जैन साधु ब्रह्मचर्य का भंग करें तो हम सभी का कर्त्तव्य क्या?

What should be our duty if Jain Sadhu makes mistake in following Celibacy?

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Highlights
  • जैन धर्म में साधु साध्वीजी भगवंतों के लिए अहिंसा, अचौर्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह 5 महाव्रतों में 4 एक तरफ़ हो और ब्रह्मचर्य दूसरी तरफ़ हो तो भी ब्रह्मचर्य व्रत का महत्व ज़्यादा माना गया है और ब्रह्मचर्य व्रत भंग को महापाप माना गया है.
  • श्रावक-श्राविका का यही कर्त्तव्य है कि संतानों को यानी गड़बड़ करनेवाले महात्माओं को Perfect प्रायश्चित मिले, उससे उनकी यह गड़बड़ी अथवा पाप नाम की गाँठ निकल जाए और उनकी आत्मा स्वस्थ हो जाए, माता-पिता के नाते यही श्रावकों का कर्त्तव्य है.
  • यदि कोई साधु या आचार्य की ब्रह्मचर्य की गड़बड़ी को उनका अंधभक्त वर्ग उन्हें सुधारता नहीं बल्कि ग़लतियों को छुपाता है, Defend करता है, उन्हें बचाने की कोशिश करता है अथवा गलती होने के बावजूद यह कहे कि इनकी कोई गलती नहीं है और किसी अन्य की बदनामी करता है, तो यह भक्त सच्चे श्रावक नहीं बल्कि अंधभक्त है

जैन साधु ब्रह्मचर्य का भंग करें, तो हमारा कर्त्तव्य क्या?

इस गंभीर और संवेदनशील विषय को समझने के लिए बहुत विवेक चाहिए, शांति से यह Article पढिएगा, ऐसी हमारी प्रार्थना है.

ब्रह्मचर्य का महत्त्व

जिनशासन में ब्रह्मचर्यगुण का सबसे ज्यादा महत्त्व है.

1. श्री स्थूलभद्रजी ने निर्मल ब्रह्मचर्य पाला तो 84 चौबीसी तक वो याद किए जाएंगे.

2. सुदर्शन सेठ, विमलमंत्री आदि श्रावक सिर्फ ब्रह्मचर्य के प्रभाव से इतने महान बने कि देव भी उनके ऊपर प्रसन्न बने थे.

3. अहिंसा, अचौर्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह 5 महाव्रतों में 4 एक तरफ़ हो और ब्रह्मचर्य दूसरी तरफ़ हो तो भी ब्रह्मचर्य व्रत का महत्व ज़्यादा माना गया है और ब्रह्मचर्य व्रत भंग को महापाप माना गया है.

ब्रह्मचर्य में छुट?

क्या साधु-साध्वीजी भगवंतों के लिए ब्रह्मचर्य के विषय में कोई छूट है?

जैन साधु-साध्वीजी भगवंतों को बीमारी आदि के कारण से दूसरे आचारों में छोटी-मोटी छूट दी जाती है और वो शास्त्रों के अनुसार मंज़ूर भी है, जैसे कि एकाशना संभव ना हो तो अपवाद मार्ग के अनुसार बियाशना किया. रास्ते में Accident हो तो Ambulance में भी साधुओं को ले जाना पड़े, Hospital में AC में रहना पड़े, बेहोशी की हालत में हो तो प्रतिक्रमण नहीं करें वो भी चलाना पड़े.

पैरों की हालत एक दम ख़राब हो जाए तो मोजे पहनने पड़े, बीमार साधु के लिए बोलकर भी कुछ अलग द्रव्य बनवाना पड़े etc etc.. लेकिन ब्रह्मचर्य के विषय में साधुओं के लिए कोई छूट नहीं है, इस ब्रह्मचर्य व्रत में एकदम 100% Strictness रखी गई है. 

इसके लिए ब्रह्मचर्य के 9 वाड जिनशासन के हर साधु-साध्वीजी भगवंत को Strictly Follow करने हैं. इन 9 वाड की जानकारी हम Already ब्रह्मचर्य के 9 वाड Article में देख चुके हैं. जो साधु-साधिवजी भगवंत इन 9 वाड का पालन नहीं करते उन्हें ऐसा समझ जाना चाहिए कि वे पतन के मार्ग पर है ऐसा गीतार्थ गुरु भगवंत फ़रमाते हैं. 

कोई साधु भगवंत हो, प्रभावक साधु भगवंत हो अथवा तपस्वी साधु भगवंत हो या फिर आचार्य भी क्यों ना हो, यदि विकार भाव उत्पन्न होने के कारण किसी समर्पित साध्वीजी को, या किसी समर्पित बहन को कहे कि Physical हो सकते हैं, गड़बड़ कर सकते हैं, चिंता मत कीजिए अथवा ऐसा किसी भी प्रकार का दबाव डाले, या ऐसी कोई भी मंशा दिखे, ग़लत नियत दिखे तो उन साध्वीजी भागवतं को अपनी और अन्य साध्वीजी भगवंतों की शील रक्षा के लिए उधर बिलकुल भी नहीं रुकना है.

