द्विदल महापाप क्यों? – द्विदल के पाप से किस तरह बचा जा सकता है?

What is Dwidal? & Why is it considered as Mahapaap in Jainism?

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By Jain Media 470 Views 45 Min Read
Highlights
  • जिसके दो दल हो सकते हैं या होते हों ऐसी तमाम दाल जैसे मूंग, अरहर यानी तुअर, चने की दाल आदि दाल दलहन को कच्चे दूध एवं कच्चे दही एवं कच्ची छाछ के साथ मिलाने पर उसमें तुरंत बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति और वृद्धि हो जाती है, जिसे खाने अथवा खिलाने पर उन जीवों की हिंसा का महापाप लगता है, इसे द्विदल कहा जाता है. 
  • द्विदल का भक्षण महापाप है, धर्म संग्रह में तो लिखा ही है कि द्विदल का भक्षण करने में मांसाहार करने जैसा पाप लगता है.
  • “अरे रे, जैन धर्म में कितने Restrictions है, हे भगवान.” ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचना है. परमात्मा हमारे हितचिंतक है. प्रभु हमारे सुखों के दुश्मन नहीं है, मगर वे हमें पापों से बचाना चाहते हैं, वो पाप जो करना में बहुत आनंद आता है लेकिन भविष्य में दुःखदायी हो जाते हैं. कच्चे दूध-दही के सुखों से नहीं मगर उससे होनेवाले पापों से ही प्रभु हमें बचाना चाहते हैं. 

जैन धर्म के अनुसार द्विदल महापाप क्यों?

Confusion ये है कि जैन धर्म में द्विदल खाने पर पाप क्यों बताया गया है? और क्यों द्विदल भक्षण को त्याग करने को कहा जाता है? Solution जानने के लिए बने रहिए इस Article के अंत तक.

ये जानकारी हमने प.पू. पंन्यास प्रवर श्री निर्मोहसुंदरविजयजी महाराज साहेब द्वारा लिखित धर्म प्रेमी संदेश मैगज़ीन से ली है. 

द्विदल क्यों अभक्ष्य कहा गया है, और द्विदल होता क्या है आइए देखते हैं सरल भाषा में. सबसे पहले एक घटना देखते हैं. 

एक बार एक प्रतिष्ठित जैन भाई भोजनालय में भोजन करने बैठे थे. तभी उन्होंने छाछ मंगवाई. पास में बैठे जानकार जैन भाई ने उन्हें तुरंत भोजन की थाली पर ही टोक दिया कि कच्चे दही से बनी छाछ भी कच्ची रहती है और उसे दाल-दलहन से बनी हुई कोई भी भोजन सामग्री के साथ खाने पर द्विदल का महापाप लगता है. 

उस भाई ने कहा कि जब तक मैं उसमें जीवों की उत्पत्ति न देख लूँ तब तक मैं उसे खाने में पाप नहीं मानूँगा. उस वक्त तो उन्होंने विवेक का उपयोग करते हुए नहीं खाया लेकिन बाद में वो प्रयोगशाला में ताजा दही एवं ताजी बनाई हुई मटर की सब्जी लेकर पहुँचे. 

दोनों चीजें Check की गई और दोनों ताज़ी और जीवों के बिना की थी, लेकिन जैसे ही दोनों का मिलन किया गया, यानी जैसे ही दोनों को Mix किया गया, Lab की Machines में बड़े-बड़े जीवों की उत्पत्ति होती स्पष्ट दिखाई पड़ी. दही में मानो सफेद रंग के Microscope में दिखाई देनेवाले कीड़े पैदा हो गए. 

इस Experiment के बाद उन्होंने ये बात स्वीकार की और उस दिन से उन्होंने जीवन भर के लिए द्विदल का पाप छोड़ दिया. 

द्विदल यानी क्या?

जैन धर्म में 22 अभक्ष्य में द्विदल को पाप बताया गया है. जिसके दो दल हो सकते हैं या होते हों ऐसी तमाम दाल जैसे मूंग, मसुर, उड़द, राजमा, अरहर यानी तुअर, चना, मोंठ, चौला, हरी चौली, वटाना यानी मटर, मेथी, मेथी की भाजी, कुलथी, चने की दाल आदि दाल दलहन को कच्चे दूध एवं कच्चे दही एवं कच्ची छाछ के साथ मिलाने पर उसमें तत्काल यानी तुरंत बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति और वृद्धि हो जाती है, जिसे खाने अथवा खिलाने पर उन जीवों की हिंसा का महापाप लगता है. इसे द्विदल कहा जाता है. 

जैन दर्शन में 22 अभक्ष्य में द्विदल का वर्णन आता है. बेइन्द्रिय जीव यानी केचुआ, Snail, लट, Worms आदि जीव. ऐसे ही बेइन्द्रिय जीव द्विदल में तुरंत उत्पन्न हो जाते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ जीव आँखों से दिख जाते हैं और कुछ इतने छोटे होते हैं कि जो हमारी आँखों से Directly नहीं दिखते. 

यहाँ पर आँखों से नहीं दिखनेवाले लेकिन Microscope में दिख रहे जीव पैदा हो जाते हैं. Hubli के एक बड़े Lab में जब द्विदल को Microscope में देखा गया तब ऐसा भयानक नज़ारा देखने को मिला आप खुद अपनी आँखों से देख सकते हैं! द्विदल होने पर किस तरह के जीव उत्पन्न होते हैं.

द्विदल का विषय शायद माइक्रोस्कोप में हमें बहुत स्पष्ट रूप से दिख जाएगा लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है कि हर सिद्धांत अथवा विषय इसी तरह माइक्रोस्कोप अथवा Machines में दिखेगा ही. सत्य को Prove होने के लिए साधन की ज़रूरत नहीं है, साधन के बिना भी सत्य प्रमाणित हो सकता है यानी सत्य को साधन के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. खैर,

द्विदल भक्षण है महापाप

सामान्यतः जैन धर्म के अनुसार गृहस्थ धर्म पाल रहे ऐसे श्रावक-श्राविकाओं को अपना जीवन यापन करने के लिए कुछ Conditions के साथ सिर्फ एकेंद्रीय जीवों की हिंसा की Permission है, वो भी हो सके उतनी कम से कम करनी है. लेकिन बेइंद्रिय से लेकर पंचेंद्रिय तक के जीवों को हनन करने एवं भक्षण करने पर पाबंदी है, Prohibited है, क्योंकि उसमें दिल को ज्यादा कठोर बनाना पड़ता है, निष्ठुर बनना पड़ता है, इसलिए पाप भी अधिक लगता है. 

