क्या यह दुनिया एक Drama है?
प्रस्तुत है Friend or Foe Book का Episode 10.
भैया! यह तो Stage है
रामलीला वाला Solution सबसे Best. Stage पर तीन घंटे तक शत्रुता का वातावरण हमें देखने को मिलता है क्योंकि Organiser या Director ने उन उन Roles में उन्हें Appoint किया है. Actor और Villain Movie में Fight करते हैं क्योंकि उन्हें Director ने हीरो-विलेन का Role दिया है, Real Life में जिंदगीभर वे एक दूसरे को न तो घुरते हैं और न ही कुत्ते-कमीने कहकर एक दूसरे का गला पकडते हैं.
इसी Fact को, सच्चाई को, Life और विश्व के Stage पर लाना है. This is the stage, Everything is Possible. Shakespeare ने एक Sonnet में लिखा है ‘World is the stage of Drama, We are Actors.’
विश्व के इस Stage पर सब अपना अपना Role अदा कर रहे हैं. कर्मसत्ता सूत्रधार है यानी Director है. वह किसीको Hero का Part देता है तो किसी को Villain का.
यह भी Shooting है
कर्मसत्ता के Order से, कोई हमें गाली दे रहा है तो कोई हमें गोली से दाग रहा है. कोई हमारा हास-परिहास कर रहा है तो कोई हमें त्रास दे रहा है, कोई हमारी चीज बिगाड़ रहा है तो कोई हमें उजाड़ रहा है. कोई हमें पीडित कर रहा है तो कोई हमें दण्डित कर रहा है और कोई तो हमारे खून का भी प्यासा है.
कर्मसत्ता ऐसे एक नहीं अनेक Shot लेता है, विविध प्रकार के Scenes खडे करवाता है, मनमौजी जो है. इसकी रीति-नीति का भी न ठोर है न ठिकाना. कभी हीरो को विलेन का पार्ट पकड़ा देता है तो कभी विलेन को हीरो का अभिनय.
कुछ भी हो, सृष्टि का हर एक प्राणी उसके इशारों पर ही नाच रहा है, अलग अलग Acting कर रहा है इसलिए किसी जीव विशेष का गलत बर्ताव देखकर यदि हम यह सोच ले कि ‘यह तो फिल्म के Director-नाट्यमंडली के सूत्रधार, जिसका नाम है ‘सर्व श्री कर्मसत्ता’ ने उन्हें यह Role दिया कि तुम प्रतिकूल बर्ताव करो.
जब तक वह Cut नहीं कहता तब तक वे उस रोल को अदा करते ही रहेंगे, हकीकत तो कुछ और ही है. हम तो अनादिकाल से मित्र ही है. “इसलिए उस जीव के वर्तमान के इस व्यवहार को मुझे बहुत महत्त्व नहीं देना चाहिए.”
बस, यदि हम अन्य विचार धाराओं के भँवरों में न फँसकर इसे अपनाते है तो आनंद ही आनंद है. सामनेवाले व्यक्ति पर न होता है क्रोध, न वैर, न संक्लेश की परंपरा क्योंकि मन को हमने मना लिया कि यह तो Drama है.
मान अपमान सब समान
इसी तरह जीवन एक Fixed Order से चलता जा रहा है. हमने मान लिया विश्व एक रंग मंच है, Drama का Stage है. बस, यही सोच हमारी Key to Happiness बन जाती है. क्योंकि इस सोच के बाद जीवन में कोई भी घटना क्यों न आ जाए, दुख नहीं लगता.
नाटक में जिसे गाली सुननी है, अपमान सहना है, तकलीफें Face करनी है, वह यही सोचता है कि ‘अरे, यह तो नाटक है. तो दुखी क्यों होना और दुःखी हुए बिना. यदि मैं सब कुछ हँसते मुँह सहता हूँ. Angryman के मुक्के और Public के हर एक धक्के, कभी अपमान तो कभी सम्मान, फिर भी मैं सब में Calm रहता हूँ.
तभी तो मुझे Director-सूत्रधार भरपूर पैसे देता है.’ ऐसा मानने से वह सदा हँसता है. गाली-बाली, मान-अपमान उसके मन कुछ भी नहीं. उसे गाली सुनने से न एतराज होता है न दुःख. क्योंकि उसे पता है सब Acting है. इसी प्रकार कोई हमारा अपमान भी करता है तो भी हम हलके से ले लेते हैं.
अरे, यह दुनिया तो नाटक है.. इसका दुःख क्या तो लगाना. दुखी हुए बिना सब कुछ हँसते मुँह सहन करूँगा तो अपूर्व कर्मों की निर्जरा होगी. अपार पुण्यराशि की संपत्ति मिलेगी और सद्गति की परंपरा के द्वारा अनंत सुख का शाश्वत धाम मोक्ष मिलेगा.
कर्मसत्ता का Concept समझने के लिए पूज्य श्री द्वारा लिखित Jailer Book है, उसकी Series हम पहले Cover कर चुके हैं वह अवश्य देखिएगा उसके द्वारा कर्मसत्ता का Concept Clear हो जाएगा.
ऐसे सुंदर और सात्त्विक विचार हम यदि आज से ही करने लगे तो अपमानादि सहन करना हमारे मन के लिए Easy हो जाएगा. हाँ. इन्हीं विचारों के द्वारा महात्माओं ने प्राणों पर आए हुए कष्ट भी समताभाव से, Calmly सहे थे न. और Result मिला मोक्ष अथवा सद्गति.
पूज्य श्री कहते हैं कि इतना जानने के बाद तो हर व्यक्ति बोल उठेगा कि ‘भाड़ में जाए ऐसी शत्रुता जिसने मेरी सद्गति को बर्बाद करके रख दिया, मेरे सुख चैन को बर्बाद कर दिया. अब से शत्रुता करनी है तो करूँगा, शत्रुता पर ही और मैत्री को गले लगाऊँगा. सच, शत्रुता को ख़त्म करने के लिए एक Best Weapon है, जिसका नाम हे मैत्री.
गूँज रहा होगा वह स्वर अब भी मनमस्तिष्क में ‘सर्वे ते प्रिय बान्धवाः न हि रिपुरिह कोपि’ अर्थात् संसार के सभी जीव मेरे मित्र है, शत्रु कोई भी नहीं.
एक मिनट.. हमारा शत्रु है, एक शत्रु है, जी हाँ! बहुत बड़ा शत्रु और उसके साथ तो हमें लड़ना ही होगा.
लेकिन वो कौन है? जानेंगे अगले Episode में.