वो बहन को तुरंत वहाँ से निकलना है, फिर चाहे वह दीक्षार्थी ही क्यों ना हो. जैन शासन इसकी अनुमति बिलकुल भी नहीं देता, तुरंत ऐसे विषय में उनसे ऊपर रहे वडील गुरु भगवंत अथवा गच्छाधिपति को इस विषय में अवगत कराना अत्यंत आवश्यक है. In short, ब्रह्मचर्य के विषय में कोई छूट नहीं है. 

कष्ट सहन करने हैं, डांट फटकार सहन करनी है, शील पर आक्रमण अथवा शील भंग बिलकुल भी सहन नहीं करना है. शील भंग को कष्ट मानकर सहन करनेवाला मूर्ख नहीं महामूर्ख है.

ब्रह्मचर्य की गड़बड़ी में शास्त्रों का कथन

शास्त्रकारों ने संबोधसत्तरि ग्रंथ में कहा है कि 

“जे बंभचेरभट्ठा, पाए पांडति बंभयारीणं,
ते हुंति टुंटमुंटा, बोही वि सूदूल्लहा तेसिं” 

अर्थात् जो साधु ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट है, वो अगर दुसरे ब्रह्मचारी साधु-साध्वीजी आदि के वंदन लेते हैं, तो वो अगले भव में लूले, लंगड़े बनते हैं, और अगले भवों में उनको जैनधर्म की प्राप्ति भी दुर्लभ हो जाती है. लगभग एक हज़ार वर्ष पहले के श्री योगशास्त्र ग्रन्थ में लिखा है कि 

“गुरुः अब्रह्मचारी अपि, कष्टं नष्टं हहा जगत्”

कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी कह रहे हैं कि अब्रह्मचारी भी अगर गुरु हो सकते हैं, साधु हो सकते हैं, तो वो तो बहुत दुःख की बात है, पूरा विश्व ख़त्म ही हो गया. अर्थात् ब्रह्मचर्य का भंग हो वह शास्त्रकारों को बिलकुल भी स्वीकार्य नहीं है. शास्त्रों में आती अन्य बातें भी हम आगे जानेंगे.

अब हम आगे जानेंगे कि ब्रह्मचर्य व्रत का भंग होने पर क्या सज़ा दी जाती है और हर एक का रोल अलग अलग Situation में देखेंगे जैसे कोई साधु ब्रह्मचर्य व्रत का भंग करें तो वह साधु का क्या रोल, उनके गुरु का क्या रोल, उनके शिष्यों का क्या रोल, श्रावक श्रविकाओं का क्या रोल etc. 

गलती हो जाए तो सजा?

जब ब्रह्मचर्य में गड़बड़ी होती है तो Normally 3 Type के Cases होते हैं

A. किसी को पता चले या ना चले लेकिन कुछ साधु अथवा आचार्य खुद से सच्चे मन से पश्चाताप करके, अपने ऊपर रहे गुरु के समक्ष प्रायश्चित कर देते हैं.

B. किसी को पता चलने के बाद फिर पश्चाताप होता है और फिर प्रायश्चित कर देते हैं.

C. पता चलने के बाद भी, Evidence होने के बाद भी, स्वीकार नहीं करते, स्वीकार करते भी हैं तो भी प्रायश्चित नहीं करते. 

जो भी साधु, गणि, पंन्यास, उपाध्याय या आचार्य भगवंत ब्रह्मचर्य के विषय में गड़बड़ करते हैं और स्वीकार करते हैं कि गलती हुई है, उनको जैन धर्म के शास्त्रों के आधार पर सजा दी जाती है, वो सजा यानी फांसी, जेल, मारपीट आदि नहीं, लेकिन उससे भी बड़ी सजा प्रायश्चित! यहाँ प्रायश्चित ही इसकी कड़ी सजा है और ब्रह्मचर्य में बड़ी गड़बड़ करनेवाले को प्रायश्चित भी बड़ा आता है. वो इस प्रकार हो सकता है जैसे कि

1. अगर वो आचार्य आदि पद पर विराजमान है, तो उनका वो पद ले लिया जाता है, यानी Cancel कर दिया जाता है, उन्हें सामान्य साधु बनाया जाता है.

2. उनको वापस दीक्षा दी जाती है यानी कि अगर उनको दीक्षा लिए 20-30 वर्ष हो चुके हो, तो भी वह सारे वर्ष Zero कर दिए जाते हैं, और वापस नए से दीक्षा दी जाती है.

3. उनके पास अथवा उनके Under में शिष्य के रूप में जितने भी साधु-साध्वीजी भगवंत हो, जिनकी कोई गलती ना हो, उन्हें दूसरों की निश्रा में यानी दूसरों के Under में रखा जाता हैं. 

4. गड़बड़ी करनेवाले साधु का व्याख्यान बंद करवाया जाता है, अगर वे कोई Books छपवाते हैं तो Books छपवाना बंद.

