क्या मंदिर सिर्फ “Perfect लोगों” के लिए है? | From Devotion To Disconnection : The Harsh Reality !

क्यों एक युवा ने प्रभु पूजा बंद कर दी थी?

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Highlights
  • धर्म ठेके से नहीं, प्रेम से चलता है.
  • हमारे छोटे छोटे व्यवहार से कोई व्यक्ति हमेशा के लिए धर्म से जुड़ भी सकता है और टूट भी सकता है.
  • किसी की गलती के कारण धर्म को Blame करना या एक वर्ग के कारण मंदिर में आनेवाले सभी लोगों को Generalise करके बुरा समझना, धर्म को बुरा समझना, यह बिलकुल भी सही नहीं है.

आज परमात्मा के मंदिर तो बनते जा रहे हैं लेकिन परमात्मा के भक्त कम होते जा रहे हैं. 

एक बार एक गुरु भगवंत और एक जैन युवा का मिलना हुआ. बातों बातों में महात्मा ने पूछ लिया कि ‘आप परमात्मा की पूजा करते हो?’ उसने कहा कि ‘मैं तो मंदिर भी नहीं जाता हूँ.’ गुरु भगवंत ने पूछा कि ‘आपके घर से तो मंदिर इतना करीब है, फिर भी नहीं जाते? क्यों?’ 

उसने कहा कि ‘पहले जाता था अब बंद कर दिया.’ महात्मा ने कारण पूछा तो उसने Detail में कहा कि 

साहेबजी एक बार गया था, पूजा कर रहा था तब मुझसे कुछ गलती हो गई थी तो वहां पर एक व्यक्ति ने मुझे इतना डांटा, इतना वह मुझपर चिल्लाएं कि उसके बाद मैंने जाना ही बंद कर दिया. 

आज हम इस छोटी सी घटना में क्या गड़बड़ी हुई उसको अलग अलग Angles से समझने का प्रयास करेंगे. 

साथ ही इस युवा ने मंदिर में जाना बंद कर दिया तो सही किया या गलत किया वह हम इस प्रस्तुति के अंत में जानेंगे ताकि ऐसे युवाओं की भी आँखें खुले. बने रहिए इस Article के अंत तक.

2 वर्ग

आज जिनालयों में सुबह-सुबह में पूजा भक्ति करनेवाला एक वर्ग Fix होता है, जो कि बहुत अच्छी बात है, अनुमोदनीय है. यह वर्ग को जितना धन्यवाद दिया जाए उतना कम है क्योंकि इतनी सुबह में आना, वो भी रोज़ आना. 

नींद का त्याग करना पड़ता है, आलस का त्याग करना पड़ता है, बहुत बड़ी बात है, छोटी बात नहीं है और इस वर्ग के कारण जिनालय की बहुत अच्छे से देखरेख हो जाती है. 

यह वर्ग दो प्रकार के होते हैं. एक होते हैं उदार और एक होते हैं ठेकेदार. 

धर्म के स्थान पर, मान लो जिनालय में कोई नया व्यक्ति आया हो, मान लो उसकी Exams पूरी हुई है, माँ ने बहुत Force करके बड़ी मुश्किल से पूजा करने के लिए भेजा है. ऐसे में इस नए युवान के साथ कैसे Deal करना चाहिए यह बहुत ही Important विषय है.

उदार वर्ग क्या करेगा? 

उदार वर्ग को बहुत ख़ुशी होगी कि “वाह, आज जिनालय में हमारे शासन का भविष्य आया है, वाह.” इस तरह से अगर युवान आने लग जाए तो धर्म अगली अगली पीढ़ी तक बहुत Easily पहुंचेगा. 

उदार वर्ग बहुत खुश होगा और शायद Smile के साथ स्वागत करेंगे, उसको Guide भी करेंगे. इससे उस युवा को लगेगा कि ‘मैं अनजान लोगों के बीच नहीं अपने ही लोगों के बीच ही आया हूँ.’

