अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों पर लिलोत्री (हरी सब्जियां, फल) के त्याग का महत्त्व.

Importance of giving up Lilotri (Green Vegetables, Fruits) on Ashtami, Chaturdashi etc. Parva Tithis

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By Jain Media 139 Views 14 Min Read
Highlights
  • शरीर Fit रहेगा तो मन की समाधि भी Fit रहती है और मन की समाधि रहेगी तो परलोक में यानी कि मृत्यु के समय समाधि होने से सद्गति की संभावना होती है.
  • हरी सब्जियों में राग ज्यादा होने से, आसक्ति ज्यादा होगी और सूखी सब्जी में राग कम होने से आसक्ति कम होगी.
  • जितनी आसक्ति ज्यादा उतना पाप कर्मों का बंध भी अधिक ही होता है.

आठम चौदस को हरी सब्जी का त्याग क्यों?

अष्टमी यानी आठम या चतुर्दशी यानी चौदस आती है तब अपने धार्मिक संस्कारों से भरे घर में हरी सब्जी यानी कि लिलोत्रि नहीं बनती है. आज की Generation के कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि अपने तीर्थंकर परमात्मा दयालु हैं या क्रूर? 

यदि अपने प्रभु करूणा के भंडार हैं तो वे अपने बच्चों को क्यों भूखा रखेंगे? भगवान प्रेम से भरे हैं तो इतनी Restrictions क्यों? Already अपने जैन धर्म में जमीकंद यानी आलू कांदा लहसुन गाजर आदि खाना Allowed नहीं है लेकिन हरी सब्जियां, फल आदि खाना तो Normally Allowed है. जो फल, हरी सब्जियां इत्यादि खाना Normally Allowed है, वह भी आठम – चौदस जैसी पर्व तिथियों को त्याग करने को कहा जाता है, तो ऐसा क्यों? 

ऐसे प्रश्नों का हम क्या उत्तर दे सकते हैं?

यह जानकारी परम पूज्य पंन्यास प्रवर श्री निर्मोहसुंदरविजयजी महाराज साहेब द्वारा लिखित धर्म प्रेमी संदेश मैगज़ीन से हमने प्राप्त की है. इस Confusion का Solution जानने के बाद जैन धर्म के Food Science को Salute करने का मन करेगा. बने रहिए इस Article के अंत तक.

Confusion

अपने यहाँ धार्मिक परिवारों में जब Logical Questions करने वाली नई पीढ़ी आ रही है, तब उनके Logical Questions के Logical Answers देने का प्रयास हमें करना चाहिए. अध्यात्मसार ग्रंथ में लिखा है कि जिन प्रश्नों के उत्तर तर्क (Logic) से देने होते हैं, वहाँ श्रद्धा से स्वीकार करने के लिए दबाव ना बनाया जाए और जिन प्रश्नों के उत्तर श्रद्धा से ही देना उचित हो, वहाँ तर्क ना लड़ाया जाए क्योंकि वहाँ पर तर्क की तलवार चलानेवाला भयंकर नुक़सान कर बैठता है. 

अभी प्रश्न है कि बाकी के दिनों में जो भक्ष्य सब्जियां है यानी खाने योग्य हरी सब्जियां जैसे भींडी, ककड़ी, लौकी इत्यादि एवं ऐपल केले आदि फल, वो पर्व तिथि यानी आठम – चौदस जैसे दिनों में बंद क्यों? साथ ही साथ नवपदजी ओली एवं पर्युषण जैसे दिनों में लगातार 8 – 9 दिनों के लिए पूरी तरह से त्याग क्यों?

तो आइए जानते हैं इस प्रश्न का मार्मिक उत्तर.

इस उत्तर के 2 Angle है. एक Scientific और दूसरा Spiritual. पहले Scientific Angle जानते हैं.

