि यह जैन शासन है फिर भी अगर वो यह सब नियमों को मानता है, पालता है तो उसे सुख मिलता ही है, उसके जीवन में अच्छे कर्मों का बंध होता ही है.

तो इस तरह हमने जाना कि जैन शासन क्या है, जैन संघ क्या है, जैन धर्म कितना पुराना है और कौन कौन जैन बन सकता है.

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