श्री कटारियाजी जैन तीर्थ का रोचक इतिहास
आज हम गुजरात के कच्छ जिले में बसे श्री कटारियाजी जैन तीर्थ के बारे में जानेंगे. Kutch ऐसे तो कई लोगों के लिए Tourism का एक स्थान होगा, लेकिन अध्यात्मिक दृष्टी से देखें तो Kutch एक जीवंत उर्जा भूमि है, जहाँ के प्रवेश द्वार पर ही बसा है हमारा श्री कटारियाजी जैन तीर्थ.
श्री कटारियाजी जैन तीर्थ की प्रथम प्रतिष्ठा आज से लगभग 400 वर्ष पहले अकबर बादशाह के प्रतिबोधक आचार्य भगवंत श्री हीरविजय सूरीश्वरजी महाराजा के शिष्य श्री विजय सिंह सूरीश्वरजी महाराजा के द्वारा विक्रम संवत 1641 में हुई थी.
तब मूलनायक के रूप में श्री महावीर स्वामी प्रभु की प्रतिमा उनके द्वारा प्रतिष्ठित की गई थी. यह महावीर प्रभु की प्रतिमा उसी समय की है.
वर्तमान में यहाँ पर मूलनायक परमात्मा के रूप में श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान बिराजमान है, लेकिन यह भगवान यहाँ पर कैसे आए? और श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की यह प्रतिमा का महाभारत के काल से क्या Connection है?
इस तीर्थ की और भी रोचक बातें एवं इससे जुड़ा एक अद्भुत चमत्कार भी जानेंगे.
बने रहिए इस Article के अंत तक.
कटारिया और वांढिया का इतिहास
तीर्थ के बारे में जानने से पहले इस कटारिया स्थान के रोमाचक और दिल को छू लेनेवाले इतिहास पर एक नज़र डालते हैं.
कच्छ के बहादुर राजा लाखा फुलानी के शासनकाल से पहले, आनंदपुर नामक एक विशाल समृद्ध शहर था. इसमें आज के कटारिया और वांढिया दोनों गाँव शामिल थे. इतिहास के पन्नों पर अपना नाम अमर करनेवाले सेठ श्री जगडूशा द्वारा निर्मित जिनालय भी यहाँ मौजूद थे.
आनंदपुर एक बहुत ही Wealthy City थी, अनेकों श्रेष्ठियों की हवेलियाँ यहाँ बनी हुई थी. Unfortunately बाहरी आक्रान्ताओं के लगातार आक्रमण के कारण यहाँ रहनेवाले लोगों को यह स्थान छोड़कर जाना पड़ा. फिर आनंदपुर दो अलग गाँवों में बंट गया-कटारिया और वांढिया.
ये दोनों नामों के पीछे भी वीरता से भरा एक इतिहास है. आनंदपुर के North Side में एक बाबाजी रहते थे, जिन्होंने अपने भेड़ बकरियों के लालनपालन के लिए एक विशाल वाडा बनवाया था. वागड़ क्षेत्र में ऐसी जगह को ‘वाढ’ कहा जाता है.
जब शत्रुओं ने आक्रमण किया तब यह बाबाजी ने बहुत ही बहादुरी से लड़ाई लड़ी और दुश्मनों का सामना किया, लेकिन फिर बाबाजी घायल हुए और गिर पड़े. बाबाजी के वीर रक्त के छींटे इस उत्तर आनंदपुर की भूमि पर पड़े और फिर गाँव का नाम वांढिया पड़ा.
आनंदपुर के दक्षिण में जब शत्रुओं ने आक्रमण किया, तब हमलावरों ने एक महिला के पति की हत्या कर दी थी तब वह क्षत्राणी महिला एक शेरनी के जैसे हाथ में खुला खंजर लिए, अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए उस हत्यारे पर टूट पड़ी, जिसने उसके पति की हत्या की थी.