इसकी पूरी चर्चा हमने एकेन्द्रिय VS पंचेन्द्रिय वाले Topic में देखी है. 

आपकी जानकारी के लिए बता दें बेइंद्रीय से लेकर पंचेंद्रिय जीवों के भक्षण में मांसाहार भक्षण का भी दोष सामान्यतः बताया गया है, इसीलिए कैंचुए से बनी Chinese Item या Cockroach का आचार, टिड्‌डे का आचार हम खा तो नहीं सकते, खाने का सोच भी नहीं सकते. 

हम कोमल दिल से जीने वाले इंसान है, कोई पशु नहीं है कि अपनी जीभ की आसक्ति के वश यानी Taste के पागलपन के चक्कर में किसी को भी अपने पेट में डालते रहें. बेइन्द्रिय जीव का भक्षण यानी एक अपेक्षा से मांसाहार भक्षण ही समझना है. इसलिए द्विदल का भक्षण महापाप है. 

धर्म संग्रह में तो लिखा ही है कि द्विदल का भक्षण करने में मांसाहार तुल्य पाप लगता है. योगशास्त्र का शास्त्रपाठ आप पढ़ सकते हैं.

Yogshastra Path

द्विदल से कैसे बच सकते हैं?

अनंत तीर्थंकर परमात्मा द्वारा यह बताया गया है कि मूंग की दाल हो, चाहे मूंग हो, चना हो, चाहे चने की दाल, उड़द हो या उड़द की दाल हो, मटर हो, अरहर (तूअर) की दाल हो, हरी वालोर पपड़ी हो, चाहे चौले की सब्जी हो, चौली हो, राजमा हो, मेथी हो या ऐसी ही अन्य दाल (मसूर इत्यादि) दलहन है. 

इन दाल-दलहन के साथ या इन दाल दलहन से बनी हुई कोई भी चीज के साथ ऐसा दूध या दही Mix किया जाए जो गरम नहीं किया गया हो और फिर उसका भक्षण किया जाए तो महापाप लगता है. अनेक बेइंद्रिय जीवों के प्राणों के हनन का-हिंसा का-अभक्ष्य भक्षण एवं अनंत तीर्थंकरों के आदेश के हनन का महापाप. 

इन दाल-दलहन के साथ गरम दूध अथवा दही मिलाने पर जीवों की उत्पत्ति नहीं होती. गरम दूध या दही मतलब पूरा उबाला हुआ दूध अथवा दही. सिर्फ थोडा सा कम या थोडा सा ज्यादा गर्म किया हो यानी उबाला हुआ ना हो ऐसे दूध अथवा दही के साथ दाल दलहन Mix करने पर भी जीव उत्पत्ति शुरू हो जाती है. 

इसलिए दूध अथवा दही का उबालकर दाल-दलहन के साथ काम में लेना Is Must. दही कैसे गरम करना है, उसका Process क्या होता है? ये जानने के लिए आपको यह Article अंत तक पढ़ना होगा.  

Please understand, दाल-दलहन या उससे बने भोजन के पदार्थ खाने की कोई मनाही नहीं है. ठीक उसी प्रकार दूध-दही या उससे बने खाद्य पदार्थ खाने पर भी कोई पाबंदी नहीं है. दोनों चीज़ें भक्ष्य है. शर्त सिर्फ इतनी सी है कि, साथ में खाना हो तो चाय की तरह उबालने के बाद यानी दूध-दही या उससे बने खाद्य पदार्थ उबालने के बाद उसमें दाल-दलहन मिले यानी मिश्रित हो, Mix हो तो भी कोई पाप नहीं है, उबाले हुए दूध दही के साथ दाल दलहन Mix होने पर जीवों की उत्पत्ति नहीं होती. 

For Example: यदि रायते में चना दाल के आटे यानी बेसन से बनी बूंदी डालकर खाना है तो रायता गर्म किए हुए दही से बनाया गया हो और उसके बाद उसमें यदि बूंदी डालें तो कोई पाप नहीं लगेगा. जैसे दाल से बने पापड़ खाए, उसके ऊपर गर्म करने बाद ठंडी की गई छाछ पीए तो कोई पाप नहीं, कच्ची छाछ पी ली तो द्विदल का महा पाप. 

सावधानी सिर्फ इतनी ही रखनी है कि यदि कच्चे दूध-दही या उससे बने खाद्य पदार्थ का उपयोग ही करना हो तो दाल-दलहन को या उससे बने पदार्थों को ज़रा सा भी उसमें मिश्रित होने से बचाना है. यह तो हमने जाना कि द्विदल क्या होता है और वह अभक्ष्य क्यों है. 

द्विदल से बचने के उपाय

द्विदल का पाप रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे होने की संभावना है और द्विदल के महापाप से बचने के लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए आइए जानते हैं 18 Points में. ये 18 Points पूरे Focus के साथ पढ़िएगा.

1. एक बात ख़ास समझने जैसी है कि सिर्फ कच्चा दूध या कच्चे दही से बनी चीजें काल के अनुसार खाने में कोई पाप नहीं है लेकिन वो ही चीजें जैसे श्रीखंड, छाछ, लस्सी, दूध का क्रीम इत्यादि दाल-दलहन के साथ खाने पर ही महापाप के भागीदार हम बनते हैं. यानी दोनों अलग अलग हो तब भक्ष्य है लेकिन Mix होने पर ही वो अभक्ष्य बन जाते है. 

