महापुरुष चिलातीपुत्र की अद्भुत कथा

Bharhesar Sajjhay's Mahapurush Chilatiputra's Inspirational Story

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By Jain Media 159 Views 11 Min Read
Highlights
  • 'उपशम - विवेक - संवर' गुरु मुख से इन 3 वाक्यों को सुनकर डाकू चिलातीपुत्र ने बदला था अपना जीवन.
  • गुरु भगवंत जो वचन कहते हैं - उन्हें धैर्य और ध्यान से अवश्य सुनना चाहिए, ये वचन हमारे लिए ही कल्याणकारी होते हैं.
  • किसी भी व्यक्ति को Judge करने से पहले - See The Whole Picture !

गुरु भगवंतों का सत्संग एक व्यक्ति को कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है वह हमें महापुरुष चिलातीपुत्र की अद्भुत कथा से पता चलता है. आइए जानते हैं गुरु मुख से मात्र 3 शब्द सुनकर अपना जीवन परिवर्तित करनेवाले महापुरुष चिलातीपुत्र की अद्भुत कथा. 

क्या थे वो 3 शब्द? जानने के लिए बने रहिए इस Article के अंत तक. 

चिलातीपुत्र बना डाकू 

श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के कल्याणकों से पावन बनी हुई राजगृही नगरी में धन श्रेष्ठी की दासी चिलाती के गर्भ में देवलोक से एक आत्मा का अवतरण हुआ और कुछ समय बाद दासी ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया. चिलाती दासी का पुत्र होने से सब उस बालक को चिलातीपुत्र कहने लगे. 

धन श्रेष्ठी की पत्नी ने भी पाँच पुत्रों के बाद एक पुत्री को जन्म दिया और कन्या का नाम सुसीमा रखा गया. समय के साथ चिलातीपुत्र और सुसीमा बड़े होने लगे. पूर्व जन्म के संबंध के कारण चिलातीपुत्र के दिल में सुसीमा के प्रति राग पैदा हुआ और धीरे धीरे वह स्नेह राग, काम राग में बदलने लगा. 

एक बार चिलातीपुत्र के गलत Behaviour को देखकर धनसेठ ने चिलातीपुत्र को घर से बाहर निकाल दिया. घर छोड़कर चिलातीपुत्र जंगल में गया और चोरों की पल्‍ली यानी चोरों के Group में पहुँच गया. ऐसा कहा गया है कि जैसी संगत वैसी रंगत और इसलिए इंसान के मन पर संगति का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है. चोरों के साथ रहते हुए चिलातीपुत्र बहुत बड़ा डाकू बन गया. 

चोरी, लूट आदि चिलातीपुत्र के जीवन का Routine बन गया. लूटने का धंधा करते हुए भी वह सुसीमा को नहीं भूल पाया था और सुसीमा की छवि उसके दिल में जैसे छप चुकी थी. एक दिन उसने अपने साथियों के साथ राजगृही नगर के धनसेठ को लूटने का Decide किया. उसने अपने साथियों को कहा कि ‘धनसेठ को लूटकर जितना धन मिलेगा, उस धन के मालिक तुम होंगे लेकिन सेठ की पुत्री सुसीमा के ऊपर मेरा अधिकार रहेगा.’ साथियों ने चिलातीपुत्र की बात मान ली. 

सुसीमा का अपहरण 

एक दिन चिलातीपुत्र ने अपने साथियों के साथ धनसेठ के घर में Enter किया और सेठ को अवस्वापिनी निद्रा में सुला दिया. अवस्वापिनी निद्रा यानी एक ऐसी विद्या का प्रयोग कि जिसमें सामनेवालों को नींद आ जाए. चिलातीपुत्र ने सेठ के घर को बुरी तरह से लूटा. उसके साथियों ने सारा धन ले लिया और चिलातीपुत्र ने सुसीमा को उठाया और वे सभी जंगल की ओर आगे बढ़ने लगे. 

