शत्रु का Present देखने में क्या समस्या है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 09.
सुपुत्र-सा सज्जन
जन्म देकर पालन पोषण किया, सुंदर संस्कारों का सींचन किया, ऐसे माँ-बाप किसी कर्मों के कारण Old Age में Paralysis यानी लकवा जैसी भयंकर किसी को भी पसंद ना आए ऐसे रोग के शिकंजे में फँस भी जाए, उनको खिलाने पिलाने की Problem, वो बार-बार Urine, Toilet से कपडे-बिस्तर भी बिगाड देते हैं.
चार दीवारी में ज्यादा रहने से उनका स्वभाव चिडचिडा हो गया, इसलिए बार- बार कडवी भाषा में बात करें, चीखना-चिल्लाना दिन भर रहे, फिर भी अच्छा पुत्र या पुत्री किसे कहेंगे? इन सब कार्यों को देखा-अनदेखा सुनी-अनसुनी कर सेवा में प्रसन्न रहनेवाली संतान Right? उस संतान के लिए वर्तमान क्या है वो Matter नहीं करता है.
Past की एक से एक Memories याद आती है, जीवंत हो जाती है, उनके उपकार याद आते हैं. हमारी गलतियाँ होने के बाद भी वे हमें माफ़ करते थे, कितनी कठिनाइयों में बड़ा किया वह सब याद आता है.
जो संतान, माता-पिता की Current Helpless Situation को आँखों के सामने रखता है, उसको लकवाग्रस्त माँ-बाप फूटी आँख भी पसंद नहीं आते हैं. वह कभी सेवा नहीं कर सकते, उपकारों का ऋण चुकाने के समय में जो संतान दूर भागती है वह कपूत कहलाता है.
पौधा गुलाब का है या काँटो का?
कभी कभार बगीचे में हमने गुलाब का हँसता-खिलता पौधा देखा होगा. बारीक नजर से उस पौधे का अध्ययन करें तो डाल तो अनेक है पर गुलाब का खुशबूदार फूल किसी एक दो डाल पर ही लहरा रहा है, जबकि काँटे तो हर एक डाल पर चिपक कर बैठे हैं, उखड़ने का नाम भी नहीं लेते और तो और जिस एकाद डाल पर गुलाब मस्ती से झूम रहा है उस पर भी काँटों की कमी नहीं-ढ़ेर सारे उग आए हैं.
एक बात और भी है, गुलाब का अस्तित्व भी बहुत कम समय के लिए है, आया कोई मनचला, चट्कर निकाला और अपनी प्रियतमा के हाथों में दे दिया. पौधे पर तो रह जाते हैं काँटे, गुलाब तो आया राम-गया राम ही समझो. फिर भी हर एक इंसान उस पौधे को पुकारता है ‘यह गुलाब का पौधा है’ कोई उसे काँटों का पौधा नहीं कहता है.
उपकार के गुलाब
इसी तरह सामने हमारा शत्रु बैठा है. बारीकी से देखेंगे तो पाएँगे कि उस पर उपकार के यानी अच्छे कार्यों के गुलाब लहरा रहे हैं और अपकार के यानी बुरे कार्यों के काँटे भी. अब, उसे क्या कहना न्यायसंगत है? उपकारी या अपकारी? गुलाब का पौधा या काँटों का? लेकिन याद रखना कि गुलाब चुननेवाला उसकी खुशबू और सुंदरता से Satisfaction पाता है.
काँटे इकट्ठे करनेवाला अपनी हथेली और उँगलियों में चुभन ही पाता है, खून की धारा बहती है और वह पीड़ा से कराहता है. बस यही तो उसके भाग्य में बचा है. इस प्रकार जिन्हें हम शत्रु समझ रहे हैं उन उन जीवों के व्यवहार-वर्तन में उपकारों को ही मन में अपनानेवाला आदमी मित्रता की सुगंध को पा सकता है.
अपकारों की ओर देखनेवाला शत्रुता के तीक्ष्ण काँटे ही पाता है. अरे, हजार बार अपकार करके Rarely उपकार करनेवाले जीव को भी उपकारी ही मानना है तो आगे-पीछे अनेक बार असीम उपकार करनेवाले और सिर्फ बीच के समय में कुछ पाँच-पच्चीस वर्ष जितने मर्यादित समय के लिए अपकार करनेवाले जीवों की तो बात ही क्या कहनी?