यह दोनों रसोई में बनाते वक्त मिल जाए तो भी महापाप, थाली में यदि मिल जाए तो भी महापाप, हाथ में मिल जाए तो भी महापाप, खाते वक्त पहले कच्चे दही से बना श्रीखंड खाया और उसी झूठे मुँह से उड़द-मूंग का बना हुआ पापड़ खाया तो मुंह में Mix होने पर भी द्विदल का महापाप लग जाता है. 

हालाँकि, बिना गर्म की गई कच्ची छाछ आदि पीने के बाद मुंह को पानी पीकर एकदम स्वच्छ कर लिया हो तो उसके ऊपर दाल दलहन की बनी कुछ भी चीज़ खाने पर द्विदल का पाप नहीं लगेगा, इसी तरह पहले दाल दलहन की बनी कुछ भी चीज़ खाई, फिर पानी से मुँह पूरा स्वच्छ कर दिया, फिर छाछ पी तो भी द्विदल का पाप नहीं लगेगा. 

क्योंकि शरीर के अंदर रहे हुए Acid के कारण और Chemical Process से उस खाए हुए अन्न में बेइंद्रिय जीवों की उत्पत्ति-विनाश नहीं होता इसलिए यह महापाप नहीं होता है. इतनी छोटी सी समझ यदि हर परिवार के सभी सदस्यों को आ जाए तो कितने सारे पापों से हम बच सकते हैं और शरीर निरोगी भी रह सकता है. 

हर शाकाहारी व्यक्ति को द्विदल का पाप ना हो इसकी सावधानी अवश्य रखनी चाहिए.

2. सामान्य सावधानी देखें तो, कढ़ी हर घर में बनती है, लेकिन एक पाप वाली कढ़ी है तो दूसरी निष्पाप वाली. कैसे? तो समझिए, दही से बनाई कढ़ी में थोड़ी सी सतर्कता हमें बड़े पाप से बचा सकती है. दही की कढ़ी में बेसन यानी चने का आटा पहले डालो या बाद में स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन दही पूरी तरह से गर्म होने से पहले यानी उबलने से पहले यदि बेसन डाल दिया तो बेइन्द्रिय जीव तुरंत उत्पन्न होने निश्चित हैं और अग्नि में उबलती कढ़ी में मरने भी निश्चित है. 

लेकिन, वो ही बेसन यानी चने का आटा कढ़ी में दही गर्म होने के बाद में डाला गया तो, बिल्कुल भी पाप नहीं लगेगा. बेसन यानी चने का आटा. चना भी दाल होने से द्विदल की सावधानी रखनी होती है. गुजरती व्यंजन जैसे खमनी, खमण, थेपला आदि में बेसन में कच्चा दही मिला दिया जाता है जिससे द्विदल होने के कारण जीव हिंसा का महापाप लगता है इसलिए इसमें हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए कि अगर दाल-दलहन वाली कोई Item में दही या छाछ मिलाना हो तो वे अच्छी तरह से गरम किए हुए ही होने चाहिए. 

पापड-पापड़ी-खिचिया आदि के साथ दही या छाछ लेते समय ध्यान रखना चाहिए कि दही या छाछ गरम किए हुए हों वरना द्विदल का पाप लग सकता है.     

3. छाछ कई सारे घरों में गर्मी के दिनों और आम तौर पर भी पी जाती है. भोजन के बाद झूठे मुँह को पानी से स्वच्छ करके, मुँह में भोजन का बिल्कुल भी अंश न होने के बाद वो ही छाछ पीने में आए तो बिल्कुल भी पाप नहीं लगेगा. कच्चा श्रीखंड खाने के पीछे स्वाद की फिक्र हो तो रसोई का Menu भी ऐसा ही रखना चाहिए ताकि कि द्विदल की संभावना ही ना हो जिससे द्विदल का पाप ना लगे. 

कढ़ी भी अगर बेसन से नहीं बल्कि चावल के आटे से बनी हो, उसमें मेथी ना डाली गई हो, लौकी, तुरई, गिलकी आदि की सब्जी हो, रोटी चावल हो तो कोई द्विदल की संभावना ही नहीं होगी. हालांकि इसमें भी जोखिम खड़ा हो सकता है. मेथी के दाने से तो द्विदल होता है, मेथी के पत्तों से भी होता है और आचार से भी. 

इसलिए अच्छा तो यही रहेगा कि श्रीखंड को गर्म करने के बाद ही खाया जाए. जैसे घर पर मेथी की भाजी की सब्जी बनी हो और साथ में पुलाव और दही हो तब, मेथी की भाजी के साथ एवं पुलाव में डाले गए मटर के साथ कच्चा दही द्विदल हो जाता है इसलिए इस दही को पक्का कर लेना चाहिए. पक्का यानी पूरा उबाला हुआ दही. 

आमरस से भी हो सकता है द्विदल

4. आमरस में कच्चा दूध ही कई बार डाला जाता है, क्योंकि दूध गर्म करना फिर ठंडा करना फिर आमरस में Mix करना, बहुत झंझट वाला काम हो जाता है, घर पर तो फिर भी हम कर देते हैं लेकिन सामूहिक भोज में ये सब बहुत Hectic हो जाता है इसलिए रसोई बनाने वाले आमरस में कच्चा दूध डाल देते हैं, अब आमरस देखकर जीभ किसी की भी लपलपाती ही है. 

व्यक्ति थाली में लेकर आमरस पीएगा, 2-3 बार Taste से पीएगा. पीने के बाद उसी थाली में, उन्ही हाथों से दाल चावल खाएगा. वो ये सोचेगा कि आज तो मज़ा आ गया. इस मज़ा की सजा मिलेगी तब नानी याद आ जाएगी. देखिए, आमरस जिस थाली में लिया, पहले तो वो थाली चलती नहीं, फिर जिस हाथ से पीया वो हाथ धोए नहीं, साफ़ किए नहीं, जिस मुंह से आमरस पीया वो मुंह भी साफ़ और स्वच्छ किया नहीं. 

