Suno Shantijinand – Shantinath Bhagwant Stavan | Pracheen Jain Stavan |

"सुणो शांतिजिणंद ! सोभागी.." - प्राचीन जैन स्तवन

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16वे तीर्थंकर, हस्तिनापुर मंडन श्री शांतिनाथ भगवान का मनमोहक स्तवन 
“सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…”

सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी… (x2)
तुमे निरागी भगवंत, जोतां किम मलशे तंत..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…

हुं तो क्रोध कषायनो भरीयो, तुं तो उपशम रसनो दरियो,
हुं तो अज्ञाने आवरीयो, तुं तो केवल कमला वरियो..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (1)

हुं तो विषया रसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी,
हुं तो कर्मना भारे भरियो, तें तो प्रभुजी भार उतार्यो..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (2)

हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..
हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..

हुं तो मोहतणे वश पड़ीओ, तें तो सघला मोहने हणियो,
हुं तो भवसमुद्रमां खूंच्यो, तुं तो शिवमंदिरमां पहोंच्यो..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (3)

मारे जन्म-मरणनो जोरो, तें तो तोड्यो तेहनो दोरो,
मारो पासो न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वीतराग..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (4)

मने मायाए मूक्यो पाशी, तुं तो निर्बंधन अविनाशी,
हुं तो समकितथी अधूरो, तुं तो सकल पदारथे पूरो..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (5)

हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..
हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..

मारे तो तुं हि प्रभु एक, तारे मुज सरीखा अनेक,
हुं तो मनथी न मूकुं मान, तुं तो मानरहित भगवान..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (6)

मारूं कीधुं कशुं नवि थाय, तुं तो रंकने करे छे राय,
एक करो मुज महेरबानी, मारो मुजरो लेजो मानी..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (7)

एक वार जो नजरे नीरखो, तो करो मुजने तुम सरीखो,
जो सेवक तुम सरीखो थाशे, तो गुण तमारा गाशे..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (8)

हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..
हे सुणो रे.. सुणो रे.. सुणो रे सुणो..

भवोभव तुम चरणोनी सेवा (x2),
भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगु छुं देवाधिदेवा,
सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी ‘उदयरत्न’नी वाणी..
सुणो शांतिजिणंद! सोभागी, हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…   (9)

हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…
हुं तो थयो छुं तुम गुणरागी…

लेखक : परम पूज्य उदयरत्नजी महारज साहेब
गायिका : फोरम प्रशम शाह 

इस स्तवन का अर्थ समझने के लिए यह Video देख सकते हैं 👇

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