Scientific Angle

सूखी सब्जी खाने का एक बड़ा कारण हमारे शरीर का विज्ञान है. Health की दृष्टि से देखें तो हमारा शरीर 60-70% के करीब पानी से भरा हुआ है, यानी 2/3rd भाग पानी से भरा हुआ है. जब शरीर के तीन में से दो हिस्से पानी से भरे हो तो हर 3 दिन में से एक दिन कम पानी वाला भोजन करने में शरीर का लाभ है और लिलोत्री में पानी की मात्रा अधिक होती है, यह बात Calendar के साथ एकदम Fit बैठती है. 

बीज – पंचमी – आठम – ग्यारस – चौदस, ये 5 बड़ी तिथियाँ मानी जाती है. इस प्रकार हर 3 दिन में एक दिन पर्व तिथि से जुड़ा हुआ मिलता है. उन दिनों में हरी सब्जियाँ छोड़ देने से जल की मात्रा शरीर में कम जाती है. ये बात अलग है कि सामान्य तौर पर लोग 8 और 14 को हरि सब्ज़ी त्याग का नियम पालते हैं. 

मानव शरीर में जल की मात्रा संतुलित होना बहुत ही आवश्यक है. यदि वह असंतुलित हो जाए तो जल से उत्पन्न होनेवाले रोगों की संभावना बढ़ जाती है. चलो ये तो समझ आया लेकिन ओलीजी के दौरान तो पूरी तरह से बंद करने को कहते हैं ऐसा क्यों? ओली के दिन भी संधिकाल के दिन है. संधिकाल उसे कहते हैं जो दो ऋतु या वर्ष के मध्य में आता है. 

दो ऋतुओं के बीच वाला कालखंड शरीर के लिए बड़ा नाजुक जोखिम से भरा होता है. उन दिनों में तपश्चर्या करने से, हरी सब्जियां छोड़ देने से शरीर सहजता से स्वस्थ रह पाता है. जब Climate Change होता है तब बहुत लोग बीमार पड़ते हैं, ये तो हम सभी ने अनुभव किया ही होगा. 

ये Health के Angle से हुआ एक और बड़ा कारण क्योंकि शरीर Fit रहेगा तो मन की समाधि भी Fit रहती है और मन की समाधि रहेगी तो परलोक में यानी कि मृत्यु के समय समाधि होने से सद्गति की संभावना होती है. 

Scientific Angle के पीछे भी Intention तो Spiritual Upliftment का ही है. 

लेकिन जो आत्मा में ही नहीं मानते, परलोक को नहीं मानते, सद्गति दुर्गति को नहीं मानते उन्हें Spiritual Angle समझाना Waste of Time & Energy जैसा है. उन्हें आप Scientific Angle Health की दृष्टी से बता सकते हैं.

अब जानते हैं Spiritual Angle. ये थोड़ा Depth में समझना होगा!

Spiritual Angle

जो आत्मा को, राग द्वेष को, साधना को, आसक्ति को, समझते हैं ऐसे विवेकी व्यक्ति ही ये समझ पाएंगे. आठम – चौदस या ओली – पर्युषण के दिनों में हरी सब्जियों का त्याग जो करना होता है, उसका Actual कारण अब हम जानते हैं. 

आठम – चौदस या पर्व तिथियों के दिन हरी या सुखी सब्जी में रहे जीवों की संख्या नहीं देखी जाती क्योंकि संख्या में तो कभी – कभी सूखी सब्जी में ज्यादा जीव होते हैं. एक केले में एक भी बीज ना हो तो पक्के केले में एक भी जीव का हनन नहीं और मूंग के दाने – दाने में जीव होने से वहाँ अधिक संख्या में जीवों की हिंसा है. 

फिर भी सूखी सब्जियों को तपस्या या पर्व तिथि में खाने की जिनाज्ञा इसलिए है क्योंकि Taste की दृष्टी से देखें तो केले – आम और हरी सब्जियों का Taste ऊँचा माना गया है, बजाय सूखी सब्जियों की. हरी सब्जियों को खाने पर अधिक राग, अधिक आसक्ति पुष्ट होती है, अधिक Tasty लगती है. केले-आम इत्यादि फलों को खाने में आसक्ति भाव बढ़ते हैं और Simple Rule है जितनी आसक्ति ज्यादा उतना पाप कर्मों का बंध भी अधिक ही होता है. 