दाल चावल खाते ही बेइन्द्रिय जीव थाली में, हाथ में एवं मुंह में उत्पन्न हो जाएंगे. इसी तरह से बाकी सब चीज़ों में भी समझना है. जैसे पापड छाछ, जैसे दही की चाट Item के ऊपर डाली जाती नमकीन सेव, जैसे दही की Item और दाल चावल आदि. 

Please Note-ये चीज़ें अभक्ष्य नहीं है, यानी कि हम ऐसा नहीं कह रहे हैं कि कच्चे दूध वाला आमरस नहीं पीना है या फिर पापड़ नहीं खाना है या दही वाली Item नहीं खानी है. हमारा कहना सिर्फ इतना है कि कच्चे दूध या दही से बनी item हो तो दाल दलहन के साथ नहीं खाना है. दोनों का Mixing थाली में, हाथ में या मुंह में नहीं होना चाहिए बस. 

5. कुछ लोगों को द्विदल का मतलब सिर्फ कच्चे दही और दाल का मिश्रण लगता है. लेकिन नहीं, ये अधूरी जानकारी है. सिर्फ कच्चा दही ही नहीं बल्कि कच्चा दूध, एवं कच्चे दही से बनी छाछ के साथ दाल दलहन अथवा दाल दलहन से बनी कोई भी चीज़ मिश्रित होने पर बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं. 

कच्चे दूध-दही-छाछ-श्रीखंड आदि के साथ, नमकीन सेव-भुजिया, सेव की सब्जी, दाल के चिल्डे, इडली-वडा-दोसा-उत्तपम-बोंडा आदि, मुंग-उड़द के लड्डू, दालीये की चटनी आदि खाने से द्विदल का पाप लगता है. तेल जो नमकीन इत्यादि तलने में Use किया हो, कई बार वो तेल फिर से बाद में Use के लिए अलग रख दिया जाता है. 

अब मान लीजिए तेल में दाल-दलहन की कोई चीज़ तली हो, सेव इत्यादि नमकीन तला हो तो दाल-दलहन का अंश तेल में रहता ही है. अब इसी तेल को फिर कच्ची छाछ, दही में Use नहीं करना है यानी ऐसे तेल से कच्चे दही में तड़का नहीं लगाना चाहिए. 

साधु साध्वीजी की सावधानी

6. द्विदल के पाप से बचने के लिए जैन साधु-साध्वीजी भगवंत क्या करते हैं? हमें जानकर आश्चर्य होगा कि जैन साधु साध्वीजी भगवंत इस महापाप से बचने के लिए कितनी सुंदर सावधानी रखते हैं. 

जैन साधु के आहार को गोचरी कहते हैं. गोचरी के लिए जानेवाले साधु भगवंत को ख़ास शिक्षा यानी Training दी जाती है या उन्हीं साधु भगवंत को गोचरी के लिए भेजा जाता है, जो इन सारी बातों को जानते हो. यदि नीचे के पात्रे में दाल-दलहन हो तो ऊपर के पात्र में कच्चे दूध-दही से बनी चीजें लाते ही नहीं है. क्योंकि कच्चे दूध-दही या छाछ की एक बूंद भी नीचे के पात्र में यानी जिसमें दाल हैं उसमे मिल जाए तो जीवों की उत्पत्ति शुरू हो जाती है, वह पात्र ही छोड़ देना पड़ता है. 

Vice-Versa भी नहीं चलेगा, यानी ऊपर दाल या दाल की सब्जी आदि हो तो नीचे कच्चे दूध-दही से बनी चीज़ नहीं लाएंगे. साधु-साध्वीजी भगवंतों के लिए बेंद्रिय जीवों का नाश यानी महाव्रतों का भंग. इसलिए अलग अलग पात्रा में लाया जाता है, अथवा अलग अलग महात्माओं द्वारा लाया जाता है, लाने के बाद भी अलग-अलग पात्र में दूर-दूर ही रखा जाता है. 

दाल-दही को परस्पर Untouchable मानकर व्यवहार किया जाता है. जिस पात्र में कच्चा दही हो, उसे खाली करने के बाद, उसे धोने के लिए भी अलग पानी, उस पात्र को पोंछने के लिए भी अलग कपड़ा और उस स्थान को भी पौंछने के लिए अलग कपड़ा उपयोग में लिया जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं, उस पात्र को पौंछकर साफ करनेवाले वस्त्र को भी अलग से धोया जाता है, ताकि बेंद्रिय जीवों की हिंसा का दोष ना लगे. 

श्रावक – श्राविकाओं की सावधानी

7. इस बारे में कुछ श्रावक श्राविकाएं भी बहुत सावधानी बरतते हैं. 

कई सारे श्रावक-श्राविकाएँ ऐसे भी होते हैं जिनकी जयणा यानी जीव रक्षा की तत्परता काबिले तारीफ है. एक बार घर के किसी सदस्य की गलती से दही वाले बर्तन में दाल का अंश गिर गया तो उन्होंने दही के पात्र को छूने से भी मना कर दिया और वृक्ष की शीतल छाँव में रख दिया. ऐसी भी श्राविकाएँ होती हैं, हालाँकि ऐसी Situation ही नहीं आए उसका पूरा ध्यान रखना चाहिए. 

कुछ श्रावक श्राविका मिस्सी रोटी नहीं खाते हैं, क्योंकि उसमें गेहूं के आटे के साथ बेसन यानी चने का आटा आता है, जो कच्चे दही में द्विदल होगा, खाते भी है तो सावधानी पूर्वक खाते हैं, उसके साथ कच्चा दही वगैरह नहीं लेते. कुछ जैन लोग आटा भी घर में ही पीसते हैं, जी हाँ! क्योंकि बाजार की चक्की में बेसन का अंश भी गेहूँ के आटे में मिलने पर द्विदल के पाप की संभावना जाग जाती है क्योंकि वो रोटी फिर कच्चे दही के साथ खाई जाए तो द्विदल की गड़बड़ी हो जाती है.

8. सावधानी किस स्तर की हो सकती है? 