Angle सुधारो
कोई भी घटना के बाद हमें उसी Angle से उस घटना को देखना चाहिए जिस Angle से फायदा हो. शत्रुता के व्यवहार को नजर में लाया जाए तो बहुत बड़ी Problems खडी हो जाती हैं जैसे :
पहली बात-दिल में शत्रुता के भाव-द्वेष, तिरस्कार, क्रोध कषाय की आग पैदा होती है.
दूसरी बात-बेतुकी बातों पर वैर की गांठे बंध जाती हैं.
तीसरी बात-Revenge की इच्छा हम में जगती है और बात का बतंगड हो जाता है.
खून-खराबा होते देर नहीं लगती, पीढ़ियाँ की पीढियाँ साफ हो जाती है.
अनेक प्रकार की भयानक लड़ाइयाँ इससे शुरू होती है और इन लड़ाइयों के कारण ही तो चंबल की Gangs खड़ी होती है. इस Revenge की आग में Family की Families जलकर भस्म हुए हैं, जिन्दे के जिन्दे कट गए.
शत्रुता के भाव से जन्म लेते हैं, तीव्र संक्लेश और उन संक्लेश से मनुष्य के विवेक ख़त्म होता है और जहाँ विवेक नहीं वहाँ करने जैसा या नहीं करने जैसा ऐसी कोई भेदरेखा नहीं है, सिर्फ बदला, Revenge यही दिमाग में चलता है. भयंकर पापों में व्यक्ति लिप्त होता है वह और फिर पापों से आती है भयंकर दुखों की बौछारें. ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान.’
शत्रु की जगह मित्र मान ले तो?
मित्रता के व्यवहार को नजर में लानेवाले की स्थिति ठीक इससे Opposite हुआ करती है. दिल में कटुता नहीं रहती और दिल बिलकुल हल्का फुल-सा रहता है. संक्लेश से पाप और दुःख की परंपरा चालू हो जाती है लेकिन यहाँ अनेक प्रकार के संक्लेश और पापों से बचाव के कारण दुःख आते नहीं हैं.
मन में शुभभावों की बारिश बरसती है और पुण्यबंध की फसल उग आती है और आत्मा इसी शुभ पाथेय को लेकर मुक्ति के पथ पर प्रगति करती रहती है. मतलब यह कि यदि स्वजन-परिवार के ऊपर बहुत ही ज्यादा ममता हो तो सुकोशल महामुनि के दृष्टांत को इस सिरे से यानी Angle से देखना चाहिए कि स्वजन पर ममता क्यों रखी जाए?
जब माँ भी बाघिन बनकर फाड खा जाए तो दूसरों की बात ही क्या कहनी? इस संसार के स्नेहीजनों की ममता से तोबा. तोबा.” परंतु दुःख और पीडा पहुँचानेवाले व्यक्ति पर यदि दिल में शत्रुता पैदा हो रही हो तो इसी बात को कुछ अलग ढंग से-नए सिरे से सोच सकते हैं कि. अरे. चीर-फाडकर खानेवाली बाघिन भी यदि अत्यंत उपकारिणी माता हो सकती है तो क्या पता कौन क्या था पूर्व काल में? तो फिर शत्रुता क्यों रखनी?
जिस दृष्टिकोण में मोहराजा की आज्ञा का Reflection हो, उससे Opposite Point of View Accept करना यही जिनाज्ञा है. उसी से शांति, समाधि और स्वस्थता जीवंत रहेगी.
दृष्टिकोण कैसा?
शाम का समय था. भक्त आया और आश्रम में गाय बांधकर चला गया. शिष्य तो मानो खुशी से झूम उठे, उन्होंने समाचार गुरुजी को दिए. गुरु ने दो टुक जवाब दिया ‘अच्छा हुआ, अब तुम्हें दूध की भिक्षा की झंझट नहीं रही, ज्ञान-ध्यान में ज्यादा समय मिलेगा.’
चार दिन के बाद देखा तो गाय गायब थी. चोर शायद वहाँ भी पहुँच गए थे. शिष्यों ने ये दुःखद समाचार गुरुजी को दिए और गुरु ने कहा ‘यह भी अच्छा हुआ, अब तुम्हें गाय को चराना, गोबर इधर-उधर करना वगैरह झंझट नहीं. पढने में Time ज्यादा मिलेगा.’
कोई भी घटना हो, Negative घटना भी क्यों ना हो, उसमें भी जो Positive Angle से सोचता है वह हमेशा खुश रहता है. उसकी समाधि बरक़रार रहती है. Mental Peace should be our priority.
यह दुनिया एक Drama है.
जी हाँ! सही सुना आपने. लेकिन ऐसा क्यों? जानेंगे अगले Episode में.