5. लोगों से परिचय अथवा Contact अथवा बातचीत आदि बंद करवाया जाता है.

6. उनकी निश्रा में संघ-उपधान-चातुर्मास-अंजनशलाका-प्रतिष्ठा आदि बंद करवाए जाते हैं.

7. उनकी निश्रा में चल रहे मंदिर, उपाश्रय आदि सारी व्यवस्था किसी अन्य गुरु भगवंत को दी जाती है.

8. तपस्या आदि अलग अलग कड़क प्रायश्चित दिए जाते हैं.

कुल मिलाकर उन्हें Isolate कर दिया जाता है और 24/7/365 यानी हमेशा उन पर कड़ी नज़र रखी जाती है, ताकि वो फिर से ऐसी गड़बड़ी ना करें. इस तरह के अलग अलग प्रायश्चित उनके पापों को धोने के लिए दिया जाता है. जो साधु ब्रह्मचर्य में गड़बड़ी करते हैं, उनके वडील आचार्य-गच्छाधिपति आदि निर्णय करते हैं कि XYZ साधु को कौनसा प्रायश्चित देना. यह प्रायश्चित सभी के लिए समान नहीं होता, लेकिन Situation के हिसाब से, गड़बड़ी कितनी बड़ी है, साधु की योग्यता कितनी है आदि. उस हिसाब से होता है. 

अगर गुरु अपने शिष्य की ममता में होश भुलाकर प्रायश्चित ना दे, अथवा कम दे, अथवा उनके पापों को छुपाने का प्रयास करें, तो गुरु भी उतने ही पाप के भागीदार बनते हैं, जितना वो गड़बड़ी करनेवाले शिष्य. ज्ञानी गुरु भगवंतों द्वारा जानने को मिला है कि श्री महानिशीथ नाम के आगम ग्रन्थ में बताया गया है कि शिष्य साधु हिंसा-झूठ आदि कोई भी पाप करे, तो गुरु को वो पाप चार गुना लगता है, जी हाँ चार गुना! और शिष्य साधु ब्रह्मचर्य में कोई भी पाप करे, तो गुरु को वो पाप 16 गुना लगता है, Yes 16 गुना! 

गुरु ने अपने शिष्य को बराबर संभाला नहीं, इसी कारण से यह सब हुआ और इसलिए गुरु को पहले से ही इतनी Care रखनी होती है कि जिससे शिष्य ऐसी कोई गड़बड़ ना करे और अगर कर रहे हैं, तो उसे प्रायश्चित देने में कमी नहीं रखनी, वरना तो वह गुरु ही शिष्य के सबसे बड़े दुश्मन बनते हैं.

साधु या आचार्य गलती करने के बाद भी स्वीकारे नहीं या गलती को स्वीकारे लेकिन प्रायश्चित ना स्वीकारे तो ऐसे कुसाधुओं का क्या करना यह हम आगे जानेंगे.

दूसरा मौका मिलेगा?

हर एक जैन को, Non-Jains को भी ख़ास बता देते है कि ब्रह्मचर्य में बड़े पाप करनेवाले ऐसे भी साधु की निंदा करने का हमें कोई अधिकार नहीं है, उनका तिरस्कार करने का हमें कोई Right नहीं है. “अरे रे साधु होकर ऐसा पाप कर बैठा, तो वो तो घटिया आत्मा है” ऐसा बिलकुल नहीं मानना है. हमें पता है, शायद यह बात सभी को हजम नहीं होगी, इसलिए पहले आप पूरी बात विवेक के साथ सुन लीजिए फिर आप निर्णय कर सकते हैं.

पहले हम 5 उदाहरण बताते हैं,

1. 22वे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ प्रभु के सग्गे भाई, रहनेमि मुनि ने गिरनार की गुफा में काउसग्ग ध्यान के वक्त कैसा पाप किया था, वो पता है न? 

राजीमती जी, जिनकी नेमिनाथ प्रभु से शादी होनेवाली थी, यानी रिश्ते में भाभी होने वाली थी, वह शादी नहीं हुई और फिर होनेवाली भाभी दीक्षा लेकर साध्वीजी बने अर्थात् पहले भाभी का रिश्ता अर्थात् भाभी यानी माँ समान और अब Current Situation में वे साध्वीजी हैं.वो बारिश से बचने के लिए गुफा में प्रवेश कर चुके थे, उनको देखकर रहनेमि मुनिराज को वासना जगी, भोगसुख की भीख मांग की! 

यह तो अच्छा हुआ कि साध्वीजी ने उनको एकदम कड़क हितशिक्षा दी, कडवे वचन भी सुनाए, तब उनका दिमाग ठिकाने आया और नेमिनाथ प्रभु के पास जाकर पैरों में पड़कर, क्षमा मांगी, आंसू बहाए, गलती मानी, वापस दीक्षा ली. यह था उनका प्रायश्चित और उसी भव में वो मोक्ष में भी गए.