वालकेश्वर, मुंबई की एक श्राविका बहन अपने घर पर कच्चे दही से बनी Items खाने में अलग ही रखते हैं. भोजन पूरा हो गया, द्विदल ना हो उसका पूरा ध्यान रख लिया, लेकिन जो दही की Item वाला Main बर्तन हो वो धोने पर बचे कुचे दही के अंश भी Sink अथवा गटर में मिश्रित होकर जीव हिंसा का पाप न हो, इसलिए ये श्राविका बहन अपने घर पर जलते चुल्हे में दही का वो बर्तन संडासी से पकड़कर, दही गर्म करके ही, दही अथवा छाछ के अंतिम अवशेष धोने के लिए भेजते हैं ताकि गटर में भी दाल-दही मिश्रित न हो जाए. 

शायद कई लोगों को लगता होगा कि किचन क्या है, रोटी सब्ज़ी ही तो बनानी है, मामूली बात है, जी नहीं. रसोई संभालना कोई मामूली बात नहीं है, ये एक बहुत बड़ा Art है, अपने आप में एक धार्मिक कार्य है. जयणा ये कोई मामूली शब्द नहीं है, ये तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा है, इसलिए जिस रसोईघर में जयणा का पालन होता है वो अपने आप में मंदिर बन जाता है.

कई लोगों को लगता है श्राविका बहनें क्या ही करती है, बहुत Easy काम है, उठो आटा तैयार करो, 15-20 रोटी बनाओं, सब्जी बनाओं, बर्तन धो लो, हो गया काम. अगर आप भी ऐसी हलकी सोच रखते हैं तो बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं. जयणा पालना, जयणा पूर्वक रसोई का कार्य संभालना ये कोई मामूली काम नहीं है, ये एक Art है. 

ये एक बहुत मुश्किल कला है. जयणा यानी प्रभु की आज्ञा है. जहाँ जयणा पाली जाती है, स्वयं प्रभु वहां बसते हैं ऐसा समझ सकते हैं. वे श्राविका बहनों को आज हम धन्यवाद कहना चाहते हैं जो इतनी सूक्ष्म जयणा का ध्यान रखकर पूरे परिवार को अभक्ष्य भक्षण से एवं बेइन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा से बचा लेती है. इसलिए श्राविकाओं को ख़ास कहा जाता है कि शादी से पहले या रसोई का कार्य संभालने से पहले जीव विचार अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि पता चले कि जयणा किस किस तरह से पाली जाती है. 

9. आजकल कई परिवारों में Hotel में खाना एक Regular Routine जैसा हो गया है. हो सकता है ये बात सुनकर कई लोगों को झटका लगेगा, कड़वा भी लगेगा लेकिन सच्चाई हमें पता होनी चाहिए. हमें शायद ऐसा लगता है कि होटल में जैन फ़ूड कह दिया तो जैन फ़ूड हो जाता है. जी नहीं, इस भ्रम में हमें नहीं रहना चाहिए, 

हमारी मान्यता कम से कम क्लियर होनी चाहिए. होटल में द्विदल की संभावना बहुत अधिक हो जाती है. क्योंकि होटल वालों को द्विदल का कोई ज्ञान नहीं होता. वहाँ दही गर्म नहीं किया जाता. Hotel में बनाने वाला कोई जैन श्रावक या श्राविका नहीं है, ना ही उन्हें जयणा की जानकारी है. 

पानी छानना तो बहुत दूर का रहा, कच्चे दूध-दही के साथ दाल दलहन मिश्रित ना हो इसकी संभावना ना के बराबर हो जाती है. ऐसी सावधानी वो क्यों रखेंगे? और इसलिए होटल में दाल-दलहन के बर्तनों के साथ कच्चे दूध दही के बर्तन का परस्पर मिलना, छींटें उड़ने आदि के Chances Extreme रहते हैं. इससे द्विदल के Chances Extreme हो जाते हैं, और द्विदल यानी एक अपेक्षा से मांसाहार ही समझना है. 

Social Media Platforms पर भी कई लोग कच्चे दही के साथ दाल दलहन Mix की हुई Recipes बताते हैं जिसमें द्विदल की गड़बड़ होती है इसलिए Online Recipe देखकर बिना जयणा का ध्यान रखे यदि Copy करेंगे तो Offline में द्विदल होने से बहुत बड़ी गड़बड़ होगी इसलिए सावधान रहें. सतर्क रहें. 

आयुर्वेद में भी उड़द-दही को Mix करके खाने में विरुद्ध आहार का दोष बताया है, हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टी से हानिकारक है, इसलिए मना किया है लेकिन यदि हम धर्म की दृष्टी से, जयणा की दृष्टी से, प्रभु आज्ञा की दृष्टी से देखें तो जिनाज्ञापालन का लाभ भी मिलेगा.

10. Street Food, Junk Food, बाहर का खाना जैसे दही कचोरी, दही वाली सेवपुरी, दही की पापड़ी चाट, दही मटर चाट, दही की टिक्की, दही समोसा चाट, दही भल्ला पापड़ी चाट आदि चीजें जहाँ पर इस तरह की बेसन की सेव अथवा बूंदी अथवा कोई भी दाल-दलहन की बनी चीज़ और और उसके साथ कच्चा दही Mix हुआ वहां पर बेइन्द्रिय जीव तुरंत उत्पन्न हो गए ये मानकर चलना है. 

दही चावल और द्विदल

कई बार दही चावल में भी जो तड़का डालते हैं, उसमें उड़द दाल या चना दाल का भी प्रयोग किया जाता है इसलिए यदि द्विदल के पाप से बचना हो तो ऐसे दही चावल में दही पहले गरम करके फिर उपयोग करना चाहिए. कई लोग ऐसे Hotel के या शादी के भोज के दही चावल को भी Jain Food समझकर खाते हैं, Hotel में दही गरम करने की झंझट कोई नहीं करेगा इसलिए उसमें बेइन्द्रिय जीव खा रहे हैं, ये मानकर चलना चाहिए.