इस वीरांगना ने उसे घोड़े से नीचे गिराया और उसकी छाती पर चढ़ गई और खंजर उसकी छाती में घोंप दिया. अंत में वह भी वीरगति को प्राप्त हुई. हाथ में खंजर था, जिसे कटारी भी कहा जाता है उससे वह लड़ी थी इसलिए यह दक्षिण आनंदपुर का नाम कररिया और फिर कटारिया पड़ा.
कटारिया में प्रभु वीर का आगमन
आक्रमणों के कारण Unfortunately यहाँ का भव्य जिनालय भी टूट गया, तब इस जिनालय में मूलनायक के रूप में श्री महावीर प्रभु प्रतिष्ठित थे. यह आक्रमण विक्रम संवत 1875 के आसपास हुआ लेकिन मूलनायक महावीर स्वामी भगवान की प्रतिमा Safe रही और विक्रम संवत 1875 में यह प्रतिमाजी को वांढिया गाँव के जिनमंदिर में स्थापित की गई.
यह प्रतिमाजी वापस कटारिया तीर्थ में लाने के अनेकों प्रयास हुए लेकिन कई वर्षों तक सफलता नहीं मिली. विक्रम संवत 1977 के चातुर्मास के दौरान जब परम पूज्य मुनिराज श्री कनकविजयजी महाराज साहेब वांढिया में बिराजमान थे, तब उन्हें कटारिया जाने के दैवीय संकेत मिले.
कुछ समय बाद वे कटारिया पहुंचे और किसी दैवीय संकेत से उन्हें कटारिया के इस प्राचीन एवं भव्य तीर्थ के जीर्णोद्धार की प्रेरणा प्राप्त हुई. संघ ने पूरी तरह से सहयोग किया और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ.
विक्रम संवत 1978 में पूज्य मुनिराज श्री कनकविजयजी महाराज साहेब श्री संघ के साथ जब प्रभु को लेने वांढिया पहुंचे तब प्रतिमाजी को उठाने के लिए जब हाथ आगे बढाए तब अपने आप ही यह महावीर स्वामी भगवान की प्रतिमा हवा में अद्धर हो गई, अपने आप हवा में थी और प्रतिमाजी का वज़न एक दम हल्का हो गया था, जैसे फूलों की कोई माला हो, इतना कम Weight यानी शायद प्रतिमाजी को अपने मूल स्थान में पहुँचने की जल्दी थी.
यह चमत्कारिक दृश्य देखकर हर कोई हैरान रह गया था, लोगों की आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे और संघ नाचने लगा. बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ आखा तीज के शुभ दिन यह भगवान पुनः श्री कटारियाजी तीर्थ में प्रतिष्ठित किए गए.
प्रभु वीर का अद्भुत प्रभाव
मालीया निवासी सेठ अमृतलाल जादवजी महेता ने इस प्राचिन तीर्थ को पुनः जीर्णोद्धार कर ऊतम बनाया और आगे ऊम्र के कारण अपनी शारिरिक अस्वस्थता के चलते इस तीर्थ का विकास कार्य अपने और गुरूवर के विश्वासु श्रावक श्री अमृतलाल दलीचंद महेता (AD Mehta) को सौंपा.
उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक श्री कटारीयाजी तीर्थ को अपने ह्रदय में रखकर उस समय आर्थिक संशाधनों की मर्यादाओ के बीच में भी बहेतर विकास कर इसे लोक भाग्य बनाया. ऐसा कहा जाता है कि प्रतिष्ठा के कुछ दिनों के बाद एक और दैवीय घटना घटी थी, यह घटना जब आप यहाँ यात्रा करने पधारो तब वहां पेढ़ी पर से अवश्य जान सकते हैं.
विक्रम संवत 1993 में पूज्य श्री कनकविजयजी महाराज साहेब के शिष्य पूज्य श्री गुलाबविजयजी महाराज साहेब एवं आचार्य भगवंत श्री विजय कनकसूरीश्वरजी महाराज साहेब की पावन निश्रा में कच्छ, अबडासा, काठियावाड़ एवं वागड़ से बड़ी संख्या में लोग पधारे थे और इस शुभ अवसर पर अन्य जिनबिंब, यक्ष यक्षिणी की प्रतिष्ठा की गई.