2. श्री स्थूलभद्रजी के बंधु मुनि सिंहगुफावासी मुनि वेश्या को देखकर उसके रूप में मोहित हो गए. उसका सुख पाने के लिए चातुर्मास में नेपाल तक विहार करके चले गए, घोर हिंसा की. वहां के राजा के पास से रत्नकंबल लाकर वेश्या की इच्छा के अनुसार उसे दे दिया और बदले में उसका देहसुख चाहा. 

स्थूलभद्र आचार्य द्वारा प्रतिबोध पाई हुई वेश्या ने उनको प्रतिबोधित किया और मुनि को पश्चाताप हुआ, गुरु के पास जाकर प्रायश्चित किया. वो देवलोक में गए, क्योंकि वो प्रायश्चित से सच्चे साधु बन चुके थे.

3. नंदिषेण मुनि ने दीक्षा छोडी, 12 साल वेश्या के साथ संसारसुख भोगा. आखिर उनको भी वापस वैराग्य जगा, वापस दीक्षा ली और अभी देवलोक में हैं. यह तो श्रेणिकराजा के बेटे थे, प्रभु महावीर के शिष्य थे, फिर भी उन्होंने इतनी बड़ी गलती कर दी थी तो भी वापस दीक्षा लेकर आत्मा का कल्याण कर ही लिया.

4. अषाढाभूति मुनि, दो नटडी यानी Actress अथवा Dancer के रूप में पागल बने. आचारांग आदि 11 अंग के ज्ञानी ऐसे यह मुनि ने दीक्षा छोड़ी, संसार सुख भोगा लेकिन कुछ समय के बाद उनको भी वैराग्य आया. उनको तो दीक्षा लेने से पहले ही नाटक – Drama करते-करते केवलज्ञान हो गया और दूसरे 500 राजकुमारों को भी उन्होंने दीक्षा दिलवाई.

5. अरणिक मुनि ने साधु जीवन के नियमों का पालन करने में असमर्थ होने से किसी रूपवान स्त्री के चक्कर में फंसकर दीक्षा छोड़ी. उनके पीछे उनकी माता-साध्वी पागल बनी, पागल बनी माँ को देखकर अरणिक को पश्चाताप हुआ, वापस दीक्षा ली, अनशन करके देवलोक में गए.

यह तो अच्छा हुआ कि उस ज़माने में Media अथवा Social Media नहीं था, वरना Media तो रहनेमि, सिंहगुफावासी, नंदिषेण, अषाढाभूति, अरणिक आदि मुनियों की पूरे समाज में बेइज्जती करने का ही काम करते. इतना ही नहीं, उनके गुरु यानी महावीर स्वामी भगवान को भी मीडियावाले शायद नहीं छोड़ते, जैसे आज गलत काम करनेवाले संतानों के माँ-बाप को भी झपट में ले लेते हैं.

अब जैन धर्म की निष्पक्षता यानी Unbiasedness देखिये. जैन धर्म में अभी बतायें गए इन पाँचों आत्माओं के पाप को तो पाप ही कहा है लेकिन पाप करनेवाली आत्माओं को अधम अथवा घटिया आत्मा नहीं कहा है, बल्कि इन्हें तो महापुरुष कहा है, पूजनीय कहा है, क्योंकि वो सच्चा प्रायश्चित करके सुधर गए थे.

यह सभी महापुरुषों के तो सज्झाय के द्वारा गुण गाए जाते हैं, रोज़ इन्हें याद किया जाता है. अजैनों में भी वालिया लुटेरा वाल्मीकि ऋषि बने और रामायण के प्रसिद्द रचनाकार भी बने. अब उनको लुटेरा मानकर धिक्कारा नहीं जाता, तिरस्कार नहीं किया जाता बल्कि ऋषि मानकर पूजा जाता है. इसलिए तो हम कहते हैं कि सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. 

बड़ी गलतियाँ करने के बाद भी अगर व्यक्ति सच में पश्चाताप करके सुधर जाता है तो उसे घटिया आत्मा, अधम व्यक्ति आदि नहीं कहते. Every Saint has a past and every Sinner has a future.

श्रावक श्रविकाओं का कर्तव्य

श्रावक-श्रविकाओं के पास 2 Options है,
1. सुधार. 2. प्रचार.

हमारे परिवार में युवा लड़के लड़कियां होंगे ही. मान लेते हैं कि हमारे परिवार के किसी सदस्य ने ब्रह्मचर्य के विषय में ही कोई छोटी-बड़ी गड़बड़ी कर दी. युवानी की उम्र ही ऐसी होती है कि व्यक्ति फिसल जाता है, सावधानी ना रखें, तो गड़बड़ हो जाती है. अब परिवार के ज़िम्मेदार व्यक्ति होने के नाते हम क्या करेंगे? दो Options आते हैं!

1. उसकी गलती सुधारों, उसे Punishment दो, उसे सही करो. उसे उसकी गलती का एहसास करवाओ और भविष्य में ऐसी गलती ना करे उसकी सीख दो.