जैन भोजनशाला में भी यदि दही चावल हों तो आप रसोई में जाकर या फिर रसोई के किसी सेवा कर्मचारी से Boldly पूछ सकते हैं कि क्या दही चावल में दही डालने से पहले गरम किया गया था या नहीं. यदि जवाब हाँ में हो और अगर आपको फिर भी सही ना लगे, Satisfaction ना हो तो आप Safer Side में दही चावल खाना Avoid कर सकते हैं. 

कई लोग नारियल आदि की चटनी में भी कच्चा दही डालते हैं और उसी चटनी में दालिया जिसे हम फुटाना भी कहते हैं वो भी डालते हैं और बाद में चटनी के तडके में उड़द दाल या चना दाल का भी उपयोग करते हैं जिससे द्विदल का दोष लगता है. इसलिए चटनी बनाते समय उसमें गरम दही का उपयोग करना चाहिए और अगर कच्चा दही डालना है तो फिर चटनी में दाल-दलहन डालना या फिर उस चटनी के साथ दाल-दलहन की कोई भी चीज़ खाना Avoid करना चाहिए. 

11. गुरु भगवंतों का कहना है कि कम से कम सब लोग इतना तो प्रण ले कि द्विदल के महापाप से बचने के लिए इसकी सूक्ष्म बातों को किसी ज्ञानी सद्गुरु के पास बैठकर अवश्य समझेंगे और यदि द्विदल का पाप धर्म के क्षेत्र में अथवा किसी भी क्षेत्र में हो रहा है तो उसे रोकने के पूर्ण प्रयास करेंगे. 

हमारे रूकवाने पर भी कोई नहीं रूकेगा तो हम उस तथाकथित धार्मिक भोज का पूर्ण बहिष्कार करेंगे. दही या दूध को बिना उबाले ही डाल दिया गया हो ऐसे दहीवड़े, Cream Salad, आमरस, छाछ, श्रीखंड, बूंदी दाने का दही का रायता, दही की दिल्ली चाट इत्यादि नहीं खाएंगे और ना ही अन्य को खाने देंगे. 

मसूर-राजमा-मोठ-मूंग-उड़द-अरहर-कुलथी-मेथीदाना-तुअर, चना, चौली, मटर इत्यादि दाल-दलहन यानी कि जिसके दो दल तोड़न पर होते हो उससे बने कोई भी खाद्य पदार्थ को कच्चे गोरस से दूर रखेंगे यानी दूध-दही से दूर रखेंगे. 

पूज्य गुरु भगवंत कहते हैं कि धार्मिक अथवा कोई भी सामूहिक भोज यहाँ तक कि शादी के भोजन में भी द्विदल का पाप ना हो इसलिए जहां भोजन तैयार हो रहा हो वहाँ बर्तन दूर दूर ही रखने चाहिए, और जयणा का पालन करवाने के लिए एक-दो जानकार व्यक्ति को हमेशा उधर हाज़िर रहकर नज़र रखनी चाहिए, हर संघ में कुछ लोगों को विशेष जयणा की Training लेनी चाहिए ताकि जब भी उस शहर अथवा गाँव में कोई भोजन का कार्य हो तो वे लोग Duty दे सके. 

12. मुंबई के मलाड़ के विजयभाई दाढ़ी नामके सुश्रावक ने एक किस्सा बताया था. सुबह की नवकारसी यानी नाश्ता एक संघ में था. दूसरी बार महात्मा चाय वोहरने के लिए चौके में आए. उस वक्त चाय खत्म होने के कारण दूसरी बार की रखी हुई थी और उसमें अभी-अभी कच्चा दूध डाला गया था, जो पूरा उबला भी नहीं था. 

जल्दी जल्दी में किसी अज्ञानी व्यक्ति ने महात्मा को गैस पर रही बड़ी भगोनी में से Jug भरकर चाय वहोरा दी. तभी पीछे-पीछे यह श्रावक विजय भाई दौड़ते हुए गए और महात्मा को सतर्क किया कि ‘अभी आप जो चाय ले गए हो, वह बेसन से बनी सेव या गांठीए के साथ मत लेना, द्विदल हो जाएगा इसलिए अलग से चाय पी लेना क्योंकि चाय में डाला गया दूध अभी कच्चा है.’ 

गुरु भगवंत ने उस श्रावक की जयणा को नमस्कार किया.

13. अब व्यक्तिगत रूप से देखें तो कई लोगों के दांत ऐसे होते हैं कि दांतों के बीच खाना फँस जाता है. कुल्ला करने के बाद भी मुँह यदि साफ़ नहीं होता हो तो ऐसे व्यक्तियों को दाल दलहन की चीज़ें खाने के बाद कच्चा दूध या दही आदि Avoid करना चाहिए. In short सबसे Best Solution है कि दही को गर्म कर दो, फिर सावधानी रखने की झंझट ही नहीं. 

फिर से एक बार कह देते हैं गर्म यानी थोड़ा या ज़्यादा गर्म नहीं पूरा उबालना चाहिए. एक और Safety ये हैं कि सामूहिक भोजन कार्यक्रम में फिर चाहे वो शादी का हो या कहीं भी हो जहाँ हम 100% Sure ना हो कि जयणा का पालन हो रहा है, थोडा सा भी Doubt हो वहां या तो भोजन करना ही नहीं चाहिए, और करना ही पड़े तो कम से कम दही की चीज़ें, दूध की चीज़ें पूरी तरह से Avoid करनी चाहिए, लिलोत्री भी Avoid करनी चाहिए.

दही गर्म करने का तरीका

14. अधिकांश लोगों की शिकायत होती है कि गर्म करने पर दही फट जाता है या बेस्वाद बन जाता है. उसका भी निवारण है कि 10 Kg दही में 100g चावल का आटा मिश्रित कर दिया जाए और फिर गर्म किया जाए तो दही फटेगा भी नहीं, बेस्वाद भी नहीं बनेगा और जल्दी से गर्म हो जाएगा. 

पूरा गर्म करने के बाद में ठण्डा करके उसमें से कुछ भी बना सकते हैं, द्विदल के पाप से बच जाएंगे. यहाँ पर Cooker में दही कैसे गर्म कर सकते हैं, उसको Practically समझेंगे ताकि सब अपने अपने घर पर इसका अच्छे से पालन कर सके. Process बहुत Simple है. 

