Road Accidents In Vihar: Reasons And Solutions

विहार में साधु साध्वीजी के साथ हो रही दुर्घटनाओं का कारण क्या है?

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By Jain Media 827 Views 36 Min Read
Highlights
  • विहार दुर्घटनाओं के अनेक कारणों में से एक बड़ा कारण है - साधु साध्वीजी के बेवजह के Extra विहार और वह विहार करवानेवाले भक्त - श्रावकगण.
  • आज भारी Traffic को और दुर्घटनाओं को देखकर हमको हमारे परमोपकारी साधु साध्वीजी भगवंतों को Force से विनती करनी ही होगी कि आप आपके संयम के लिए, हमारे लिए, शासन के लिए, Fast and Long विहार करके तीर्थ यात्रा करना और उसके लिए सैंकड़ों KM का Extra विहार करना बंद कीजिए. 
  • साधु साध्वीजी भगवंत लंबे Fast विहार, अंधेरे में विहार करेंगे तो पक्के Chances है कि आज के भारी Traffic में, दौड़ती हुई गाड़ियों के बीच में वे कम उम्र में मर सकते हैं और यह सब भूल न करें, तो लंबी जिंदगी जी सकते हैं यानी कि दुर्घटना से अगर मृत्यु होती हो तो उसे भाग्य का दोष मानने की गलती ना करें! वह गलत पुरुषार्थ का ही दोष है.

विहार में दुर्घटनाओं का कारण क्या?

विहार में साधु साध्वीजी के जो देवलोकगमन यानी मृत्यु हो रही है उसके पीछे Main Reasons क्या है? बहुत ही संवेदनशील और गंभीर विषय है इसलिए पूरे Patience और Focus के साथ पढ़िएगा. बने रहिए इस Article के अंत तक.

इस साल तकरीबन 08 से 10 साधु साध्वीजी का विहार में दुर्घटना के कारण कालधर्म हुआ है और साथ ही हमने विहार सेवकों को भी खोया है. पिछले 10 साल में शायद 50-100 के आसपास साधु साध्वीजी भगवंतों का जीवन इसी प्रकार अंत हुआ है. वह हर एक साधु साध्वीजी जिनशासन के अनमोल रत्न थे. 

हर एक श्रमण श्रमणी भगवंत के माता-पिता ने अपने कलेजे के टुकड़े को रो-रो कर भी जिनशासन को समर्पित किया था. उनको ऐसा विश्वास था कि ‘श्री जैन संघ अवश्य हमारी संतानों की रक्षा करेगा.’ जब दुर्घटना में अपने संतानों की इस प्रकार मृत्यु होती है, तब वह परिवारों के ऊपर क्या बीतती होगी, वह तो वे ही जाने. 

हम सब, जब भी ऐसी दुर्घटना होती है तब इकट्ठे होकर शायद Meetings करते हैं, भाषण करते हैं, बड़ी-बड़ी बातें भी करते हैं लेकिन दूसरे ही दिन से हम सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं. और अब तो ज़माना और तेज़ है, Accident की बात Social Media पर देखी, महात्मा का देवलोकगमन हुआ, Social Media पर Posting की एक घंटे में तो शायद भूल भी जाते हैं.

पूज्य जंबूविजयजी महाराज साहेब

आज से लगभग 16-18 साल पहले परम पूज्य मुनिराज श्री जम्बूविजयजी महाराज साहेब जैसलमेर की ओर विहार करके जा रहे थे. उस वक्त पर वह महापुरुष का भी इसी प्रकार दुर्घटना में ही कालधर्म हुआ था. वे 17 भाषाओं के ज्ञानी थे, विदेशी लोग उनके पास पढ़ने के लिए आते थे. इतने निस्पृह थे कि संपूर्ण पात्रता होने के बावजूद भी उन्होंने कोई पदवी नहीं ली थी. 

जैसलमेर भी वे दर्शन करने नहीं जा रहे थे लेकिन वहां के ज्ञान भंडार में हजारों हस्तलिखित प्रतियां है और पाकिस्तान की सरहद पर ही आए हुए उस गांव के ज्ञान भंडार का कभी बम विस्फोट आदि से विनाश ना हो जाए इसलिए वे तमाम प्रतियों को Computerize करने के काम में लगे हुए थे ताकि भविष्य में अगर ज्ञान भंडार को कुछ भी हो जाए तो भी कम से कम Computer में तो हजारों प्रतियों की सुरक्षा रहेगी. 

यह हजारों प्रतियां हमारे जिनशासन की अमूल्य धरोहर है. उसकी कीमत हमारे जैसे संसारी लोग नहीं समझ पाएंगे. हम तो शायद उसे रद्दी ही समझेंगे लेकिन ज्ञानियों के मन में उसकी कीमत अरबो रुपए से भी तोली नहीं जाती है ऐसी है. ऐसे ज्ञान भंडार का बहतु ही Important काम बाकी था और उसी के लिए वे महापुरुष जैसलमेर जा रहे थे और Accident में उनका कालधर्म हुआ.