2. यह सब छोड़कर ढिंढोरा पीटो कि मेरे बेटे ने यह कर दिया, हाय प्रभु, मेरी बेटी ने यह कर दिया, हाय प्रभु, मेरे भाई या बहन ने मुंह काला कर दिया हाय प्रभु.

हम क्या करेंगे? यह Article पढ़ रहे लोगों ने भी जीवन में छोटी बड़ी ग़लतियाँ की ही होगी, शायद पकडे नहीं गए होंगे. इसलिए सबसे पहले तो हमारा Intention क्या है? साधुओं की गलती को सुधारना या उनकी गलतियों को Social Media आदि के द्वारा घुमाकर प्रचार करना? किसी साधु को उनकी गलती का एहसास हो तो क्या उन ग़लतियों का प्रचार उचित है? क्या गलतियों को फैलाना यह सज्जन व्यक्ति को शोभा देता है? 

आक्रोश हो सकता है, स्वाभाविक है कि जिनको हमने हमारे सर पर, माथे पर रखा जिनको हमने वंदन किया समर्पण किया, उन्होंने यह कैसा कृत्य कर दिया? गुस्सा भी आ सकता है, उनके ऊपर का राग अथवा समर्पण – आक्रोश अथवा क्रोध अथवा द्वेष में परिवर्तित हो सकता है लेकिन प्रश्न सिर्फ़ इतना है कि क्या प्रचार से Solution हो सकता है?

सच्चा श्रावक, विवेकी श्रावक यही कहेगा कि ‘नहीं नहीं, जिन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है उनकी ग़लतियों का प्रचार करने से Solution तो कुछ होगा नहीं, लेकिन हाँ Solution तो गलतियों का सुधार करने से होगा, प्रायश्चित से होगा, सच्चे प्रायश्चित से होगा.’

अब विवेकी श्रावक के दो कर्त्तव्य बन जाते हैं.

1. ब्रह्मचर्य व्रत भंग जैसी बड़ी गलती करनेवाले साधुओं को या आचार्यों को कड़क, सख्त प्रायश्चित मिलना ही चाहिए, ऐसा ध्यान में रखना, क्योंकि गलती बड़ी की है, पाप बड़ा किया है, लेकिन यह Operation – Operation Theatre में करना है.

2. उन्हें अगर उनकी गलती का एहसास हो गया है तो उनकी बड़ी गलतियाँ खुल्ले बाज़ार में बिलकुल भी नहीं घुमाना, कोई घुमाएं तो उसे रोकना. 

Please note: यह व्यवस्था उनके लिए हैं जो गलती करने के बाद सुधरने की इच्छा रखते हैं एवं सच्चा प्रायश्चित करना चाहते हैं. 

गलती नहीं माननेवाले या मनमानी करनेवाले या गलती मानकर भी सच्चा प्रायश्चित Accept नहीं करनेवाले ऐसे कुसाधुओं के साथ क्या करना चाहिए वो हम आगे जानेंगे. लेकिन उससे पहले एक छोटी सी घटना देखते हैं.

एक लड़का चोरी करते हुए पकड़ा गया, लोग इकट्ठा हुए और उसे मारने लगे. वहां से पसार होते हुए एक संत ने सभी को रोका और कहा कि आप लोगों में से जिसने ज़िन्दगी में कोई भी पाप नहीं किए हो, वो आगे आए, वो इस चोर को मारने का हकदार है. समझदार लोग चुपचाप चले गए.

आज मान लो कोई साधु या साध्वी पकडे गए, हजारों लाखों लोगों ने Criticize करना शुरू कर दिया, घर से दुकान, बीच चौराहे, अरे मंदिर उपाश्रय भी नहीं छोड़े, सब जगह बात होने लगी. निंदा के, क्रोध के, आक्रोश के संस्कार गाढ़ करते गए, साधुओं के प्रति का द्वेष बढाते गए. लेकिन उस हर एक आत्मा को अपनी आत्मा से पूछना चाहिए कि क्या वो यह सब निंदा-तिरस्कार-धिक्कार करने के हकदार है? 

उन्होंने अपने – अपने जीवन में जो-जो पाप किए हैं, क्या वो बाज़ार में खुल्ला करके बोल सकते हैं? अपने मन से भी अब तक में जो गंदे गंदे विचार किए हैं, किसी पुरुष या किसी स्त्री के बारे में गंदा विचार किया हो, Mobile में देखा हो, यह सब समाज में खुल्ला हो जाए, तो क्या उसके लिए यह वर्ग तैयार है? जिंदगी में एकांत-अँधेरा-खराब निमित्तों का सहारा लेकर जो काली करतूतें वो कर चुके हैं, क्या वो सब खुल्ला करने के लिए तैयार है? 

जो लोग इसके लिए तैयार नहीं है, वे दूसरे पापीयों की निंदा करने के अथवा दूसरे पापियों के पापों को बाज़ार में फैलाने के हकदार कैसे हो सकते हैं? जब स्वयं परमात्मा ने अपने अनेक पूर्व के भवों में पाप किए हैं तो हम क्या चीज़ है? ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसने पाप नहीं ही किए हो.

जिनशासन में श्रावक-श्रविकाओं को साधु-साध्वीजी के माता-पिता कहा गया है. यदि बच्चे को पेट में Appendix की गाँठ हो जाए तो माता-पिता क्या करेंगे? Operation करवाकर वो गाँठ निकलवाएंगे, बच्चे को स्वस्थ करेंगे, लेकिन उसके ऊपर धिक्कार-तिरस्कार नहीं करेंगे. ठीक ऐसे ही श्रावक-श्राविका के संतान ऐसे साधु-साध्वीजी से गलती हो गई, आत्मा में गाँठ हो गई, तो उसका Operation यानी उनको व्यवस्थित सच्चा प्रायश्चित. 

बस श्रावक-श्राविका का यही कर्त्तव्य है कि संतानों को यानी गड़बड़ करनेवाले महात्माओं को Perfect प्रायश्चित मिले, उससे उनकी यह गड़बड़ी अथवा पाप नाम की गाँठ निकल जाए और उनकी आत्मा स्वस्थ हो जाए, माता-पिता के नाते यही श्रावकों का कर्त्तव्य है.

Please, please, please ऐसा मत सोचिएगा कि हम किसी की गलतियों को छुपाने के लिए कह रहे हैं, गलितयाँ छुपाना बहुत बड़ा अपराध हो जाएगा लेकिन गलतियाँ सही करनी हो, सुधारनी हो, तो सुधार करना चाहिए या प्रचार वह हमें तय करना होगा. यदि प्रचार भी करना हो तो उस जगह करना चाहिए जहाँ सुधार हो जैसे एक बेटी को पेट में Infection हुआ, तो उस Infection का “प्रचार” माँ Doctor के पास जाकर करेगी क्योंकि उधर इसका Solution होगा, ना कि पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवायेंगी कि हाय प्रभु मेरी बेटी के पेट में Infection हो गया, यानी प्रचार भी उधर करना जहाँ सुधार हो सके.

इसलिए ऐसा नहीं सोचना है कि गलितयों को छुपाना है. यदि कोई मुनि भगवंत हो या आचार्य भगवंत, यदि ब्रह्मचर्य में गड़बड़ी होती है, तो उन्हें कड़क प्रायश्चित दिया ही जाना चाहिए. शास्त्रों में जो भी प्रायश्चित आता है अथवा परंपरा में जो भी प्रायश्चित आता है वह देना ही चाहिए, उनकी शुद्धि होनी ही चाहिए. 

जिनशासन के साधु भगवंत अपवित्र रहे, शुद्ध न बने, वो तो किसी को भी सहन नहीं करना चाहिए, क्योंकि शासन साधु भगवंतों से चलनेवाला है और उनमें ही गड़बड़ी होगी तो सब कुछ ख़त्म हो जाएगा. इसलिए कड़क Action तो होना चाहिए फिर वो कितने भी बड़े तपस्वी क्यों न हो, प्रभावक क्यों ना हो, ज्ञानी क्यों ना हो या आचार्य ही क्यों ना हो.

साथ ही गड़बड़ी करनेवाले साधु हो या आचार्य, उन्हें इस पूरी कड़क व्यवस्था में आना ही पड़ता है, वे अपने मन मुताबिक़ कोई भी गुरु के पास प्रायश्चित लेकर बोल नहीं सकते कि गलती हो गई, प्रायश्चित ले लिया सब Clear हो गया. उनके कोई अंध भक्त हो और वो भी अगर मनमानी करें तो दोनों दुर्गति के द्वार पर खड़े हैं ऐसा समझना चाहिए. 

यह बिलकुल भी स्वीकार्य नहीं है और जिनशासन की पवित्रता के लिए खतरा भी. खुद का प्रायश्चित खुद नहीं ले सकते और मनमानी से भी नहीं ले सकते. मनमानी क्यों करनी है? इसके पीछे एक ही कारण हो सकता है कि यह गड़बड़ी फिर से करनी है, साथ ही जिनके खुद के ठिकाने नहीं है उनसे भी प्रायश्चित लेकर मनमानी नहीं कर सकते.

यदि कोई साधु हो या आचार्य हो जिनसे ब्रह्मचर्य में गड़बड़ हो गई लेकिन वो यह गलती मानने को तैयार ना हो अथवा गलती माने लेकिन सच्चा प्रायश्चित लेने के लिए तैयार ना हो और लोगों की, संघ की आँखों में धूल झोंकने के लिए जो अपने मन में आए वो करें अथवा अपने हिसाब से किसी के भी पास झूठा प्रायश्चित ले ले अथवा ख़ुद ही माफ़ी माँगकर, ख़ुद ही ख़ुद को माफ़ कर दें, तो ऐसे में समाज को क्या करना चाहिए, प्रबुद्ध विवेकी श्रावक वर्ग को क्या करना चाहिए? 