कुछ समय बाद धनसेठ की नींद पूरी हुई और उसे पता चला कि चोरों ने आकर उसके घर को साफ कर दिया है. सेठ ने अपने पुत्रों को जगाया और नगर के सैनिकों के साथ चोरों का पीछा करना शुरू किया. सैनिकों को पीछे आते देखकर कई चोर धन को बीच मार्ग में ही छोड़कर अपने प्राण बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे. उसके बाद वह सेठ अपने पुत्रों के साथ सुसीमा की खोज करने लगा. 

सेठ और उसके पुत्रों को पीछे आते हुए देखकर चिलातीपुत्र ने सोचा कि ‘इस कन्या का भार उठाना अब Possible नहीं है.’ यह सोचकर चिलातीपुत्र ने सुसीमा के सर को शरीर से अलग कर दिया और सुसीमा के शरीर को वहीं छोड़ दिया और उसके सर को हाथ में लेकर भागने लगा. धनसेठ ने जब सुसीमा के मृत शरीर को देखा तो उसे बुरी तरह से Shock लगा और वह जोर जोर से रोने लगा. 

अब सेठ का चिलातीपुत्र का पीछा करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि जिसे पाने के लिए वे भाग रहे थे, उसकी तो मौत हो चुकी थी. सेठ’ अपने पुत्रों के साथ अपने घर लौट आया. दूसरे ही दिन चरम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु का राजगृही नगरी में आगमन हुआ. धनसेठ भी प्रभु की धर्मदेशना सुनने के लिए समवसरण में आया.

प्रभु ने अपनी धर्मदेशना में संसार की असारता समझाई, संसार के संबंधों की अनित्यता समझाई. प्रभु की अमृत वाणी सुनकर धनसेठ के दिल में असार संसार के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ और सभी संबंधों का त्यागकर धनसेठ ने प्रभु के चरणों में भागवती दीक्षा अंगीकार करली

एक चीज़ सोचने जैसी है जब हमारे घर पर किसी की मौत होती है तब कई दिनों तक हम शायद प्रभु को भूल जाते हैं, प्रभु के वचनों को भूल जाते हैं, प्रभु के मंदिर को भूल जाते हैं लेकिन यहाँ पर सेठ जिस दिन जिस दिन उसकी बच्ची की मौत हुई, उसके अगले ही दिन समवसरण में पहुँच गया, सोचने जैसा है.

उपशम-विवेक-संवर

इधर, चिलातीपुत्र सुसीमा के कटे हुए सर को हाथ में लेकर दौड़ रहा था. सुसीमा के कटे हुए सर में से खून बह रहा था और उस खून से चिलातीपुत्र का शरीर लथपथ हो चुका था. कुछ दूर जाने पर चिलातीपुत्र ने एक पेड़ के नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े एक महात्मा को देखा. महात्मा को देखते ही चिलातीपुत्र ने महात्मा को कहा कि ‘मुझे जल्दी धर्म कहो वरना यह तलवार तुम्हारे मस्तक को उड़ा देगी.’ 

चिलातीपुत्र के इन शब्दों को सुनकर महात्मा ने देखा कि यह जीव भले ही गुस्से में है लेकिन साधु धर्म के लिए यह पूरी तरह से योग्य है. इस प्रकार विचारकर महात्मा ने बहुत ही Short में धर्म का स्वरूप बतलाते हुए कहा “उपशम-विवेक-संवर” मात्र ये तीन शब्द कहकर, वे महात्मा वहां से चले गए. 

महात्मा के मुख से इन शब्दों को सुनकर चिलातीपुत्र एक एक पद के बारे में सोचने लगा ‘अहो! मुनि ने उपशम को धर्म कहा है, लेकिन मुझ में उपशम तो है ही नहीं, मेरे अंदर तो क्रोध की आग धधक रही है. अहो! क्रोध के अधीन बनी मेरी आत्मा को घिक्कार हो.’ इस प्रकार विचार कर उसने अपने हाथ में रही तलवार जमीन पर फेंक दी.