भगवान की पुनः प्रतिष्ठा के बाद एक चौंकानेवाली घटना यहाँ पर घटी थी. बारिश के मौसम में भी इस गाँव की नदी में पानी नहीं रहता था, इसलिए यहाँ के स्थानिक लोगों को बहुत दूर-लगभग 2 मील दूर से पानी लाना पड़ता था लेकिन पुनः प्रतिष्ठा के बाद स्थानिक लोगों की यह सबसे बड़ी समस्या ख़त्म हो गई और नदी में पानी रहने लगा. इससे प्रभु के प्रति लोगों की आस्था और ज्यादा बढ़ गई.
श्री कटारिया जी जैन तीर्थ में मूलनायक भगवान श्री महावीर स्वामी थे, तो फिर श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की प्रतिमाजी कहाँ से आई?
महाभारत से जुड़ा इतिहास
तो आपको बता दें कच्छ के इतिहास में विक्रम संवत 2057 में 26th Jan 2001 में जो भयानक भूकंप आया था. कच्छ जिला तहस नहस हो चुका था. इस भूकंप ने लगभग 25000 लोगों की जान ले ली थी.
पूज्य कलापूर्णसूरीश्वरजी महाराज साहेब तब पावापुरी, राजस्थान में बिराजमान थे, उनका ह्रदय द्रवित हो गया था और तुरंत उनके द्वारा प्रेरणा की गई जिससे करोड़ों रुपयों का Fund भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में भेजा गया.
इस भूकंप में इस जिनालय को बहुत नुकसान पहुंचा था लेकिन आश्चार्य भगवान की प्रतिमाजी को कोई क्षति नहीं पहुंची. पूज्य आचार्य भगवंत श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी महाराजा के मार्गदर्शन से, उनके आशीर्वाद से भूकंप के दो वर्षों के बाद एक बार फिर जीर्णोद्धार का कार्य तेज़ गति से शुरू हुआ.
दूसरी तरफ रापर तालुका में, गेड़ी नामक गाँव में यह श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की महाभारत के समय की पांडवकालीन प्रतिमाजी बिराजमान थी. यह प्रतिमा पहले गेड़ीगाम नामक स्थान के जिनालय में प्रतिष्ठित थी लेकिन जो भयानक भूकंप आया था, उस कुदरत के कहर में गेड़ीगाम का जिनालय भी ध्वस्त हो गया था.
यहाँ भी यही आश्चर्य – प्रतिमाजी एकदम Safe.
तब अध्यात्मयोगी परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी महाराजा की प्रेरणा से वह प्रतिमाजी, यही कच्छ के श्री कटारिया जी तीर्थ में लाइ गई और बहुत ही शुभभाव से, आदरपूर्वक कटारिया जी तीर्थ के प्राचीन मूलनायक भगवान श्री महावीर स्वमी के स्थान पर यह प्राचीन भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 2062 में पूज्य आचार्य भगवंत श्री कलाप्रभसूरीश्वरजी महाराजा के द्वारा की गई.
अनेकों आक्रमणों के बाद भी, कुदरती कहर के बाद भी यह दोनों प्रतिमाएं आज सही सलामत कटारियाजी जैन तीर्थ में अपना वैभव लिए प्रतिष्ठित है. दोनों अद्भुत और ऐतिहासिक भगवान के दर्शन कटारियाजी तीर्थ में कर सकते हैं.