प्रबुद्ध विवेकी श्रावक वर्ग की प्रथम कोशिश तो यही होनी चाहिए कि वे महात्मा अपनी गलती को स्वीकार करें और जैसे अभी हमने देखा उस तरह शास्त्रीय व्यवस्था अनुसार जो अंध भक्तों को नहीं बल्कि अधिकांश शासनप्रेमी श्रावक वर्ग को स्वीकार्य हो ऐसे सद्गुरू भगवंत, आचार्य भगवंत अथवा गच्छाधिपति भगवंत की निश्रा में प्रायश्चित कर अपनी आत्मा की शुद्धि करें. 

लगभग तो महात्मा अपनी गलती स्वीकार कर ही लेते हैं और सच्चा प्रायश्चित कर ही लेते हैं, लेकिन मान लेते हैं कि अनेकों कोशिशें करने के बाद भी कोई ऐसा हो जो स्वीकार ही ना करें अथवा स्वीकार तो करें लेकिन अपनी इच्छा अनुसार जो मन में आए वह करें. तो फिर ऐसे साधुओं को लक्षमणा साध्वीजी के जीवन से समझाना चाहिए कि अपनी गलती को शुद्ध रूप से न स्वीकारना उन्हें कितना भारी पड़ सकता है. 80 चौबीसी तक भटकने की कर्मसत्ता ने लक्षमणा साध्वीजी को सज़ा दी थी.

समाज को, श्रावक श्राविकाओं को, ऐसे कुसाधुओं को बिलकुल प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए, साथ ही ऐसे कुसाधु अथवा कुआचार्य समाज के लिए, समाज की माता-बहनों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होते हैं, वो अगर मनमानी कर रहे हैं तो उसके पीछे का आशय यही हो सकता है कि वो फिर से गड़बड़ी करना चाहते हैं.

उन्हें किसी भी उपाश्रय में जगह नहीं मिलनी चाहिए, साथ ही शक्तिवान श्रावक वर्ग को आगे आकर दबाव बनाकर भी उन्हें वडील आचार्य भगवंत अथवा गच्छाधिपति के Under में Strictly रखवाना चाहिए. मान लो, वो बिलकुल भी ना माने तो फिर अंत में एक बड़े स्तर पर पूरी तरह से उनका बहिष्कार यानी Boycott कर देना चाहिए! उन्हें संघ बाहर कर देना चाहिए!

क्योंकि ऐसे साधु जो अपनी गलती ही ना माने वो फिर समाज की सभी बहन, बेटियों के लिए ख़तरा बन सकते हैं. गलती नहीं मानना, या फिर गलती मानना लेकिन प्रायश्चित नहीं लेना यानी कि वो फिर से ऐसा कृत्य करना चाहते हैं और ऐसे कुसाधुओं का समर्थन करनेवाले को समझना चाहिए कि कल उनके घर की माँ, बहन, बेटी भी उस कुसाधु का शिकार हो सकती है. 

जो साधु अथवा आचार्य वासना के गुलाम होते हैं, वे यदि वासना की आग से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, तो उन्हें साधु वेश का त्याग कर देना चाहिए. लेकिन हाँ अपनी गलती को स्वीकार नहीं करनेवाले ऐसे सफ़ेद वेश में काले कारनामे करनेवाले कुसाधु को देखकर यह नहीं सोचना है कि सभी गुरु भगवंत ऐसे ही होते है, यह बहुत ही ग़लत सोच है.

समाज में कई लोग ऐसे होते हैं जो अपराध करते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सारा का सारा समाज अपराधी है, एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के अपराध के कारण Generalize नहीं करना, एकांत नहीं पकड़ना है. यह सोच व्यक्ति को धर्म से दूर करती है, एक व्यक्ति की गलती से धर्म ग़लत नहीं हो जाता. 

Please understand – उसका कृत्य ग़लत है, धर्म ग़लत नहीं है, धर्म ने उसे वह कृत्य करने की अनुमति नहीं दी. इसलिए धर्म को द्वेष की नज़र से बिलकुल नहीं देखना चाहिए.

अंध भक्तवर्ग का Solution!

यदि कोई साधु या आचार्य की ब्रह्मचर्य की गड़बड़ी को उनका अंधभक्त वर्ग उन्हें सुधारता नहीं बल्कि ग़लतियों को छुपाता है, Defend करता है, उन्हें बचाने की कोशिश करता है अथवा गलती होने के बावजूद यह कहे कि इनकी कोई गलती नहीं है और किसी अन्य की बदनामी करता है, तो यह भक्त सच्चे श्रावक नहीं बल्कि अंधभक्त है या शायद कम्भख्त है!

इस तरह गलतियों को छुपाना यानी उन गलतियों को बढ़ावा देना, हमें लगता है यह वर्ग उन गड़बड़ करने वाले साधु या आचार्य की आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है और जिनशासन के लिए सबसे बड़ा खतरा. क्योंकि भविष्य में ऐसी गड़बड़ी के लिए वो दरवाज़ा खुला रख रहे हैं. ऐसे व्यक्तियों से समाज को बिलकुल भी डरना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें आड़े हाथ लेना चाहिए क्योंकि इस अंध भक्त वर्ग के कारण पूरा जिनशासन बदनाम होता है, पूरी श्रमण व्यवस्था बदनाम होती है. 