दही के बर्तन में ही दही को छूरी से काटा जाएगा. जिस तरह खम्मन को काटा जाता है उसी तरह दही में भी करना है, इस तरह से. इससे दही में रहा हुआ पानी पूरे बर्तन में फ़ैल जाएगा. बाद में Cooker में 2 बार सीटी बजे तब तक Wait करना है. 2 बार सीटी बज चुकी है यानी दही Universally गर्म हो चुका है. पूरे बर्तन का कोई भी हिस्सा गर्म होने से बाकी नहीं रहेगा. 

धार्मिक अनुष्ठानों में द्विदल महापाप

15. बहुत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आजकल धर्म क्षेत्र में भी द्विदल का पाप खुलेआम घुस चुका है और बढ़ने लगा है. आजकल के अधिकांश स्वामीवात्सल्य यानी धार्मिक कार्यक्रमों के भोजन में बन रहे दही के खाद्य पदार्थ के कारण, द्विदल का महापाप समस्त संघों के उन सदस्यों के सर पर कलंक बनकर चिपक रहा है, जो अज्ञानी बनकर उस भोज को मस्ती से खा रहे हैं और जो भक्ति के नाम से उसे खिला रहे हैं. 

पाप के स्थानों में पाप हो, समझा जा सकता है लेकिन धर्म के स्थानों में पाप महापाप बन जाता है. अतः स्वामीवात्सल्य में द्विदल का पाप नहीं घुसना चाहिए. आपको एक हैरान कर देनेवाली घटना बताते हैं. जिसके बाद सभी संघों के अग्रणी भी शायद Action Mode में आ जाएंगे. 

एक बहुत बड़े जैन संघ में कई वर्षों से स्वामीवात्सल्य में यानी धार्मिक सामूहिक भोज में  कच्चे दही से बना श्रीखंड परोसा जाता था. भोजन में दाल-दलहन की चीज़ें भी होती ही है तो द्विदल होना स्वाभाविक है. अर्थात् स्वामीवात्सल्य में बेइन्द्रिय जीवों की भयानक हिंसा. 

वहां पर एक धार्मिक परिवार था जिसने इस स्वामीवात्सल्य का Boycott करना शुरू किया. प्रतिष्ठित परिवार होने से संघ के कई लोग उन्हें आने के लिए आमंत्रण करते थे लेकिन उनका कहना था कि जहाँ मेरे परमात्मा की आज्ञा की इस तरह धज्जियाँ उड़ाई जाए वहां हम कदम नहीं रखेंगे. स्वाद के कारण कुछ समय तक ये कच्चे दही का श्रीखंड बनना रुका नहीं, अर्थात् बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा नहीं रुकी. 

आखिरकार एक बार एक बड़े प्रभावक एवं तपस्वी आचार्य भगवंत वहां पधारे. उनकी निश्रा में ये स्वामीवात्सल्य होने वाला था और स्वामीवात्सल्य में तो गुरु भगवंतों को गोचरी वहोराने का लाभ भी मिलता ही है. ये प्रतिष्ठित परिवार का सदस्य जो Boycott Mode में थे, वो पहुंचे आचार्य भगवंत के पास और नम्रतापूर्वक कह दिया कि साहेबजी अगर आप इस स्वामीवात्सल्य में निश्रा देते हैं तो आपको ये कच्चे दही का श्रीखंड रुकवाना पड़ेगा वरना आपको भी इसका पाप अवश्य लगेगा. 

गुरु भगवंत ने पूरी बात जानी और संघ के अग्रणियों को बुलाया और कह दिया कि यदि मेरी निश्रा चाहिए और यदि आप चाहते हैं कि मेरे शिष्य वहां गोचरी के लिए आए तो द्विदल नहीं चलेगा, यानी कच्चे दही का श्रीखंड नहीं चलेगा, बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा नहीं चलेगी, हमारे लिए प्रभु और प्रभु की आज्ञा सर्वोपरि है और यदि आपको वो श्रीखंड की परंपरा चलानी हो तो ना मेरी निश्रा मिलेगी ना ही मेरे साधु उधर आएंगे, अब फैसला आपको करना है. 

आखिरकार संघ ने मिलकर निर्णय किया और कच्चे दही का श्रीखंड रोक दिया गया. इस भयानक जीव हिंसा को रोकने के लिए उस भाई की जितनी अनुमोदना की जाए कम है.

जयणा श्रावकों की जरुरत

16. एक बहुत दुःख की बात कहे तो कई भोजन के कार्यक्रमों में जयणा का ध्यान रखनेवाले अलग अलग श्रावकों को Duty दी जाती है. इन जयणा वाले श्रावक को चारों तरफ से गालियाँ सुननी पड़ती है. रसोई बनानेवाले महाराज भी जयणावाले श्रावकों को अलग नजर से देखते हैं कि आ गए हमारा काम बढाने, अब बोलेंगे कि ये गर्म नहीं किया, दूध गर्म नहीं किया, दही गर्म नहीं किया, दिमाग का दही करेंगे इत्यादि. 

और इससे ज्यादा दुःख तो तब होता है जब खुद जैन लोग, अग्रणी भी जी हाँ अग्रणी भी जयणा श्रावकों से Irritate हो जाते हैं, और क्या नहीं सुनाते कि अरे यार ये आदमी को Kitchen से हटाओं नहीं तो शांति से करने नहीं देगा. अंदर के लोगों की भी गालियाँ, रसोई बनानेवालों की भी गालियाँ. 

और इसलिए इस Duty के लिए बहुत कम लोग तैयार होने की सोचते हैं कि फालतू में गालियाँ सुननी पड़ेगी. Actually में ये जयणा श्रावक ही पूरे स्वामीवात्सल्य में प्रभु की आज्ञा का पालन करवाने में Backbone होते हैं, जिस कार्यक्रम में इनको Freehand दिया जाता हैं वहां बहुत अच्छे से जयणा पलाई जाती है और हजारों लोगों को महापाप से बचाया जाता है. वंदन हैं जयणा श्रावकों को. 

