You Will Stop Fighting With Your Partner After Watching This | Friend or Foe – Episode 24

मन की शांति का आसान रास्ता.

Jain Media
By Jain Media 14 Min Read

सामनेवाले की गलती या दोष नहीं देखने के भौतिक Angle से क्या फायदें हैं. 
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 24.

भौतिक दृष्टिकोण 

जो व्यक्ति दूसरों की भूल अथवा दोष देखता है, उसे Physical, Mental, Social, Economical Etc कई नुकसान उठाने पड़ते हैं. कारण यह है कि जब व्यक्ति सामनेवाले की भूल देखता है तब, नुकसान का आघात तीव्र लगता है और जब खुद की भूल देखता है तब Same नुकसान में भी आघात इतना तीव्र नहीं लगता है बल्कि बहुत कम ही लगता है. 

ऐसा क्यों होता है? तो इसका भी Psychological विश्लेषण है. जब इन्सान सामनेवाले का दोष देखता है तब Normally उसके मन में ऐसे विचार उठते हैं कि ‘बेवकूफ है, कुछ ध्यान ही नहीं रखता. 

बिलकुल Careless है, उसे तो डांटना ही पडेगा नहीं तो आज तो यह भूल की, कल दूसरी करेगा और परसो तीसरी. ऐसे तो फिर रोज़ नुकसान होता जाएगा. एक बार बराबर Class ले ली जाए तो दूसरी बार ध्यान से काम करेगा.’

अब Same Situation में अगर खुद की भूल देखी जाए तो मन के विचार बदल जाते हैं कि ‘हो जाता है, मनुष्य से ही तो गलती होती है. वैसे भी सभी चीजें विनश्वर हैं, टूटती हैं, फूटती हैं. मन कहाँ-कहाँ बिगाड़ने जाए?’ 

Driver गाड़ी चला रहा हो और Accident हो जाता है उस वक्त और स्वयं जब Driving कर रहे हो और Accident हो जाए तो उस वक्त विचारों मे फर्क पड़ता है या नहीं? 

मान लीजिए हम कोई Partnership Business में हैं और हमारे Absence में दूसरे Partner ने कोई Deal की और 5-10 लाख रुपयों का घाटा-Loss हो गया तब कैसे विचार आते हैं? 

‘इस प्रकार कोई व्यापार होता है क्या? मुझे पूछना था न? मैं नही था, तो 4 दिन ठहर जाते तो कौन सा बड़ा नुकसान हो जाता? इस प्रकार के नुकसान को किसी भी हालत में चलाया नहीं जा सकता. ऐसे तो अपना दिवाला निकल जाएगा?’ 

और इसी जगह यदि उस Partner की Absence में हमारे खुद के हाथों से कोई बड़ा नुकसान हो गया हो तो कैसे चीकनेचुपड़े विचार आते हैं ‘भाई. यह तो धंधा है. कभी नुकसान भी उठाना पड़ता है. उस पर अब रोने से क्या होगा, रोना रोने के बजाय दूसरे सौदे पर ध्यान दिया जाए तो Loss Recover भी हो जाता है.’ 

इस प्रकार सामनेवाले की भूल देखने में मन नुकसान वाले विचारों में Busy हो जाता है इसलिए नुकसान बहुत भारी लगता हैं. जब कि खुद की भूल देखने में मन नुकसान के Opposite विचारों में चला जाता है जैसे ठीक है अब जो हुआ वो हुआ अब आगे कैसे बढ़ना Etc इस तरह सोचता है तो नुकसान का झटका है वो बहुत कम लगता है क्योंकि मन अभी आगे का सोच रहा है, गलती ढूँढने में Busy नहीं है. 

यह तो स्पष्ट है, मन जिसमें जुड़ जाता है उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है. नुकसान वाले विचार करने पर नुकसान और ज्यादा लगता है और इसलिए आघात की या दुःख की मात्रा भी बढ़ जाती है और उसीसे भयंकर आवेश पैदा हो जाता है. 

आवेश के आने से विवेक कम हो जाते हैं और फिर इस महत्त्वपूर्ण बात को वह भूल जाता है कि ‘एक नुकसान तो Already हुआ ही है, उसकी भरपाई कोई आवेश करने से होने वाली नही है. चलो अब किसी नए नुकसान में नहीं उतरना पड़े उसका पूरा ध्यान रखा जाए.’. आवेश झगड़ा खड़ा करता है जिससे न केवल शारीरिक ही, बल्कि मानसिक और आर्थिक आदि कई मुसीबतें भी मनुष्य के सर आ पड़ती हैं. 

मनुष्य का हृदय 

कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में रहे हुए हृदय का वजन करीब 250-350 Gram ही होता है. परंतु अपने में से 5-6 Litre खून निकालकर शरीर के प्रत्येक भागों में उसे घूमाकर पुनः सिर्फ दो ही मिनट में शुद्ध करने के लिए अपने में खींच लेता है. 

