“Karunasagar Jeevjeevan Prabhu Veerji..” – Mahaveer Swami Bhagwan’s Prachin Stavan

"करुणासागर जीवजीवन प्रभु वीरजी.." - जैन स्तवन

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वैशाख सुदी 10 के दिन भगवान महावीर स्वामी को ऋजुवालिका नदि के किनारे गोधूलीका आसन में केवलज्ञान हुआ था। इस अद्भुत कल्याणक के निमित्त यह प्राचीन स्तवन – “करुणासागर जीवजीवन प्रभु वीरजी..” प्रस्तुत है।

करुणासागर.. जीवजीवन प्रभु वीरजी
अनंत गुणना धारक.. प्राण आधार जो
मुजने मूकी.. भव अटवीमां एकलो
आप सिधाव्या.. मुक्तिपुरीमां नाथ जो.. (1)

सिद्ध बुद्ध अविनाशी.. पदना भोगी छो
हुं छुं पामर.. मोहजालमां मग्न जो
नाथ निहाली.. शरणे आव्यो नाथजी
तार तार हो.. तारक देव दयाल जो.. (2)

समवसरणमां बेसी.. अमीरस वाणीथी
ज्यारे करता प्रभुजी.. भवि उपकार जो
ते वेला हुं.. भाग्य विहोणो कई गति
जेथी न पाम्यो.. भवसागरनो अंत जो.. (3)

ज्ञान अनंतु.. सुख अनंतु ताहरूं
क्षायिक भावे वर्ते छे.. तुज गुण जो
पण हुं पामी.. रमण करूं परभावमां
तो केम पामुं.. स्वरुप रमणनुं सुख जो.. (4)

सिद्धारथ कुल.. चरण प्रभु महावीरजी
त्रिशला नंदन.. त्रिजगवंदन नाथ जो
मनमंदिरमां.. आवो प्यारा वीरजी
तुम विना आ.. सुनो छे दरबार जो.. (5)

अनेक जीवोने.. तार्या ते करुणानिधि
तो शुं मुजने.. मूकी जशो भगवान जो
मनोहर मुद्रा.. जोवा तलशे ताहरी
उदयरत्न कहे.. द्यो दरिसण प्रभु आज जो.. (6)

करुणासागर.. जीवजीवन प्रभु वीरजी…
करुणासागर.. जीवजीवन प्रभु वीरजी…
करुणासागर.. जीवजीवन प्रभु वीरजी…

रचियता – महाकवि पूज्य उदयरत्न जी महाराज साहेब
गायिका – फोरम प्रशम शाह

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