उसके बाद चिलातीपुत्र दुसरे विवेक पद का Meaning सोचने लगा. सोचते सोचते उसे विवेक का अर्थ समझ में आ गया. विवेक यानी कर्तव्य-Responsibilities का पालन और अकर्तव्य का त्याग करना. जीवन में विवेक से ही धर्म होता है, विवेकहीन व्यक्ति धर्म की आराधना नहीं कर सकता है. इस प्रकार विचारकर उसने अपने हाथ में रहे अविवेक के प्रतीक रूप सुसीमा का सर जमीन पर फेंक दिया.

संयम ग्रहण 

उसके बाद वह धर्म के तीसरे पद यानी संवर के बारे में सोचने लगा. संवर यानी पाँच इन्द्रिय-5 Senses और मन को रोकना. पाँच इन्द्रियों को Suit हो ऐसे काम आत्मा को संसार में भटकानेवाले हैं जिन्हें सही समय पर नहीं रोकने से वे आत्मा को दुर्गति में ले जाते हैं. 

चिलातीपुत्र सोचता है कि ‘मेरे जैसे स्वेच्छाचारी को संवर कहाँ से हो?’ इस प्रकार विचारकर उसने उसी समय साधु धर्म का स्वीकार कर लिया और वे वहीं पर कायोत्सर्ग ध्यान में लीन हो गए. चिलातीपुत्र का शरीर सुसीमा के खून से लथपथ था, अतः उस खून से Attract होकर कई चींटियाँ चिलातिपुत्र मुनि के पास आने लगी और देखते ही देखते हजारों चींटियाँ आकर उनके शरीर को खाने लगी. 

चींटियों के तीखे डंक को चिलातीपुत्र मुनि अत्यंत ही समतापूर्वक बिना गुस्सा किए, बिना हिले डुले सहन करने लगे. उन चींटियों ने चिलातीपुत्र मुनि के शरीर को छलनी जैसा बना दिया. भयंकर शारीरिक तकलीफ में भी चिलातीपुत्र मुनि ने अपने समता भाव यानी सहनशक्ति को खोया नहीं. इस प्रकार समता भाव के फलस्वरूप चिलातीपुत्र मुनि कालधर्म प्राप्तकर आठवें देवलोक में देव बने.

Moral of the Story

भरहेसर की सज्झाय में जिनका नाम आता है ऐसे महापुरुष चिलातीपुत्र की इस कथा से हमें सीखने जैसी बहुत सी चीजें हैं. 

1. ‘सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते’ ऐसी कहावत हिंदी में प्रसिद्ध है. बहुत व्यक्ति अपने असली स्वरूप को भूल जाते हैं कि वे कौन हैं? उनका खानदान क्या है? उनकी असलियत क्या है? उलटा नहीं करने के कार्य भी कर लेते हैं पर जब ऐसे लोगों को भी गुरु भगवंत का संपर्क होता है – उनके वचनों का संपर्क होता है तब वह भूले लोग वापस खुद की Reality की ओर मुड़ जाते हैं. 

इसलिए किसी भी व्यक्ति को धिक्कार ने से पहले एक बार सोचना चाहिए.
See The Whole Picture. 

2. घर पर हुई मौत या बीमारी हमें बहुत कुछ सिखा जाती है. संसार कितना असार है उसकी गहरी झलक किसी की मौत के अवसर पर होती है. उसने हमसे न जाने कितने वादे किए होते हैं पर जाने के बाद वे वादे-वादे ही रह जाते हैं. ऐसे अवसरों पर किसी को धिक्कारने के बजाय वैराग्य भाव मजबूत करना चाहिए धन सेठ की तरह. 

3. इस दुनिया में हमें किसी भी चीज पर इतना राग नहीं होना चाहिए कि हम उसे छोड़ ही ना सके. राग-मार्ग को भूलाता है. हमको जो चीज नहीं करनी चाहिए उसे भी करवाता है. हमें चिलातीपुत्र जैसा पागल बनाता है. जिससे प्रेम था उसको ही काट देना, यह कौन सी समझदारी है? 

प्रेम इतना पागल नहीं होना चाहिए कि हम सच-झूठ, सही-गलत में निर्णय न कर सकें.

4. और हाँ! कर्म कभी किसी को छोड़ते नहीं हैं. 

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