शरीर का यह छोटा सा और Important Organ Heart 24 घंटों में इतनी मेहनत करता है कि यदि इसी Power को किसी 1000 Kilo भारी पत्थर को ऊपर चढाने के लिए Use किया जाए तो वह आसानी से 124 फूट तक ऊँचा पहुँच जाएँगा. 

एक Strong & Fit व्यक्ति सख्त मजदूरी के पीछे पूरे दिन जितनी Energy को काम में लगाता है, उसका 1/3rd भाग विश्व का सबसे श्रेष्ठ यह Engine खर्चता है. यह Heart अगर अपनी पूरी ताकत लगाकर ऊँचा चढ़ने लगे तो सिर्फ एक ही घंटे में 20 हजार फूट तक ऊँचा पहुँच सकता है अर्थात् आबू पर्वत की ऊँचाई से करीबन 5 Times जितनी ऊँचाई. 

Birth से लेकर Death तक यह काम करता रहता है. हम सो जाएंगे लेकिन Heart नहीं सोएगा. हम चलते हैं, उठते-बैठते हैं, खाते हैं, पीते हैं, जाते हैं, रोते धोते हैं, कुछ करते हैं या कुछ नहीं भी करते हैं, Rest भी लेते हैं लेकिन इस Heart का काम Day And Night चालू ही है. 

न तो वह Casual Leave लेता है और न ही Sick Leave न ही भूखहडताल करता और न ही वन Pen Down Strike के ऊपर उतरता है. 

किसी भी प्रकार की छुट्टी या हडताल बिना, अपनी खुशी से शरीर का छोटा सा नाजुक यह Organ इतना काम करता है परंतु जब आदमी क्रोध करता है, आवेश करता है तब Heartbeats बढ़ जाती हैं. यह सूचित करता है हृदय की ख़राब दशा. आखिर यह क्या है? 

इस बेचारे वफादार नौकर पर जोर-जुल्म ही तो हुआ. आवेश से सिर्फ हृदय को ही नुकसान पहुँचता है, ऐसा नहीं है. खून भी खौलने लगता है. सातों धातुओं में एक प्रकार की उष्मा-गर्मी पैदा हो जाती है. उनमें विषमता आती है और शरीर में कम्पन भी देखने को मिलता है. 

इससे शरीर में एक प्रकार का जहर पैदा होता है. यह बात हवा में नहीं है आप यदि Google करेंगे तो इसका Scientific उत्तर भी मिल जाएगा कि क्रोध करने पर हमारा शरीर Fight or Flight Response के लिए Activate हो जाता है, जिस कारण से Stress Hormones जैसे की Adrenaline Release होने लगता है. 

इससे Heart Rate, Breathing Rate और Blood Pressure बढ़ने लगते हैं, Stress इससे बढ़ेगा ही और नुकसान व्यक्ति को होगा ही. इतना ही नहीं इससे हमारा Immune System Damage होता है और हमारे लिए अलग अलग प्रकार के रोगों का खतरा बढ़ जाता है. 

सरदर्द, सर्दी, ज़ुकाम, बुखार ही नहीं कई Cases में Heart Attack भी आ जाते हैं. हमने हमारे आस-पास देखा ही होगा कि किसी को कोई बड़ा नुकसान हुआ और उसे Heart Attack आ गया. 

इसलिए आवेश को रोकना चाहिए. कैसा भी प्रसंग क्यों न आ जाए व्यक्ति को अपना संतुलन नहीं खोना है. सामनेवाले की भूल देखी तो क्रोध आएगा और खुद की देखी तो स्वस्थता आएगी.

ग्रन्थों में अहीर-अहीरिन के दो युगल की, Couples की बात आती है. 

Couple No. 1 

गाँव में बैल एवं गायों का पालन-पोषण का उनका धंधा था. गायों के दूध से घी बनाते थे और जब बहुत इकट्ठा हो जाता था तब मटकों में भरकर बैलगाड़ियों में भरकर शहर में बेचने जाते हैं. एक बार शहर में मेला लगा. यह Couple भी वहां घी बेचने के लिए आया. बैलगाडी खड़ी की और पति नीचे उतरा. 

पत्नी मटके देने लगी और धडाम्….. घी से भरा हुआ मटका बीच में ही छूट गया और जमीन से टकराकर फूट गया. पति आगबबूला होकर बरस पडा ‘अक्कल कहाँ गई तुम्हारी, मैंने अभी पकड़ा ही नहीं था और तुमने उसे छोड़ क्यों दिया?’ 

