हर आत्मा में कई गुण यानी Qualities भरी हुई होती हैं लेकिन अपने अंदर छुपी हुई उन Qualities को पहचानने की जरुरत होती है. कई ज्ञानी लोग अपनी Qualities को पहचानकर अपने Ultimate Goal को पाने में सफल होते हैं और कई लोग अपनी Qualities के परदे को नहीं उठा पाते और फिर Qualities को Develop करने के लिए ऐसे Inspiration या Idol की तलाश करते हैं जो उनकी इस कार्य में मदद कर सके और जिसमें सभी योग्य Qualities हो. लेकिन हमें तो Idol की तलाश करने की जरुरत ही नहीं है क्योंकि हमारे लिए इस विषय में अगर कोई सबसे बड़े Idol हैं तो वो हैं 24वे तीर्थंकर, शासनपति श्री महावीर स्वामी भगवान.
ऐसे तो भगवान महावीर स्वामी का जीवन अनंत गुणों से भरा हुआ है, पूरा जन्म जानने के लिए कम पड़ जाए लेकिन आइए आज हम इस Article के माध्यम से भगवान महावीर के जीवन से जुडी 10 ऐसी अद्भुत Qualities जो अगर हम भी अपना लें तो शायद हम भी अपने Ultimate Goal को पाने में सफल हो सके.
Never Judge
प्रभु महावीर के 27 भव हुए थे. 18वे भव में प्रभु त्रिपुष्ठ वासुदेव बने थे और उस भव में एक बार उन्होंने शैय्यापालक यानी Bed Keeper की छोटी सी भूल से गुस्से में आकर उसके कानों में गरम गरम सीसे का रस डलवा दिया था जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई थी और उस भयानक कर्म के फल स्वरुप प्रभु महावीर के अंतिम जन्म में यानी तीर्थंकर वाले भव में उनके कान में किले ठोके गए थे. इतना भयानक पाप करनेवाली आत्मा भी आगे जाकर तीर्थंकर बन सकती है. कौनसी आत्मा क्या Potential लेकर बैठी है हमें नहीं पता इसलिए ‘Never Judge’.
Serve Parents
माता-पिता को दुःख नहीं देना.
परमात्मा महावीर जब अपनी माता के गर्भ में थे तब उनके हिलने-डुलने से माता को तकलीफ ना हो इस कारण से उन्होंने गर्भ में Movement करना ही बंद कर दिया था ताकि उनकी माता को कष्ट ना हो. अधिकतर Parents की यह Complaint होती है कि उनके बच्चे उनकी सुनते नहीं है, उल्टा जवाब देते हैं आदि. बच्चों को और बड़ों को भी विशेष यहाँ पर समझने जैसा है कि एक तीर्थंकर के ह्रदय में भी माता-पिता के लिए क्या Level का सेवा भाव होता है.
Showcasing Power Without Ego
प्रभु महावीर के जन्म के बाद जब इंद्र महाराजा प्रभु का जन्माभिषेक करने उन्हें मेरु पर्वत पर लेकर गए थे तब इंद्र को यह शंका हुई थी कि क्या प्रभु की इतनी छोटी काया इतने कलशों की अभिषेक धारा को कैसे सहन कर पाएगी? तब प्रभु ने बिना किसी अहंकार के सिर्फ इंद्र महाराजा के Doubt को Clear करने के लिए अपनी शक्ति का अहसास कराते हुए सिर्फ अंगूठा से मेरु पर्वत पर स्पर्श किया था जिससे पूरा मेरु पर्वत हिल गया था. परमात्मा के पास तो अनंत शक्ति थी लेकिन उन्हें यह पता था कि कहाँ शक्ति दिखानी और कहाँ सहनशक्ति दिखानी. ज़रूरत पड़ने पर शक्ति का प्रदर्शन भी आवश्यक है लेकिन बिना अहंकार के.