इन्हें पहले Warnings देनी चाहिए, और फिर भी यदि गुंडागर्दी करें अथवा मनमानी करें तो फिर अंत में हमारी बहन, बेटियों की एवं साध्वीजी भगवंतों की शील की रक्षा के उद्देश्य से, इन एक एक अंध भक्त का, कुसाधु का फिर वो चाहे आचार्य के पद पर क्यों ना हो, इनका भरपूर प्रचार करके पूरे समाज के सामने इस अंध भक्त वर्ग को एवं ऐसे कुसाधु को, ऐसे नक़ली आचार्य को समाज में बहन बेटियों के शील रक्षा के उद्देश्य से, साध्वीजी भगवंतों के शील की रक्षा के उद्देश्य से Expose करना चाहिए! क्योंकि ये गिरोह मिलकर जिनशासन की पवित्रता की कब्र खोद रहे हैं. 

शिष्य एवं दिक्षार्थी क्या करें?

शांतसुधारस की गाथा है 

‘परिहरणीयो गुरुः अविवेकी’ 

अर्थात् अविवेकी गुरु को छोड़ देना चाहिए. जो कुगुरु भक्तवर्ग को फसाते हो उन्हें छोड़ देने में ही भला है. यहाँ अंगारमर्दक आचार्य की घटना आती है, 500 शिष्यों को पता चला कि उनके गुरु तो अभवी है और 500 शिष्यों ने उनको छोड़ दिया था. अर्थात् जिनशासन में ऐसा कोई एकांत नहीं है कि जिनको समर्पति हो गए, उनसे इस तरह की बड़ी गड़बड़ होने के बाद, वो स्वीकारे नहीं और मनमानी करें तो भी उनको समर्पित रहना ही. जी नहीं! नाव डूबने वाली है अथवा नाविक नाव डुबाने वाला है, यह पता होने के बाद भी उस नाव में सवार होना बेवक़ूफ़ी है.

ऐसे कुसाधु की निश्रा में रहे सभी साधु – साध्वीजी भगवंतों को पहले तो उन्हें अपनी गलती का एहसास करवाना चाहिए लेकिन नहीं माने तो तुरंत वह कुसाधु का या वह नक़ली आचार्य का बहिष्कार कर देना चाहिए, उनकी आज्ञा से बाहर निकलना चाहिए. जिनशासन के माता-पिताओं ने कितने विश्वास के साथ अपने कलेजे के टुकड़े को जिनशासन को सौंपा है, सभी साधु – साध्वीजी भगवंतों के एवं दीक्षार्थियों माता-पिताओं पर क्या गुज़रेगी? 

इसलिए उनके विश्वास को बरकरार रखने की ज़िम्मेदारी भी सबकी होती है. ऐसे साधु- साध्वीजी भगवंतों को अथवा दीक्षार्थियों को समर्पण के नाम से अंध भक्ति नहीं करनी चाहिए. जहां इस तरह से ब्रह्मचर्य की गड़बड़ी से प्रभु की आज्ञा का भंग होता है, और मनमानी होती है, वहाँ एक क्षण भी रुकने जैसा नहीं है. 

उनकी आज्ञा में से निकलकर संविग्न गीतार्थ गुरु भगवंत की आज्ञा में जाना चाहिए, बिना किसी की आज्ञा में रहना उचित नहीं है, इसलिए यह व्यवस्था भी तुरंत Compulsorily कर लेनी चाहिए. जिनशासन की अद्भुत व्यवस्था है, साधु-साध्वीजी भगवंतों को किसी ना किसी की आज्ञा में रहना ही है, आचार्य भगवंतों को भी रहना है और गच्छाधिपति के ऊपर तो संघ है ही.

हम ऐसे कुसाधुओं को ऐसे कुआचार्यों को चेतावनी दे देते हैं, ऐसे गड़बड़ी करने के बाद यदि आप किसी भी तरह की मनमानी करेंगे तो हम ऐसे नक़ली साधुओं को बेनक़ाब करने की भी हिम्मत रखते हैं! हम नक़ली धमकी नहीं दे रहे हैं, ज़रूरत पड़ी तो चेहरे और नाम के साथ समाज की बहन-बेटियों की शील की रक्षा के उद्देश्य सेसाध्वीजी भगवंतों की शील की रक्षा के उद्देश्य से Expose भी करेंगे.

गलती किसी से भी हो सकती है, सच्चा प्रायश्चित लेकर शुद्ध बनिए, लेकिन ब्रह्मचर्य जैसे विषय में गलती करने के बाद गलती स्वीकारना नहीं अथवा स्वीकारना लेकिन मनमानी करनायानी ऐसे लोग शासन के शत्रु है और शासन के शत्रुओं को बेनक़ाब करने की हम पूरी हिम्मत रखते हैं और हम उम्मीद रखते हैं कि जिनशासन के सच्चे साधु-साध्वीजी भगवंत एवं श्रावक श्राविका हमारा साथ ज़रूर देंगे.

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