लेकिन समस्या तब आती है जब युवान का ठेकेदार वर्ग से सामना हो. यह शब्द का प्रयोग करने के लिए क्षमा चाहते हैं लेकिन बहुत गंभीरता से समझना होगा. ठेकेदार यानी वह वर्ग जो यह समझता है कि पूरा मंदिर उन्हीं का है. 

पहली पूजा से लेकर सब कुछ पर उनका अधिकार हो जाता है और सब उनके हिसाब से ही चलना चाहिए और थोडा भी इधर उधर कुछ हो जाए तो उनका चेहरा लाल हो जाता है. यह हो गया ठेकेदार वर्ग. 

यह वर्ग भी काफी Time से हर रोज़ सुबह जिनालय आता होगा, सब कुछ करते होंगे, उद्देश्य (Intention) भी अच्छा होगा लेकिन करते करते धीरे धीरे खुद को मालिक समझ लेते हैं. 

Problem यहाँ से Start होती है. 

जब हम किसी चीज़ के मालिक बन जाते हैं तब वह चीज़ को Share करने में बहुत दिक्कत होती है. अब जिनालय में तो हमें सेवक बनकर जाना था, मालिक Already वहां पर बैठे हैं, वहां पर अगर हम मालिक बनकर जाएंगे तो क्या फायदा? 

अब कोई नया युवान आए तो स्वाभाविक है कि इस ठेकेदार वर्ग का शायद Ego Hurt हो जाता है, उन्हें अच्छा नहीं लगेगा. वह युवा पूरा Ignored Feel करेगा.

व्यवहार में अंतर 

उदार वर्ग वह बहुत होशियार होगा वह सोचेगा कि ‘बहुत मुश्किल से तो युवा आते हैं चलो आज पहली पूजा इस युवा के हाथों से ही करवाते हैं.’ उसी युवा से कहेंगे कि ‘पहला पुष्प आप चढाओं, हम तो रोज़ प्रभु भक्ति करते ही है. आज आप करो.’

इस तरह से उसे Special Treatment देते हैं, उसे प्रेम देते हैं और वह जब पूजा करके रवाना हो रहा हो तब मस्ती से कहेंगे कि ‘अनुकूलता हो तो रोज़ आना, आपको बहुत आनंद आएगा, आपके हाथों से पहली पूजा करवाएंगे और कोई भी चीज़ की Tension मत लेना. कुछ नहीं आता हो तो पूछ लेना हम समझा देंगे.’

अब ठेकेदार वर्ग इधर थोड़ी गलती कर बैठता है. सब पूजा में सबसे Last वह युवा खड़ा होगा तो उसे आगे नहीं बुलाएँगे. चलो कोई बात नहीं लेकिन मान लो उसे System पता ना हो और वो गलती से थोड़ी Line Cross कर ले या आगे आ जाए तो गंभारे में ही फटकार लगा देंगे कि “पता नहीं चलता क्या Line है, पीछे जाओ. आ जाते हैं.”

आज पहले जैसा ज़माना नहीं है, आज ज़माना आत्म सम्मान का है, Respect का है. सबके सामने उस युवान को डांट पड़ते ही वह सोचता है कि ‘अच्छा धर्म ऐसा होता है. कमाल के लोग है.’ 

गलती का सुधार 

अब मान लो इस नए युवा से पूजा करने में कोई गलती हो गई. किधर से, कैसे तिलक करना था, कैसे प्रक्षाल करना था, उसे नहीं पता था तो उसने अपने हिसाब से कर दिया. अब क्या करना?

उदार वर्ग बहुत होशियारी से उसे प्रेम से समझाएगा. कैसे?

पहले तो यह कि जिनालय में ज्यादा लोग है तो सभी के सामने नहीं बल्कि ऐसा कहेंगे कि ‘भाई, एक मिनट एक काम है इधर आना ज़रा.’ और फिर Side में जहाँ कहीं पर भी छोटे या पंचधातु के भगवान हो वहां लेकर जाएंगे और प्रेम से समझाएंगे कि 

पुण्यशाली, आप तो जोरदार हो आज के इस भागदौड़ वाली दुनिया में समय निकालकर पूजा करने आए हो, बहुत ख़ुशी हुई, बहुत बड़ी बात है. आप बहुत अच्छे से परमात्मा की भक्ति कर रहे हो लेकिन इसमें एक दो जगह पर थोड़े Corrections कर देंगे ना तो आपकी पूजा Perfect हो जाएगी. 