पत्नी भी चुप बैठने वाली नहीं थी. सुना दिया कि ‘भूल तो आपकी है और मुझे डांट रहे हो. किसी और ध्यान में थे इसलिए आपने संभालकर मटका पकड़ा नहीं और गलती मेरी निकाल रहे हो, कमाल है.’

फिर तो दोनों के बीच World War शुरू हो गया. पत्नी बोली ‘तुम ही अन्य रूपवती स्त्रियों को देखने में अपनी आँखें इधर-उधर भटका रहे थे इसलिए तुमने ध्यान से मटका नहीं पकड़ा और तुम्हारे हाथ से गिर गया.’ सीधा Character पर Attack कर दिया. झगड़ा चलता रहा और गालीगलौज भी चलती रही. पूरी ताकत लगाकर दोनों एक दूसरे से लड़ते रहे. 

एक दूसरे की गलती निकालने की मूर्खता दोनों करते रहे और इधर शाम होने आई. अँधेरा होने लगा और दोनों चौंक उठे. कुछ सावधान हुए और देखा कि मटके का घी जो लुढक गया था उसे कुत्तों ने मिलकर साफ़ कर दिया था. दूसरे Couples तो कभी के निकल पड़े थे क्योंकि पूरा अंधेरा होने से पहले अपने गाँव पहुंचना पड़ता था. बाज़ार बंद हो चुका था और लोग निकल चुके थे.

Hardly 2-4 लोग रास्ते पर नज़र आ रहे थे. दोनों डर गए और फटाफट सब कुछ समेट लिया. जितना घी बेचा था उसके पैसे और बचे हुए घी के मटकों को लेकर गाँव की और जाने के लिए चल पड़े लेकिन अब रात हो चुकी थी, अँधेरा हो चुका था और रास्ते में वे अकेले थे. 

रास्ते में चोर मिले और पैसे लूंट लिए और सारा का सारा घी दबोच लिया. किस्मत अच्छी थी कि उन्हें जिन्दा छोड़ दिया और वे दोनों खाली हाथ घर लौटे. 

Couple No. 2 

यह एक दूसरा युगल है. पहले वाले Couple की तरह ही सब कुछ इनके साथ भी हुआ. लेकिन यहाँ पर Reactions एक दम Opposite थे. मटका फुटा कि तुरंत पत्नी ने दोष खुद पर ले लिया ‘अरे.. अरे.. पतिदेव, मेरी बड़ी भूल हो गई. आप उसे संभालकर पकड़े इससे पूर्व ही मैंने मटका छोड़ दिया. थोडीसी मेरी असावधानी और यह नुकसान हो गया.’ 

पति ने भी Same Tone में जवाब दिया कि ‘अरे प्रिये, भूल तो मेरी थी, मुन्ने की माँ. तुमने तो ठीक ही पकड़ाया था, मैने ही उसे ठीक ढंग से नही पकड़ा.’ बात इधर ही ख़त्म हो गई. 

न झगड़ा हुआ न टंटा और दोनों ने एक दूसरे को अपराधी घोषित करने की बजाए अपने आप को अपराधी घोषित किया और खुद की ही भूल निकाली. 

इसलिए न कोई संक्लेश, न कोई Ego का प्रश्न, न कोई माथापच्ची. स्वस्थ होकर पत्नी नीचे उतरी और ऊपर-ऊपर से घी भर लिया. बचा कुचा सारा घी बेचकर दोनों आनंद से प्रेम से अपने गाँव अपने घर लौट गए. यह सुनने में बहुत Easy लगता है लेकिन इसके लिए खुद के Ego को Side में रखना पड़ता है. 

गलती किसी की भी हो, लेकिन खुद की भूल दोनों ने देखी तो Matter Solve हो गया. कुलमिलाकर कैसी भी घटना क्यों न आ जाए, बस खुद की भूल देख ली जाए तो Problem Solve हो जाएगी और Mental Peace बना रहेगा. 

भयंकर बेचैनी होने लगे और सामनेवाले व्यक्ति का क्या से क्या हाल कर दूँ ऐसा मन कह रहा हो और शायद कुछ कर सके ऐसा ना हो फिर भी कड़वे से कड़वे शब्द मुंह से निकल सकते हैं ऐसी Situation में भी अपनी खुद की भूल देखनेवाला ज़बरदस्त समाधि और स्वस्थता का धनी बन सकता है. 

बिलकुल शांत रह सकता है. सामनेवाला अपराधी इंसान भी सद्भाव-अहोभाववाला बनकर गद्गद् बन जाए ऐसे मीठे वचन बोल सकता है. 

गर्भवती सीता जी को रामचंद्र जी ने जंगल में भेज दिया था. उसके बाद फिर से अयोध्या में जब उनका फिर से प्रवेश हो रहा था तब सीताजी बहुत कुछ सुना सकती थी लेकिन उन्होंने किस तरह React किया जानेंगे अगले Episode में. 

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