Non Possessiveness (Detachment Feeling)
प्रभु महावीर की दीक्षा के समय इंद्र महाराजा ने प्रभु के कंधे पर देवदुष्य यानी एक दिव्य वस्त्र रखा था. उसके बाद प्रभु ने जंगल की तरफ विहार किया. उस समय सोम नामक एक व्यक्ति ने प्रभु के पास दान की याचना की और प्रभु ने अपने पास रही आखरी वस्तु यानी देवदुष्य का आधा भाग उस व्यक्ति को दान में दे दिया. आगे जाकर विहार करते समय देवदुष्य का आधा भाग भी काँटों में फस गया और निकल गया. इससे यह पता चलता है कि प्रभु महावीर के लिए किसी भी वस्तु की कोई Importance नहीं थी. उनके लिए सिर्फ अपनी आत्मा Important थी. हम तो मेरा, म्हारु करते रहते हैं, लेकिन प्रभु इन सबसे ऊपर उठ चुके थे. वो हमें संदेश दे गए सुख भोग में नहीं बल्कि त्याग में हैं.
Recognizing Our Real Nature
हर आत्मा का Real स्वभाव यानी Nature शांत वाला होता है. क्रोध, मान, माया ये सब हम कुछ देर तक ही कर सकते हैं लेकिन उसके बाद हमें अपने Real Nature में आना ही पड़ता है. जैसे हम कितनी ही Peaceful Places देखने के लिए Trip पर जाते हैं फिर भी हमें शांति घर पार आकर ही मिलती है, वैसे ही हमें Inner Peace हमारे Real Nature यानी Neutral Nature, शांत Nature में ही मिलती है.
एक बार चंडकौशिक नामक भयानक सांप ने प्रभु महावीर को डंसा था लेकिन प्रभु ने उस Situation में भी Badly React नहीं किया, उसे मारा नहीं, बुरा भला नहीं कहा और वे अपने Real Nature से हिले नहीं, एकदम शांत रहे. इतना ही नहीं, प्रभु ने चंडकौशिक नाग को शांत किया और तो और उसे प्रतिबोध कर दिया जिससे वह सद्गति को प्राप्त हुआ. प्रभु ने अपना Nature नहीं छोड़ा तो चंडकौशिक को अपना Fake Nature छोड़ना पड़ा.
Stay Away From Ego
प्रभु वीर को साढ़े 12 साल की कठिन साधना के बाद वैशाख सुदि 10 के दिन केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी और उसी दिन उन्होंने तीर्थ की स्थापना करने के लिए देशना दी थी लेकिन उनकी देशना में कोई व्यक्ति नहीं आया था और प्रभु की वो देशना एक एंगल से निष्फल गई थी.
सोचने जैसा है कि अगर हम किसी के घर जाएं और वह व्यक्ति 2-3 मिनट दरवाजा ना खोले तो हमारा Ego कितना Hurt हो सकता है, छोटी छोटी बात पर वैर की गाँठ हम बाँध लेते हैं लेकिन प्रभु महावीर ने अपने Ego को ख़त्म करके हम सभी के कल्याण के लिए अगले दिन यानी वैशाख सुदि 11 के दिन तीर्थ की स्थापना की. उन्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं थी लेकिन उन्होंने यह सब हमारे लिए किया ताकि हमें जिनशासन की प्राप्ति हो.
Patience & Answer the Questions
वैशाख सुदि 11 के दिन जब प्रभु का समवसरण रचा था तब इंद्रभूति गौतम यानी गौतम स्वामीजी प्रभु के समवसरण में बहुत अहंकार एवं अविवेक से आए थे लेकिन प्रभु महावीर ने बहुत प्रेम और वात्सल्य के साथ इंद्रभूति से बात की और बहुत ही विवेक और Patience के साथ इंद्रभूति के मन में रहे Doubt को Solve किया. हमारे पास भी जब कोई व्यक्ति गुस्से से या अविवेक से आता है तो उस समय हमें विवेक और Patience रखने की जरुरत होती है जिससे Situation संभल जाए और Conditions Worse ना हो.
साथ ही Parents के लिए यहाँ पर संदेश हैं.
कहते हैं गौतम स्वामीजी ने प्रभु महावीर को 36000 प्रश्न पूछे थे. केवलज्ञान के बाद लगभग 30 वर्ष में 36000 प्रश्न. Average देखें तो लगभरग हर महीने के 100 प्रश्न. बच्चे यदि 4 सवाल पूछें तो माता-पिता Frustrate हो जाते हैं और कह देते हैं जा भाई माताफोड़ी मत करो. जाओ इधर से. और भगा देते हैं. प्रभु महावीर केवलज्ञानी थे, गौतम स्वामी भी अत्यंत ज्ञानी थे, वे अगर ज्ञान का उपयोग करते तो सबके उत्तर मिल जाते लेकिन प्रभु ने गौतम स्वामी को कभी ये नहीं कहा कि अपने ज्ञान के उपयोग से अपने प्रश्नों के उत्तर जान लो. 100-200 नहीं 36000 प्रश्नों के उत्तर वो भी बिना Frustration के.