अविधि अशातना के लिए क्षमा चाहते हैं लेकिन एक और गंभीर समस्या ये है कि आज कई गुरु भगवंतों को जब बोला जाता है कि साहेबजी जयणा का पालन नहीं हो रहा तब गुरु भगवंत भी कम या तो बिलकुल भी Interest नहीं लेते, वो सोचते हैं कि ज्यादा बोलने जाएंगे तो Trustees के साथ झगडा हो जाएगा. ये माहौल जिनशासन के भविष्य के लिए कितना सही है वो ही गुरु भगवंतों को अब सोचना होगा. 

17. हम जब कहते हैं कि जयणा का पालन नहीं हो रहा है तो Items कम कर देनी चाहिए, क्या ज़रूरत है 50-50 Items बनाने की तब कई लोगों को मिर्ची लग जाती है, भोजन को भी प्रदर्शन का विषय बना दिया गया है, एक तरफ जहाँ हमारे साधर्मिक भूखे सो रहे हो दूसरी तरह अपने अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए 50-50 Item, शादियों में, धार्मिक भोजन में रखना कितना उचित लगता है? 

कई लोगों को ये बातें कडवी लगने लग जाती है लेकिन ये वास्तविकता है कि जितनी ज्यादा Items उतनी जयणा के Chances कम और इसी कारण से प्रवर समिति ने 13 Items की Limitation की घोषणा की थी लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज बहुत कम जगह इसका पालन हो रहा है. 

खुद के प्रदर्शन के चक्कर में जयणा का पालन न करके खुद तो पाप करते ही है, स्वामीवात्सल्य में आनेवाले लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से पाप करवाकर महापाप के भागिदार बनते हैं. चैत्रसुदी 13 यानी भगवान महावीर जन्म कल्याणक के निमित्त जो भोजन का कार्यक्रम रखा जाता है आज भी कई जगहों पर उसका भोजन, एक दिन पहले की रात में बनाया जाता है. 

18. बूंदीदाने का रायता, दहीवड़ा, दही का रायता, दही से बनी चाट Items एवं कच्चे दुध से मिश्रित आमरस, कच्चे दही से बना श्रीखंड या छाछ, कच्चे दही से बनी इडली-डोसा की चटनी अथवा Cream Salad, अनगिनत Items ऐसे हैं जिनमें कच्चे दूध और कच्चे दही का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है और अधिकांश हलवाईंयो से जब गुरु भगवंत बातों बातों में पूछते हैं तब वो कहते हैं कि दही गर्म करना झंझट है या गर्म करना सबके बस की बात नहीं है. 

स्वामीवात्सल्य, शादी के जीमन आदि सामूहिक भोज में अधिकांश जगह आमरस पिलाना भक्ति माना जाता है, मगर उस आमरस में कच्चा दूध मिलाकर द्विदल के पाप से भक्ति तो नहीं लेकिन कमबख्ति ज़रूर हो रही है. आमरस के कारण द्विदल का पाप किस तरह लग सकता है वह हम 4th Point में देख चुके हैं. तो यह हमने जाना कि किस तरह से रोजमर्रा के जीवन में द्विदल का पाप लगने की संभावना होती है और इसे टालने के लिए क्या सावधानियां रखनी चाहिए. 

मुर्गियां और द्विदल

यहाँ पर एक रोचक घटना जानने जैसी है. 

एक दुकानदार ने किसी को एक रोचक किस्सा सुनाया था. एक ग्राहक खुद के यहाँ रखी मुर्गियों के लिए, उस दुकानदार के पास से बहुत सारा घटिया Quality वाला ख़ाद्यान्न-दाल-दलहन-उड़द इत्यादि खरीदता था. दुकानदार ने पूछा कि मुर्गियां यह खा लेती हैं? उस ग्राहक का उत्तर था कि वैसे तो घटिया किस्म का, सड़ा हुआ यह अन्न पहले नहीं खाती थी मगर बाद में मैंने उसमें छाछ-दही मिलाकर देना शुरू किया और आप आश्चर्य करेंगे, जो दाल-दलहन को देख मुर्गियां मुँह फेर लेती थी, उसमें दही-छाछ मिलाने के बाद से वो बड़े चाव से इसे खा लेती है. 

उसे यह मिश्रण बहुत ही स्वादिष्ट लगता है दही-छाछ इसमें मिलाया नहीं कि तुरंत खाना शुरू.’समझदार लोग कम से कम अब समझ गए होंगे. मुर्गे-मुर्गियों की मुख्य खुराक ही कीड़े होते हैं. हम मुर्गे नहीं है कि कच्चे दही-दाल के मिश्रण यानी द्विदल से पैदा हुए कीड़े अपने पेट में डालें. 

यदि कर्म सत्ता के कसाई की छूरी से बचना हो तो द्विदल त्याग की धर्मसत्ता की शरण में जाना ही पड़ेगा. कर्म सत्ता के हाथों मुर्गे बनना है या धर्मसत्ता के माध्यम से मानव? चुनाव हमें ही करना है. कई लोगों को ऐसी बातें Restrictions लगेगी, लेकिन जो आपने आत्मा के हित का सोचते हैं, उन्हें ये बातें Protection लगेगी. 

जैसी दृष्टी वैसा दृष्टिकोण.

“अरे रे, जैन धर्म में कितने Restrictions है, हे भगवान.” ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचना है. परमात्मा हमारे हितचिंतक है. प्रभु हमारे सुखों के दुश्मन नहीं है, मगर वे हमें पापों से बचाना चाहते हैं, वो पाप जो करना में बहुत आनंद आता है लेकिन भविष्य में दुःखदायी हो जाते हैं. कच्चे दूध-दही के सुखों से नहीं मगर उससे होनेवाले पापों से ही प्रभु हमें बचाना चाहते हैं. 

क्या हम बचना चाहेंगे? फैसला हमें ही करना होगा.

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