जिनशासन में बाह्य हिंसा से भी ज्यादा भावों की हिंसा को पाप माना गया है, बाह्य हिंसा से ज्यादा यानी द्रव्य हिंसा से ज्यादा भाव हिंसा पर भार दिया गया है. अधिक राग को अधिक पाप माना गया है. हमारे शुभ भाव घटने लगे अशुभ भाव बढ़ने लगे, हमारी आसक्ति बढे वह भी एक प्रकार की हिंसा ही है, पाप ही है. 

Universal Rule

हरी सब्जियों में राग ज्यादा होने से, आसक्ति ज्यादा होगी और सूखी सब्जी में राग कम होने से आसक्ति कम होगी, हमने अनुभव किया ही होगा. यह एक साधक के Level की बातें हैं, जो आसक्ति आदि की बात समझेगा इसलिए कोई अज्ञानी अथवा नादान व्यक्ति मजाक उडाए तो दुखी नहीं होना है.

इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सिद्धांत – आसक्ति में उत्पत्ति. 

हरी सब्जियों का आसक्ति पूर्वक सेवन करने से, उसी वनस्पति में हमारी उत्पत्ति की पूरी पूरी संभावना है. आज अनेकों प्रकार की बीमारियां भोजन में आसक्ति के कारण ही आ रही है, Taste के पीछे जो पागलपन है उसी के कारण पेट को रोज़ Penalty भरनी पड़ रही है और Long Run में आत्मा को Heavy Penalty भरनी पड़ सकती है. 

आसक्ति में उत्पत्ति – ये Universal नियम है और इसलिए हमें आसक्ति से बचाने के लिए ऐसे नियम प्रभु के शासन ने हमें दिए हैं. अगर Regular Intervals पर भोजन से दूर रखा जाए अथवा उस Particular Taste से दूर रखा जाए तो Addiction कम होता है, यानी राग कम होता है. 

जो राग हरि सब्ज़ियों में होता है, वो सामान्य तौर पर सूखी सब्ज़ियों में नहीं होता इस बात से तो सब सहमत होंगे. अर्थात् हरि सब्ज़ियों के राग से बचाने के लिए लिलोत्रि त्याग का नियम है. पर्व तिथि के दिनों में अगले जन्म के आयुष्य का भी बंध होता है, अब जो आत्मा में ही नहीं मानते उन्हें ये सब समझाना यानी अपनी Energy Waste करने जैसा है. जो समझदार हैं उन्हें बता दें जब अगले भव की Ticket करनी हो तब हमारा दिल का साफ, मन का पवित्र रहना आवश्यक है. 

पवित्र मन आसक्ति भाव से मुक्त होता है. 

हरी सब्जी – फल इत्यादि प्रतिदिन छोड़ने की ताकत सभी की नहीं होती है इसलिए प्रतिदिन उसका त्याग करने को नहीं बताया गया लेकिन यदि कोई प्रतिदिन आसक्ति को पोषण करनेवाले द्रव्यों का त्याग करता है, जो हर दिन करता है तो उसे बड़ा धर्मात्मा मानने में कोई हर्ज नहीं मानना चाहिए. जैसे प्रतिदिन आयंबिल करनेवाले. 

लेकिन एक बात Clear हो जाती है कि ये नियम Restriction नहीं बल्कि Protection है!

Prabhu Bhakti

एक Confusion यह भी है कि जब पर्व तिथियों में हरी सब्जियां, फल आदि का सेवन नहीं करने को कहा जाता है बावजूद इसके प्रभु के मंदिरों में Apple, केले या पपीता आदि फल चढ़ाए जाते हैं, यानी लिलोत्री तो चढ़ाई जाती है. 