तीर्थ की विशेषताएँ
शनिवार को विशेष सैंकड़ों की संख्या में भक्तजन यहाँ भगवान के दर्शन आदि करने आते हैं. वर्तमान में सेठ वर्धमान आनंदजी की पेढ़ी के द्वारा तीर्थ का अद्भुत विकास करने में आया है. भारत मंडपम शैली के अनुसार, गुलाबी पत्थर से निर्मित, भव्य गगनचुंबी जिनालय आनेवाले यात्रियों में आध्यात्मिक उर्जा भर देने का कार्य कर रहा है.
यहाँ पर परमात्मा की छत्रछाया में सैंकड़ों साधकों ने अपनी साधना की है. इस तीर्थ के ठीक पास में प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान को समर्पित जैन ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार निर्मित श्री शत्रुंजय जिन प्रासाद भी अपनी खूबियाँ लिए शोभ रहा है.
यह जिनालय का रंगमंडप अद्भुत काष्टकला से सुशोभित है. यानी इस जिनालय का रंगमंडप लकड़े से बना हुआ है जो आनेवाले यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देता है. इस तरह की काष्ट की कारीगरी से सुशोभित लगभग भारत का एक मात्र जिनालय है. रंगमंडप देखकर देलवाडा के जिनालयों की याद आ जाए ऐसी कारीगरी है.
अलग अलग ग्रहों के परमात्मा एवं अधिष्ठायक देव के हिसाब से दैवीय साधना मंडप यहाँ पर देखने को मिलता है. वास्तुशास्त्र की दृष्टी से यह जिनालय का निर्माण कार्य कुछ इस तरह से किया गया है कि यहाँ पर आनेवाले यात्रियों को, साधकों को एक अलग प्रकार की उर्जा एवं चेतना की प्राप्ति हो सकती है.
हमारे Life में जो कोई भी Problems हो उनके सामने लड़ने के लिए आत्मबल की प्राप्ति यहाँ पर हो सकती है. जो तीर्थों की यात्रा करते हैं, उनके जन्म-मरण की यात्रा ख़त्म होते देर नहीं लगती.
Hill Stations, Amusement Parks आदि से तो सिर्फ Temporary ख़ुशी मिलती है लेकिन पवित्र तीर्थों की यात्रा से हमेशा हमेशा के लिए भवभ्रमण से आजादी मिल सकती है यानी Permanent ख़ुशी मिल सकती है.
आज तीर्थों पर जाते हैं तो तीर्थ में कौनसे भगवान है, क्या इतिहास है वह पूछने से पहले हम यही पूछते हैं कि धर्मशाला है या नहीं, भोजनशाला आदि Facilities है या नहीं. हालांकि Facilities को देखकर हमारी यात्रा Decide नहीं होनी चाहिए.
फिर भी आपको बता दें इस तीर्थ में 60+ AC / Non AC Rooms उपलब्ध है, यहाँ की भोजनशाला में शुद्ध सात्विक भोजन की सुंदर व्यवस्था है. इस प्राचीन तीर्थ पर कोई अनुष्ठान आदि भी करवाना हो तो 7000 sqft जितना Conference Hall एवं 10000 sqft जितना DOM भी सुविधाओं के लिए उपलब्ध है.
Nearby Locations
Kutch के प्रवेश द्वार पर सूरजबारी गांधीधाम National Highway से सिर्फ 2 Km की दूरी पर और पालनपुर गाँधीधाम National Highway 8A से सिर्फ 6 Km की दूरी पर यह कटारियाजी जैन तीर्थ स्थित है.
अहमदाबाद से सामखियाली की Journey सिर्फ 4 घंटे की है और फिर सामखियाली नगर से कटारिया गाँव सिर्फ 17 KM की दूरी पर है. आप यदि Search करेंगे तो कटारिया नाम से अलग अलग 2-3 स्थान है.
Confusion ना हो इसलिए Location की Link निचे दी गई है 👇
Google Location Of Shri Katariyaji Jain Tirth : https://maps.app.goo.gl/GpXCko5VrhxRaTtX6
कहते हैं कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा लेकिन हम कहेंगे कि कच्छ का “श्री कटारियाजी जैन तीर्थ” नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा.