प्रभु वीर केवलज्ञान कल्याणक और शासन स्थापना दिवस का अद्भुत स्तवन
“वीर जिणंद जगत उपकारी”
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (x2)
देशना अमृतधारा वरसी (x2), पर परिणति सवि वारीजी…
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी..
पांचमे आरे जेहनुं शासन, दोय हजार ने चारजी,
युगप्रधान सूरीश्वर वहशे, सुविहित मुनि आधारजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (1)
उत्तम आचारज मुनि अज्जा, श्रावक श्राविका अच्छजी,
लवण जलधि मांहि मीठुं जल, पीवे शृंगी मच्छजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (2)
दश अच्छेरे दूषित भरते, बहु मतभेद करालजी,
जिन केवलि पूरवधर विरहे, फणिसम पंचम कालजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (3)
तेहनुं झेर निवारण मणिसम, तुज आगम तुज बिंबजी,
निशि दीपक प्रवहण जिम दरिये, मरूमां सुरतरु लुंबजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (4)
जैनागम वक्ता ने श्रोता, स्याद्वाद शुचि बोधजी,
कलिकाले पण प्रभु! तुज शासन, वर्ते छे अविरोधजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (5)
माहरे तो सुषमाथी दुषमा, अवसर पुण्य निधानजी,
क्षमाविजय जिन वीर सदागम, पाम्यो सिद्धि निदानजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी.. (6)
देशना अमृतधारा वरसी (x2), पर परिणति सवि वारीजी…
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी..
वीरजिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी..
लेखक : परम पूज्य कविराज श्री क्षमाविजयजी महाराज साहेब
गायिका : फोरम प्रशम शाह
इस स्तवन का अर्थ समझने के लिए यह Video देख सकते हैं.