प्रस्तुत है आगम ज्ञानी बनो Series के अंतर्गत न चइज्जइ चालेउं,
उपदेशमाला ग्रंथ का Episode 04
महइ-महावद्धमाणजिणचंदो।
उवसग्गसहस्सेहिं वि,
मेरु जहा वायगुंजाहिं।। (04) Updeshmala Granth
जैसे कितना भी बड़ा तूफान मेरु पर्वत को हिला नहीं सकता, वैसे कितने भी भयानक उपसर्ग मोक्ष की इच्छावाले प्रभु को हिला नहीं पाए।
यह गाथा का Short अर्थ है। अभी विस्तार से देखते हैं।
1. प्रभु का मन सिर्फ और सिर्फ मोक्ष में लगा हुआ है इसलिए संसार के कोई भी सुख की इच्छा नहीं है और किसी भी दुख से डर भी नहीं है।
2. जो चीज मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ते हुए जीव को मार्ग से भ्रष्ट कर दे और संसार के मार्ग पर ले जाए वह चीज को उपसर्ग कहते हैं।
कान में कीलों की मार, संगम की मार यह सब ऐसी चीज थी कि जो प्रभु को चारित्र से भ्रष्ट कर दे, समता में से क्रोध की तरफ ले जाए लेकिन प्रभु तनिक भी हिले नहीं, मोक्ष मार्ग में अड़ग रहे।
3. 12 साल में वह उपसर्ग भी एक-दो-पांच-50 नहीं लेकिन हजारों आए थे।
12 साल के 4320 दिन थे, हम ऐसा समझ सकते हैं कि प्रभु को Average हर रोज एक तो जानलेवा उपसर्ग आया ही है।
4. ज्ञानी गुरु भगवंत कहते हैं कि प्रभु को याद करके हमको भी मेरु जैसा अड़ग बनना है। कितने भी Problems क्यों ना आए, डरना नहीं, रोना नहीं, भागना नहीं। बस बुद्धि के सहारे, देव-गुरु के सहारे, श्रद्धा के सहारे लड़ना है।
Problems से लड़ना और Strong रहना हमारा कर्तव्य है। हमको पेड़ के सूखे पत्ते नहीं बनना है जो छोटे से हवा के झोंके से गिर जाए। हमको मेरु पर्वत बनना है जो तूफानों के सामने भी एक तिल जितना भी हिले नहीं।
5. आज का माहौल देखें तो अनेकों युवा अपने रास्ते से भटक गए हैं। थोड़े बहुत ख़राब निमित्त मिले तो अपने Goal को भूल जाते हैं, अपनी Responsibilities को भूल जाते हैं, परिवार को, धर्म को भूल जाते हैं और गलत कार्यों में बुरी तरह से फंस जाते हैं।
मान लो हम यदि दीक्षा नहीं भी लेने वाले हैं तब भी भौतिक जीवन में भी प्रभु के गुण हमें काम ही आनेवाले हैं। प्रभु अपने समभाव को, वीतरागता को, मोक्ष के Goal को भूले नहीं, इसलिए उन्हें कोई भी हिला नहीं पाया, अपने मोक्ष मार्ग से भ्रष्ट नहीं कर पाया।
अब प्रश्न हमारे लिए खड़ा होता है-क्या जीवन में कोई Goal है?
क्या उस Goal की तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं?
क्या वह Goal हमें हमारे धर्म से दूर करनेवाला तो नहीं है ना?
खुद से पूछ सकते हैं।