हमने एक बहुत ही अद्भुत महात्मा को खोया और उस वक्त भी बड़ी-बड़ी सभा हुई थी, बड़े लोगों ने बड़े भाषण भी दिए थे लेकिन उस बात को आज 16 -18 साल होने को आए, फिर भी हम हर साल 10 – 20 – 30 साधु साध्वीजी को खो रहे हैं. ऐसा क्यों? 

विहार सेवकों का अद्भुत योगदान

परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय महाबोधीसूरीश्वरजी महाराज साहेब की प्रेरणा से विहार सेवा ग्रुप शुरू हुआ और आज भारत भर में हजारों युवान विहार सेवा में अपनी सेवा दे रहे हैं, इसी के साथ अलग अलग विहार सेवा Groups भी अद्भुत सेवा दे रहे हैं और इसी कारण वह सभी युवाओं की सेवा अत्यंत सराहनीय है, जितनी अनुमोदना की जाए उतनी कम है.

अगर यह सेवा नहीं होती तो अभी जितने कालधर्म हो रहे हैं, Accidents हो रहे हैं शायद उससे भी Double या Triple कालधर्म होते लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उसका Credit भारत भर के हजारों विहार सेवावाले युवाओं को मिलता है. फिर भी हर साल अभी भी जो 10 – 20 – 30 विहार दुर्घटना हो रही है, उसे हम Ignore नहीं कर सकते हैं. एक भी Ignore नहीं कर सकते हैं.

आज हम इस Article के माध्यम में ऐसी दुर्घटनाओं के Reasons खोजने का और Solutions भी ढूंढने का प्रयास करेंगे. जब भी दुर्घटना होती है तब 2-3 बातें तो लगभग हमारे मन में Fix आ ही जाती है – 

A. अनूप मंडल का काम होगा. 
B. Driver शराब पीकर चला रहा होगा. 
C. Driver को झपकी आ गई होगी. 

यह सब कारण कम ज्यादा Percentage में सही भी हो सकते हैं लेकिन हमें और भी कुछ कारण लग रहे हैं और आज वह खुलकर बताना चाहते हैं. यह एक कड़वा सच है तो किसी को भी इस Article के माध्यम से दुख हो सकता है, तो सभी के सामने पहले से ही क्षमायाचना करते हैं. 

हमारा मकसद गुरु भगवंतों की निंदा करने का नहीं है, हमारा मकसद श्रावक या श्राविकाओं को ठेज़ पहुंचाने का भी नहीं है लेकिन कड़वी गोली जैसे इस कड़वे सच से विहार दुर्घटनाओं को रोकने का है. 

साधु – साध्वीजी की विहार व्यवस्था

विहार दुर्घटनाओं के अनेक कारणों में से एक बड़ा कारण है – साधु साध्वीजी के बेवजह के Extra विहार और वह विहार करवानेवाले भक्त – श्रावकगण. जी हाँ. विहार – साधु जीवन का आचार है, वह करना है लेकिन Extra नहीं. यहाँ एक बात जानने जैसी है कि एक साल के 12 महीने होते हैं. उसमें 4 महीना चातुर्मास, 8 महीना शेषकाल कहा जाता है. यह 12 महीने कैसे रहना, उस विषय में साधु भगवंतों की व्यवस्था अलग है और साध्वीजी भगवंतों की व्यवस्था अलग है. 

साधु भगवंतों को शेषकाल के 8 महीने में 8 स्थान में 1 – 1 महीना रहना है और एक स्थान में चातुर्मास यानी 4 महीने तक रहना है, इसे नवकल्पी विहार कहते हैं. बीच में एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने के लिए जितना आवश्यक हो, उतना ही विहार करते हैं.

साध्वीजी भगवंतों को शेषकाल के 8 महीने में चार स्थान में 2 – 2 महीना रहना है और एक स्थान में चातुर्मास के लिए 4 महीने रहना है. ऐसे 4 + 1 स्थान में पूरा साल बिताना है. इसे पंचकल्पी विहार कहते हैं. पुराने जमाने में शास्त्रों की विधि अनुसार इस तरह विहार किया जाता था.

यहां पर सवाल खड़ा होता है कि साध्वीजी भगवंतों को कम विहार क्यों? 1 – 1 महीने की बजाय 2 – 2 महीना क्यों? 

जवाब यह है कि साध्वीजी भगवंतों को अपने शील की रक्षा करनी है, अधिक विहार में शील की रक्षा के विषय में अधिक चिंता रहेगी. दूसरी बात साध्वीजी भगवंतों को जिस प्रकार की सुरक्षा – अनुकूलता चाहिए, वैसे स्थान भी कम मिलते हैं. इसलिए उनको चार स्थान में 2 – 2 महीना रहना है. साधु भगवंतों को पुरुष होने के कारण से साध्वीजी जितनी चिंता नहीं रहती, साधुओं के लिए योग्य स्थान भी आसानी से मिलते हैं. इसलिए उनको 8 स्थान में 1 – 1 महीना रहना है. 

आज भले इस तरह से व्यवस्था शायद ना के बराबर चल रही हो लेकिन इससे हमको इतना तो पता चलता है कि साधु साध्वीजी भगवंतों का ज्यादा विहार करना शास्त्रकारों को मंजूर नहीं है. इसके पीछे भी Logical Reasons है वो हम आगे जानेंगे. यह सब हमने गुरु भगवंतों के पास से जाना है. 

उन्होंने यह भी बताया कि प्रभु महावीर भी गांव से गांव विहार करते थे यानी कि प्रभु जिस गांव में रुके हैं, उसके बाद नजदीक में जो गांव होता वहां विहार करके पहुंचते और रुकते. लगभग 3 KM का विहार होता और इतना कम विहार होने के कारण से ही वे सुख से – शाता से विहार करते थे. अगर लंबे विहार हो तो शरीर को थकान तो लगती ही है.

Extra विहार के पीछे का कारण

मान लेते हैं कि आज के काल में कुछ कारणवश ऐसा नहीं हो रहा हो, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है ना कि 8 महीना विहार करते ही रहे. चातुर्मास पूरा होते ही लगभग हजारों साधु साध्वीजी भगवंतों के ताबड़तोड़ विहार शुरू हो जाते हैं, वह भी छोटे नहीं लेकिन लंबे-लंबे. 500 – 1000 – 1200 KM का विहार शुरू होता है. 

कोई तीर्थ यात्रा के लिए तो कोई नव्वाणु – संघ – उपधान – प्रतिष्ठा आदि में निश्रा प्रदान करने के लिए, यानी एक बड़े Target के साथ विहार शुरू होते हैं.आज शासन में अनेक शुभ कार्य होते हैं, हर एक कार्य जिनशासन की प्रभावना बढ़ाने वाले हैं, जैन संघ की आराधना बढ़ाने वाले हैं इसलिए कोई भी कार्य गलत नहीं है, करने जैसे ही है. 

सवाल इतना है कि यह सब कार्यों के लिए साधु साध्वीजी भगवंतों को Extra विहार करवाना क्या वह उचित है? यहाँ पर एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा होता है कि एक उपधान – नव्वाणु – चातुर्मास – अंजनशलाका की कीमत ज्यादा है या एक साधु या साध्वीजी की जिंदगी की कीमत ज्यादा है? 

सिर्फ एक अंजनशलाका के लिए साधु साध्वीजी भगवंत 500 – 1000 KM का विहार करेंगे, सिर्फ एक नव्वाणु करवाने के लिए या एक उपधान या एक चातुर्मास करवाने के लिए साधु साध्वीजी सैंकड़ों हजारों KM का विहार करेंगे. वह करवानेवाले होंगे भक्त श्रावक! उनकी भावना अच्छी तो होगी लेकिन शायद विवेक की कमी है. 

आज क्या हो रहा है वह खुले दिमाग के साथ देखते हैं. हम किसी को Personally Target नहीं कर रहे हैं, सिर्फ उदाहरण के तौर पर समझते हैं. मान लो कि मुंबई का कोई धनवान श्रावक या कोई संघ नया मंदिर बना रहा हो. वहां की अंजन शलाका प्रतिष्ठा वह अपने माने हुए गुरु भगवंत के हाथ से ही करवाना चाहते हैं और वे गुरु भगवंत For example चेन्नई में होंगे, तो भक्त-श्रावक उनको आग्रह करके मुंबई बुलाएंगे. 

साधु भगवंत भी उनके आग्रह के सामने झुककर 1200 KM का विहार स्वीकार लेते हैं और फिर रोज के ताबड़तोड़ 20 – 30 KM का विहार शुरू होता है और यह तो एक कार्यक्रम हुआ. उसके एक महीने के बाद पालीताणा में Summer Vacation की नव्वाणु होगी तो मुंबई से फिर 600 – 700 KM वापस पालीताणा Fast विहार करना. उसके बाद चातुर्मास यदि मुंबई में होगा तो वापस उतना विहार करके फिर से मुंबई आना. 

आप सोचो तकरीबन 2600 KM का विहार हो गया. 2600 KM. जी हाँ. इसमें यदि 700 KM और जोड़ दो तो पता है Distance कितना होता है, उतना जितना Kashmir से कन्याकुमारी का है. खैर, अगर मुंबई का श्रावक या संघ मुंबई में विराजमान दूसरे साधु भगवंत के पास अंजन शलाका प्रतिष्ठा करवा लेते हैं तो क्या Problem था? मुंबई में क्या दूसरे कोई गुरु भगवंत है ही नहीं? और ऐसा हो जाता तो चेन्नई के साधु भगवंत का हजार KM का Extra विहार बच जाता. 

ठीक ऐसे ही पालीताना में नव्वाणु के लाभार्थी ने भी नजदीक में रहे हुए दूसरे कोई गुरु भगवंत के पास नव्वाणु करवा ली होती तो चेन्नई के साधु भगवंत को 1200 मुंबई वाला + 700 KM का मुंबई से पालिताना का Extra विहार होता ही नहीं.अगर चेन्नई वाले साधु भगवंत को यह कोई प्रोग्राम नहीं आते और वे साधु भगवंत चेन्नई के नजदीक में Erode – Nellore – Vijayawada – Salem – Trichy – Guntur – Tenali आदि में चातुर्मास करते तो उनको चेन्नई के चातुर्मास के बाद अगले चातुर्मास तक 300 – 400 – 500 KM का ही विहार करना होता. 

आप सोचिए 2500 से 3000 KM कहां और 300 – 500 KM कहां! 

अगर दूसरे गुरु भगवंत की निश्रा में अनुष्ठान हो जाता तो इधर विहार कम होता तो रोज 25 – 30 KM के लंबे-लंबे विहार नहीं करने पड़ते, Early Morning एकदम अंधेरे में विहार नहीं करने पड़ते और मुंबई – पालीताणा के शासन के काम भी हो जाते. इसमें साधु साध्वीजी की सुरक्षा के Chances ज्यादा होते है, Accident की Risk बहुत कम.

लंबे विहार में गोचरी की समस्या

लंबे विहार में बीच में गोचरी कहां से लानी? या तो रसोड़ा यानी Kitchen साथ में रखना पड़े या फिर Tiffin मंगवाना पड़े या फिर वहां पर ही विहारधाम में या किसी के घर में Special रसोई बनवानी पड़े. इन सब में चाहते ना चाहते हुए भी साधु भगवंतों को दोष तो लगता ही है. उन्हें ना चाहते हुए भी अपवाद का सेवन करना ही पड़ता है.

सोचिए साधु भगवंत चलकर क्यों जाते हैं? Car – Scooter – Van आदि में क्यों नहीं जाते? 

हम कहेंगे कि ‘उसमें जीवों की हिंसा होती है इसलिए गुरु भगवंत Scooter पर नहीं बैठते, Car में भी नहीं जाते, अरे! चप्पल भी उसी कारण से नहीं पहनते हैं.’ पैरों की ख़राब हालत के कारण चप्पल जैसे मोज़े पहनने पड़ रहे हैं. अब सोचिए जीवों को बचाने के लिए खुद चप्पल भी नहीं पहननेवाले साधु भगवंत अपने साथ रसोड़ा की गाड़ी रखें या टिफिन के लिए गाड़ी बुलवाए, तो क्या इसमें जीवों की हिंसा नहीं होती? 

यह तो कल्पसूत्र के दृष्टांत जैसा हो गया कि ‘नट को नहीं देखना, नटी को देख सकते हैं.’ अगर नट को देखने में पाप है, तो नटी को देखने में भी तो पाप है. वैसे ही अगर चप्पल पहनने में या गाड़ी चलाने में पाप है, तो गाड़ी साथ में रखने से या टिफिन के लिए गाड़ी दौडाने में भी तो पाप लगेगा ना? 

हम किसी पर ऊँगली नहीं उठा रहे हैं, ना ही हम किसी के दोष देख रहे हैं, लेकिन यह सभी दोष खड़े होते हैं लंबे-लंबे Fast विहारों में! जी हाँ, छोटे छोटे विहार में व्यवस्था न हो, शाकाहारी घर ही न मिले और अपवाद का सेवन करना पड़े तब तो समझ में आता है लेकिन लंबे अनावश्यक विहार के कारण महात्माओं को ना चाहते हुए भी अपवाद का सेवन करना पड़ता है.

विहार के दौरान अनावश्यक हिंसा 

साधु साध्वीजी भगवंतों की विहार सुरक्षा के लिए हम पुलिस वालों को साथ में रखवाए, विहार सेवा वाले युवान सुबह 3-4 बजे उठकर 20 – 40 – 50 KM तक भी गाड़ी में आए, फिर साथ में चले, सूर्योदय से पहले अँधेरा होने के कारण Torch की Light डाल डालकर Traffic को दूर रखें, इस प्रकार साधु साध्वीजी भगवंत तो बच जाएंगे, उनकी रक्षा तो हो जाएगी लेकिन अँधेरे के कारण रास्ते में छोटे-मोटे हजारों जीव मरेंगे उसका क्या? 

उसमें साधु भगवंतों को दोष लगेगा, उसका क्या? 

मत भूलिए अगर छोटे विहार हो तो गुरु भगवंत आराम से सूर्योदय के बाद भी विहार के लिए निकल सकते हैं, लेकिन बड़े और लंबे विहार में अँधेरे में निकलना पड़ता है और फिर Safety Purpose से अलग अलग अनेकों व्यवस्था खड़ी करनी पड़ती है. अरे भाई! Diabetes वाले को पेट भर के मिठाई खिलवानी और बाद में Insulin देना, यह कहां का न्याय है? इससे अच्छा तो यह है कि मिठाई ही मत खिलाओ! 

वैसे ही श्रावक गण अपने प्रोग्राम वगैरह के लिए साधु साध्वीजी भगवंतों को बड़े-बड़े विहार करवाए और फिर उसमें सुरक्षा का Problem खड़ा होने के कारण से पुलिसवालों की या युवाओं की गाड़ी की व्यवस्था करके नई हिंसा खड़ी करे, साधु के ही संयम में दोष लगवाए, वह कहां का न्याय है? 

इससे अच्छा तो यह है कि श्रावक अपने प्रोग्राम नजदीक में रहे हुए गुरु भगवंत के पास ही करवाए और दूर-दूर से किसी को भी विहार करके ना बुलाए. उनको सामने से विनयपूर्वक, विवेकपूर्वक विनती करके मना करें. अनुष्ठान से, Programs से भी ज्यादा कीमत हमारे गुरु भगवंतों की है. विवेकी व्यक्ति यह बात आसानी से समझ पाएगा. 

भक्ति या नुकसान?

अगर श्रावक ऐसा आग्रह रखें ‘मैं तो मेरा प्रोग्राम मेरे स्पेशल गुरु के पास ही करवाऊंगा, दूसरे कोई भी साधु – आचार्य के पास नहीं! भले मेरे स्पेशल गुरु कितने भी दूर हो और दूसरे साधु – आचार्य कितने भी नजदीक क्यों ना हो.’ तो वह श्रावक वास्तव में अपने स्पेशल गुरु का भक्त नहीं है. 

उसकी भावना भले खराब नहीं है लेकिन वह अपनी जिद्द के कारण अपने स्पेशल गुरु का ही नुकसान कर रहा है. दुर्घटना वगैरह नुकसान तो जब होंगे तब होंगे, लेकिन स्पेशल गुरु का स्वाध्याय कम होना, संयम में दोष लगना, शरीर को ज्यादा स्ट्रेस पहुंचाना, यह सब दोष वह भोला श्रावक नहीं समझ रहा है. 

उसकी गुरु भक्ति में नादानियत, नासमझी भरी पड़ी हुई है, विवेक नहीं! गुरु के राग में इतना रागी भी नहीं होना चाहिए कि गुरु की जान को, गुरु के संयम को ही खतरे में डाल दे.

जैनत्व की रक्षा

Fast Train जैसे छोटे Stations पर नहीं रूकती है, सिर्फ वहां से पास हो जाती है, वैसे ही आज ज़्यादातर साधु साध्वीजी भगवंत बीच के छोटे-छोटे गांव में रुकते ही नहीं है, एक महिना तो छोड़ो, 24 घंटे भी नहीं! बीच में अनेक गांव शहर आते हैं, जहां पर वहां रहनेवाले जैन तड़प रहे हैं, विनती करते हैं, भक्ति करते हैं लेकिन उनके वहां पर कोई नहीं रुकता. 

एक ही जवाब होता है ‘हमको आगे पहुंचाना है, हमारे पास दिन कम है.’ गुजरात में रहनेवालों को ऐसा लगता है दक्षिण भारत में जैन लोग है ही नहीं, लेकिन आपको बता दें गुजरात – राजस्थान की तरह ही दक्षिण भारत में ऐसे छोटे-बड़े अनेक गांव – शहर हैं, जहाँ पर अनेकों जैन रहते हैं, जहां पर साधु साध्वीजी भगवंतों का विचारण तो है लेकिन लगभग Fast Train जैसा है. 

अब सोचो उनको साधु साध्वीजी भगवंतों का संपर्क नहीं होगा, उनके उपदेश नहीं मिलेंगे, तो वो जैन धर्म में कैसे स्थिर रहेंगे? कैसे आगे बढ़ेंगे? फिर हम छाती पीटे कि ‘आज की Generation शराब – सिगरेट आदि व्यसनों में डूब गई, लड़कियां अजैन लड़कों के साथ भाग जाती है, सबका Character बिगड़ा हुआ है, जैन लोग धर्म परिवर्तन कर रहे हैं’ तो यह चिल्लाने का मतलब क्या? यह तो होने ही वाला है. 

लेकिन इसके जिम्मेदार कौन? 

साधु साध्वीजी भगवंतों को लंबा-लंबा Fast विहार करानेवाले भक्त श्रावक गण! छोटे-छोटे गांव से शहरों में बिखरे हुए जैनों के जैनत्व की रक्षा, वहां पर साधु साध्वीजी रुककर ही कर पाएंगे. रुकेंगे ही नहीं तो उन्हें ज्ञान कैसे दे पाएंगे? और रुकेंगे कैसे क्योंकि Fast and Long विहार है.

स्वाध्याय में Compromise 

एक बार सोचिए हमारे बच्चे School – College में पढ़े नहीं, सिर्फ घूमते रहे तो उनके भविष्य का क्या होगा? क्या हम ऐसा चला लेंगे? नहीं ना? बच्चों को रोज School – College भेजते ही हैं न, जबरदस्ती पढ़ाई करवाते हैं ना. नानी के घर भी Vacations में भेजते हैं. क्यों? क्योंकि पढ़ाई पर Impact नहीं पढ़ना चाहिए. 

शास्त्रों में श्रावकों को साधु साध्वीजी भगवंतों के माता-पिता कहा गया है, और स्वाध्याय गुरु भगवंतों का प्राणतो क्या श्रावकों का फर्ज नहीं है कि वे साधु साध्वीजी भगवंतों को ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ने में व्यतीत करने दे. हम Train से या Plane से भी Travel करते हैं तो Normal होने में 2-3 दिन लग जाते हैं, तो सोचिए लम्बे विहार की थकान होने के कारण से गुरु भगवंतों को पढ़ने में मन कैसे लगेगा. 

बिलकुल नहीं लगेगा. This is natural. आखिर साधु भी है तो इंसान ही ना! आराम करना वगैरह में उनका पूरा समय चला जाता है, पूरे दिन में मुश्किल से 1 – 2 घंटे पढ़ाई हो पाती है. अगर साधु साध्वीजी पढ़ेंगे नहीं तो ज्ञानी कैसे बनेंगे, और हमको ज्ञान कहां से देंगे? फिर हम ही बोलेंगे कि ‘महाराज साहेब को तो कुछ Knowledge ही नहीं है, उनके व्याख्यान में मजा ही नहीं आता.’ 

अरे भाई! उनको पढ़ने ही नहीं दिया तो अब वो कैसे अच्छा व्याख्यान दे पाएंगे? साधु साध्वीयों में ज्ञान की कमी रखने वाला एक बड़ा कारण है – Fast और लंबे विहार!

हमें यह जानकारी मिली है कि Lockdown के कारण कई साधु साध्वीजी भगवंतों को बहुत बड़ा फायदा हुआ. वह कैसे? तो Lockdown के दौरान विहार नहीं कर पाने से और अनुष्ठानों का आयोजन नहीं होने से गुरु भगवंतों के स्वाध्याय में बहुत बढ़ोतरी हुई. कई महात्माओं ने वाचनाओं दी, कई महात्माओं ने लेखन कार्य किए और कई महात्माओं ने अद्भुत रचनाएं भी की हैं. 

जिन छोटे साधु साध्वीजी भगवंतों के पास ज्ञानी महात्मा थे, उनके लिए तो सोने पे सुहागा जैसा हो गया था. आप खुद Ground पर जाकर गुरु भगवंत से पूछ सकते हैं, आपको Reality पता चल जाएगी. अगर जरुरत से ज्यादा विहार गुरु भगवंतों को ना करना पड़े तो हमें जिनशासन में ज्ञान का अलग ही Level देखने को मिल सकता है.    

गुरु भगवंतों के विचार करने योग्य एक बात

साधु साध्वीजी भगवंतों को अनेक तीर्थ की यात्रा करने का भी कई बार मन होता है. उनकी भावना अच्छी है, प्रभु के प्रति भक्ति भाव है, लेकिन सिर्फ तीर्थ यात्रा के लिए उनका सैंकड़ों हजारों KM का विहार बढ़ेगा. लंबे-लंबे विहार करने पड़ेंगे, इस कारण अंधेरे में विहार करने पड़ेंगे और उसमें Accident के Chance बढ़ने ही वाले हैं. 

Let us accept the reality, भारत में हर साल हजारों की संख्या में Road पर गाड़ियां – Trucks आदि बढ़ते ही जा रहे हैं. Niti Aayog की Report देखें तो पूरे भारत में 2022 में लगभग 40 लाख Trucks थे और 2050 तक एक करोड़ 70 लाख Trucks भारत में दौड़ेगी यानी अगले 25-30 साल में 4 गुना से भी ज्यादा. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 में 460000 Road Accidents के Cases सामने आए हैं, 2021 के मुकाबले 12% ज्यादा. 2050 में क्या होगा सोचिए. 

क्षमा चाहते हैं बहुत ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है, लेकिन यदि कुछ नहीं बदला तो ऐसा लगता है कि एक जगह रजोहरण दिया जाएगा और एक जगह अंतिम पालखी उठाई जाएगी, शायद पालखी के आंकड़े ज्यादा होंगे. 

सभी मानते हैं कि रास्ते अच्छे बन रहे हैं और इस कारण से Driver भी Speed में चलाते हैं. एक छोटी सी टक्कर भी हमारे पूज्य साधु साध्वीजी का जीवन अंत कर देगी. आखिर कब तक Toll Booth पर जाकर Truck Drivers को मिठाई देकर उनसे गुरु भगवंतों के जान की भीख मांगते रहेंगे?