और फिर वह युवा को किस तरह से पूजा करनी वह सिखाएंगे और फिर उसकी पूजा की थाली में 2-3 पुष्प रख देंगे कि ‘हम तो रोज़ चढाते हैं आज आप चढाओं, बहुत आनंद आएगा.’ 

अब सोचिए उसको पूजा करने में कितना मज़ा आएगा. उसको भी लगेगा कि ‘सभी के सामने मेरी गलती नहीं बताई, Side में ले जाकर समझाया, कितना ज़बरदस्त धर्म को समझा है इन्होंने. क्या मस्त है अपना जैन धर्म.’

ठेकेदार वर्ग क्या करेगा?

युवा से गलती होने पर उसी समय जोर से चिल्लाएंगे कि ‘ए, ये क्या कर रहा है? पूजा नहीं आती क्या? ऐसे थोड़ी पूजा की जाती है.’ यह वर्ग का उद्देश्य भले अच्छा हो लेकिन तरीका गलत है. 

उस युवा ने तो फिर भी अविधि की है लेकिन इस वर्ग ने तो क्रोध करके, चिल्लाकर उसका मन दुखाया. परमात्मा की आज्ञा का यह भंग नहीं है क्या? अविधि में ज्यादा पाप या क्रोध में, अविधि में ज्यादा पाप या किसी का मन दुखाने में? वह कहने की ज़रूरत नहीं है. 

किसी का मन दुखाना, वह अविधि नहीं है क्या? अब वह युवा सोचता है कि ‘सभी के सामने मेरी बेइज्जती कर दी.’ अंदर से लाल लाल हो जाता है और सोचता है कि ‘मैंने तो इधर आकर गलती कर दी. आज के बाद वापस कभी नहीं आऊंगा, कभी पैर भी नहीं रखूँगा.

आना भी पड़ा तो तब ही आऊंगा जब कोई नहीं रहेगा. कमाल के लोग है ये, इतना धर्म करते हैं. इतनी पूजा करते हैं लेकिन Softness नाम की चीज़ ही नहीं है. क्या ये अपना धर्म है.’ 

फिर यह युवा चुपचाप जैसे तैसे शर्मिंदा होकर पूजा करके मुंह चढ़ाकर निकल जाता है और हमेशा हमेशा के लिए धर्म से दूर हो जाता है और इसका पाप उस ठेकेदार वर्ग को लगता है जिसके कारण वह युवा धर्म से, परमात्मा से दूर हुआ. 

हमारे छोटे छोटे व्यवहार से कोई व्यक्ति हमेशा के लिए धर्म से जुड़ भी सकता है और टूट भी सकता है. हमारे कडवे शब्दों से एक व्यक्ति का धर्म पर से विश्वास भी उठ सकता है. इसलिए धर्म के स्थान पर तो ख़ास बहुत ध्यान रखना होता है. 

यहाँ पर भले हमने उदाहरण के तौर पर जिनालय की बात की, लेकिन यही बात उपाश्रय, स्वामीवात्सल्य आदि स्थानों पर भी लागू होगी.

आज भी अनेकों जिनालयों में ऐसी सुंदर व्यवस्थाएं होती है कि जब कभी कोई बच्चे पूजा करने आते हैं तो सबसे पहले उन्हें पूजा करने देते हैं. वहां पर जितने भी बड़े लोग Line में खड़े हो वे भी चुपचाप उन बच्चों को आगे जाने देते हैं. 

कारण Simple है-Office की Timings तो थोड़ी Late ही होती है लेकिन School की Timings बहुत Early होती है. 