कुछ Extraordinary Brains के दिमाग में प्रश्न उठा है कि हमें जो खाना नहीं है, वह प्रभु को क्यों चढ़ाना है? जो हमारे लिए बंद है, वह प्रभु के लिए क्यों खुला है? खाओ तो पाप और चढ़ाओं तो पुण्य ऐसे कैसे? भगवान ने बंद करने को कहा है तो ख़ुद के लिए बंद क्यों नहीं करवाया?

तो इसका उत्तर देते हुए गुरु भगवंत बताते हैं कि परमात्मा की भक्ति में फल चढ़ाने पर कोई पाप नहीं लगता है, क्योंकि उनकी भक्ति में फल चढ़ाने पर हमारी आसक्ति बढ़ती नहीं है, अपितु कम ही होती है. भक्षण करने से आसक्ति बढ़ती है लेकिन चढ़ाने से आसक्ति नहीं बढ़ती ये Common Sense है, उल्टा प्रभु के सामने अर्पण करने से आसक्ति कम होती है और पुण्य भी मिलता है. 

जिससे भी आसक्ति कम हो, वो मोक्षमार्ग का परम मित्र है. 
जिससे भी आसक्ति बढ़ती रहे, वो मोक्षमार्ग का परम दुश्मन है. 
फलों का भोग आसक्ति बढ़ाता है, 
फलों के अर्पण से प्रभु भक्ति आसक्ति घटाती है. 

इसे और एक उदाहरण के साथ समझते हैं ! 

यदि घर पर श्राविका को एकाशना है तो क्या इसका अर्थ यह होता है कि परिवार के सभी सदस्यों के लिए वो सिर्फ एक ही बार भोजन बनाएगी? हम कहेंगे ये तो कोई Sense नहीं बनता. बस इसी तरह हमारे द्वारा भक्षण करना अलग विषय है और प्रभु भक्ति करना अलग विषय है! हमारा उपवास हो तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि हम गाय को रोटी नहीं दे सकते अथवा कबूतर को दाना नहीं दे सकते अथवा गरीबों को भोजन नहीं दे सकते. ये तो Common Sense है! दोनों अलग विषय है, कोई लेना देना नहीं है. 

इसलिए 8-14 आदि पर्कोव तिथियों के दिन मंदिर में परमात्मा के समक्ष फल अर्पण कर सकते हैं.
अब धर्म के स्तर को समझना होगा.

1. मांसाहार, शाकाहार में से शाकाहार को ही चुनना धर्म है. मांसाहार को चुनना अधर्म.

2. हरी सब्जी और जमीकंद में से भक्ष्य हरी सब्जी को ही चुनना उचित है, जमीकंद चुनना अनुचित, पापमय है.

3. हरी सब्जी और सूखी सब्जी में से यदि पसंद करना हो तो सूखी सब्जी को चुनना तपश्चर्या है. 

हरी सब्जी खाते रहना आसक्ति बढ़ानेवाला कदम है, अतः सावधानी रखनी जरूरी है. जैसे जैसे साधक का स्तर बढेगा वैसे वैसे उसकी साधना बढ़ेगी. तो आज हमने जाना कि बड़ी तिथियों पर लिलोत्रि का त्याग क्यों किया जाता है. 

इन्द्रियों को जीतने की यह साधना है. 
जीभ की गुलामी से मुक्त होने की यह साधना है. 
सद्गति पाने की यह साधना है. 

जैन धर्म अनेकांतवाद से चलता है. माताओं से, बहनों से निवेदन है, हो सकता है आपको ये सारे सिद्धांत समझ में आ गए लेकिन घर का माहौल बिगाड़कर घरवालों पर नियम थोपना उचित नहीं होगा. प्रेमपूर्वक घरवाले माने तो उचित बाकी घर में क्लेश करके थोपना उचित नहीं माना जाएगा. बाकी जो भी व्यक्ति अच्छे से यह साधना करते हो उनकी अनुमोदना लेकिन Health के कारणों से कभी कोई अपवाद लेना ही पड़े तो गीतार्थ गुरु भगवंतों का संपर्क कर सकते हैं.

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