यह दुर्घटनाओं का सिलसिला नहीं चलता होता और साधु साध्वीजी भगवंत अपनी भावना के अनुसार तीर्थ यात्रा करते तब तो कोई बड़ा Issue नहीं था, लेकिन आज बैलगाड़ी का ज़माना नहीं है, आज भारी Traffic को और दुर्घटनाओं को देखकर हमको हमारे परमोपकारी साधु साध्वीजी भगवंतों को Force से विनती करनी ही होगी कि आप आपके संयम के लिए, हमारे लिए, शासन के लिए, Fast and Long विहार करके तीर्थ यात्रा करना और उसके लिए सैंकड़ों KM का Extra विहार करना बंद कीजिए. 

अगर साधु साध्वीजी भगवंत खुद ही निर्णय ले लेते हैं जैसे कि ‘पालीताणा – शंखेश्वर आदि कोई भी तीर्थ की यात्रा के लिए हमको विहार नहीं करना है. जो अत्यंत जरूरी हो उतना ही विहार करना है.’ तो दुर्घटना के Chances और कम हो जाएंगे. वडील महात्माओं के द्वारा यदि ऐसा कोई नियम अपने शिष्य महात्माओं को दे दिया जाता है तो कई महात्माओं का जीवन बच जाएगा.

संयमी की निस्पृहता 

अगर साधु साध्वीजी को ऐसा मन में हो कि ‘यह श्रावक मेरा भक्त है, मेरे गच्छ का है, मेरे परिवार का है, तो उसका प्रोग्राम हमारी निश्रा में ही होना चाहिए. अगर वह किसी दूसरे के पास करवाएंगे तो वह शायद दूसरों का भक्त बन जाएगा और हमको यश नहीं मिलेगा, दूसरे साधु को यश मिलेगा. 

अंजन शलाका प्रतिष्ठा वगैरह में हमारा नाम नहीं आएगा, दूसरों का नाम आएगा. इसलिए हमारे भक्त, हमारे गच्छ के श्रावक वगैरह के कोई भी प्रोग्राम में हमको जाना ही है. लंबे Fast विहार करके भी जाना है लेकिन दूसरों के पास तो उसको प्रोग्राम करने नहीं देना है.’

अगर ऐसी सोच साधु साध्वीजी भगवंत की हो तो साधु जीवन में भी ममता का, यश की लालसा का, नाम की लालसा का बहुत बड़ा संसार खड़ा हो जाएगा. हमारे जैन साधुओं में ऐसा तो नहीं होगा, होना भी नहीं चाहिए! वह तो उदार ही रहे, निस्पृह ही रहे. ‘मेरा भक्त, मेरे गच्छ का श्रावक किसी दूसरे का भक्त बन जाए तो उसमें मेरी आत्मा को कोई नुकसान नहीं है.’ 

यह एक ही सोच हमारे पूज्य जैन साधु साध्वीजी भगवंतों की होनी चाहिए और ऐसा होगा तो वह एकदम आसानी से अपने भक्तों की अविवेकी जिद्द के सामने मना कर पाएंगे. नजदीक के कोई उत्तम साधु के लिए प्रेरणा भी कर पाएंगे.

दुर्घटनाओं में भाग्य का दोष?

दुर्घटना में कालधर्म होने के बाद कुछ लोग कहते हैं ‘जो भाग्य में लिखा हुआ है, वही होता है. होनी को कौन टाल सकता है?’ यह कहना सरासर गलत है! हम पुरुषार्थ उल्टा करें और फिर Negative Result आने पर भाग्य को दोष दे, वह भला कहां का न्याय है? 

फिर तो कोई अगर Terrace पर से नीचे कूद जाए, उसे Fracture हो जाए, वह मर जाए उसके बाद अगर बोला जाए कि जो भाग्य में लिखा होता है, वही होता है. कोई व्यक्ति रास्ते में बीचों-बीच चले और उसका Accident हो जाए, हाथ पैर टूट जाए, तब अगर कहा जाए कि होनी को कौन टाल सकता है? तो क्या सही रहेगा? 

ऐसा बिल्कुल नहीं मानना है कि सब कुछ भाग्य के आधार पर होता है, नहीं! जैन धर्म में भाग्य यानी कर्म को दो प्रकार का माना गया है – निकाचित और अनिकाचित. उसमें जो निकाचित कर्म है, वह अवश्य भुगतना ही पड़ता है, उससे भगवान भी नहीं बच सकते. लेकिन जो अनिकाचित पापकर्म है, उसमें ऐसा नहीं है कि वह पाप का फल भुगतना ही पड़ेगा. 

अगर हम गलत पुरुषार्थ करें तो वह पाप का फल भुगतना ही पड़ेगा और अगर सही पुरुषार्थ करें तो वह पाप कर्म अपना फल दिए बिना ही खत्म हो जाता है. सीधी भाषा में बात करें तो 100 साल की आयुष्यवाला (उम्रवाला) जीव भी अगर जहर पीता है, तो 25 साल की उम्र में भी मर सकता है, वरना 100 साल तक जी सकता था. 