तो ऐसे में यह उदार वर्ग समझता है कि ‘8 या 8.30 School हो फिर भी ये लोग 6 बजे उठकर पूजा करने आए हैं बहुत बड़ी बात है. इसलिए पहले इनको पूजा करने देते हैं, हमें 5-10 मिनट Late होगा तो भी चलेगा. इनको Late हुआ तो इनकी पूजा बंद हो जाएगी.’ 

फिर बच्चे ख़ुशी ख़ुशी पूजा करने रोज़ आते हैं. ये ही बच्चे शासन का भविष्य बनते हैं. आज पूजा में जुड़े हैं, फिर पाठशाला से जुड़ेंगे, व्याख्यान से जुड़ेंगे धीरे धीरे धर्म से जुड़ेंगे. 

Benefit or Loss?

अब हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि किसी के द्वारा डांटे जाने से मंदिर नहीं जाने का जो उस युवा ने फैसला लिया क्या वह सही किया या गलत? कोई डांट दे तो हमेशा के लिए वह स्थान छोड़ देना यह समझदारी नहीं लगती. 

ठंडे दिमाग से सोचना होगा. 

कोई व्यक्ति कहीं कोई Movie देखने Theatre में जाए वहां पर कर्मचारी ने भीड़ होने से मान लो थोड़ी आनाकानी कर दी तब क्या हमेशा के लिए वह व्यक्ति Theatre जाना छोड़ देता है? Movie देखना भी छोड़ देता है? नहीं Right?

वह युवा सोचेगा कि ‘ठीक है ना, व्यवस्था के लिए ये सब कर्मचारी को करना पड़ा होगा. हम तो Movie देखने आए हैं, Mood क्यों बिगाड़ना.’ मान लो आनाकानी ज्यादा हुई हो तो हो सकता है वह युवा ऐसा फैसला ले ले कि ‘अब से इस Theatre में पैर नहीं रखूँगा.’ 

लेकिन फिर भी वह Movie देखना नहीं छोड़ता. वो कोई दूसरा Theatre ढूंढेगा वहां पर जाकर Movie देखेगा. भौतिक क्षेत्र के लिए हर जगह पर यही देखने को मिलता है. कभी ना कभी Experience किया होगा, याद कीजिएगा.

मान लो कोई बहन सब्जी खरीदने गई वहां पर सब्जीमंडी में एक सब्ज़ीवाले ने ज्यादा भाव बोले, बहन ने Bargaining की, उस सब्जीवाले को गुस्सा आया तो उसने डांट दिया. 

कुछ माता-बहनों को तो ये डांट सुनने की बहुत आदत हो जाती है क्योंकि उन्हें पता है कि ‘अपने को सब्जीवाले से कोई लेना देना नहीं है. इसकी सब्जी Fresh है तो यहाँ से ले जाएंगे तो सबकी सेहत अच्छी रहेगी.’ 

मान लो उधर से ना भी ले तो दूसरे सब्ज़ीवाले से Bargaining करके खरीदेंगे लेकिन डांट पड़ने पर भी वह ऐसा नहीं सोचेगी कि “आज से सब्जी बंद.” अगर वो बंद कर दें तो हम ही बोलेंगे कि ‘सब्जीवाले के कारण सब्जी बंद-ये क्या Logic हुआ?’

इसी तरह से किसी ने मंदिर में डांट दिया तो मंदिर जाना बंद नहीं करना होता है, परमात्मा की पूजा बंद नहीं करनी होती है. ये तो खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो गया. 

किसी ने डांट दिया तो कोई बात नहीं हम तो परमात्मा से मिलने गए थे, उनके दर्शन करने आए थे, परमात्मा की पूजा करने आए थे. Right? बाकी कुछ हो उससे हमें क्या लेना देना. 

और मान लो कुछ Extreme हो गया हो तो हो सकता है वह युवा दूसरे मंदिर चले जाएगा, अगर दूसरा मंदिर ना हो तो फिर Timings Change कर देगा, लेकिन पूजा बंद करना ये Logical नहीं है, विवेकी व्यक्ति कभी भी इस कारण से पूजा बंद नहीं करेगा. 