यदि माता पिता चाहते हैं कि बच्चे समर्पित रहे तो प्रश्नों के उत्तर देने होंगे, अगर नहीं पता है तो एक दिन का समय लेकर Research करके भी उत्तर देने तो पड़ेंगे ही. खासकर बच्चों के सवालों का जवाब बहुत Patience और Authenticity के साथ देना चाहिए. क्या पता हमारा एक जवाब किसी के जीवन में Positive Change का कारण बन जाए.
No One Is Boss In The World
अधिकतर व्यक्ति जब किसी ऊँचे Post पर होते हैं तो उनके मन में यह Insecurity रहती है कि मेरी Post पर कोई व्यक्ति ना आ जाए, मेरी Post हाथ से चले ना जाए और इस कारण वह अन्य व्यक्तियों के Progress से डरता है लेकिन प्रभु महावीर ने कभी ऐसा नहीं सोचा, उन्होंने तो अपने शासन के हर जीव को आत्मा से परमात्मा बनने का, खुद के जैसे तीर्थंकर बनने का रास्ता दिखाया और उनके शासन में रही श्रेणिक महाराजा आदि 9 आत्माओं को तीर्थंकर का Post दिलवा दिया, कितनी निस्पृहता.
इसलिए हमारे अंदर यह Feeling बहुत जरुरी है कि No One Is Supreme or Boss In This World, Everyone Is Boss In Their Own Way. Company में Boss कभी ये नहीं चाहेगा कि Employee उसी Company का Boss बने लेकिन प्रभु ने सवी जीव करू शासन रसी की भावना से हमेशा यही चाहा कि हर आत्मा उनके जैसे कर्मों का क्षय कर मोक्ष जाए. ऐसे हैं हमारे प्रभु महावीर.
Forgiveness
हम कई बार गुस्से में आकर छोटी छोटी बातों को भी पकड़कर बैठ जाते हैं. माफ़ी तो दूर, उन बातों को भुला भी नहीं पाते हैं लेकिन प्रभु का क्षमा भाव कैसा? केवलज्ञान होने के बाद एक बार प्रभु महावीर के ही शिष्य गोशालक ने प्रभु पर तेजोलेश्या फेंककर भयंकर उपसर्ग किया. केवलज्ञान हो चुका थे, मोक्ष Fix था. प्रभु चाहते तो अपनी अनंत शक्ति से गोशालक को उसी समय ख़त्म कर सकते थे या उसे भयानक सजा भी दे सकते थे लेकिन प्रभु महावीर तो क्षमा के सागर हैं. कोई CM PM नहीं बल्कि तीर्थंकर के सामने उसने ऐसा कार्य किया था लेकिन उन्होंने गोशालक को माफ़ कर दिया और उसे भी प्रतिबोध देने का प्रयास भी किया. ऐसे हैं हमारे तीन लोक के नाथ प्रभु महावीर. खुद पर आग छोड़नेवाले को भी क्षमा कर दिया.
Thinking About Every Living Being
केवलज्ञान होने के बाद प्रभु महावीर 1 दिन में 2 प्रहर यानी 6 Hours तक देशना देते थे लेकिन अपने निर्वाण से पहले, यानी अंतिम क्षणों में देह का त्याग करने से पहले यानी मोक्ष में जाने से पहले प्रभु ने Continuously 16 प्रहर तक यानी 48 Hours तक Non Stop देशना दी थी, जो आज श्री उत्तराध्ययन सूत्र नामक आगम ग्रन्थ में मौजूद है. लेकिन प्रभु ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि प्रभु महावीर के ह्रदय में विश्व कल्याण की भावना, सभी जीवों का उद्धार हो यह परोपकार की भावना बहुत प्रबल थी. आज की हकीकत ऐसी है कि हम सब अपना अपना खुद खुद का सोच रहे हैं, या फिर ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार का तब ऐसे समय में प्रभु का यह गुण बहुत ज्यादा Important बन जाता है.
ऐसे तो अनंत गुणों से प्रभु का जीवन भरा हुआ था लेकिन ये कुछ ऐसे गुण हैं जो अगर
श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी की जय हो 🙏🏻🙏🏻❤️