वैसे ही साधु साध्वीजी भगवंत भी लंबे Fast विहार, अंधेरे में विहार करेंगे तो पक्के Chances है कि आज के भारी Traffic में, दौड़ती हुई गाड़ियों के बीच में वह कम उम्र में मर सकते हैं और यह सब भूल न करें, तो लंबी जिंदगी जी सकते हैं यानी कि दुर्घटना से अगर मृत्यु होती हो तो उसे भाग्य का दोष मानने की गलती ना करें! वह गलत पुरुषार्थ का ही दोष है. 

सही पुरुषार्थ करने के बाद भी अगर Negative Result मिले तो जरूर भाग्य को दोष दे सकते है लेकिन सही पुरुषार्थ तो करना पड़ेगा ना? 

शासन हिलना का कारण

आज ऐसे दुर्घटनाओं के वातावरण के बीच सबसे ज्यादा नुकसान किसे हो रहा है पता है, परमात्मा के बताए हुए सिद्धांतों को. आज जब बार बार ऐसे Accidents की News लोग जब देखते हैं, तो अजैन तो छोड़िये, खुद अज्ञानी जैन भी कह देते हैं, “अब ज़माना बदल गया है, महात्माओं को पैदल चलना बंद कर देना चाहिए, ये विहार सब अब बंद होने चाहिए, समय की Need के अनुसार अब गुरु भगवंतों को Vehicles का उपयोग करना शुरू कर देना चाहिए.” 

उन्हें क्या पता विहार का महत्त्व! लेकिन प्रभु के बताएं हुए इस विहार के आचरण पर आज हमारे कारण उगंली उठ रही है, अजैन लोग तो हँसते हैं कि यह जैन लोग इतनी वाह वाह करके, ठाटबाट से, ढोल नगाड़े के साथ दीक्षा देते हैं और फिर अपने साधुओं को ऐसे Highway पर मरने के लिए छोड़ देते हैं. 

यह शासन निंदा, विहार की निंदा, साधु भगवंतों के आचरण की निंदा का कारण क्या है ज़रूर सोचिएगा. इस तरह से मृत्यु देखकर क्या कोई जैन धर्म अपनाएगा? किसी अजैन परिवार में जन्में बालक को जैन धर्म की दीक्षा लेनी हो तो क्या उसके माता-पिता दीक्षा की अनुमति देंगे? 

मत भूलिए शासन को कई बड़े बड़े विरल महात्मा छोटे छोटे गाँवों से जन्म से अजैन परिवार से महात्माओं के छोटे छोटे गाँवों में विचरण के कारण प्राप्त हुए हैं, जिन्होंने देश की संस्कृति के लिए एक से एक अद्भुत कार्य किए हैं, सोचिए एक महात्मा को तैयार करने में कितने ही बड़े बड़े आचार्य भगवंतों, गुरु भगवंतों की शक्ति लगती है, और वो सब कुछ एक झटके में ख़त्म.

अंत में इतना ही कहना है कि हम तो सामान्य व्यक्ति हैं, साधु साध्वीजी भगवंतों को उपदेश देने का हमें कोई हक नहीं है. हम उसके लिए लायक भी नहीं है, अधिकार भी नहीं है लेकिन साधु साध्वीजी की सैंकड़ों की संख्या में जो अकाल मृत्यु हो रही है, वह सहन नहीं होती, इसलिए यह सब कुछ लिखा है. 

गुरु भगवंत तक यह पूरा संदेश शायद ना पहुँच पाए इसलिए जो लोग यह पढ़ रहे हैं और चाहते हैं कि गुरु भगवंतों की रक्षा हो, उनसे निवेदन है कि इस Article का Print लेकर Please उन्हें दीजिएगा. अपने-अपने परिचित साधु साध्वीजी भगवंतों तक भी जरूर पहुंचाइएगा और भक्त-श्रावक गण जो इधर से उधर गुरु भगवंतों को ताबड़तोड़ विहार करवाते हैं उनके साथ भी Share कीजिएगा.

हमारे पूज्य गुरु भगवंत ही हमारा जिनशासन है, जिनशासन श्रावक श्राविकाओं से नहीं, साधु-साध्वीजी भगवंतों से चलता है, वो नहीं रहेंगे तो कुछ नहीं बचेगा, हमें ढम-ढम और मम-मम से ऊपर उठकर सोचना पड़ेगा, पंच परमेष्ठी में आते हमारे पूज्य गुरु भगवंत हमारी आस्था है, हमारी संपत्ति है, हमारे जंगम तीर्थ है, वो मजदूर नहीं है कि उनसे रोड मपाते रहे.

हमारी बातों से कुछ भी दुख हुआ हो तो वापस क्षमायाचना करते हैं, मिच्छा मि दुक्कडम्! 
बस उद्देश्य समझिएगा.

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