पूजा बंद करने से नुकसान किसका होगा? चलिए सोचते हैं.

ना तो परमात्मा का. ना तो जिनालय का. जिसने डांटा उसे कर्म के एंगल से शायद नुकसान होगा लेकिन उसकी तो पूजा बंद नहीं होगी. Right? वह तो रोज़ पूजा करने पहले भी आता था आगे भी आएगा. 

नुकसान तो उस युवा को हुआ ना जिसने पूजा बंद की.

किसी ने रास्ते पर चलते वक्त पत्थर फेंका तो क्या हम चलना छोड़ देते हैं? नहीं Right?

धर्म के स्थानों पर जब किसी से कोई गलती होती है तब लोग उस गलती को Judge करके ठीकरा फोड़ते हैं धर्म पर Problem यह है कि “धत्त कैसा धर्म है. मुझे तो ऐसा धर्म बिलकुल नहीं जमता. मैं तो इसे धर्म ही नहीं मानता. ऐसा धर्म होता है तो भाई मैं तो इस धर्म से बाहर हूँ.”

अरे भाई धर्म के स्थान पर उस व्यक्ति ने गलती की है इसमें धर्म की क्या गलती? हाँ, अगर धर्म या धर्म के शास्त्र ऐसा कहे कि “कोई नया व्यक्ति आए उसने अविधि की तो उसके साथ बुरी तरह से व्यवहार करना, उसे डांटना, फटकार लगानी” 

तब तो उस धर्म की गलती है ऐसा मान सकते हैं लेकिन हमारे धर्म में तो बुरी तरह से किसी को भी Treat करने की अनुमति नहीं दी है तो फिर हम धर्म को कैसे गलत बता सकते हैं. 

किसी व्यक्ति के बुरे Actions के लिए जैन धर्म कैसे ज़िम्मेदार हो सकता है जब उस बुरे Action की Permission हमारे धर्म में है ही नहीं. 

इसलिए किसी की गलती के कारण धर्म को Blame करना या एक वर्ग के कारण मंदिर में आनेवाले सभी लोगों को Generalise करके बुरा समझना, धर्म को बुरा समझना, यह बिलकुल भी सही नहीं है. 

एक लड़के या लड़की ने किसी को धोका दे दिया, तो क्या लोग शादी करना छोड़ देते हैं क्या?

Conclusion

इस दुनिया में हर तरह के लोग मिलते हैं. किसी का स्वभाव बहुत ही शांत होता है, कोई थोडा उग्र होता है और हर क्षेत्र में सब तरह के लोग मिलते हैं. 

कोई उग्र स्वभाववाला हो तो ऐसा नहीं सोचना है कि धर्म करता है फिर भी उग्र है. बल्कि यह सोचना है कि उग्र है फिर भी धर्म करता है. 

कड़वा सच यह है कि हमारे दिल में भौतिक क्षेत्र के लिए हमेशा Soft Corner रहता है कोई डांटे तो भी हम जाना बंद नहीं करते और अध्यात्मिक अथवा धार्मिक क्षेत्र के लिए शुरू-शुरू में बिना कोई साधना के वैसा Soft-Corner नहीं रहता. 

इसी कारण से धार्मिक क्षेत्र में किसी व्यक्ति द्वारा कुछ अनुचित हो जाए तो पूरे धर्म को बदनाम कर देते हैं. इसे हम कुदरत की परीक्षा के रूप में देख सकते हैं. 

कुदरत भले हमें यह सोचने पर मजबूर करें कि इस धर्म से दूर हो जा लेकिन हमें हार नहीं मानकर थोडा Strong रहना पड़ेगा वरना नुकसान तो हमारा खुद का होना है जैसा उस युवा का हुआ. 

बाकी एक बात ख़ास समझने जैसी है कि धर्म ठेके से नहीं, प्रेम से चलता है क्योंकि एक डांट किसी को धर्म से दूर कर सकती है, और एक मुस्कान उसे जीवन भर धर्म से जोड़ भी सकती है.

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